जानवरों को जानवर कहने से बवाल क्यों?
बिना वजह पूरे देश का मीडिया और ब्लाग जगत केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर के पीछे पड़ा है। अरे भई उन्होंने क्या गलत कह दिया है? उनकी नजर में आम इंसान अगर जानवर हैं तो जानवरों को जानवर ही तो कहा है। कम से कम थरूर जी ने ऐसी हिम्मत तो दिखाई कि उन्होंने ऐसा कहा जैसा समझते हैं। बाकी नेता और मंत्री भी आम जनता को जानवर ही समझते हैं। अब यह अलग बात है कि वे कहने की हिम्मत नहीं करते हैं। देश की जनता के पैसों पर ऐश करने वाले नेता और मंत्रियों को आम आदमी जाहिल, गंवार और जानवर ही नजर आएंगे। अगर आम आदमी जानवर नहीं हैं तो क्यों कर ऐसे लोगों को सबक सीखने की हिम्मत नहीं दिखाते हैं। लेकिन नहीं भेड़ बकिरयों की तरह गुलामी करने की आदत पड़ी है तो कैसे कोई आवाज उठा सकता है।
शशि थरूर ने जब ने विमान की इकोनॉमी क्लास को कैटल क्लास कहा है तब से लगातार हंगामा हो रहा है कि उन्होंने ऐसा कैसे कह दिया। उनकी कांग्रेस की हाई कमान सोनिया गांधी ने क्लास तक ले डाली। वैसे थरूर जी इस बात से मुकर गए हैं कि उन्होंने ऐसा कहा है। यह तो अपने मीडिया का कमाल है जो किसी भी बात को इस तरह से पेश किया जाता है कि बवाल मच जाता है। अब तक जो लोग थरूर जी को नहीं जानते थे, वे भी जानने लग गए। हमारा तो मानना है कि थरूर जी ने बिलकुल ठीक कहा है। क्या फर्क है आम इंसान और जानवर में। जिधर चाहो उधर हांक लो इनको चल देते हैं। क्या आज तक किसी ने ऐसी कोई हिम्मत दिखाई है जिससे ये नेता या मंत्री आम आदमी की अहमियत को समझ सकते। नहीं न ,तो फिर किसी बात का रोना कि जानवर क्यों कह दिया गया। अरे विमान की यात्रा की बात तो छोड़ दें, यहां का सफर करने की औकात वैसे भी आम आदमी में नहीं हैं। ट्रेन और बस की बातें करें तो इनमें तो इंसान भेड़-बेकरियों की तरह ही भरे रहते हैं, जब ट्रेन और बस में यह हाल है कि उनमें सफर करने वाले जानवरों की तरह सफर करते हैं तो फिर विमान के सफर के लिए कैटल क्लास कह दिया गया तो क्या गलत है। माना कि विमान में यात्रा करने वाले थोड़े से अमीर होते हैं, पर होते तो आम आदमी ही हैं न। और आम आदमी का मतलब ही होता है जानवर।
आप ये क्यों भूलते हैं कि जिनको आप जनप्रतिनिधि बनाकर विधानसभा और लोकसभा में भेजते हैं उनके सामने आपकी औकात दो कौड़ी की नहीं होती है। जब वे रास्ते से गुजरते हैं तो आपको गुलामों की तरह रास्ते में रोक दिया जाता है कि राजा साहब जा रहे हैं। गनीमत है कि पुराने जमाने की तरह आपको सिर झूका कर खड़े रहने के लिए नहीं कहा जाता है। जब उनके सामने आपकी कोई अहमियत ही नहीं है तो फिर आप अपने को कैसे इंसानों की श्रेणी में रख सकते हैं।
अगर आप इंसानों की श्रेणी में रहना चाहते हैं या फिर आना चाहते हैं तो आईये मैदान में और करीए नेताओं और मंत्रियों की हर गलत बात का विरोध। क्या आप में इतना दम है कि आप अपनी किसी समस्या को लेकर किसी मंत्री के दरबार में जाए और उनको समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए मजबूर कर सकें। मजबूर करना तो दूर आप को उन तक पहुंचने में ही इतने पापड़ बेलने पड़ेंगे कि दुबारा आप कोई समस्या लेकर जाने की हिम्मत भी नहीं करेंगे। अंत में दो बातें हम यह कहना चाहेंगे कि किसी के जानवर कह देने से कोई जानवर नहीं हो जाता और दूसरी बात यह कि जो इंसान खुद जैसा रहता है उसको सब वैसे ही दिखते हैं।
6 टिप्पणियाँ:
सब सही है। लेकिन अंतिम पैरा गड़बड़ है। लोगों को संगठित होना पड़ेगा, और इस मौजूदा व्यवस्था को तोड़ नयी व्यवस्था कायम करनी होगी। एक-एक अकेले अकेले रहेंगे तो कोई क्यों आप की परवाह करेगा?
ठीक बात है नेता-मंत्रियों की नजरों में तो आम इंसान जानवर ही होते हैं।
दिनेश जी ठीक कहते हैं, अकेला आदमी कुछ नहीं कर सकता है, एकता जरूरी है।
ऐसे मंत्रियों को सबक सीखाने के लिए एक होना जरूरी है।
जनता तो एक दिन के सुख [रुपया, शराब...] के लिए पांच साल की ग़ुलामी ढोने के लिए तैयार बैठी है तो इसमें बेचारे नेताओं की क्या ग़लती:)
दिनेश जी ठीक कहते हैं, एकता जरूरी है
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