क्या नागा बाबा की फोटो अश्लील होती है?
पत्रकारिता के जीवन का एक ऐसा एक सच हम आज सामने रखने जा रहे हैं जिसके कारण हमने एक अखबार से समाचार संपादक का पद छोड़ा। बात करीब दो साल पहले की है। राजिम में कुंभ चल रहा था और वहां पर काफी नागा साधु आए थे। ऐसे में नागा साधुओं की एक फोटो को लेकर संपादक ने हमारी ठन गई। संपादक उस फोटो को अश्लील फोटो कहने पर तुले थे, लेकिन हम उस फोटो को अश्लील मानने के तैयार नहीं थे। हमारी नजर में नागा साधुओं की फोटो कभी अश्लील नहीं होती है, इसकी फोटो देश के बड़े-बड़े अखबार और पत्रिकाएं प्रकाशित करते हैं। ऐसे में उनकी फोटो को अश्लील कहने वाले की मानसिकता को हम अश्लील समझते हैं और यही हमने अपने संपादक से कहा था। अंतत: वे कोई बात सुनने को तैयार नहीं हुए थे हमने भी उनके कह दिया कि आपको लगता है कि हम गलत है तो हमें नौकरी से निकाल दें। उन्होंने हमें नोटिस थमाया और हमने जवाब देने के बाद प्रेस जाना बंद कर दिया। हमारे जवाब के बाद ने फंस गए थे, ऐसे में उनको हमसे इस्तीफा देने के लिए बहुत मनाना पड़ा, हमें भी वहां काम करने की इच्छा नहीं थी, ऐसे में हमने एक माह के अतिरक्ति वेतन के बाद इस्तीफा दे दिया।
हमने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में अपने जिंदगी के १५ साल गुजारे। हमने उस अखबार को अपना अखबार समझा और उसके भले के लिए ही हमेशा काम किया। जिस समय अखबार में हड़ताल चली तो उस हड़ताल को समाप्त करवाने का भी काम हमने किया। हमने ऐसा किया तो ऐसा करने की पीछे हमारी सोच यह थी कि हम पत्रकारों को तो किसी भी अखबार में काम मिल जाता है, पर दूसरे कर्मचारियों का क्या होता। इसी के साथ हमारा ऐसा मानना था कि उस अखबार से जुड़े पेपर बांटने वाले हाकर का क्या होता। उस हाकर का परिवार भी तो अखबार के कारण चल रहा था। लेकिन ये बातें कोई नहीं सोच रहा था, हमने ऐसा सोच और सबको समझाया कि अखबार बंद करवाना समस्या का हल नहीं है। अखबार को हमने न सिर्फ हड़ताल से ऊबार बल्कि अखबार को ऐसे समय में पत्रकारों की एक टीम लाकर दी जब उस अखबार में कोई काम करने को तैयार नहीं था। हमारे इस प्रयास के लिए हम अखबार में काम करने वाले मित्रों ने रोका कि क्यों ऐसे मालिकों के लिए काम कर हों जो कर्मचारियों के भले के बारे में सोचते ही नहीं हैं। हमने उनको समझाया कि हम मालिकों के भले के लिए नहीं बल्कि अखबार में काम करने वालों के भले के लिए सोच रहे हैं।
बहरहाल हमने अखबार में पत्रकारों की एक पूरी टीम खड़ी और अखबार को काफी अच्छे तरीके से निकालने का काम किया। करीब साल भर तो सब ठीक चला, जब सब कुछ ठीक-ठाक हो गया तो मालिक के दामाद जो कि संपादक थे उनका नजरिया बदलने लगा और उनको न जाने क्यों हम खटकने लगे। संभवत: इसका कारण यह था कि जब भी बाजार में यह बात होती थी कि आज कल उस अखबार को कौन देख रहा है तो हमारा नाम आता था, क्योंकि हम पत्रकारिता में दो दशक से ज्यादा समय से हैं। शायद यही बात हमारे संपादक को ठीक नहीं लगती थी। एक बार उनके पत्रकार साथियों के वेतन को लेकर भी बहस हो गई। इसके बाद उन्होंने हमने कार्मिक प्रबंधक से मिलने के लिए कहा दिया था, हम उनसे मिले तो वे गोल-मोल बात करने लगे। हमने उनसे कहा कि अगर आपको हमें निकालने के लिए कहा गया है तो कोई बात नहीं हमें हमारा दो माह का बचा वेतन दे दें, और आप निकाल रहे हैं तो हमें नियमानुसार एक माह का वेतन देने पड़ेगा। हम जब उनसे चेक लेकर जाने लगे तो संपादक महोदय ने हमें बुलाया और बात करने लगे हमने कहा कि बात करने का क्या ओचित्य है आपने तो हमें अखबार से निकाल दिया है, न उन्होंने कहा कि हमने ऐसा कुछ नहीं किया है। उन्होंने कार्मिक प्रबंधक को बुलाकर डांट पिलाई और कहा कि आप कहीं नहीं जा रहे हैं।
संभवत: हमसे वहीं गलती हो गई में उनकी मीठी-मीठी बातों में नहीं आता था। उन्होंने हमें उस दिन इसलिए रोक लिया था क्योंकि उनको मालूम था कि हम चले गए तो उनके अखबार का क्या होगा। ऐसे में उन्होंने कुछ दिनों बाद एक स्थानीय संपादक रख लिया और हमें अखबार से बाहर करने के लिए बहाने की तलाश में लग गए। ऐसे में उनको कोई ठोस बहाना नहीं मिला तो उन्होंने नागा बाबा की एक तस्वीर को लेकर हमें घेरे का प्रयास किया।
हुआ यूं कि राजिम कुंभ में देश भर के नागा बाबा आए थे। ऐसे में हमारे राजिम के प्रतिनिधि ने जो फोटो भेजी वहीं हमने लगा दी, दूसरे दिन उस फोटो को लेकर बवाल मचा दिया गया कि अश्लील फोटो लगा दी गई है। हमने उनसे पूछा कि कौन कहता है कि यह फोटो अश्लील है, उन्होंने अखबार के मालिक और प्रधान संपादक का नाम लिया कि वे कह रहे हैं। हमने उनको कहा कि जो भी कह रहे हैं उनकी मानसिकता अश्लील है। हमने उनको कहा कि इंडिया टूडे में नागा साधुओं की फोटो छपी है, पर्यटन विभाग ने भी अपने ब्रोसर में फोटो छापी है, और कई अखबार छाप रहे हैं तो फोटो अश्लील कैसे हो गई। हमने कहा कि आपको लगता है कि हमने गलत किया है तो आप हमें निकाल दीजिए। वे यहीं तो चाह रहे थे। उन्होंने हमें स्पष्टीकरण देने के लिए नोटिस दिया, हमने जो जवाब दिया उसके बाद उनके पास जवाब नहीं था। ऐसे में वे फंस गए थे। हमने अखबार में जाना बंद कर दिया था।
अंत में कार्मिक प्रबंधक ने हमें बुलाया और कहा कि बात को आगे बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है जब आपस में जम नहीं रही है तो आप इस्तीफा दे दे। हमने कहा कि ठीक है हम इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं पर हमें एक माह का वेतन नियमानुसार अतिरिक्त देना पड़ेगा क्योंकि नौकरी हम नहीं छोड़ रहे हैं आप हमें निकाल रहे हैं। ऐसे में यही समझौता हुआ कि हमें एक माह का अतिरिक्त वेतन दिया जाएगा, इसी के साथ हमारा तीन माह का बचा वेतन और ग्रेच्युटी का पैसा भी दिया जाएगा। ग्रेच्युटी के पैसे के लिए घुमाने की कोशिश की गई, पर हमने पूरे पैसे लेने के बाद ही इस्तीफा दिया। लेकिन हम आज भी इस बात को नहीं भूल सकते हैं कि हमे बिना वजह उस अखबार के संपादक ने प्रताडि़त किया और वो भी ऐसे संपादक ने जिनके अखबार के लिए हमने अपने जीवन के १५ कीमती साल खफाए। इस बात के बाद हमें एक ही नसीहत मिली कि वास्तव में किसी भी अखबार का मालिक कर्मचारी का नहीं होता है, चाहे उसके लिए आप जितना कर लें जब आप उनकी नजरों में किसी कारण से खटके तो समझो गए काम से।
14 टिप्पणियाँ:
पत्रकारों के साथ ऐसा व्यवहार करने वाले अखबार का नाम भी बताना चाहिए, ताकि उसकी हकीकक सब जान सके। लगता है आपके मन में अब भी उस अखबार के लिए सम्मान बाकी है।
आपने ऐसे अखबार का काम छोड़कर ठीक काम किया, जिस अखबार के लिए आपने जीवन के 15 साल दिए अगर उसका मालिक कदर न करे तो ऐसे संस्थान में काम करने का कोई मतलब नहीं होता है।
नागा साधु तो कुंभ के मेले के साथ कई धार्मिक स्थान पर जैसे हैं वैसे ही धुमते हैं तो फिर उनकी फोटो अश्लील कैसे हो सकती है। नागा बाबा की फोटो को अश्लील समझने वाला जरूर दीवालिएपन का शिकार होगा
नागा बाबाओं की फोटो को अश्लील समझने वालों की मानसिकता ही अश्लील हो सकती है, आपने ठीक लिखा है।
एक तो कथित अश्लील चित्र कहाँ है हम देखते तो बताते कि वह अश्लील है कि नहीं? सारे अखबार जिन्हें मालिक लोग निकालते हैं वहाँ ऐसे ही होता है। हर उस आदमी को जो नौकरी करता है उसे बस यही सोचना चाहिए कि वह नौकरी कर रहा है। बस कुछ और नहीं सोचना चाहिए। भले ही वह पत्रकार क्यों न हो। अब कोई मालिक कभी यह बर्दाश्त कर सकता है क्या कि आप उस के माल को अपना समझने लगे हैं।
आज का जमाना मित्र दिल से नहीं दिमाग से काम करने का है।
@ sammer
इसमें कोई दो मत नहीं है कि हम आज भी उस अखबार का सम्मान करते हैं, क्योंकि हमने अपने जीवन के 15 बेहतरीन साल उस अखबार में गुजारे हैं, और उस अखबार ने हमें एक नाम भी दिया। अब यह बात अलग है कि उस अखबार के मालिकों ने हमारे साथ गलत किया, लेकिन इसका यह मतलब कताई नहीं है कि हम भी उनके साथ गलत करें। उन्होंने हमारे साथ गलत किया यह उनकी मानसिकता थी, हमने उनको क्षमा किया यह हमारी मानसिकता है। वैसे भी उस अखबार का नाम लेकर क्या हासिल हो जाएगा। वैसे तो हम इस मुद्दे पर लिखना नहीं चाहते थे, पर लंबे समय से दिल में इस बात को दबाए रखा था, सोचा चलो ब्लाग बिरादरी के साथ ही इसको साझा कर लिया जाए।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
नागा बाबा जैसे होते हैं, बिना कपड़ों के वैसी ही उनकी फोटो प्रकाशित की गई थी, हमेशा कुंभ के समय सभी अखबारों में ऐसी फोटो छपती है, वह फोटो ब्लाग में भी दे सकते थे, लेकिन हमें जरूरी इसलिए नहीं लगा कि जिस फोटो को एक अखबार का मालिक अश्लील समझ सकता है तो ब्लाग बिरादरी का भी कोई मित्र उसे अश्लील करार दे सकता है। अब आपको यह बताने की जरूरत नहीं है नेट पर ही नागा बाबाओं की ऐसी लाखों फोटो हैं जैसी हमने प्रकाशित की थी। उस अखबार के मालिक को तो एक बहाने की जरूरत थी, जब कोई ठोस बहाना नहीं मिला तो यह बहाना बना लिया। वैसे हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे उस अखबार के मालिकों को भी यह बात मालूम है कि नागा बाबा की फोटो कभी अश्लील नहीं सकती है।
आज के स्वार्थी जमाने में कोई किसी के बारे में नहीं सोचता है आपने अखबार के छोटे कर्मचारियों के बारे में सोचा यह बड़ी बात है, आपकी सोच को नमन करते हैं।
आपके इस विचार से कि "अश्लीलता इन्सान की मानसिकता में होती है" मैं भी सहमत हूँ।
नागा साधुओं की फोटो भला कैसे अश्लील हो सकते हैं, वे तो हमेशा ऐसे ही रहते हैं।
अश्लीलता दिमाग में होती है.
naked man i would call a naga baba which will mean that for me the term naga baba is not religious because i may not be believing in that
so the naked man pic is surely ashleel for me and for others who dont beleive that naga baba are above the normal huma beings
it basically depends on how you associate a term "baba"
कृपया बुरा न मानें, सब सही कहते हैं की अश्लीलता तो मन में होती है, लेकिन नंगे नागा साधू में कोई सौंदर्य नहीं होता. वैसे भी ये सब मुफ्तखोर उजड्ड होते हैं जो कहीं से भी साधुभाव नहीं रखते. इनकी आपसी रंजिशें और हठ के कारण कई बार कुम्भ आदि अवसरों पर कितना खूनखराबा हुआ है. ये महान हिन्दू संत परंपरा पर धब्बा हैं.
आपने पैसे लेकर इस्तीफा देने का फैसला ठीक किया, वरना संस्थान कर्मचारियों को तो बेवकूफ ही समझते हैं।
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