अशोक ध्यानचंद को चाचा ने रोका था भारत छोडऩे से
हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के पुत्र अशोक ध्यानचंद भी तीन दशक पहले भारतीय टीम के चयन में होने वाली राजनीति के शिकार हो गए थे और उन्होंने १९८० में भारत छोड़कर इटली जाने का मन बना लिया था। ऐसे में उनको चाचा रूप सिंह से डांटते हुए भारत छोडऩे से मना किया था और कहा था कि जब तुम्हारे पिता को हिटलर मेजर बनाने को तैयार थे तो उन्होंने देश नहीं छोड़ा तो तुम क्यों देश छोड़कर अपने परिवार का नाम खराब करना चाहते हो।
अशोक ध्यानचंद ने इस बात का खुलासा अपने रायपुर प्रवास में अजीत जोगी के निवास में रात्रि भोज में किया। इस भोज में उनकी श्री जोगी के साथ हॉकी को लेकर काफी लंबी चर्चा हुई। इस चर्चा के दौरान ही उन्होंने ये बातें बताईं कि उनको १९८० में चयनकर्ताओं ने भारतीय टीम से बिना किसी कारण के बाहर कर दिया था। बकौल अशोक कुमार वे १९८४ के ओलंपिक तक खेल सकते थे, पर उनको न जाने क्या सोच कर टीम से बाहर कर दिया गया फिर कभी टीम में नहींं रखा गया। ऐसे में वे खफा होकर इटली जाने का मन चुके थे। इटली से उनको एक बड़ा ऑफर था। लेकिन जब उनके चाचा रूप सिंह को इस बारे में मालूम हुआ तो वे बहुत नाराज हुए और अशोक कुमार को डांटते हुए कहा कि तुमको शर्म आनी चाहिए कि तुम्हारे पिता ने हिटलर का मेजर बनाने का ऑफर ठुकरा दिया था और एक तुम हो जो पैसों की खातिर अपना देश छोडऩा चाहते हो। अशोक कुमार कहते हैं कि उस समय आर्थिक परेशानियों का दौर था ऐसे में मुङो इटली जाने का फैसला करना पड़ रहा था, पर चाचा के कहने पर मैंने अपना फैसला बदल दिया और उनके बाद मैंने भारतीय टीम में लौटने का इरादा भी छोड़ दिया।
जोगी भी साई से मदद के पक्ष में
अशोक कुमार से चर्चा करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने प्रदेश में खेलों के विकास के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई की मदद लेने के पक्ष में दिखे। उन्होंने कहा कि साई की मदद से प्रदेश में खेलों का पूरा विकास हो सकता है। साई की ज्यादा से ज्यादा मदद लेकर यहां कई सेंटर खोलने इससे यहां की मैदानों की कमी भी दूर होगी। उन्होंने अमरीका यात्रा का एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि जब वे वहां गए थे तो उन्होंने एक अमरीकन से पूछा था कि वे लोग फुटबॉल क्यों नहीं खेलते हैं तो उन्होंने कहा था कि जिस खेल में बॉल को हाथ लगाना ही पापा हो वैसा खेलने का मतलब क्या है। फुटबॉल में अगर बॉल हाथ से लग जाती है तो फाउल माना जाता है।
4 टिप्पणियाँ:
प्रतिभाओं के साथ खिलवाड़ तो हमेशा से होता रहा है।
नमन है अशोक ध्यानचंद के चाचा के देश प्रेम को।
बॉल को हाथ पाप है वाली अमरीकनों की मानसिकता पर तरसा आ रहा है।
खेलों में राजनीति नहीं होती तो आज भारत को ओलंपिक जैसी स्पर्धाओं में पदकों के लिए क्यों तरसना पड़ता
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