पत्रकारिता हमारे लिए तो मिशन है
अपने वादे के मुताबिक हम आज बताने वाले हैं कि कम से कम हमारे लिए तो पत्रकारिता आज भी मिशन है। हमारा पत्रकारिता में खेलों से ज्यादा वास्ता रहा है। वैसे तो हम एक अखबार में समाचार संपादक के पद पर तीन साल तक रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी हमने खेल पत्रकारिता से किनारा नहीं किया था। हमने खेल पत्रकारिता में खेल और खिलाडिय़ों के लिए हमेशा लडऩे का काम किया है और आज भी कर रहे हैं। खिलाडिय़ों के साथ अन्याय होता हम नहीं देख सकते हैं। कई ऐसे उदाहरण हैं जिसके कारण खेल और खिलाडिय़ों का भला हमारी खबरों से दो दशक से हो रहा है। एक ताजा उदाहरण यह है कि छत्तीसगढ़ के खेल पुरस्कारों को निष्पक्ष बनाने के लिए निष्पक्ष जूरी बनवाने में हमारी खबर ने एक अहम भूमिका निभाई जिसके कारण निप्षक्ष जूरी बनी और सही खिलाडिय़ों को पुरस्कार मिले।
हम पत्रकारिता के क्षेत्र में इसलिए आए हैं कि हमें अपने देश और समाज के लिए कुछ करना है, और हम यह कर भी रहे हैं। इसमें पैसा कमाना हमारा मिशन कभी नहीं रहा है। हां इतना पैसा जरूर मिल जाता है जिससे घर चल जाता है। हम यहां पर एक बात साफ तौर पर बता देना चाहते हैं कि हमारे परिवार में सभी व्यापार करने वाले हैं, और अगर हम भी अपने परिवार के साथ व्यापार करते तो बहुत पैसा कमा सकते थे, लेकिन हमने पत्रकारिता को इसलिए चुना क्योंकि इसमें हम कुछ करना चाहते थे। हमें जब अखबार में खेल पत्रकारिता का जिम्मा दिया गया तो हमने खेल और खिलाडिय़ों के लिए लडऩे का मिशन बनाया जिस मिशन पर आज भी हम चल रहे हैं। हमने इस क्षेत्र में ऐसे-ऐसे काम किए जिसके कारण जब भी कहीं गलत होता है तो सबसे पहले खिलाड़ी हमारे पास आते हैं और जानकारी देते हैं। हमें लगता है कि खिलाड़ी की बात सही है तो उसे छापने का काम करते हैं। ऐसा करके हम खिलाडिय़ों को न्याय दिलाने में मदद करते हैं।
जब अपना राज्य छत्तीसगढ़ अलग बना था तब हमने सोचा था कि यार कम से कम अपने राज्य की खेल नीति ऐसी होनी चाहिए जो एक मिसाल हो देश के लिए। ऐसे में हमने एक अभियान चलाया कि खिलाडिय़ों के साथ खेलों से जुड़े कोच और खेल संघों के पदाधिकारियों से पूछा कि कैसी खेल नीति होनी चाहिए, उनकी भावनाओं को तब हमने दैनिक देशबन्धु में लगातार प्रकाशित करके सरकार तक पहुंचाने का काम किया। इसी के साथ पहली बार देश के इतिहास में ऐसा हुआ कि खेल नीति बनाने से पहले एक खुली परिचर्चा के माध्यम से सरकार ने खेल से जुड़े लोगों से पूछा कि आप कैसी खेल नीति चाहते हैं। अन्यथा राष्ट्रीय खेल नीति से लेकर हर राज्य की खेल नीति एक कमरे में बैठकर चंद अधिकारी बना लेते हैं जिनको खेलों के बारे में जानकारी भी नहीं होती है। लेकिन छत्तीसगढ़ के पहले खेल मंत्री शंकर सोढ़ी ने इस बात को समझा था और हमारे आग्रह पर उन्होंने मुख्यमंत्री अजीत जोगी से बात करके एक खुली परिचर्चा आयोजित करके देश के इतिहास में इसे दर्ज करवाया। आज छत्तीसगढ़ की खेल नीति की मिसाल पूरे देश में दी जाती है।
खेलों में जब खिलाडिय़ों के यौन शोषण की बात सामने आई तो इसका भी खुलासा करने का काम सबसे पहले हमने किया। इसके बाद खेलों में ओवरएज खिलाडिय़ों का मामला आया तो इसका भी खुलासा हमने किया। खिलाडिय़ों के लिए जिससे हमें लडऩा पड़ा हम लड़े हैं। हमने अपने अखबार के संपादकों और मालिकों से भी इसके लिए पंगा लिया है, और खेल और खिलाडिय़ों का भला करने का काम किया है।
अपने राज्य में खेलों पुरस्कारों को लेकर हमेशा विवाद होता रहा है, इस बार पुरस्कारों के चयन से पहले ही हमने अपने अखबार दैनिक हरिभूमि के माध्यम से यह बात सामने रखी कि पुरस्कारों के चयन के लिए बनने वाली जूरी निष्पक्ष होनी चाहिए। इस बात को खेल मंत्री सुश्री लता उसेंडी ने समझा और एक निपष्क्ष जूरी बनाई गई। सेटिंगबाजों को हवा भी नहीं लगी और जूरी बन गई और पुरस्कारों का चयन भी हो गया। पुरस्कारों के चयन के बाद भी पुरस्कारों को प्रभावित करने का प्रयास एक मंत्री के माध्यम से करने की असफल कोशिश की गई। इसके बारे में हमें मालूम हुआ तो हमने साफ कह दिया कि अगर जूरी का फैसला बदल गया तो खबर प्रकाशित की जाएगी, अंत में जूरी का फैसला बदलने की हिम्मत नहीं की गई और पहली बार सही खिलाडिय़ों को पुरस्कार मिले। प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाडिय़ों की सूची को सामान्य प्रशासन विभाग ने साल भर से ज्यादा समय से लटका कर रखा था जिसे जारी करवाने का काम हमारी खबरों ने किया।
मिशन पत्रकारिता की सूची इतनी लंबी है जिसको बताना संभव नहीं है। ये चंद उदाहरण हैं इस बात के कि हम तो मिशन पत्रकारिता में लगे हैं और लगे रहेंगे। मिशन पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए ही हमने अपनी एक खेल पत्रिका खेलगढ़ का प्रकाशन भी करते हैं। यह पत्रिका इसलिए क्योंकि हम जानते हैं कि कई बार संपादकों और मालिकों के दबाव में कई खबरें रूक जाती हैं, ऐसे में हमारी अपनी पत्रिका में हमें कुछ भी छापने से कौन रोकेगा। इस पत्रिका का प्रकाशन भी हमने पैसे कमाने के लिए नहीं किया है। सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि प्रकाशन का खर्च निकलने के बाद पत्रिका छपती है और सारी की सारी पत्रिकाएं हम मुफ्त में ही बांट देते हैं। रिकॉर्ड रहा है हमने आज तक एक भी पत्रिका बेची नहीं है। यह पत्रिका जब भी खेलों के आयोजन होते हैं हम खुद जाकर खिलाडिय़ों को मुफ्त में देते हैं।
10 टिप्पणियाँ:
ग्वालानी जी, आपके बारे में छत्तीसगढ़ का हर खिलाड़ी जानता है और आपका सम्मान करता है। आपने सच में आपने खेल और खिलाडिय़ों के लिए बहुत किया है, हमारे कराते के लिए भी आपने बहुत किया है, आपका कराते परिवार हमेशा आभारी रहेगा।
आपकी मिशन पत्रकारिता को नमन करते हैं गुरु
आप जैसे पत्रकारों को ही देश और समाज को जरूरत है
आज एक खुशबू का झोंका आया, वरना तो बदबू के कारण नाक ही बन्द कर रखी थी। आपको बधाई भी साधुवाद भी और आशीष भी।
आज के जमाने में आप जैसे पत्रकार भी हैं, सुखद बात है।
जोहर ले संगी बने,दिल से गोठियावत हस गा,पत्र-पत्रिका ला सरलग बनाये रखना भी बहुत बड़े बात हे,हजारो अईस अउ दिया हा बिन तेल के बूतागे,खेलगढ़ बर आपला गाडा गाडा बधाई
भाई आप सरीखे ही तो लोग हैं जो पत्रकारिता को आज भी पत्रकारिता बनाए हुए हैं. आपका धन्यवाद.
छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी न्याय दिलाने के लिए आपके पास ही आते हैं, यह बात छत्तीसगढ़ का पूरा जगत जानता है। आपने ही खिलाडिय़ों के यौन शोषण के खिलाफ जब खबरें छापी थीं, तो आपको बहुत विरोध का भी सामना करना पड़ा था।
खेलों के लिए आपके समर्थण को सब जानते हैं। आपने छत्तीसगढ़ राज्य के खेलों के विकास में बहुत काम किया है। जब भी खेलों की बात होती है आपका नाम जरूर लिया जाता है।
चलो कोई तो है जिसका मिशन पत्रकारिता है।
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