मोहब्बत का कफन
तू सामने खड़ी है तो है
पर तेरा दीदार करू कैसे
नजरें तो मिला सकता नहीं
फिर से हंसी गुनाह करू कैसे
छोटी सी खता ही सही प्रिंस
पर मोहब्बत का इजहार करू कैसे
तेरे दुखते दिल को चैन तो दे दूं
पर अपनी आहें और आंसू दूं कैसे
बेरूखी तो किसी तरह खत्म हो जाएगी
पर अपनी मुराद पूरी करू कैसे
तुझे माफ तो कर दूं
पर अपने दिल में बसाऊ कैसे
मोहब्बत तो मेरे दिल में भी है प्रिंस
पर मोहब्बत का कफन दिल में सजाऊ कैसे
9 टिप्पणियाँ:
मोहब्बत के कफन के साथ ताजमहल का संगम अच्छा है। ताजमहल भी तो मोहब्बत का ही मकबरा है।
मोहब्बत तो मेरे दिल में भी प्रिंस
पर मोहब्बत का कफन दिल में सजाऊ कैसे
बहुत खूब
सुंदर कविता
चैन से दो वक़्त की रोटी मिल रही है तो अच्छा नही लग रहा है,ये मुहब्बत-फ़ुहब्बत के चक्कर मे घर मे मार खाने का पुरा इरादा है लगता है?
अच्छी रचना है
अनिज जी,
अभी तो मरने के लिए समय नहीं है फिर मोहब्बत-फुहब्बत के लिए कहां से समय मिलेगा, यह तो हमारी 20 साल पुरानी डायरी की एक तब की रचना है जब हम भी आपकी तरह चिर कुंवारे थे। कभी-कभी दोस्तों की गुजारिश पर पुरानी डायरी के काले अक्षरों को ब्लाग पर उकेरने का काम करते हैं। वैसे हमेशा आपके अपनेपन से ऐसी झिड़की देना अच्छा लगता है। ऐसे ही प्यार बनाए रखे और हमें क्या चाहिए।
sir pe tuti hui chhat hai ,
mohabbat ka taj mahal banaoon kaise
मोहब्बत तो मेरे दिल में भी है प्रिंस
पर मोहब्बत का कफन दिल में सजाऊ कैसे
बेहद खुब्सूरत रचना ......अतिसुन्दर
वाह मजा आ गया
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