भरे पेट ईमानदारी दिखाने में क्या हर्ज है
अपने छत्तीसगढ़ में इन दिनों दो ईमानदार अफसरों की खासी चर्चा है। एक अपने नगर निगम के अमित कटारिया तो दूसरे एएसपी शशिमोहन सिंह। एक को अपनी ईमानदारी से निगम आयुक्त की कुर्सी गंवानी पड़ी तो दूसरे ने खुद ही कुर्सी को लात मार दी। इन दोनों अफसरों की चर्चा के बीच में कई बातें सामने आ रही हैं। कोई कहता है कि भाई साहब अब इन अफसरों का पेट भरा हुआ है तो ईमानदारी की बातें कर रहे हैं, क्या कोई खाली पेट ईमानदारी की बातें कर सकता है। किसी अमित या शशि मोहन में दम है तो भूखे पेट ईमादारी दिखाए तो माने। एक मित्र ने कहा कि यार जब किसी से खाली पेट ईमानदारी की उम्मीद नहीं की जा सकती है तो फिर कोई भरे पेट ईमानदारी की बातें कर रहा है तो इसमें हर्ज क्या है?
वैसे जो भी बातें सामने आईं है उनमें दम तो है। यह बात सही है कि अब तक ऐसे बहुत कम मौके सामने आए हैं जब ईमानदारी की बातें करने वाले और ईमानदारी के रास्ते पर चलने वाले अफसर फाके करके इस रास्ते पर चलते हैं। पेट की आग वास्तव में ऐसी आग होती है जो अच्छे-अच्छे ईमानदारों को गलत रास्तों पर डाल देती है। इसी पेट की आग की खातिर कई मजबूर महिलाओं को अपने जिस्म तक का सौदा करना पड़ता है। ऐसे में यह बात तय है कोई खाली पेट रहने वाला तो ईमानदारी की बातें करने से रहा। अपने शहर में जहां अमित कटारिया और शशिमोहन जैसे ईमानदार अफसरों के मामले की चर्चा है, वहीं कई लोग यह बात भी कह रहे हैं कि इन अफसरों को ईमानदारी के कीड़े ने इसलिए काटा है क्योंकि इनको मालूम है कि वे कुछ भी कर लें उनके घर का चूल्हा तो जलेगा ही। अगर इनको इस बात का जरा सा भी अंदेशा रहता कि उनके ईमानदारी के चक्कर में उनके घर में चूल्हा नहीं चलेगा तो जरूर वे भी इस रास्ते पर नहीं चलते। ठीक बात है, लेकिन इसमें गलत क्या है?
अगर आज अपने देश में ईमानदारों की कमी है तो इसका एक सबसे बड़ा कारण यही है कि लोगों का ईमान खरीदने वाले जानते हैं कि कम वेतन पाने वालों को कैसे लालच में फंसाया जा सकता है। आज यही वजह रही है कि लोग पहले मजबूरी में और फिर अब आदत के कारण भ्रष्ट हो गए हैं। आज हालात यह है कि 100 में 99 भ्रष्ट हैं फिर भी भारत महान है।
अमित कटारिया को लेकर एक मित्र ने कहा कि माना कि यार अमित जी ईमानदार हैं, पर उनके निगम के आयुक्त रहते हुए ऐसा कौन सा शहर के हित का काम हुआ है जिसको देखकर ऐसा माना जाए कि उन्होंने बड़ी ईमानदारी से काम किया है। शहर में जहां भी अतिक्रमण तोड़ा गया है, सभी ऐसे स्थान रहे हैं जहां से वीआईपी जाते हैं। ऐसे कौन से रास्ते को अतिक्रमण मुक्त किया गया है जो आम जनता के लिए है। हमारे इस मित्र की बातों में दम तो है। उन्होंने जो बातें कहीं हैं वो गलत भी नहीं है। लेकिन यहां पर हम एक बात यह कहना चाहेंगे कि भले वीईपी के लिए अतिक्रमण हटाया गया, पर उससे अपना शहर कम से कम सुंदर तो लगने लगा है।
हमारे एक मित्र ने एक और बात मीडिया के लिए भी कही उन्होंने कहा कि मीडिया भी तो नेताओं की बातें मानता है। अगर मीडिया नेताओं की बातें मानना बंद कर दें तो फिर किसी नेता या मंत्री में ऐसे किसी भी अमित कटारिया और शशिमोहन सिंह के खिलाफ कुछ भी करने का दम ही नहीं रहेगा। जब उनको मालूम होगा कि मीडिया उनकी हालत खराब कर सकता है तो फिर वह ईमानदार अफसर के खिलाफ कुछ भी करने से पहले हजारों बार सोचेंगे, लेकिन नेता और मंत्री जानते हैं कि वे जो चाहेगा मीडिया भी वही लिखेगा तो फिर कैसे कोई इस देश में ईमानदारी से काम करेगा।
हमारे एक मित्र ने एक अच्छी बात यह कही कि यार इसमें क्या बुराई है कि किसी का पेट भरा है इसलिए वह ईमानदारी का बातें कर रहा है और उस रास्ते पर चल रहा है। जब किसी भूखे पेट वाले के बस में ईमानदारी के रास्ते में चलना संभव नहीं है तो कोई तो इस रास्ते पर चलने का काम कर रहा है, ऐसे में ऐसे इंसानों की सभी को मदद करनी चाहिए। संभवत: यही वजह है कि अपने शहर के दोनों ईमानदारों अफसरों का साथ यहां की जनता दे रही है। पहली बार जनता को किसी अफसर के पक्ष में सड़क पर आते देखा गया है। सोचने वाली बात यह भी है कि अपने देश में ऐसे कितने ईमानदार अफसर हैं जिनका पेट भरा है और वे ईमानदारी के रास्ते पर चलते हैं। कोई इस रास्ते पर चल रहा है तो उनको इस रास्ते से हटाने की बजाए उनको इसी रास्ते पर दमदारी से चलने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है न कि यह कहते हुए उनको हतोउत्साहित करने की कि आपका पेट भरा है इसलिए आप ईमानदारी की बात कर रहे हैं। अब बातें करने वालों का क्या है। ऐसी बातें करने वालों के कारण ही तो अच्छा काम करने से कतराने लगते हैं।
हमने यहां पर एक तस्वीर पेश करने की कोशिश की है कि कैसे लोग किसी अच्छे काम में भी बुराई निकालने से बाज नहीं आते हैं। लेकिन जहां लोग बुराई निकालने से बाज नहीं आते हैं, वहीं अच्छे लोग भी हैं जो अच्छाई को समझते हैं और समझदारी की बात करते हैं तभी तो आज तक ईमानदारी जिंदा है। जय ईमानदारी, जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़।
16 टिप्पणियाँ:
गरीब आदमी भला कैसे ईमानदारी की बात कर सकता है, उसको तो ईमानदार रहने ही नहीं दिया जाता है।
इमानदारी से पानी भी नहीं पी सकते आप इस जमाने में
ईमानदारी का ठेका तो अमीरों ने ही ले रखा है, उनके लिए ईमानदारी फैशन है।
जय ईमानदारी, जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़।
आपके जिस मित्र ने भी कहा है यह बिलकुल ठीक है कि अमित कटारिया ने रायपुर की आम जनता के लिए कोई काम नहीं किया है। आपने उस मित्र को सच्ची बात कहने के लिए साधुवाद
भ्रष्टाचरण का अमीरी गरीबी से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह एक बिमारी है।
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दोषदर्शी होना भी एक स्वभाव है। कैंची नस्ल के लोग हर बात क़ाटते रहते हैं। इन ऑफिसरों की ऐसी 'हरकतों' का महत्त्व सिविल सर्विस में भरती होने के पहले जलाए गए खून और समय की मात्रा को ध्यान में रखने से पता चलता है। निन्दकों से कहिए जरा कर के दिखाएँ !
भरे पेट में ईमानदारी दिखाने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन वह ईमानदारी सच में ईमानदारी हो तो। दिखावे की ईमानदारी करने वालों की कमी नहीं है अपने देश में।
ईमानदारी की खिल्ली उडाने का भरष्ट लोगो का यह भी एक नुक्शा है!
जिन लोगो ने मुफ़्त की मगज़मारी की उनमे से एक ने भी कोई अच्छा काम किया हो तो वो बाल की खाल निकालने का हक़दार है।वैसे आप कुछ भी कर लो कोई न कोई नुक्स निकाल ही लेगा,इस्लिये ऐसे लोगो की बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत ही नही है।
भैया पेट तो अम्बानी जैसे उद्योगपतियों का भी भरा हुआ है फिर भी वे आपके मोबाइल के बैलेंस में से चोरी छुपे पैसे काटने से बाज नहीं आते. टैक्स चोरी, नियमों का उल्लंघन भी ये खूब करते हैं.
बात दरअसल पेट नहीं नीयत की है.पेट की सीमा है लेकिन बदनीयती की कोई सीमा नहीं होती. अगर आज अमित कटारिया जैसे लोग ईमानदारी से काम कर रहे हैं तो हम उन पर व्यंगबाण छोड़कर और कुछ नहीं केवल अपनी चारित्रिक कमजोरी को छुपाने और अपने मन को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि हम ऐसा क्यों नहीं कर पाते. वे साधुवाद और समर्थन के हकदार हैं. उन पर व्यंग करके हम भ्रष्टाचारियों के हाथों को ही मजबूत कर रहे हैं.
कोई भी काम ईमानदारी से करे तो उस में जनता का हित ही होता है। यह कहना गलत है कि किसी ईमानदार व्यक्ति ने जनहित का कौनसा काम किया है?
बात न तो भरे पेट और खाली पेट की है और न ही अफसर की या रिक्शेवाले की, बात है ईमानदारी की। ऐसे उदाहरणों की भी कमी नहीं है जहाँ गरीब रिक्शावाले ने लोगों का रिक्शे में भूला हुआ कीमती समान उनके घर जाकर वापस लौटाया है। जो ईमानदार होते हैं उन्हें ईमानदारी में ही सन्तोष मिलता है।
nice
जय ईमानदारी, जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़....
सोलह आने सच। इस दुनिया को ईमानदारी और प्रेम ही बचायेंगे। जो इस सच से इत्तेफाक नहीं रखते वो या तो मूर्ख हैं या फिर घोर स्वार्थी। जिसकी आस्था मानवता में है और जो इस सुंदर संसार के हितैषी हैं, वे इस सच को जानते हैं। हम आपसे इत्तेफाक रखते हैं, साथी।
आपके ब्लाग पर आकर प्रभावकारी खुशी मिली। ईमानदारी जिंदावाद।
ek aur bat
is post me tarah kee tippanee huee hai. lekin un sabka uttar Dinesh jee kee tippanee me hai. is sandarbh me mera jawab bhee Dinesh jee kee tarah hee hai.
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