भजनों से मिला ऐसा मान-पंडित बना गया मुस्लमान
कहते हैं संगत का बहुत असर होता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अच्छों की संगत में इंसान की जिंदगी संवर जाती है तो बुरों की संगत में इंसान की जिंदगी नरक बन जाती है। हमने तो भजन गाने वालों की संगत के रंग में रंग कर अपने एक मित्र को मुस्लमान से पंडित बनते देखा है। यहां पर हमारा पंडित का मतलब यह है कि उस युवक ने मंदिरों में भजन करने के कारण अपने साथियों की तरह ही मांसाहार से किनारा कर लिया और पूरी तरह से भजनों में रम गया। आज भी यह युवक शादी के बाद अपने वादे पर कायम है। यह वादा उन्होंने किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से किया था। आज जबकि हर तरफ देश में साम्प्रदायिकता का जहर फैलाने का काम किया जा रहा है, ऐसे में हमें यह बात याद आ गई जिसका हम यहां उल्लेख कर रहे हैं। वैसे हम एक बात यह भी कहना चाहते हैं कि अक्सर हिन्दुओं को कमजोर समझने की गलती की जाती है, हिन्दु कमजोर नहीं बल्कि रहम दिल है। लेकिन इस रहम दिली का अगर गलत फायदा उठाया गया तो इसका अंजाम घातक भी हो सकता है।
एक मुस्लमान युवक के पंडित जैसे बनने की बात हमें अचानक याद नहीं आई है। यह बात हम इसलिए यहां बताना चाहते हैं कि हमें ब्लाग जगत में यही लगता है कि यहां पर भी हिन्दु और मुस्लिम का भेद है। कोई हिन्दुओं के देवताओं के साथ हो रहे खिलवाड़ के बारे में लिखता है तो कोई मुस्लमान उस पर आवंछित टिप्पणी कर देता है। जी हां ठीक समझे हम बात कर रहे हैं अनिल पुसदकर जी के लेख की। उनके एक लेख पर सलीम भाई ने जो टिप्पणी की उसके बाद पहली बार अनिल जी ने उनके जवाब में एक पोस्ट लिख दी। वैसे यह बात सब जानते हैं कि अनिल जी प्रति उतर नहीं देते हैं। अनिल जी ने प्रति उदर दिया ठीक किया, पर उनके लेख पर जिस तरह की टिप्पणियां आईं उससे कम से कम हमें तो यह कहीं से नहीं लगा कि वास्तव में आज अपने देश में हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में हैं भाई-भाई जैसी स्थिति का कुछ भी प्रतिशत बचा है। हमारा ऐसा मानना है कि अगर एक इंसान गलती कर रहा है और वह रोड़ में नंगा खड़े होकर नाच रहा है तो क्या हम भी नंगे हो जाए। फिर उसमें और हममें फर्क क्या रह जाएगा। जिनकी जैसा फितरत है वो तो वैसा ही करेंगे फिर हम क्यों उनकी तरह अपने कपड़े फाडऩे का काम कर रहे हैं।
हमारा ऐसा मानना है कि वास्तव में हमारा हिन्दु धर्म ऐसा है जो सबको प्यार देने का काम करता है। एक नहीं हजारों उदाहरण मिल जाएंगे इसके लिए। कभी हिन्दुओं के मंदिर में किसी को जाने से नहीं रोका जाता है। लेकिन क्या कभी कोई हिन्दु किसी मस्जिद में जा सकता है? हिन्दुओं के सारे तीर्थ सभी धर्मों को मानने वालों के लिए खुले हैं, पर क्या कोई हिन्दु हज करने जा सकता है? उनको तो वहां फटकने भी नहीं दिया जाएगा। अगर कोई मुस्लिम युवक किसी मंदिर में बैठकर भजन गाता है तो उसको कोई नहीं रोकता है, उस युवक को हिन्दु गले लगाने का काम करते हैं।
हमें याद है हमारे एक बचपन के मित्र हैं शौकत अली उनका छोटा भाई शाकिर अली भी हमारा मित्र है। हमने इस युवक को देखा कि कैसे वह संगत में बदला और पूरी तरह से पंडित जैसा बन गया। बात हमारे गृहनगर भाटापारा की है। वहां पर जो लोग शाकिर के घर आते थे, उनमें से कई लोग ऐसे थे जो रोज शाम को एक मंदिर में बैठकर भजन गाते थे। एक दिन शाकिर भी उनके साथ चला गया, इसके बाद उनका मन वहां ऐसा रम की वह रोज वहां जाने लगा। यही नहीं उन्होंने तो अपने दोस्तों की संगत में मांसाहार भी छोड़ दिया। इसके लिए उसे किसी ने बाध्य नहीं किया था, लेकिन उन्होंने सच्चे मन से ऐेसा किया। वह रोज मंदिर में भजन करने के साथ भगवान का टिका लगाकर निकलता था। हम पहले भी बता चुके हैं कि शाकिर का बड़ा भाई जो कि हमारा मित्र है वह भी रोज हमारे साथ मंदिर जाता था और माता का टिका लगाकर हमारे साथ घुमता था। हमने कभी शौकत ने मांसाहार छोडऩे नहीं कहा। वह कभी भजन करने नहीं गया, पर उनका भाई जाता था। आज से करीब दो दशक पहले शाकिर ने जो मांसाहार से नाता तोड़ा है, उसने फिर शादी के बाद भी उससे नाता नहीं जोड़ा। आज भी उनके घर में जब बिरयानी बनती है तो उनके लिए अलग से खाना बनाया जाता है। शाकिर से उनके परिजनों के साथ ससुराल वालों ने भी मांसाहार के लिए कई बार कहा, पर उन्होंने फिर कभी मांसाहार नहीं किया है।
आखिर ये क्या है? यह उनके मन की भावना ही तो है जिसने उनको भगवान में ऐसा रमाया कि वह पंडित की तरह हो गया। भाटापारा छोडऩे के बाद रायपुर में फिर उनको ऐसा कोई साथ नहीं मिला। वह आज भी जब हमसे मिलता है तो पुराने दिनों को याद करता है और कहता है राजु सच में भाटापारा में मंदिर में भजन करने में जो सुख मिलता था वैसा सुख और कहीं नहीं है। यह एक उदाहरण है जो बताता है कि हिन्दु धर्म क्या है।
हमारा धर्म कभी किसी पर थोपा नहीं गया है। मैं भी अनिल जी की एक बात को दोहराना चाहता हूं कि हिन्दु इतना भी कमजोर नहीं कि उनके मंदिरों में कोई गाय के बछड़े का मांस फेंक कर चला जाए तो वह चुप बैठा रहे। अब यह बात अलग है कि अपने राज्य का मीडिया इतना अच्छा है कि वह यह जानता है कि कौन सी खबर को कैसे प्रकाशित करना है। अगर रायपुर के एक मंदिर में फेंके गए गाय के बछड़े के मांस की फोटो छाप दी जाती तो जरूर साम्प्रयादिकता का जहर फैल सकता था, पर ऐसा नहीं किया गया। अखबार वाले जरूर समझदार हैं, इसी के साथ हिन्दु धर्म के मानने वाले भी समझदार हैं जो बिना सोचे समझे किसी पर आरोप नहीं लगते हैं। लेकिन इतना तय है कि अगर ऐसी हरकत करते किसी को देख लिए जाएगा तो उसका हश्र क्या किया जाएगा यह बताने वाली बात नहीं है।
18 टिप्पणियाँ:
हमारा हिन्दु धर्म ऐसा है जो सबको प्यार देने का काम करता है। एक नहीं हजारों उदाहरण मिल जाएंगे इसके लिए। कभी हिन्दुओं के मंदिर में किसी को जाने से नहीं रोका जाता है। लेकिन क्या कभी कोई हिन्दु किसी मस्जिद में जा सकता है? हिन्दुओं के सारे तीर्थ सभी धर्मों को मानने वालों के लिए खुले हैं, पर क्या कोई हिन्दु हज करने जा सकता है? उनको तो वहां फटकने भी नहीं दिया जाएगा। अगर कोई मुस्लिम युवक किसी मंदिर में बैठकर भजन गाता है तो उसको कोई नहीं रोकता है, उस युवक को हिन्दु गले लगाने का काम करते हैं।
100 फीसदी सही है.
हिन्दुओं को जो करेगा कमजोर समझने की भूल
उसको कर दिया जाएगा चूर-चूर
एक शेर काफी प्रचलित है पेश है-
दूध मांगोगे खीर देंगे
कश्मीर मांगोगे चीर देंगे
हिन्दू संस्कृति है, धर्म नहीं। इस की किसी भी धर्म से तुलना नहीं की जा सकती। इस संस्कृति में सभी धर्मों के लिए स्थान है, बशर्ते की वे धृणा न फैलाएँ। आज अमरीका में जो सहिष्णुता आ रही है उस के लिए कहा जा रहा है कि क्या अमरीका हिंदु होता जा रहा है। लिंक देखे.....
http://www.newsweek.com/id/212155
बहुत अच्छी बात बताई आपने कि कैसे एक मुस्लमान युवक ने हिन्दुओं की संगत में मांसाहार त्याग दिया।
कब तक आखिर कब तक हिन्दु बर्दाश्त करते रहेंगे। जब देखों हिन्दुओं की आस्था से ही खिलवाड़ किया जाता है।
हिन्दु इतना भी कमजोर नहीं कि उनके मंदिरों में कोई गाय के बछड़े का मांस फेंक कर चला जाए तो वह चुप बैठा रहे।
इस बात से सहमत हैं।
हिन्दु धर्म ही तो है जो सबको अपनी गोद में बिठाने का काम करता है। ऐसे धर्म पूरे विश्व में हो नहीं सकता है।
हिन्दु धर्म किसी पर थोप नहीं जाता है, मैं हम भी सहमत हूं।
राजकुमार ग्वालानी जी, वन्दे-ईश्वरम !
मैं आपसे दो बातें कहना चाहता हूँ, एक कि मस्जिद में हिन्दू जा सकता है, केवल मक्का-मुक़र्रमा (काबा) और मदीना मुनव्वरा को छोड़ कर... (अगर आप पुछेगे क्यूँ तो मैं वह भी बता दूंगा)
दूसरी बात; आपने भी वही भेंड चाल वाली कहावत सिद्ध कर दी क्यूंकि आप भी केवल पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर यूँ ही लिख दिया,
क्या आपने मेरे ब्लॉग पर कोई ऐसी पोस्ट पाई जो आपके दिल को ठेस पहुंचा रही हो, एक भी.....बताईये अगर ऐसी एक भी पोस्ट होगी तो मैं उसे हटा दूंगा, मगर उस विषय पर आप से बात करके...
अनिल पुसाद्कर जी के ब्लॉग पर मैंने जो कहा उसे आप लोग यूँ ही खाम-खां गलत दिशा में हवा दे कर उछल रहें है.... मैंने वहां जो कुछ लिखा सत्य लिखा और समस्या के तहत लिखा कि किस तरह हमारा फिल्म जगत भगवानों का मजाक उड़ा रहा है यह नादानी है और उदहारण भी दिए... फिर उस समस्या का समाधान भी दिया...
आप लोगों ने उस टिप्पणी के बीच के कुछ अंश उठा लिए और लगे हांकने.....
प्लीज़, ऐसा न करें पहले आप मेरे ब्लॉग का बिना पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर पढें और उसको अपने ग्रन्थों में खोजें आप पाएंगे कि अक्षरश सत्य है, मैं कहता हूँ ईश्वर एक है क्या यह सत्य नहीं...... अगर आपको नहीं लगता तो मुझे इस बात पर चर्चा कीजिये मैं आपको जवाब देता हूँ कि ईश्वर एक ही है....
हाँ, मुझे एक बात तो समझ में आ गयी कि आप लोग मेरा विरोध केवल इस लिए कर रहे है क्यूंकि आप पूर्वाग्रह से ग्रसित है... और वो पूर्वाग्रह आप भी जानते है और मैं भी....
प्लीज़ इसे बदलिए शांत मन से निरपेक्ष होकर सत्यता की जांच करें तब ही कुछ कहें.... मैं जो कुछ भी कहता हूँ उसका हवाला भी देता हूँ, आप उस हवाले को पढिये और सत्य की जांच कीजिये और फिर अगर एक बात भी ...... मैं कहता हूँ कि एक बात भी आपको गलत लगे तो मुझे बताईये...
और प्लीज़ मेरी बातों को सन्दर्भ से हट कर व्याख्यांवित न किया करें आप लोग....
ईश्वर आप सबको सद्बुद्धि दे!
सलीम जी
सबसे पहली बात आपका यह कहना ही गलत है कि हमने पूर्वाग्रह के तहत लिखा है। अगर ऐसा होता तो हमें इस बात को लिखने की जरूरत ही नहीं थी जो अनिल जी के लेख पर टिप्पणियों में कहा गया है। हमें टिप्पणियों में लिखी गईं बातों से एतजार था, इसलिए हमने उनका विरोध जताया। और अगर पूर्वाग्रह ही होता तो हम अपने मित्र के मुस्लमान से पंडित बनने की बात नहीं करते।
आप कहते हैं कि हिन्दु मजिस्द में जा सकते हैं, क्या किसी हिन्दु को जो सच्चे मन से अगर नमाज अदा करना चाहे, उसकी इज्जत आपका इस्लाम देगा। अगर ऐेसा कोई उदाहरण है जो जरूर बताएं क्योंकि हमें ऐसा कोई ुउदाहरण आज तक नजर नहीं आया। अब अगर किसी मंदिर की बात करें तो वहां पर कोई भी जाकर पूजा कर सकता है। पूजा करने वाले से उसका धर्म पूछा नहीं जाता है।
जब कोई मुस्लमान मंदिर जा सकता है और किसी भी तीर्थ की यात्रा कर सकता है तो फिर किसी हिन्दु को हज पर जाने और मक्का के दर्शन करने की इजाजत क्यों नहीं है? कारण चाहे आप कुछ भी बताएं लेकिन यह भेदभाव वाली बात नहीं है क्या?
आप फिल्मों के उदाहरण देते हैं। फिल्मों में दिखाई गई बातों से मेरा ऐसा मानना है कि किसी के मन को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। किसी भी बात का विरोध करने वाले सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसा करते हैं। हिन्दुओं को बहुत कम मौका पर किसी तरह का विरोध करते देखा गया है। अब हम इस्लाम की बात करें तो मुझे प्यार हुआ अल्ला मियां ... पर भी एतराज किया जाता है। फिल्म को इस नजरिए से लेना चाहिए कि वह एक कल्पना मात्र है। जब इंसान सपना देखता है तो वह ऐेसा बहुत कुछ देख लेता है जो संभव नहीं होता है, फिर अगर फिल्म में ऐसी कोई कल्पना की जाती है तो उनका विरोध क्यों।
एक बार फिर से कहना चाहूंगा कि कम से कम हम किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं है और कभी हो भी नहीं सकते हैं। अगर पूर्वाग्रह पालेंगे तो रोज बहुत सी बातें मिल जाएंगी लिखने के लिए, और ऐेसी बातें जिनका किसी के पास जवाब भी नहीं होगा, लेकिन पूर्वाग्रह और साम्प्रयाकिता फैलान हमारा काम नहीं है। हम अपने देश के साथ सारे विश्व में अमन चैन चाहते हैं। हमने हमेशा मुस्लमानों को अपना भाई माना है और मानते रहेंंगे, हमने अपने एक मित्र पर एक लेख लिखा था जिसमें बताया था कि कैसे हमारी दोस्ती की मिसाल भाटापारा में दी जाती थी।
सलीम खान को करारा जवाब दिया है आपने, आपके जवाब से मैं भी सहमत हूं। सलीम खान को बताना चाहिए कि क्यों हिन्दुओं को मक्का के पास फटकने नहीं दिया जाता है, आखिर क्या राज है जिसके खुलने का डर है?
राजकुमार जी, क्यों ऐसे लोगों की बातों का जवाब देकर अपना वक्त जाया करते हैं जिनकी बातें अलग-अलग स्थानों पर अलग अलग होती हैं। जो लोग अपनी बातों पर कायम नहीं रहते हैं उनके पीछे समय गंवाना व्यर्थ है। आप ने बिलकुल ठीक लिखा है। आपने लेख से मैं पूरी तरह सहमत हूं।
राजकुमार जी, आपने अपने ब्लोग में की गई टिप्पणी का जवाब देकर अपना कर्तव्य निभाया है! किन्तु संदीप शर्मा जी की बात बिल्कुल सही है कि आप उस व्यक्ति, जो स्वयं (या अपने पक्ष लेने वाले, यदि कोई हो तो) को छोड़कर अन्य सभी लोगों को पूर्वाग्रह से ग्रसित समझता है, की टिप्पणी का जवाब देकर महज अपना वक्त बरबाद कर रहे हैं। दूसरी बात यह है कि ये शख्स सिर्फ हम लोगों को उकसा उकसा कर अपनी दूकान चलाना चाहता है मतलब अपना TRP बढ़ाना चाहता है। आपके साथ ही साथ मेरा अन्य सभी ब्लोगर बन्धुओं से अनुरोध है कि ऐसे अनर्गल प्रलाप का कोई भी जवाब न दे।
सलिमजी कोई कुतर्क तयार कर रहे होंगे इसका जवाब देने के लिए ...... लेकिन जवाब पहले से पता है की वीक मानसिकता वाला जवाब होगा जिसमें जबरजस्त बताया जायेगा की वो कितने महान है |
सही बात है बिलकुल !
राजकुमार जी,
मैंने अनिल जी की पोस्ट पढ़ी, फिर सलीम खान की पोस्ट पढ़ी। फिर आपका लिखा भी पढ़ा। मुझे सलीम खान के लेख में कहीं कोई गलत नहीं दिखाई दिया। एक मुस्लिम अपने आप को हिन्दू कहता है, तो हमारे धर्म के लिए यह कोई बुरी बात नहीं है। उसने हमारे धर्म को बिल्कुल भी गलत नहीं बताया है। उसने सिर्फ हिन्दू शब्द की व्याया कीहै। सिर्फ इसीलिए उसका विरोध शुरू कर दिया जाए, क्या यह जायज है। वह हिन्दुस्तान से पे्रम करता है, इसलिए अपने आप को हिन्दू कहता है, इसमें बुरा कहां है। एक हिन्दुस्तानी पर यह टिप्पणी कि - हिन्दोस्तां स्वच्छ संदेश वाला सलीम "खान" है, क्या किसी भी सलीम खान को बुरा नहीं लगेगा। आप और अन्य सभी द्वारा इस मामले को यहीं बंद कर देना ही उचित होगा। क्या ब्लॉगिंग जैसे क्षेत्र में भी साप्रदायिकता को घुसेड़ना जरूरी है।
संदीप शर्मा जी,
लगता है आप किसी गलतफहमी का शिकार हैं। यहां पर बात सलीम खान के लेख की नहीं बल्कि उनके द्वारा अनिल जी की पोस्ट में की गई टिप्पणी और हमारे लेख में की गई टिप्पणी की है। हमें इस बात से कतई एतराज नहीं है कि कोई मुस्लमान अपने को हिन्दु कह रहा है। लगता है आपने हमारा लेख भी गंभीरता से नहीं पढ़ा है। हमने तो अपने लेख में यही बताया है कि एक मुस्लमान कैसे संगत में पंडित की तरह बन गया, फिर हम क्यों कर किसी सलीम खान के हिन्दु होने का विरोध करेंगे। वैसे भी हिन्दु धर्म में किसी का विरोध नहीं किया जाता है, न जाने आपने क्या समझा और क्या सोचा जो आपने यह लिखा है कि मामले को बंद कर देना चाहिए। यहां को कोई मामला खोला नहीं गया है, एक टिप्पणी की गई जिस पर बहस हो रही है और यह हमारे तरफ से स्वच्छ बहस है अगर इसको कोई विवाद का रूप देता है तो हम क्या कर सकते हैं। पहले आपको मामले को समझ लेना था फिर टिप्पणी करनी थी। एक बार आप जीके अवधिया जी के ब्लाग में जाकर देख लें कि उन्होंने सलीम खान के एक छद्म नाम का खुलासा किया है। जो छद्म भेष में रहते हैं उनका पक्ष लेकर आप कितना सही कर रहे हैं ये आप खुद समझ लें क्योंकि आप खुद समझदार हैं। और आप का यह कहना कि ब्लागिंग के क्षेत्र में साम्प्रदाकियता को घुडेसना क्या ठीक है, तो इस पर हम कहना चाहते हैं कि हमने कभी साम्प्रदायिकता को ब्लागिंग के क्षेत्र में घुसड़ेने की कोशिश नहीं की है, बल्कि इसको समाप्त करने की पहल की है।
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