क्या राष्ट्रगान की रिहर्सल करना उचित है?
यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि अपने राष्ट्रगान के लिए भी रिहर्सल करने की जरूरत पड़ गई है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जब राष्ट्रीय शालेय खेलों के उद्घाटन का पूर्वाभ्यास करवाया जा रहा था तो जिला प्रशासन के अफसरों ने राष्ट्रगान की एक बार नहीं बल्कि चार-चार बार रिहर्सल करवा दी। यानी इसका मतलब साफ है कि अफसरों की नजर में लोग राष्ट्रगान भी ठीक से नहीं गा सकते हैं। ऊपर से उनसे पूछने पर कहा जाता है कि इसमें गलत क्या है। हमें तो यह लगता है कि राष्ट्रगान की रिहर्सल करवाना एक तरह सेे राष्ट्रगान का अपमान है। कम से कम हमने तो इससे पहले न कभी ऐसा सुना था और न देखा था कि राष्ट्रगान की भी रिहर्सल करवाई जाती है। अब इस बारे में अपनी ब्लाग बिरादरी के मित्र बताएं कि क्या उन्होंने कभी ऐसा सुना या देखा है कि राष्ट्रगान की रिहर्सल होती है साथ ही यह भी बताएं कि क्या सही है या गलत।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कल से राष्ट्रीय शालेय खेलों का प्रारंभ हुआ है। इस आयोजन के एक दिन पहले से पुलिस मैदान में रिहर्सल करवाई जा रही थी। इसका सारा जिम्मा रायपुर के जिलाधीश संजय गर्ग और जिला पंचायत के सीईओ रजत कुमार पर था। ऐसे में जबकि उद्घाटन करने के लिए राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन को आना था तो जिला प्रशासन उद्घाटन अवसर पर होने वाले सभी कार्यक्रमों की रिहर्सल करवा रहा था। यहां तक तो ठीक था, पर राष्ट्रगान की रिहर्सल जहां एक दिन पहले दो बार करवाई गई, वहीं उद्घाटन कार्यक्रम में राज्यपाल के आने के पांच मिनट पहले ही राष्ट्रगान प्रारंभ कर दिया गया ऐेसे में आयोजन स्थल में उपस्थित बड़ी संख्या में लोग हड़बड़ा गए और खड़े हो गए। इसके पहले भी एक बार और राष्ट्रगान की रिहर्सल करवाई गई थी।
हमने अपने पत्रकारिता जीवन के 23 सालों में इससे पहले कभी ऐसा न देखा था और सुना है। हमने इस बारे में जब वहां पर उपस्थित देश के कई राज्यों से आए अधिकारियों से चर्चा की तो उनका भी साफ कहना था कि यह तो सरासर गलत है और एक तरह से राष्ट्रगान का अपमान है कि आप उसकी रिहर्सल करवा रहे हैं। रिहर्सल का मतलब है कि जिला प्रशासन को इस बात का भरोसा ही नहीं था कि राष्ट्रगान ठीक से हो सकता है। यहां पर सोचने वाली बात यह भी है कि किसी को राष्ट्रगान गाना नहीं था बल्कि जब राज्यपाल आते हैं तो पुलिस बैंड द्वारा राष्ट्रगान की धुन बजाई जाती है, इसके लिए पुलिस बैंड वाले पूरी तरह से प्रशिक्षित रहते हैं, फिर क्यों कर ऐसा किया गया इसका जवाब जिला प्रशासन के पास नहीं है। आयोजन सचिव का जिम्मा उठा रहे जिला पंचायत के सीईओ से जब इस बारे में बात की गई तो उनका कहना था कि इसमें गलत क्या है? भले यह उनको गलत न लगता हो लेकिन हमें तो ऐसा लगता है कि राष्ट्रगान की रिहर्सल करवाने का सीधा सा मतलब अपने राष्ट्रगान का अपमान करना है।
अब इस बारे में हमारी ब्लाग बिरादरी क्या सोचती है, उनके विचार आमंत्रित हैं, ताकि हमारे ज्ञान में भी कुछ इजाफा हो सके। क्या आप लोगों ने कभी ऐसा देखा या सुना है तो जरूर बताएं, साथ ही यह भी बताएं कि क्या राष्ट्रगान की रिहर्सल करना न्यायसंगत है।
11 टिप्पणियाँ:
Haan zarurat hai aap kabhi match se pahle hamari cricket team ko gaate dekhen unki prastuti dayniya hai
naturica par suniye
कविता -mix
अफसर अपनी तरह की सबको निकमा समझते हैं, इसलिए उनको लगा होगा कि हमें राष्ट्रगान नहीं आता है तो दूसरों को भी नहीं आता होगा।
बिलकुल सही मुद्दा उठाया आपने गुरु
बिल्कुल ज़रुरी है, अगर एक बडे मंच पर आप कुछ प्रस्तुत करने जा रहे हैं तो. चाहे वह राष्ट्र गीत ही क्यो ना हो. मुझे याद है, बचपन मैं 26 जनवरी, 15 अगस्त के लिए स्कूल के संगीत मास्टर राष्ट्र गान गाने के लिए चुनी गई 5 लदकियोन से कई दिन पहले से ही रिहर्सल करवाते थे. ये लडकियान जिला कार्यालय मैं भी जाका राष्ट्र गान गाती थी. तथाकथित देशभक्ति के नाम पर किसी भी बात को मुद्दा ना बनाएन.
सीधे मंच पर गाकर गल्तियां कर जग हंसाई कराने से अच्छा है रिहर्सल और इसमे बुराई ही क्या है?
राष्ट्रगान की रिहर्सल करवाना राष्ट्रगान का अपमान ही है।
अफसरशाही का यह भद्दा नमूना अपने देश में नहीं हो सकता है
प्रिय ग्वालानी, इस विषय पर व्यंग्य लिखने का मन में विचार चल ही रहा था, मगर जैसे ही तुम्हारा लेख पढ़ा मन में फ़ौरन हलचल हुई और व्यंग्य तैयार. पढो. शायद पसंद आये.
व्यंग्य.....
राष्ट्रगान का रिहर्सल ? वाह, क्या आईडिया है....
बड़े देश भक्त है ये लोग। इन्हे प्रणाम करना चाहिए। चलिए, पहले प्रणाम कर ही ले।
प्रणाम...... प्रणाम...... प्रणाम......
ऐसे ही खाली-पीली किसी को प्रणाम नही किया जाता लेकिन मै जिन महान आत्माओं को प्रणाम कर रहा हूँ, दरअसल वे देशभक्त आत्माएं है। अब वैसे भी देश-भक्त बचे कहाँ ? जो नज़र आ रहे है उनकी चौराहे पर आरती उतारनी चाहिए। क्यो उतारनी चाहिए इनकी आरती? इसका भी सॉलिड कारण है । सुन लीजिये..
कुछ सरकारी अधिकारी एक कार्यक्रम के पहले राष्ट्र गान का रिहर्सल करवा रहे थे। आज़ादी के बाद के अब तक के इतिहास की सबसे रोचक घटना यही है-राष्ट्रगान का रिहर्सल ।
एक अधिकारी आया । पहले शातिर-सा चेहरा बनाया, फ़िर आदमी-सा मुसकाया, वह भी कुछ सेकेण्ड के लिए। फ़िर बोला। (मन ही मन) देखो कीडे-मकोडों..(प्रकट में कहा-) लेडीस एंड जेंटलमेन, हम समारोह करने जा रहे है। वैसे तो हम समारोह करते रहते है। (स्वगत कथन) यह हमारे लिए धंधा है। इस बहाने कमाई हो जाती है। खैर, पाइंट इस दैट, प्रोग्राम हो रहा है। लोग कहते है कि प्रोग्राम के स्टार्टिंग और एंडिंग में नॅशनल एंथम- वो क्या कहते है, हाँ राष्ट्रगान ...ये होना ही चाहिए, प्रोग्राम की गरिमा बढती है। मंत्री जी आ रहे है न । और भी कुछ हाई-फाई किस्म के लोग रहेंगे इसलिए मेरी बीवी भी रहेगी. उसे दीदी तेरा देवर दीवाना वाला गाना अच्छा लगता है. उसे राष्ट्रगान की एक-दो पंक्तिया भी याद है. तो हो जाए राष्ट्रगान, लेकिन उसका रिहर्सल ज़रूरी है। ऐसा मेरे सबोर्डिनेट कहते है। क्यों भाई?
इतना बोल कर अफसर ने सर घुमाया। बगल में खड़े मातहत अफसर ने खीसे निपोरते हुए कहा- सर...सर...सर... चमचे की पारम्परिक सहमति पाकर अफसर ने कहना शुरू किया- तो हमने फैसला कर लिया है, कि राष्ट्रगान होगा मगर रिहर्सल हो जाए तो अच्छा रहेगा। आप लोग क्या सोचते है?
एक कर्मचारी ऊंचे संसकारो वाला था। वह सच बोलने की हिम्मत रखता था। उसने कहा- राष्ट्रगान का रिहर्सल राष्ट्रगान का मज़ाक लगेगा सर, इसलिए बिना रिहर्सल गाना ठीक रहेगा। आज़ादी के तिरसठ साल बाद भी अगर राष्ट्रगान कारिहर्सल हो रिहर्सल सर, आप लोग तो खैर सलामत रहे, मुझे डूब कर मर जाना चाहिए।
अफसर ने कर्मचारी को घूर कर देखा। जैसे खा जाएगा, लेकिन खा नही पाया। सच्चाई को इतनी आसानी से खाया भी नही जा सकता। मौका अच्छा था। सत्यवादी कर्मचारी के खिलाफ माहौल बनने के लिए बाकी कर्मचारी श्वान-राग छेड़ बैठे-सर, आप का सुझाव ठीक है। रिहर्सल ज़रूरी है। हम राष्ट्रगान भूल चुके है। इसी बहाने राष्ट्रगान याद कर लेंगे...
हो-हल्ला होने लगा। अफसर की समझ में नही आया कि क्या करे। रिहर्सल करे कि करे। अफसर अफसर होता है। मंत्री को छोड़ कर वह किसी के बाप का नौकर नही होता। बैठक में कोई मंत्री नही था। इसलिए वह ज़ोर से चीखा- खामोश, बकवास बंद। रिहर्सल तो होगी ।
एक मुंह लगे चमचे ने कहा- सर, ऐसा करते है, राष्ट्रगान का रिहर्सल करने की बजाय राष्ट्रगान की धुन का रिहर्सल कर लेते है।
चमचा मुह लगा था, सो अफसर को सुझाव जम गया। वह बोला-वाह, भाई, कमाल कर दिया, धोती को फाड़ कर रूमाल कर दिया. तुमको तो पद्श्री मिलनी चाहिए। जोरदार सुझाव है। ये फाईनल रहा ।
जब अफसर कह रहा है फाईनल तो कौन कहे सेमी फाईनल। बस, हो गया फाईनल।
राष्ट्र धुन बजी। एक बार...दो बार....रिहर्सल तो रिहर्सल है। कोई मुस्करा रहा है, कोई खुजली कर रहा है, कोई इशारे कर रहा है, किसी का मोबाईल बज रहा है। इस तरह राष्ट्रधुन की रिहर्सल हो रही है। भारत माता मुस्कराई । उसके मुंह से निकला-जय हो....वीर सपूतो की। ऊपर वाले, इन्हे माफ़ कर देना क्योंकि, ये बेचारे नही जानते कि ये क्या कर रहे है।
तभी कोई क्रांतिकारी आवाज़ गूंजी- नही, भगवान, जिस समाज को राष्ट्रगान या राष्ट्रधुन की रिहर्सल करनी पड़े, उसे जिंदा रहने का हक नही है। ऐसा निकृष्ट समाज मर जाए तो ही बेहतर।
लेकिन प्रश्न यह है कि राष्ट्रगान के रिहर्सल का आईडिया किसने दिया? उसे सज़ा मिलनी चाहिए या नही?
सज़ा मिले या पुरस्कार, हमारे यहाँ ये भी लम्बी चर्चा का विषय हो जाता है। ससुरा अफसर बच कर निकल भागता है और छोटा-मोटा कर्मचारी शहीद कर दिया जाता है।
गिरीश पंकज
यहीं इसी पोस्ट के कमेंट्स में कुछ लोगों ने कहा है की इसमें बुरा क्या है, येलोग प्रौढ़ हो चुकी पीढी के लोग हैं.... अब इसके आगे कहने को बचता ही क्या है :-(
their is nothing wrong in rehearsal
nice
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