विंडोज -7 की औकात अब 20 रुपए
अपने देश में किसी भी साफ्टवेयर की नकल कितनी तेजी से होती है इसका एक नमूना फिर से सामने आया है विंडोज-7 के रूप में। इस साफ्टवेयर के बाजार में आए अभी चंद ही दिन हुए हैं कि इसकी नकल महज 20-20 रुपए में बिकने लगी है। यह नकल जहां महानगरों में 50 रुपए में बिक रही है, तो छोटे शहरों में इसे महज 20 रुपए में खरीदा जा सकता है। लेकिन इस नकल के साथ एक बात की गारंटी जरूर है कि आपके कम्प्यूटर में कई तरह से वायरसों का हमला हो जाएगा। अब आप चाहे तो जरूर साढ़े छह हजार के माल को 20 रुपए में लेकर अपने कम्प्यूटर की बर्बादी का सामान कर लें।
दुनिया की सबसे बड़ी साफ्टवेटर कंपनी माइक्रोसाफ्ट ने जैसे ही विंडोज -7 लांच किया, इस पर नकल बनाने वालों की नजरें तुरंत इनायत हो गई और कंपनी ने जितनी तेजी से इसकी सीडी तैयार नहीं की होगी उससे ज्यादा तेजी से इसकी लाखों नकली सीडी तैयार करके इसको भारत के बाजार में छोड़ दिया गया। अब हालात यह है कि भारत के बाजार में विंडोज-7 की औकात महज 20 रुपए की रह गई है। वैसे अपने देश में असल से ज्यादा नकल का ही चलन है, क्योंकि नकली की कीमत काफी कम होती है। अब भला कोई सोच सकता है कि 6799 रुपए का एक साफ्टवेयर महज 20 रुपए में मिल सकता है। यह कमाल तो भई अपने देश में ही हो सकता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जब भी किसी साफ्टवेटर की नकल तैयार की जाती है तो उसके साथ वायरस के आने का खतरा बहुत ज्यादा होता है। विंडोज-7 के बारे में भी कहा जा रहा है कि इसकी पायरेटेड सीडी के साथ 60 प्रतिशत मालवेयर यानी वायरस मिलता है। अब वायरस के बारे में अपने देश के लोग कुछ सोचते नहीं हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि अपने देश में कम्प्यूटर का प्रयोग करने वाले लोग इतने धनी नहीं हैं कि वे एक साफ्टवेटर के लिए इतना ज्यादा पैसा खर्च कर सके। अब शौक पूरा करना है तो नकल में क्या बुराई है ऐसा लोग सोचते हैं।
वैसे अब तक ऐसे काफी कम मामले सामने आए हैं जिसमें नकली साफ्टवेटर में कम्प्यूटर की बर्बादी हुई है। नकली साफ्टवेयर का कारोबार करने वाले भी उसी तरह की गारंटी की बात करते हैं कि इस साफ्टवेयर से कुछ नहीं होगा अगर होगा तो हम बैठे हैं न आपका कम्प्यूटर बनाकर देने के लिए। अब यह बात अलग है कि आपका कम्प्यूटर अगर खराब हो जाए तो आपको यह कह दिया जाए कि यह उस साफ्टवेयर के कारण नहीं किसी और किसी वायरस के कारण ऐसा हुआ है। अब आप और हम तो कम्प्यूटर के साफ्टवेयर के जानकार हैं नहीं जो साफ्टवेयर का काम करने वालों की बातों को गलत साबित कर सके, ऐसे में उनकी बातें मानने के अलावा कोई चारा नहीं रहता है। अब यह फैसला तो हमें करना है कि हमें क्या करना है।
वैसे हमारे कई मित्र इस बात को मानते हैं कि नकल भी चल ही जाती है। कई अखबारों में ही एक साफ्टवेयर खरीदा जाता है और प्रेस के सारे कम्प्यूटरों में वह साफ्टवेयर काम करता है। फिर ये कैसे होता है? आखिर वहां भी तो साफ्टवेयर को कापी करके ही दूसरे कम्प्यूटरों में डाला जाता है। जब वहां के सारे कम्प्यूटर काम करते हैं तो दूसरे स्थानों के क्यों काम नहीं करेंगे? मीडिया से जुड़े कई मित्र अपने अखबारों के कम्प्यूटर से कई तरह के साफ्टवेयर कापी करके अपने घरों के कम्प्यूटरों में चलाते हैं और वो चलते हैं।
नकल को रोकना किसी के बस की बात नहीं है। अगर सच में साफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियां नकल को रोकना चाहती है तो उनको साफ्टवेयर इतने महंगे बनाने की नहीं चाहिए। अगर नकल करके साफ्टवेयर बेचने वाले जब लाखों कमा सकते हैं तो कम कीमत में साफ्टवेयर उपलब्ध कराके साफ्टवेयर कंपनियां क्यों नहीं लाखों कमा सकती हैं। हालांकि तब भी बाजार में नकल आएगी लेकिन जब नकल और असल की कीमत में जमीन-आसमान का अंतर नहीं होगा तो जरूर कोई नकल खरीदना नहीं चाहेगा। अब सोचना कंपनी वालों का है कि वे नकल से कैसे मुक्ति चाहते हैं।
17 टिप्पणियाँ:
ये तो सही है...कम्पनियों को दाम घटाने ही होंगे
हँसते रहो पर एक चित्र पहेली चल रही है..शीघ्र ही आपका चित्र भी उसमें सम्मिलित होने जा रहा है..कृप्या पधारें...
http://hansteraho.blogspot.com
bilkul sahi kaha hain aapne companio ko daam ghatane hi padenge varna nakal to hain hi
http/jyotishkishore.blogspot.com
हमारी औकात २० रु कि है... वैसे नकली सोफ्टवेयर केवल भारत में नहीं सभी जगह मिलते है.. और इतनी ही कम कीमत पर..
कंपनी दाम कितने ही कम कर ले.. २० रु में नहीं बेच सकती.. और हम ३० रु (मान लो) असली के बजाय २० रु में नकली पसंद करेगें..
भारत में लोगों को नकली खाने की आदत है अगर असली सस्ता भी मिलेगा तो हजम नहीं होगा
साफ्टवेयर क्या सच में इतना महंगा बनता जो इसकी कीमत हजारों में रखते हैं?
ये बात तो ठीक है कि नकली भी चल ही जाता है।
यही तो हिन्दुस्तानियों की खासियत है की जैसा भी इंतजाम ये कम्पनियां करें हम इनके सोफ्टवेयर तोड़ ही डालते है. इंडियन दिमाग से पूरी दुनिया की माइक्रोसोफ्ट जैसी कम्पनियां तक घबराती हैं.
असली माल सस्ता मिले तो कौन नकली को पूछेगा
गुरु
आपका यह कहना सही है. यदि असल माल की कीमत 500 सौ रुपए हो तो हर आदमी असल ही खरीद ले.
किसी भी रूप में जो सामान हमें 20 रूपए में उपलब्ध हो सकता है .. उसके लिए कंपनी का 300 गुणा यानि 6799 रुपए मूल्य रखना सही नहीं .. नकली सीडी बनने को रोकने के लिए उसे मूल्य कम रखना चाहिए!!
रवि जी, संजना जी ने यही सवाल किया है कि आखिर सॉफ़्टवेयर इतने महंगे क्यों रखे जाते हैं? क्या इसकी वजह सिर्फ़ मुनाफ़ाखोरी है या कुछ और? फ़िर लाइनस टोरववाल्ड्स जैसे लोगों को सन्त क्यों न कहा जाये?
ऐसा नहीं है कि पायरेटेड सॉफ्टवेयर के साथ वायरस आने का खतरा रहे ही। हमारे देश के अधिकांश कम्प्यूटर में विन्डोज 95 से लेकर विन्डोज XP तक पायरेटेड ही तो हैं किन्तु उनके कारण वायरस की समस्या नहीं आई। टैली के लोवर वर्सन्स भी अधिकांश कम्प्यूटर में पायरेटेड ही हैं।
कोई भी कंपनी नया सॉफ्टवेयर बनाने के लिये अपने सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स, प्रोग्रामर्स आदि स्टाफ को उनके वेतन या पारिश्रमिक के रूप में मोटी रकम देती है इस कारण सॉफ्टवेयर की कीमत बढ़ जाती है। किन्तु यह भी सत्य है कि सॉफ्टवेयर बनाने वाली ये कंपनियाँ एक बार में ही बहुत अधिक मुनाफा कमा लेना चाहती हैं।
यद्यपि 6799 रुपए अमेरिका जैसे देशों के निवासियों के लिये बड़ी रकम नहीं है किन्तु भारत जैसे देश के लिये वास्तव में यह बड़ी रकम है। कोई भी इतना मँहगा सॉफ्टवेयर खरीदना नहीं चाहेगा और वह भी उस सूरत में जब कि उसे पायरेटेड सॉफ्टवेयर महज 20 रुपये में ही मिल रहा हो।
सब कुछ सही है
राज कुमार जी आपके ज्यादातर बातों से सहमत हूँ ... बाकि ऐसा है की सभी पाईरेटेड सोफ्टवेर मैं वाईरस नहीं होते ... हाँ पाईरेटेड मैं वाइरस की संभावना ज्यादा है जबकि ओरिजनल मैं वाइरस नहीं रहने की गारंटी |
बाकी अवधिया जी ने कह दिया है |
मेरी नजर मे तो माइक्रोसोफ़्ट नकल रोक्ना ही नही चाह्ती | लिन्क्स विन्डो से बेहतर है फ़्री है फ़िर भी हम विन्डो का इस्तेमाल करते है कारण हम नकल वाली विन्डो का इस्तेमाल करते करते इसके आदि हो चुके है |
सच कह रहे हैं जब दाम पहुँच के बाहर हो तो लोग यही रास्ता लेते हैं.
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