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शुक्रवार, जुलाई 24, 2009

जनप्रनिधियों के लिए हिन्दी अविनार्य हो

हिन्दी का जिस तरह से राजनेता लगातार मजाक बना रहे हैं, उसके बाद अब यह जरूरी लगता है कि अपने देश में कम से कम ऐसा कानून बनाने की जरूरत है जिसमें जनप्रतिनिधियों के लिए हिन्दी अनिवार्य हो। जिसको हिन्दी नहीं आएगी, वह चुनाव लडऩे का ही पात्र नहीं होगा। ऐसा करने से जरूर उन अहिन्दी भाषायी राज्यों के नेताओं को परेशानी होगी, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अपने ही देश में अगाथा संगमा जैसी मंत्री भी हैं जो अहिन्दी भाषीय राज्य की होने के बाद भी हिन्दी में शपथ लेने में गर्व महसूस करती हैं। अगर आप सच्चे दिल से हिन्दुस्तानी हैं तो फिर आपको हिन्दी बोलने में कैसी शर्म। अगर आप सच में देश की सेवा करने के लिए जनप्रतिनिधि बनना चाहते हैं तो फिर हिन्दी सिखने में क्या जाता है। हिन्दी आपके काम ही आएगी। हिन्दी में आपको बोलता देखकर आपके राज्य की जनता भी आप पर गर्व ही करेगी।

संसद में एक मंत्री जयराम रमेश ने जिस तरह से हिन्दी का अपमान किया है उसके बाद यह बात जरूरी हो जाती है कि इस देश में अपने देश की सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। देश के संविधान में हिन्दी न जानने वालों के लिए अंग्रेजी में बोलने की जो छूट दी गई है, उसका लगातार गलत फायदा उठाया जा रहा है और हिन्दी का अपमान करने का सिलसिला लगातार जारी है। कब तक, आखिर कब तक हिन्दी का अपमान बर्दाश्त किया जाता रहेगा। हिन्दी का अपमान करने वालों को सबक सिखाना जरूरी है। इसके लिए यह जरूरी है कि इस दिशा में पहला कदम बढ़ाने का काम केन्द्र सरकार करें। हमारा तो ऐसा मानना है कि अपने राजनेता ही हिन्दी का सबसे ज्यादा अपमान करते हैं। ऐसे में इनके लिए यह जरूरी हो जाता है कि इनको हिन्दी में बोलने के लिए बाध्य किया जाए। ये हिन्दी में बोलने के लिए बाध्य तभी होंगे जब संविधान में ऐसा कोई प्रावधान किया जाएगा। हमें ऐसा लगता है कि कम से कम जनप्रतिनिधयों के लिए तो हिन्दी को अनिवार्य कर देना चाहिए।

अगर अपने देश की विधानसभाओं के साथ संसद में ही हिन्दी से मतलब नहीं रहेगा तो फिर हिन्दी की परवाह कौन करेगा। जब संविधान बनाने वाले ही हिन्दी को हेय नजरों से देखेंगे तो फिर आम लोगों से आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे राष्ट्रभाषा का मान करेंगे। जिनके हाथों में देश की कमान है, पहले तो उनको ही हिन्दी प्रेम दिखाना होगा। हिन्दी प्रेम दिखाने का काम कई मौका पर अगाथा संगमा जैसी नेताओं ने किया है। जब-जब ऐसे नेताओं ने हिन्दी प्रेम दिखाया है, उन पर सबने गर्व ही किया है। क्यों नहीं हर अहिन्दी भाषीय राज्य के नेता अगाथा संगमा का अनुशरण कर सकते हैं? इसमें कोई शर्म की बात तो नहीं है कि आप हिन्दी सिख रहे हैं या फिर हिन्दी में बोल रहे हैं। अगर कोई जापानियों, चीनियों या रूसियों को कहे कि वे अपनी भाषा में क्यों बोलते हैं तो क्या यह उचित होगा। जिस देश की जो भाषा है, उस भाषा में बोलना ही गर्व है, न कि किसी और देश की भाषा में बोलना। माना कि अपने देश में कई भाषाओं का संगम है, लेकिन इसका मतलब कदापि नहीं है कि आप उस राष्ट्रभाषा को ही भूल जाए जिसके कारण यह राष्ट्र है और इसका मान है। अंग्रेजी को सहभाषा के रूप में भारत में ही नहीं हर देश में प्रयोग में लाया जाता है, लेकिन इसका मलतब यह नहीं है कि दूसरे देश में लोग अपनी भाषा को छोड़कर अंग्रेजी के पीछे भागने लगे हैं जैसा अपने देश में हो रहा है।

कहा जाता है कि मान देने से ही मान मिलता है, अगर आप हिन्दी का मान ही नहीं करेंगे तो आपको मान कहां से मिलेगा। इतिहास गवाह है कि जब भी जिसने हिन्दी का मान किया है उसका मान बढ़ा ही न कि घटा है। अपने देश में अगाथा संगमा जैसे कई नेता हैं, वहीं कई अफसर भी हैं जो अहिन्दी भाषीय राज्यों के होने के बाद भी हिन्दी बोलने में गर्व महसूस करते हैं। अपने राज्य छत्तीसगढ़ के राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन हिन्दी भाषीय राज्य के न होने के बाद भी इतना अच्छी हिन्दी बोलते हैं कि उनको हिन्दी बोलते देखकर ही गर्व होता। ऐसे कई उदाहरण हैं। अगर इच्छाशक्ति हो तो किसी भी भाषा के व्यक्ति के लिए कम से कम हिन्दी कठिन नहीं हो सकती है। देश के हर नागरिक को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह हिन्दी में बोलेगा। बेशक आप अहिन्दी भाषीय हैं, तो हिन्दी में न लिखें, पर बोलने में परेशानी नहीं होनी चाहिए। आईये आज ही संकल्प लें कि हम राष्ट्रभाषा का मान रखने के लिए न सिर्फ खुद हिन्दी में बोलेंगे बल्कि इसके लिए दूसरों को प्रेरित करने का काम करेंगे। अगर ऐसा हो जाए तो फिर कभी कोई हिन्दी का अपमान नहीं करेगा।

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शनिवार, मई 30, 2009

अगाथा के हिन्दी प्रेम को सलाम

अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी से किसी को कितना प्यार हो सकता है इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व केन्द्रीय मंत्री पीए संगमा की पुत्री अगाथा संगमा ने पेश किया है। अहिन्दी भाषीय राज्य की इस लड़की को जब केन्द्र में मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई तो यह किसी ने नहीं सोचा था कि अगाथा हिन्दी में शपथ ले सकती हैं, पर उन्होंने ऐसा करके न सिर्फ सबको चौका दिया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि अगर आपके मन में सच्ची आस्था हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। अगाथा का हिन्दी में शपथ लेने उन मंत्रियों के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो हिन्दी भाषीय राज्य के होने के बाद भी हिन्दी में शपथ लेना संभवत: अपमान समझते हैं। भारतीय संविधान में तो यह प्रावधान ही कर देना चाहिए कि शपथ तो हिन्दी में ही लेनी पड़ेगी। ऐसा करने में बुराई नहीं है। अपनी भाषा को बढ़ाने के लिए ऐसा कड़ा कदम उठाया जाएगा तो ही हिन्दी का भला हो सकता है।

राष्ट्रपति भवन के अशोका हाल में जब मनमोहन सरकार की सबसे कम उम्र की मंत्री के रूप में अगाथा संगमा शपथ लेने आईं तो उनके कम उम्र की मंत्री होने की ही उत्सुकता थी, लेकिन जब राष्ट्रपति ने उनको शपथ दिलाना प्रारंभ किया तो उन्होंने जैसे ही शपथ हिन्दी में लेनी प्रारंभ की सब चौक गए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ श्रीमती सोनिया गांधी को भी आश्चर्य हुआ। एक तरफ जहां अगाथा ने हिन्दी के प्रति अपनी अथाह आस्था दिखाई, वहीं दूसरी तरफ उप्र के सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल ने अंग्रेजी में शपथ लेकर सबको चौकाया। संभवत: श्री जायसवाल अंग्रेजी में शपथ लेकर अपने को पढ़ा-लिखा जताने की कोशिश कर रहे थे। जायसवाल जैसे नेताओं को सबक लेना चाहिए अगाथा जैसी लड़कियों से जिनमें हिन्दी प्रेम कितना कुट-कुट कर भरा है। हमें तो ऐसा लगता है जब अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी है तो संविधान में इस बात का साफ-साफ उल्लेख रहना चाहिए कि किसी भी मंत्री को हिन्दी में शपथ लेना अनिवार्य होगा। इस बात का विरोध किया जा सकता है लेकिन क्या आप मंत्री का पद पाने के लिए इतना सा काम नहीं कर सकते हैं। अगर सोनिया गांधी दूसरे देश की होते हुए हिन्दी बोल सकती हैं, अगाथा अहिन्दी भाषीय राज्य की होने के बाद हिन्दी में शपथ ले सकती हैं तो फिर परेशानी कहां है। अगर हम लोग ही अपनी राष्ट्रभाषा की अवहेलना करते रहेंगे तो फिर दूसरों से कैसे उम्मीद की सकती है कि हमारी राष्ट्र भाषा का सम्मान किया जाएगा।


इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारी हिन्दी ही ऐसी भाषा है जो हमारे विचार से हर भारतीय की जान होनी चाहिए। हिन्दी ही है जो सबका सम्मान करना जानती है। इस भाषा में शिष्टाचार और शालीनता भी भरी पड़ी है। इसी के साथ इस भाषा में एक परिवार का अपनापन भी झलकता है। यह अपनी राष्ट्रभाषा के लिए दुखद है कि हमारे भारतीयों को कई बार हिन्दी बोलने में शायद शर्म

जायसवाल जैसे नेताओं को सबक लेना चाहिए अगाथा जैसी लड़कियों से जिनमें हिन्दी प्रेम कितना कुट-कुट कर भरा है। हमें तो ऐसा लगता है जब अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी है तो संविधान में इस बात का साफ-साफ उल्लेख रहना चाहिए कि किसी भी मंत्री को हिन्दी में शपथ लेना अनिवार्य होगा।

महसूस होती है तभी तो वे हिन्दी जानते हुए भी ऐसी जगहों पर बिना वहज अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं जहां पर इसकी जरूरत नहीं होती है। अक्सर हमने देखा है कि हमारे भारतीय हिन्दी बोलने में अपमान महसूस करते हैं। कई बार प्रेस कांफ्रेंस में ऐसे मौके आए हैं जब लोग हिन्दी की बजाए अंग्रेजी बोलने लगते हैं, तब कम से कम हमसे तो रहा नहीं जाता है और हम बोल पड़ते हैं कि जनाब हिन्दी बोलने में शर्म आ रही है या फिर आप हिन्दी ही नहीं जानते हैं। अगर हिन्दी नहीं जानते हैं तब तो कोई बात नहीं है लेकिन हिन्दी आती है तो हिन्दी में ही बोले यहां हम सब हिन्दुस्तानी ही हैं। एक तरफ जहां ऐसे लोगों की कमी नहीं है, वहीं दक्षिण सहित कई ऐसे राज्यों के रहवासी हैं जिनके राज्य की बोली दूसरी होने के बाद भी ऐसे लोग हिन्दी से इतना लगाव रखते हैं कि उनको हिन्दी बोलना अच्छा लगता है।

हमें याद है जब अपने राज्य में राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन की नियुक्ति हुई थी, तब उनके बारे में कहा गया था कि उनको हिन्दी नहीं आती है। ऐसे में एक अखबार में खबर भी छपी कि ऐसे में उन विधायकों का क्या होगा जिनको अंग्रेजी नहीं आती है। लेकिन जब राज्यपाल का छत्तीसगढ़ आना हुआ तो मालूम हुआ कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं बहुत अच्छी है। ऐसे कई अधिकारियों को हम जानते हैं कि जिनके राज्यों का नाता हिन्दी से नहीं है पर वे हिन्दी इतनी अच्छी बोलते हैं कि लगता है कि वास्तव में हिन्दी का मान इनसे ही है। कहने का मतलब है कि अगर आप में वास्तव में राष्ट्रभाषा के प्रति प्यार और सम्मान है तो आपके लिए हिन्दी कठिन नहीं है लेकिन आप उसको बोलना ही नहीं चाहते हैं तो फिर कोई बात नहीं है। अगर आज देश में हर कोई अगाथा की राह पर चले तो हिन्दी को विश्व की सिरमौर भाषा भी बनाया जा सकता है। हम तो बस इतना जानते हैं कि अपनी राष्ट्रभाषा का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग हर हिन्दुस्तानी को करना चाहिए।

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