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रविवार, सितंबर 27, 2009

नक्सलियों को चुनौती देना तो महंगा पड़ेगा ही

लगता है प्रदेश सरकार के साथ केन्द्र सरकार भी अपने को शेर समझने की गलती कर बैठी है, तभी तो इनके संयुक्त अभियान के तहत खुले आम यह बात कही जा रही है कि नवंबर में नक्लसियों पर कई राज्यों के साथ मिलकर चौतरफा हमला किया जाएगा। अरे भाई एक हमले की खबर तो नक्सलियों को बिना बताए ही हो गई थी और अब हमला करने की खुले आम चुनौती दी जा रही है। क्या नक्सली इस चुनौती के लिए तैयारी नहीं करेंगे? नक्सली तो चुनौती क्या मंत्रियों के बयान पर भी खफा होकर हत्याएं करने लगते हैं। अभी केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिंदबरम के बयान से ही नक्सली इतने ज्यादा खफा हुए कि सासंद बलीराम के पुत्रों पर ही हमला कर दिया जिसमें उनके एक पुत्र की जान चली गई। क्या यही काफी नहीं है सबक लेने के लिए।

प्रदेश सरकार का साथ देने के लिए केन्द्र सरकार तैयार क्या हुई है लगता है प्रदेश सरकार अपने को शेर समझने लगी है। लगातार मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह के साथ गृहमंत्री ननकीराम कंवर का यह बयान आ रहा है कि नक्सलियों का सफाया कर दिया जाएगा। यहां तक तो बात ठीक है, पर यह कहना कि नक्सलियों पर नंवबर में साझा हमला किया जाएगा, हमें तो गलत लगता है। अगर हमला करना है तो क्यों इस बात का खुलासा किया जा रहा है। जब योजना का खुलासा नहीं किया गया था तो नक्लसियों के हथियारों के कारखाने पर हमले की खबर लीक होकर उन तक पहुंच गई थी। हम पहले भी एक बार यह बात लिख चुके हैं कि एक तो पुलिस विभाग में पहले से नक्सलियों के मुखबिर हैं, ऊपर से इस बार यह हुआ है कि पुलिस की भर्ती में नक्सलियों ने अपने साथियों को भर्ती करवा दिया है। नक्सलियों के कारखाने पर हमले की खबर का लीक होना भी इस बात का सबूत है कि नक्सलियों का नेटवर्क कितना तगड़ा है। ऐसा नहीं है कि पुलिस का अमला और सरकार इस बात से अंजान है कि नक्सलियों का नेटवर्क उनसे ज्यादा अच्छा है, इतना सब होने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का यह बयान सही नहीं लगता है कि नक्सलियों पर नवंबर में साझा हमला किया जाएगा।

न जाने प्रदेश सरकार अपने को क्या समझने लगी है जो प्रदेश के मुखिया ऐसा बयान दे रहे हैं। हो सकता है कि हमले का खुलासा कराना भारी पड़ जाए और जब नक्सलियों पर हमला करने के लिए फोर्स जाए तो इतने ज्यादा जवान शहीद हो जाएं कि लाशें भी गिनने में न आएं। नक्सलियों के मदनवाड़ा के तांड़व को कौन भूल सका है अब तक। अगर इससे बड़ी घटना हमले के दौरान हो जाए तो क्या इसके लिए मुख्यमंत्री का यह बयान दोषी नहीं होगा। तब मुख्यमंत्री के पास अपने बयान के लिए अफसोस करने के अलावा क्या चारा रहेगा। अरे भाई अगर हमला करना है तो चुपचाप योजना बनाकर करें न, क्यों ढिंढोरा पिटने का काम किया जा रहा है। क्या ढिंढोरा पिटे बिना हमला करेंगे तो कोई आपको बुजदिल कहने लगेगा। ऐसा कुछ नहीं है। हमला करने के माह का जब ऐलान मुख्यमंत्री ने कर दिया है तो नक्सलियों के लिए हमला करने का दिन पता लगाना कौन सी बड़ी बात होगी और अगर उनको दिन मालूम हो गया तो फिर हमला करने जाने वाला का क्या होगा, इसके बारे में किसी ने सोचा है।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि नक्सलियों की ताकत और उनके हथियार पुलिस से ज्यादा उमदा हैं। ऐसे में भगवान न करें कोई बड़ा हादसा हो गया तो क्या होगा। अब भी वक्त है सुधर जाए और बयानबाजी से बाज आते हुए जो काम करना है चुप-चाप उसी तरह से किया जाए जिस तरह से नक्सली करते हैं। हमने एक बार पहले भी लिखा है कि जब तक पुलिस की सोच नक्सलियों से एक कदम आगे की नहीं होगी सफलता नहीं मिल सकती है। जब भी किसी मंत्री का बयान आया है उसका करारा जवाब नक्सलियों ने दिया है। इसके बाद भी हमारे मंत्री चेतते नहीं है। केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिंदबरम छत्तीसगढ़ आए और उनके बयान से खफा होकर उनके जाते ही नक्सलियों ने सांसद बलीराम कश्यप के पुत्रों पर हम्ला कर दिया। इस हमले में एक पुत्र की मौत हो गई, दूसरा घायल है। अब चिंदबरम साहब श्री कश्यप के पुत्र को वापस तो नहीं ला सकते हैं, वे सिर्फ अफसोस जताने का काम करेंगे। क्या जरूरत है ज्यादा हिम्मत दिखाने की। हिम्मत दिखानी है तो ऐसी योजना बनाने की हिम्मत दिखाए जिससे नक्सलियों का सच में सफाया हो सकें। ऐसा नहीं कर सकते हैं तो कम से कम अपने मुंह तो बंद रखें।

12 टिप्पणियाँ:

लोकेश Lokesh रवि सित॰ 27, 07:29:00 am 2009  

बयानबाजी करने में तो सभी सिद्धहस्त होना चाहते हैं

Unknown रवि सित॰ 27, 08:05:00 am 2009  

मंत्री अगर हल्ला नहीं करेंगे तो जनता को कैसे मालूम होगा कि वे काम कर रहे हैं। अब भले इस हल्ला मचाने में जनता की जान चली जाए मंत्रियों का क्या जाता है।

Unknown रवि सित॰ 27, 08:42:00 am 2009  

नक्सलियों को चुनौती देना इतना आसान नहीं है जितना समझा जा रहा है। अब तक तो पुलिस वाले चार नक्सली मारते हैं तो वो 14 मार गिरते हैं।

Unknown रवि सित॰ 27, 09:06:00 am 2009  

लोकेश जी ठीक कह रहे हैं।

बेनामी,  रवि सित॰ 27, 10:29:00 am 2009  

आपके पास क्या सबूत हैं कि पीएचक्यू में नक्सलियों के मुखबिर हैं ? क्या आप प्रजातंत्र के हितैषी बनकर वहां किसी बड़े अधिकारी को या गृहमंत्री को या फिर मुख्यमंत्री को अभी तक बता सकें हैं ? नहीं तो फिर आप अभी तक कौन सी पत्रकारिता कर रहे हैं ? आपको किसका डर है ? यदि डर है तो नक्सलियों से तो नहीं ? मित्र यह युद्ध है, कई तरह की स्थितियों से गुज़रने के लिए तैयार रहें । रियेक्शन दोनों और से होगा । मुझे तो लगता है आप प्रजातंत्र और नक्सलवाद के द्वंद्व को किसी भी स्तर पर समझ नहीं सकें हैं । खेल नहीं है यह । आप खेलों पर खेलें तो कहीं उचित होगा... नाहक उथले ढंग से न लिखें विषयों पर

रामनारायण वर्मा
कांकेर..

राजकुमार ग्वालानी रवि सित॰ 27, 03:31:00 pm 2009  

मिस्टर रामनारायण वर्मा या फिर जो भी आपका नाम है।
क्या यह सबूत पर्याप्त नहीं है कि हथियारों के कारखाने में हमले की सूचना पहले से नक्सलियों को थी। क्या आप जानते हैं कि पुलिस आरक्षकों की भर्ती में कितना पैसा लेकर भर्ती की गई है, और इन्हीं पैसों के लालच में नक्सलियों के कितने आदमी पुलिस में हैं। हमने तो पुलिस विभाग की बात की थी कि वहां मुखबिर हैं, हमने तो पीएचक्यू का नाम ही नहीं लिया है, हमें तो लगता है कि आप छद्म नाम से लिखने वाले कोई पुलिस के प्रवक्ता हैं और आप यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि हम खेलों पर लिखते हैं। खेलों पर लिखना हमारा शौक रहा है लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि हमारी दूसरे विषयों में पकड़ नहीं है, हम कोई बात गलत नहीं लिखते हैं। क्या मुख्यमंत्री या गृहमंत्री ये बात नहीं जानते हैं कि पुलिस में नक्सलियों के मुखबिर हैं। यह बात प्रशासन ने खुद मानी है कि हथियारों के कारखाने पर हुए हमले की खबर लीक हो गई थी, तो आप ही बताए कि यह खबर कैसे लीक हुई अगर पुलिस में नक्सलियों के मुखबिर नहीं हैं तो वहां तक खबर गई कैसे? नक्सलियों से लोहा लेना कोई खेल नहीं है यह बात हम जानते हैं लेकिन लगता है आप नहीं जानते हैं और सरकार भी नहीं जानती है, अगर जानती तो कभी भी खुले आम यह नहीं कहती कि नवंबर में साझा हमला किया जाएगा। क्या आप लोगों ने नक्सलियों को दुध पीता बच्चा समझ रखा है कि उनको डरा देंगे और वे डर जाएंगे। एक मंत्री के बयान का नतीजा क्या होता है क्या यह हम लोगों ने नहीं देखा है। क्यों कर बयानबाजी से बाज नहीं आते हैं नेता। क्या उनको जनता के जान माल की चिंता है थोड़ी भी। किसी के ऊपर आरोप लगाने से पहले आपको सोच लेना चाहिए कि आप किस पर आरोप लगा रहे हैं। आप प्रजातंत्र और नक्सलवाद के द्वंद्व बात करते हैं आप कितना जानते हैं प्रजातंत्र और नक्सवाद के बारे में। हर कोई पूरा ज्ञानी नहीं होता है, हमने ज्ञानी होने का कोई ढिंढोरा नहीं पीटा, हमने अपने विचार रखे हैं आप इससे सहमत हों यह किसने कहा है। लेकिन इस तरह की नसीहत देने वाले आप कौन होते हैं कि हम खेलों पर लिखे और दूसरे विषयों पर न लिखे। अगर आपको हमारा लिखा पसंद नहीं आ रहा है तो हमें इससे क्या है। हमें जो एक संभावना नजर आई उसके बारे में हमने लिखा है, हमने ऐसा कोई दावा नहीं किया है कि पुलिस विभाग में मुखबिर हैं। हम दो दशक से ज्यादा समय से पत्रकारिता कर रहे हैं और हमें लगता है कि यह बात आप को बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप तो हमारी कुंडली जानते हैं प्रभु।

Unknown रवि सित॰ 27, 03:36:00 pm 2009  

नेता-मंत्रियों को बयानबाजी से बाज आना पड़ेगा।

बेनामी,  रवि सित॰ 27, 03:42:00 pm 2009  

राजकुमार जी,
आप भी नाहक में किसी के भड़काने में भड़क जाते हैं। आप तो बस लिखते रहे, आप ने एक सारगर्भित लेख लिखा है, प्रदेश के मुख्यमंत्री को नक्सलियों को ललकारने से पहले उनकी ताकत का अंदाज तो लगा लेना था। एक बयान पर जब नक्सली तांड़व कर देते हैं तो उनको मिटाने की बात की जा रही है, ऐसे में नक्सली क्या कहर बरसाएंगे इसकी कल्पना करना कठिन है। आज सांसद के पुत्रों पर हमला हुआ कल किसी भी मंत्री पर हमला हो सकता है। आम जनों पर तो कहर बरसाना नया नहीं है।

श्रीकांत पाराशर रवि सित॰ 27, 05:01:00 pm 2009  

RAJKUMARJI, AAPNE SAHI LIKHA HAI. SARKAR KO APNI TAYYARI POORI KARNI CHAHIYE AUR PHIR LALKARNA CHAHIYE, ABHI SE ADVANCE MEIN NAXLIYON KO UKSA KAR AUR KUCHH NIRDOSHON KI JAAN LENA KAUNSI BUDHIMANI HAI.KENDRA AUR RAJYA SARKAREN MIL KAR BHI MORCHE PAR LADENGI TO KAUNSA EK DO DIN MEIN YUDHHA KHATMA HO JAYEGA.BAYANBAJI KARNE KI BAJAY THOS KAAM KARNA CHAHIYE. AAPNE JO LIKHA HAI ACHHA LIKHA HAI.

मुनीश ( munish ) रवि सित॰ 27, 05:55:00 pm 2009  

After 9/11 Bush made the same mistake of declaring his intention to target Afghanistan openly. Stealth , tactics and strategy have gone to winds !

manoj das,  रवि सित॰ 27, 06:48:00 pm 2009  

छत्तीसगढ़ की पुलिस क्या देश के किसी भी राज्य की पुलिस में अंडर वल्र्ड के लोग हों या फिर आतंकवादी या चाहे नक्सली हों सबरे मुखबिर रहते हैं। इस बात को सरकार भी जानतााी है, लेकिन सबूत न होने के कारण ही उन पर कार्रवाई नहीं होती है। अगर सबूत मिल भी जाएँगे तो सबूत जुटाने वालों को भी खरीद लिया जाएगा, अपने देश में इमान तो सबसे सस्ता बिकता है।

ramesh sarma,  रवि सित॰ 27, 06:49:00 pm 2009  

आपने बिलकुल ठीक लिखा है कि सरकार को ढिंढोरा पिटने का काम नहीं करना चाहिए। ऐसा करके सरकार खुद अपने लिए गडढा खोदने का काम कर रही है। पाराशर जी की बात से सहमत हूं कि पहले तैयारी कर ले फिर हमले की सोचे।

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