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बुधवार, सितंबर 09, 2009

मोहब्बत का कफन



तू सामने खड़ी है तो है

पर तेरा दीदार करू कैसे

नजरें तो मिला सकता नहीं

फिर से हंसी गुनाह करू कैसे

छोटी सी खता ही सही प्रिंस

पर मोहब्बत का इजहार करू कैसे

तेरे दुखते दिल को चैन तो दे दूं

पर अपनी आहें और आंसू दूं कैसे

बेरूखी तो किसी तरह खत्म हो जाएगी

पर अपनी मुराद पूरी करू कैसे

तुझे माफ तो कर दूं

पर अपने दिल में बसाऊ कैसे


मोहब्बत तो मेरे दिल में भी है प्रिंस

पर मोहब्बत का कफन दिल में सजाऊ कैसे

9 टिप्पणियाँ:

soniya,  बुध सित॰ 09, 09:37:00 am 2009  

मोहब्बत के कफन के साथ ताजमहल का संगम अच्छा है। ताजमहल भी तो मोहब्बत का ही मकबरा है।

Unknown बुध सित॰ 09, 10:16:00 am 2009  

मोहब्बत तो मेरे दिल में भी प्रिंस
पर मोहब्बत का कफन दिल में सजाऊ कैसे

बहुत खूब

Anil Pusadkar बुध सित॰ 09, 10:48:00 am 2009  

चैन से दो वक़्त की रोटी मिल रही है तो अच्छा नही लग रहा है,ये मुहब्बत-फ़ुहब्बत के चक्कर मे घर मे मार खाने का पुरा इरादा है लगता है?

Unknown बुध सित॰ 09, 12:36:00 pm 2009  

अच्छी रचना है

राजकुमार ग्वालानी बुध सित॰ 09, 12:37:00 pm 2009  

अनिज जी,
अभी तो मरने के लिए समय नहीं है फिर मोहब्बत-फुहब्बत के लिए कहां से समय मिलेगा, यह तो हमारी 20 साल पुरानी डायरी की एक तब की रचना है जब हम भी आपकी तरह चिर कुंवारे थे। कभी-कभी दोस्तों की गुजारिश पर पुरानी डायरी के काले अक्षरों को ब्लाग पर उकेरने का काम करते हैं। वैसे हमेशा आपके अपनेपन से ऐसी झिड़की देना अच्छा लगता है। ऐसे ही प्यार बनाए रखे और हमें क्या चाहिए।

lucky बुध सित॰ 09, 01:01:00 pm 2009  

sir pe tuti hui chhat hai ,
mohabbat ka taj mahal banaoon kaise

ओम आर्य बुध सित॰ 09, 02:42:00 pm 2009  

मोहब्बत तो मेरे दिल में भी है प्रिंस
पर मोहब्बत का कफन दिल में सजाऊ कैसे
बेहद खुब्सूरत रचना ......अतिसुन्दर

tanu,  बुध सित॰ 09, 03:33:00 pm 2009  

वाह मजा आ गया

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