ब्लागवाणी में सही जानकारी देने वालों का ही पंजीयन हो
ब्लागवाणी का वापस प्रारंभ होना सुखद है, लेकिन इसी के साथ अब यह बात भी सामने आई है इस वाणी की आवाज को और ज्यादा बुंलद करने का काम ब्लागवाणी के संचालक करने का मन बना चुके हैं और वे चाहते हैं कि इसको अच्छा बनाने के लिए सुझाव दिए जाए। हमारे मन में तभी से एक बात है जबसे हम ब्लाग बिरादरी में शामिल हुए हैं। आज अगर ब्लागवाणी बंद हुई थी तो इसके पीछे भी एक छद्म नाम रहा है। ऐसे में हमारा ऐसा मानना है कि ब्लागवाणी में पंजीयन करने के लिए यह व्यवस्था हो कि आप जब तक अपने बारे में सही जानकारी नहीं देंगे तब तक आपका पंजीयन नहीं होगा। जब मोबाइल का एक नंबर लेने के लिए आईडी प्रुफ दिया जा सकता है तो एक ब्लाग के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता है, जब आप सही लिखने वाले हैं। ऐसा करने से ब्लाग बिरादरी में बहुत सी बदमाशियों पर अंकुश भी लग जाएगा।
हम जानते हैं कि हमारे इस सुझाव पर उन लोगों को जरूर आपति हो सकती है जिनके लिए छद्म नाम से लिखना मजबूरी है। ऐसे ब्लागरों में खासकर महिलाओं को। तो इसके लिए एक रास्ता यह है कि कम से कम ब्लागवाणी या फिर जो भी एग्रीगेटर हैं उनको तो आप सही जानकारी दें और उनसे यह अनुरोध किया जाए कि वे आपका पंजीयन उसी नाम से करें जिस नाम से आप पंजीयन चाहते हैं। ऐसे में होगा यह कि कोई छद्म नाम का फायदा उठाते हुए न किसी के खिलाफ कुछ गलत लिख सकेगा और न ही कोई गलत टिप्पणी कर सकेगा। ऐसा करने पर पंजीयन करनी वाली संस्था को यह अधिकार हो कि वह ऐसे छद्म नाम वाले व्यक्ति का नाम उजागर कर दे। यह बात हम केवल एग्रीगेटर के लिए नहीं बल्कि गूगल के लिए पहले कह चुके हैं कि कोई भी ब्लाग बनाने से पहले उसकी सही जानकारी का लेना अनिवार्य किया जाए।
आज लफड़े हो रहे हैं तो इसके गर्भ में छद्म नाम ही हैं। सही नाम वाले ब्लागर ऐसा नहीं करते हैं यह तो नहीं कहा जा सकता है, पर जिन ब्लागरों को कम से कम अपने मान-अपमान से वास्ता है, वे ऐसा कोई रास्ता नहीं अपनाते हैं। अब जिनको गदंगी करने की आदत है उनके लिए सही नाम क्या और छद्म नाम क्या। लेकिन इतना जरूर है कि अगर मोबाइल नंबर लेने की तर्ज पर ही ब्लाग बनाने और एग्रीगेटर में पंजीयन कराने के लिए आईडी प्रुफ जैसी बात लागू कर दी जो तो काफी हद तक बदमाशियों पर अंकुश लग सकता है। इस दिशा में खासकर गूगल को गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। आज हिन्दी ब्लाग शैशव अवस्था में है आगे जब इसका दायरा और बढ़ेगा तो इस बढ़े हुए दायरे के साथ बदमाशियां भी बढ़ेंगी, तब इन पर अंकुश लगाना संभव नहीं हो सकेगा। आज ही अगर इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया तो न जाने आगे क्या होगा।
हम यहां एक बात और कहना चाहेंगे कि ब्लागवाणी के लिए मासिक शुल्क जैसी व्यवस्था इसलिए उचित नहीं होगी क्योंकि हर कोई यह शुल्क वहन करने में सक्षम नहीं होगा। ऐसे में यह कोई रास्ता नहीं है। अब इंटरनेट के लिए शुल्क देना तो मजबूरी है। वैसे भी लेखकों को लेख छपवाने के लिए पैसे देने की परंपरा कहीं नहीं रही है लेखों के प्रकाशन पर मीडिया ही लेखकों को प्रारंभ से पैसे देता रहा है। अगर एग्रीगेटर भी पहले इस परंपरा को प्रारंभ करें और लेखकों को अच्छे लेखों के लिए पैसे देने लगे तो फिर लेखकों से कोई शुल्क लिया जाए तो बात अलग है, तब शायद किसी को आपति नहीं होगी। अगर किसी एक लेख के बदले कुछ मिलेगा तो उसको कुछ देने में क्या आपति हो सकती है।
ब्लाग बिरादरी के मित्र इस बारे में क्या सोचते हैं, आपके विचार सविनय आमंत्रित हैं।
17 टिप्पणियाँ:
आपके सुझाव अच्छे हैं। आपने काफी सोच समझकर लिखा है राजकुमार जी।
किसी भी क्षेत्र में जब गलत लोग आ जाते हैं तो बवाल मचता है। गलत लोगों को आने से रोकने के लिए कुछ तो करना ही चाहिए, अच्छा सुझाव है
लगे रहो मुन्ना भाई,हमारा वोट आप ही को है, आपने एक आवश्यक मुद्दे की बात कही,छ्द्म नामो का पन्जीयन न हो और शुल्क न दो और न लो वाली बात ठीक है,तुम्हारी भी जय-हमारी भी जय,
रापके सुझाव से सहमत हैं आभार्
गलत टिप्पणी करने वालों को कैसे रोकेंगे?
vary good suggestions ,welcome .
phir email id ke liye proof.. blogger ke liye proof.. socho blogvani par 100000 users ho jaaye to unaka id verification kaun karega.. our masik shulk ke liye aap mana kar rahe he.. or kya id farzi nahi hote..
very good suggestions ,welcome
@ रंजन जी,
गलत बातों को रोकने के लिए कुछ तो तकलीफें हम लोगों को भी उठानी ही पड़ेगी। अगर आप मोबाइल की सुविधा के लिए सही जानकारी दे सकते हैं तो फिर ब्लागिंग के लिए क्यों नहीं? आईडी फर्जी जरूर हो सकती है, हम यह दावा नहीं कर रहे हैं कि ऐसा करने से सब रूक जाएगा लेकिन अंकुश तो लग ही सकता है। अगर ब्लागवाणी में एक लाख से ज्यादा लोग भी हो जाए तो ऐसे-ऐसे साफ्टवेयर हैं जिनके सहारे वेरीफेकशन करना कठिन नहीं होगा। जहां तक शुल्क की बात है तो इसको ऐच्छिक जरूर किया जा सकता है। जो सक्षम हैं वो शुल्क दें, जो सक्षम नहीं हैं वे कहां से देंगे। क्या शुल्क देने में जो सक्षम नहीं हैं उनको लिखने का अधिकार नहीं है। एक जमाने में लेखकों को लिखने के कागज के लाले रहते थे। आज तो कम्प्यूटर का जमाना है। लेखकों को पैसे मिलने चाहिए, न की उनसे लेना चाहिए। किसी सच्चे लेखक के बारे में क्या आपने कभी सुना है कि उन्होंने पैसे देकर अपने लेख छपवाएं हैं। जिनको छपने का रोग होगा वे जरूर ऐसा कर सकते हैं। अच्छी बातों के अमल में कुछ दिक्कतें तो जरूर आती हैं। अब कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना पड़ेगा
@ मोडरेशन से बेनामी हो जाएंगे गुमनामी, समझे मिस्टर बेनामी
बिलकुल सटीक सुझाव है गुरु
शुल्क की बात क्युकी मैने उठाई हैं इसलिये फिर कह रही हूँ की शुल्क अग्रीगाटर पर अपना ब्लॉग दीखाने का होगा । शुल्क से ब्लॉग करने या ना करने का क्या लेना देना हैं । ब्लॉग तो आप लिख ही सकते हैं पर वो ब्लोग्वानी पर नहीं दिखे अगर आप शुल्क ना दे ।
आज एक दिन ब्लोग्वानी बंद हुआ और ब्लोगिंग पर विराम लग गया कल को अगर किसी वजह से ये सेवा बिकुल बंद हो जाए तो !!!!!!!!!! क्या आप ब्लॉग लिखना बंद करदेगे
पैसा दे कर सेवा को रेगुलर करवा लिया जाए ताकि कभी ये सेवा बंद ना हो ।
किसी को जो आप को फ्री सेवा दे रहा हैं इतने सुझाव तो दिये जा रहे हैं पर १०० रुपए महीने का शुल्क नहीं दिया जा सकता । हिन्दी आप की सेवा करे आप को आपके आलेखों के लिये पैसा दे पर हम और आप हिन्दी के लिये १०० रुपया महिना भी नहीं दे सकते
आपका सुझाव सटीक है, जी ।
बस इतना ही करना है कि, पँजीकरण प्रारूप में फोन नम्बर और शहर / स्थान / गाँव का पिन कोड भरना अनिवार्य हो,
वैसे ही पसँद पर चटका लगाने वाले को ब्लागवाणी पर पँजीकृत अपना मेल आई.डी. भरना आवश्यक हो ।
इन सबके लिये किसी बड़े तामझाम वाले साफ़टवेयर की आवश्यकता भी नहीं है ।
शुल्क के लिये पेपाल डोनेशन बटन लगाना ही पर्याप्त है, जैसी जिसकी श्रद्धा.. कोई बाध्यता नहीं !
सही कहा आपने। फर्जी आईडी वालों पर बैन लगना चाहिए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भैया मेरा क्या होगा? मेरे पास तो मोबाईल भी नहीं है।
:(
बिलकुल सही यह पर्सनल आयिदेंटिटी को प्रमाणित करने वाला हो -ताकि लोग गम्भीरता से ब्लॉग जगत में रहें और कुछ उत्तरदायित्व भी समझे !
यह प्रतिक्रिया पुन: जल्दबाजी की ही है... आप छद्मनामों से लिखने वालों को बिरादरी बाहर करके ब्लॉगिंग को ब्लॉगिंग न रहने देने की तरफदारी कर रहे हैं.... ये सही है कि ब्लॉगिंग में कही गई बातें सुनना कई बार अप्रिय लगता है पर वे बाते सामने आती हैं क्योंकि लोगों के मन में होती हैं... अत: ब्लागिंग को ऐसा ही अनगढ़ माध्यम कयों न रहने दिया जाए जहॉं जो चाहे नाम से लिखे... चाहे छद्म नाम से। सतर्क, सेंसरवाले मीडिया रूप तो वैसे ही भतेरे हैं। एक थोड़ा अराजक मीडिया भी चलने दें।
राज कुमार भाई बात में दम है आपके..मगर यहां मसिजीवि जी के तर्क से भी सहमत हूं..हालांकि मैंने यहां बेनामी लोगों और बेनामी टिप्पणियों को हमेशा नकारात्मक संदर्भों मे ही ज्यादा इस्तेमाल होते देखा है.....बहस सार्थक दिशा में बध रही है...अभी फ़िर आते हैं..
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