राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

शुक्रवार, अक्टूबर 09, 2009

राष्ट्रगान से करो खिलवाड़-कोई क्या लेगा बिगाड़

राष्ट्रगान के साथ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में किए गए खिलवाड़ पर कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है। हर बात पर आंदोलन करने की बात करने वाले कथित नेताओं को जैसे सांप सुघ गया है। किसी को इस बात से कोई मतलब ही नहीं है कि राष्ट्रगान के साथ क्या हुआ है। होगा भी कैसे। अपना देश भारत वास्तव में महान है जहां पर देश के तिरंगे के अपमान के बाद कुछ नहीं होता है। रायपुर में राष्ट्रगान के साथ जैसा किया गया उसको लेकर जहां हमें दुख हैं, वहीं वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार गिरीश पंकज भी बहुत ज्यादा दुखी और खफा हैं। उन्होंने इस पर एक अच्छा व्यंग्य भी लिखा है। उनको इस बात की भी पीड़ा है कि अपना आज का मीडिया कैसा हो गया है जो राष्ट्रगान के साथ खिलावड़ के बाद भी मौन है। इस पर तो संपादकीय भी लिखी जानी चाहिए और इस मामले में दोषी अफसरों पर कार्रवाई भी होनी चाहिए। अगर आज ऐसा नहीं होता है तो आगे न जाने राष्ट्रगान के साथ क्या किया जाएगा।

हमने कल ही यह मुद्दा ब्लाग बिरादरी के सामने रखा था कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में होने वाले एक समारोह के लिए राष्ट्रगान की एक बार नहीं बल्कि चार-चार बार रिहर्सल करके इसका अपमान किया गया है। हमारे इस मुद्दे के बाद जो कुछ प्रक्रियाएं आईं उनमें इस बात को कुछ लोगों ने गलत नहीं माना गया कि राष्ट्रगान की रिहर्सल क्यों की गई। लेकिन इस बारे में हमारे साथ ही और कई लोगों का नजरिया यह है कि राष्ट्रगान की रिहर्सल और वह भी आजादी के 63 साल बाद यह तो सचमुच में राष्ट्रगान का अपमान और अफसरों के निक्कमेपन का सबूत है। इस मुद्दे पर बहुत ही जानदार व्यंग्य लिखने का काम वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार गिरीश पंकज ने किया है आप भी उसे देख सकते हैं राष्ट्रगान का रिहर्सल ? वाह, क्या आईडिया है.... इस व्यंग्य को जब हमारे लेख में गिरीश जी ने टिप्पणी के रूप में पोस्ट किया तो हमने उसको पढऩे के बाद उनको फोन किया। हम बता दें कि हम गिरीश जी को 25 साल पहले से तब से जानते हैं जब स्कूल में पढ़ते थे और रायपुर के दैनिक नवभारत में गिरीश जी काम करते थे। हमने उनको जब फोन किया तो उन्होंने बताया कि एक अखबार में चंद लाइनों की खबर के बाद ही मैंने इस पर व्यंग्य लिखने का मन बनाया था कि आपके ब्लाग में इस मुद्दे पर लिखा देखा और उसको पढऩे के बाद व्यंग्य तैयार किया है।

गिरीश जी ने कहा कि वास्तव में राजकुमार यह दुखद बात है कि आजादी के 63 साल बाद भी राष्ट्रगान के रिहर्सल की जरूरत पड़ी है और इस पर मीडिया मौन है। उन्होंने कहा कि अगर मैं आज किसी अखबार में होता तो जरूर इस पर त्वरित टिप्पणी लिखता और साथ ही संपादकीय भी लिखता। गिरीश जी का भी ऐसा मानना है राष्ट्रगान के साथ ऐसा मजाक देश में और पहले कहीं नहीं हुआ है।

उन्होंने भी इस बात पर दुख जताया कि कैसे लोग इस तरह की टिप्पणी करते हैं कि राष्ट्रगान की रिहर्सल करना गलत नहीं है। क्या 63 साल बाद भी हम इस लायक नहीं बन सके हैं कि राष्ट्रगान को ठीक से गा सके। जहां पर राष्ट्रगान की रिहर्सल करवाई गई थी वहां पर तो राष्ट्रगान का मामला ही नहीं था, वहां तो महज राष्ट्रगान की धुन बजनी थी और वह भी पुलिस बैंड द्वारा। पुलिस बैंड को राज्यपाल के आने और जाने के समय राष्ट्रगान की धुन बजाने का इतना ज्यादा अभ्यास है कि रिहर्सल का कोई ओचित्य ही नहीं था। इसी के साथ राज्यपाल और राष्ट्रपति के बारे में देश के सभी लोग यह बात जानते हैं कि जब उनका किसी भी कार्यक्रम में आना होता है तो उनके आने के साथ और जाने के समय राष्ट्रगान की धुन बजाई जाती है, ऐसे में लोग खुद ही खड़े हो जाते हैं। अगर रिहर्सल करनी ही थी तो इस बात की की जाती है कि लोग को यह समझाया जाता कि जैसे ही राज्यपाल आएंगे राष्ट्रगान की धुन बजेगी और आप लोग अपने स्थान पर खड़े हो जाईएगा। लेकिन नहीं, अफसर तो अपने मन की न करें तो वे अफसर कैसे। उनको इस बात से क्या कि राष्ट्रगान का अपमान हो या और कुछ। वे तो अपनी अफसरशाही चलाएंगे ही। ऐसे अफसरों को जरूर निलंबित कर देना चाहिए जिन्होंने राष्ट्रगान के साथ रिहर्सल जैसा भद्दा मजाक किया है। अगर आज ऐसा नहीं किया गया तो आगे जरूर राष्ट्रगान का इससे ज्यादा बुरा हाल हो सकता है।

क्या अपने देश के मीडिया का खून भी सुख चुका है जो ऐसे मामले में कुछ नहीं कर रहा है। हर छोटी-छोटी बात पर संपादकीय लिखने वाला प्रिंट मीडिया और हर छोटी बात को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने वाला इलेक्ट्रानिक मीडिया आखिर इस मामले में मौन क्यों है। इसी के साथ उन नेताओं को क्या सांप सुघ गया है जो हर छोटी-बड़ी बात पर आंदोलन करने की बात करते हैं, कैसे सब राष्ट्रगान का अपमान बर्दाश्त कर सकते हैं। चलिए जिनकी जैसी मानसिकता लेकिन हमें यह बात गलत लगी इसलिए हमने इसको कम से कम अपने ब्लाग में लिखने की हिम्मत तो दिखाई हमें इसी बात का संतोष है। वास्तव में अगर आज ब्लाग नहीं होता तो हमें भी अपना मन मारकर रहना पड़ता क्योंकि अखबार की नौकरी अपनी मर्जी से नहीं चलती है और खबरें भी वहां मर्जी से नहीं बनाई जा सकती है।

7 टिप्पणियाँ:

Unknown शुक्र अक्टू॰ 09, 09:11:00 am 2009  

मीडिया और नेताओं के क्यों उम्मीद करते हैं मित्र, यही तो देश को खोखला कर रहे हैं इसको क्यों होगी राष्ट्रगान के अपमान की चिंता

Unknown शुक्र अक्टू॰ 09, 09:17:00 am 2009  

गिरीश जी का व्यंग्य बहुत ही सटीक है, उनको बधाई जरूर दीजिएगा

asif ali,  शुक्र अक्टू॰ 09, 09:26:00 am 2009  

सच कहते हैं आप हर छोटी बात को राई का पहाड़ बनाने वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया को क्यों राष्ट्रगान के अपमान पर कुछ दिखाने की सुझेगी।

amresh kumar,  शुक्र अक्टू॰ 09, 09:42:00 am 2009  

अरे जनाब आप भी कहा उलझे हुए राष्ट्रगान में अभी ब्लाग जगत में तो धर्मयुद्ध चल रहा इससे फुरसत मिले तब तो किसी को राष्ट्रगान की ख्याल आए। आप भी क्या राष्ट्रगान के मान-अपमान की बकवास लेकर बैठे हैं, आपके पास कोई धर्म-वर्म का मुद्दा नहीं है क्या?

Unknown शुक्र अक्टू॰ 09, 10:09:00 am 2009  

आप जैसे लोग जब तक हैं, तब तक कोई किसी मुद्दे को दबा सकता है। भले मीडिया में यह मुद्दा न उठा हो पर आपने तो इस अपने ब्लाग के जरिए पूरी दुनिया के सामने रख ही दिया है। आपने अपना काम कर दिया है इसके लिए साधुवाद

anu शनि अक्टू॰ 10, 09:15:00 am 2009  

चलिए किसी को तो राष्ट्रगान के अपमान से सरोकार है

Randhir Singh Suman शनि अक्टू॰ 10, 11:36:00 pm 2009  

राष्ट्रगान का रिहर्सल ? वाह, क्या आईडिया है...?

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP