क्षेत्रीय भाषाओं में लिखने में एतराज क्यों?
ब्लाग बिरादरी में लगता है लोगों को खालिस विवाद पैदा करने में ज्यादा रूचि हो गई है। एक तरफ धर्म युद्ध चल ही रहा है कि किसी जनाब को अब क्षेत्रीय भाषाओं में लिखने पर एतराज होने लगा है। सोचने वाली बात यह है कि कोई किसी भी भाषा में लिखे किसी का क्या जाता है। वैसे भी आप कौन होते हैं यह तय करने वाले कि कोई किस भाषा में लिखेगा, जब अपने देश में हर क्षेत्रीय भाषा को अलग दर्जा प्राप्त है तो फिर क्यों कोई ऐसा करने की हिमाकत कर रहा है और कह रहा है कि आप क्षेत्रीय भाषा में लिखना बंद करें। ऐसे बंदे को सामने आकर यह बताना चाहिए कि उनकी इस सोच के पीछे की मानसिकता क्या है, क्या खाली विवाद पैदा करना या फिर और कुछ।
हमारे एक ब्लागर मित्र हैं ललित शर्मा उनको कई भाषाओं में लिखने में महारथ हासिल है। वे अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ भोजपुरी और हरियाणवी में भी लिखते हैं। अचानक दो दिनों पहले उनका फोन आया कि भाई साहब अब ये ब्लाग बिरादरी में ऐसा कौन सा बंदा आ गया है जिसको अब भोजपुरी और हरियाणवी में लिखने में दिक्कत होने लगी है। एक टिप्पणी चर्चा वाले चिट्ठे में किसी ने ऐसा लिखा है कि क्षेत्रीय भाषाओं में लिखना बंद होना चाहिए। हमने शर्मा जी को समझाया कि छोडि़ए न लोगों का तो काम है विवाद पैदा करना आप तो बस लिखते रहिए वैसे भी अच्छा काम करने वालों के ही पीछे लोग पड़ते हैं। अगर आप काम ही नहीं करेंगे तो कोई क्यों आपके पीछे पड़ेगा।
शर्मा जी को तो हमने समझा दिया, पर यहां पर सोचने वाली बात यह है कि आखिर किसी को क्यों कर क्षेत्रीय भाषा में लिखने में आपत्ति है। हमारे देश के संविधान में सभी क्षेत्रीय भाषाओं को जब भाषा का दर्जा दिया गया है तो फिर वो कौन है जो संविधान के खिलाफ जाकर यह तय करने का काम कर रहा है कि क्षेत्रीय भाषाओं में लेखन बंद हो। क्या वो बंदा विश्व के ब्लाग जगत का मालिक है? जो उनकी बातों को मानने के लिए लोग बाध्य हैं। बिना किसी तर्क के किसी भी भाषा पर उंगली उठाने की हिमाकत करना गलत है। अगर किसी को लगता है कि क्षेत्रीय भाषा में लिखना ठीक नहीं है तो पहले यह बात तो सामने आए कि आखिर क्यों ठीक नहीं है। हर क्षेत्रीय भाषीय चाहता है कि उनकी भाषा को ज्यादा से ज्यादा लोग जाने और पहचाने फिर क्यों कर कोई एतराज कर रहा है।
वैसे भी अपना देश ऐसा है जहां कदम-कदम पर भाषा और बोली बदल जाती है, हमारे देश की यही विविधता तो इसे महान बनाती है। भारत ही तो विश्व में एक ऐसा देश है जहां पर हर समुदाय, धर्म और भाषा के लोग एक साथ रहते हैं। अब यह बात अलग है कि इनके बीच में बैर पैदा करने का काम कुछ स्वार्थी लोग करते हैं, पर इनको सफलता नहीं मिल पाती है। अपनी ब्लाग बिरादरी में काफी समय से साम्प्रदायिकता का जहर फैलाने की कोशिशें हो रही हैं, पर इसको सफलता मिलने वाली नहीं है, यह बात अच्छी तरह से ऐसा करने वालों को समझ लेनी चाहिए। अपने देश के हिन्दु और मुस्लिम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि उनको आपस में लड़ाने का काम कुछ स्वार्थी लोग ही करते हैं। ऐसे में ऐसे लोगों की दाल गलने वाली नहीं है।
जब ऐसे स्वार्थी लोगों की दाल यहां नहीं गलती है तो फिर क्षेत्रीय भाषा पर नजरें टेड़ी करने वाले की दाल कैसे गलेगी। ऐसे बंदों पर ध्यान देना ही बेकार है, जिसको जिस भाषा में लिखने का मन है वह लिखे। अपने ललित शर्मा जी तो काबिले तारीफ हैं कि वे छत्तीसगढ़ के होने के बाद भीभोजपुरी और हरियाणवी में लिखने का काम कर रहे हैं। ऐसा काम करने वालों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है न कि ऐसे लोगों को डराने का काम करना चाहिए। वैसे अपने शर्मा जी डरने वालों में से नहीं है, लेकिन कोई भी किसी बात से विचलित जरूर हो जाता है, शर्मा जी भी विचलित हो गए थे। हमारा मानना है कि शर्मा जी जैसे किसी भी ब्लागर को विचलित होने की जरूरत नहीं है आप स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक है और जिस भी भाषा में चाहे अपने विचार रख सकते हैं आप को ऐसा करने से अपने देश का संविधान भी नहीं रोक सकता है फिर कोई बंदा क्या चीज है।
तो लगे रहे अपने लेखन में। जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़।
17 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सही मुद्दों पर लिखते हैं आप गुरु
हर ब्लागर किसी भी भाषा में लिखने के लिए आजाद है, उसे रोकने वाला कोई कौन होता है।
आपने सही मुद्दा उठाया है। मै देख रहा हुँ यहां कुछ लोगों का ही साहित्य लेखन नजर आ रहा है। बाकि सब तफ़री चल रही,नित नये विवादों को जन्म देने वाले लोग क्या चाहतें हैं?
राज भाई..जब कुछ न हो लिखने को तो यही आपत्ति, स्टिंग, किसी को विवाद में घसीटना, किसी पर यूं ही ताने मार देना....इन्हीं सब के सहारे तो ब्लोग्गिंग चला रहे हैं कुछ.....मगर शायद ऐसे लोगों को पता नहीं कि अब ब्लोग्गिंग का ये परिवार बढते हुए एक समाज का रूप लेता जा रहा है....और समाज चौधराहट और मुखियापने से नहीं चला करते...कोई कहीं नहीं जाएगा...इसलिये अपना काम करते रहें...वे तो करेंगे ही..अरे आपत्ति दर्ज़ करने वाला काम...।
बिलकुल सही लिखा है आपने हर कोई किसी भी भाषा में लिखने के लिए स्वतंत्र है।
ललित भाई जिन्दाबाद ! हमर बोली हमर बानी हावय आनी बानी. काखरो कुछू जरय झन डारौ पानी. बरय गुंगवाय काखरो. आप लिखत रहव.
विवाद खड़ा करने वालों की बातों पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए
बिलकुल सही लिखा है आपने, सभी क्षेत्रीय भाषाओ को महत्व मिलना चाहिए, और रही बात हिन्दी जगत पर पढने की तो कौन सा ये ब्लोगर मित्र हिन्दी में लिखे लेखो को ही ठीक से पढ़ते है जो इन्हें क्षत्रीय भाषाओं को पढने समझने में दिक्कत होती हो ?
किसी भाशा मे लिखने पर कोई इतराज़ नहीम मगर हम देश को भाशावाद, प्रान्तवाद मे न बाँटे और रष्टृ भाशा की ांअनदेखी न करें।्राष्ट्रभाशा का उत्थान ही देश को एक सूत्र मे पिरो सकता है। फिर भी भारत मे हर कोई आज़ाद है।
कब तक कहते रहोगे
हम पंजाबी बंगाली मराठी मद्रासी हैं
कब कहना सीखोगे
हम सब भारतवासी हैं ।
अपना तो यही मन्तव है । जय हिन्द जय भारत जय राष्ट्र भाषा । अगर देश है तो प्रान्त हैं जब देश नहीं रहेगा तो प्रान्त और भाशा का क्या करेंगे। लिखो मगर बाँटने के लिये या मुद्दा बनाने के लिये नहीं इस विश्य की चर्चा कर विवाद को जन्म देने और लोगों को बाँटाणै की जरूरत कहाँ थी। आपको हर भाशा मे हम पढ रहे हैं मैं भी एक से अधिक भाशाओं मे लिखती हूँ मगर उनका आनन्द लेने और उनका सौन्द्रय देखने के लिये मुझे तो किसी ने नहीं रोका जब आप उसे मुद्दा बनायेंगे तो सही नहीं होगा आभार दीपावली की शुभकामनायें ब्लागजगत मे प्रेम भाईचारा बनाये रखें।
आपने सही मुद्दा उठाया है।
कोई किसी भी भाषा में लिखने के लिए स्वतंत्र है।
ईश्वर ने बेवकूफों को सींग नहीं दिए वर्ना हर किसी का कुरता फाड़ते फिरते............... आप लिखो और जमके लिखो.............हाथी अपनी राह चलता है फिर भौंकने वाले तो भौंकते ही रहते हैं.
कुश की टिप्पणी को लेकर बेकार की बहस
http://www.nishantam.com/2009/10/blog-post.html
निसाचर जी से सहमत हूँ ....
राजकुमार जी आपकी यह पोस्ट बताती है कि आप कितनी गम्भीरता से सबंधित लिंक का अध्ययन करके पोस्ट लिखते हैं। कुश की जिस टिप्पणी पर ये सब बातें हुई उसको समझने तक की जहमत नहीं उठाई आपने। धन्य हैं आप!
लो कल्लो बात
कुश की टिप्पणी में रखा क्या है समझने समझाने को। सीधी सी बात ही तो है कि किसी की रचना पर कोई कह दे कि अंग्रेज्जी मत लिखो तो उसका मतबल होता है कुछ दूसरे लिखें कि हरियाणवी,भोजपुरी में लिखना बंद कर दें क्या।अब्बतायो कि बात अंग्रेज्जी नहीं लिखने की हो रही तो ताऊ पूछ रहा हरियाणवी नहीं लिखें का?हमेशा शुक्ल पक्ष क्यों देखते हैं कबहुं करिश्न पक्ष भी देखौं
हम उन महान ब्लागरों को नमन करते हैं जो यह बात कर रहे हैं कि कुश जी टिप्पणी पर पूर्वाग्रह से क्षेत्रीय भाषाओं में लिखने से एतराज क्यों? लेख लिखा गया है। सबसे पहली बात यह है कि हम जिस कुश जी को जानते नहीं हैं उनसे हमारा कैसा पूर्वाग्रह? फिर दूसरी बात यह कि हमारे पास हमारे मित्र ललित शर्मा का फोन आया था और उनके बताने के बात जब हमने टिप्पणी चर्चा वाले ब्लाग को पढ़ा तो उससे ऐसा ही लगा कि कोई जनाव भोजपुरी और हरियाणवी सहित क्षेत्रीय भाषाओं के ब्लाग के खिलाफ हैं। यही वजह रही कि ऐसी पोस्ट लिखी गई। अब तक जिन जनाब की टिप्पणी को लेकर बहस हो रही है, वह जनाब तो सामने आए ही नहीं हैं। पाबला जी ने भी पूछा था हम भी पूछा रहे हैं कि आखिर ऐसी टिप्पणी कहां की गई उसका लिंक क्या है? जिस पर इतनी बहस हो रही है। एक बार फिर से कहना चाहेंगे कि किसी पर पूर्वाग्रह का आरोप लगाने से पहले सौ बार सोचना चाहिए। हमारी कोई कुश जी से दुश्मनी नहीं है कि हम उनसे पूर्वाग्रह में लिखने का काम करेंगे। और एक बात हम और बता दें कि हमें किसी से पूर्वाग्रह पालने की जरूरत नहीं है, जिस दिन लगेगा कि ब्लाग बिरादरी में पूर्वाग्रह वाला रोग लग गया है तो हम ब्लाग बिरादरी से किनारा कर लेंगे। वैसे ब्लाग लिखना हमारी मजबूरी नहीं है क्योंकि हमें छपने का कोई शौक नहीं है, हम विगत दो दशक से ज्यादा समय से अखबार में काम कर रहे हैं और साथ ही एक पत्रिका भी निकालते हैं। हमारे पास वैसे भी इतना समय नहीं रहता है कि हम किसी से पूर्वाग्रह पाले और किसी के खिलाफ भी उल्टा सीधा लिखने का काम करें।
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