अगाथा के हिन्दी प्रेम को सलाम
अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी से किसी को कितना प्यार हो सकता है इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व केन्द्रीय मंत्री पीए संगमा की पुत्री अगाथा संगमा ने पेश किया है। अहिन्दी भाषीय राज्य की इस लड़की को जब केन्द्र में मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई तो यह किसी ने नहीं सोचा था कि अगाथा हिन्दी में शपथ ले सकती हैं, पर उन्होंने ऐसा करके न सिर्फ सबको चौका दिया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि अगर आपके मन में सच्ची आस्था हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। अगाथा का हिन्दी में शपथ लेने उन मंत्रियों के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो हिन्दी भाषीय राज्य के होने के बाद भी हिन्दी में शपथ लेना संभवत: अपमान समझते हैं। भारतीय संविधान में तो यह प्रावधान ही कर देना चाहिए कि शपथ तो हिन्दी में ही लेनी पड़ेगी। ऐसा करने में बुराई नहीं है। अपनी भाषा को बढ़ाने के लिए ऐसा कड़ा कदम उठाया जाएगा तो ही हिन्दी का भला हो सकता है। जायसवाल जैसे नेताओं को सबक लेना चाहिए अगाथा जैसी लड़कियों से जिनमें हिन्दी प्रेम कितना कुट-कुट कर भरा है। हमें तो ऐसा लगता है जब अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी है तो संविधान में इस बात का साफ-साफ उल्लेख रहना चाहिए कि किसी भी मंत्री को हिन्दी में शपथ लेना अनिवार्य होगा।
राष्ट्रपति भवन के अशोका हाल में जब मनमोहन सरकार की सबसे कम उम्र की मंत्री के रूप में अगाथा संगमा शपथ लेने आईं तो उनके कम उम्र की मंत्री होने की ही उत्सुकता थी, लेकिन जब राष्ट्रपति ने उनको शपथ दिलाना प्रारंभ किया तो उन्होंने जैसे ही शपथ हिन्दी में लेनी प्रारंभ की सब चौक गए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ श्रीमती सोनिया गांधी को भी आश्चर्य हुआ। एक तरफ जहां अगाथा ने हिन्दी के प्रति अपनी अथाह आस्था दिखाई, वहीं दूसरी तरफ उप्र के सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल ने अंग्रेजी में शपथ लेकर सबको चौकाया। संभवत: श्री जायसवाल अंग्रेजी में शपथ लेकर अपने को पढ़ा-लिखा जताने की कोशिश कर रहे थे। जायसवाल जैसे नेताओं को सबक लेना चाहिए अगाथा जैसी लड़कियों से जिनमें हिन्दी प्रेम कितना कुट-कुट कर भरा है। हमें तो ऐसा लगता है जब अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी है तो संविधान में इस बात का साफ-साफ उल्लेख रहना चाहिए कि किसी भी मंत्री को हिन्दी में शपथ लेना अनिवार्य होगा। इस बात का विरोध किया जा सकता है लेकिन क्या आप मंत्री का पद पाने के लिए इतना सा काम नहीं कर सकते हैं। अगर सोनिया गांधी दूसरे देश की होते हुए हिन्दी बोल सकती हैं, अगाथा अहिन्दी भाषीय राज्य की होने के बाद हिन्दी में शपथ ले सकती हैं तो फिर परेशानी कहां है। अगर हम लोग ही अपनी राष्ट्रभाषा की अवहेलना करते रहेंगे तो फिर दूसरों से कैसे उम्मीद की सकती है कि हमारी राष्ट्र भाषा का सम्मान किया जाएगा।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारी हिन्दी ही ऐसी भाषा है जो हमारे विचार से हर भारतीय की जान होनी चाहिए। हिन्दी ही है जो सबका सम्मान करना जानती है। इस भाषा में शिष्टाचार और शालीनता भी भरी पड़ी है। इसी के साथ इस भाषा में एक परिवार का अपनापन भी झलकता है। यह अपनी राष्ट्रभाषा के लिए दुखद है कि हमारे भारतीयों को कई बार हिन्दी बोलने में शायद शर्म
हमें याद है जब अपने राज्य में राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन की नियुक्ति हुई थी, तब उनके बारे में कहा गया था कि उनको हिन्दी नहीं आती है। ऐसे में एक अखबार में खबर भी छपी कि ऐसे में उन विधायकों का क्या होगा जिनको अंग्रेजी नहीं आती है। लेकिन जब राज्यपाल का छत्तीसगढ़ आना हुआ तो मालूम हुआ कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं बहुत अच्छी है। ऐसे कई अधिकारियों को हम जानते हैं कि जिनके राज्यों का नाता हिन्दी से नहीं है पर वे हिन्दी इतनी अच्छी बोलते हैं कि लगता है कि वास्तव में हिन्दी का मान इनसे ही है। कहने का मतलब है कि अगर आप में वास्तव में राष्ट्रभाषा के प्रति प्यार और सम्मान है तो आपके लिए हिन्दी कठिन नहीं है लेकिन आप उसको बोलना ही नहीं चाहते हैं तो फिर कोई बात नहीं है। अगर आज देश में हर कोई अगाथा की राह पर चले तो हिन्दी को विश्व की सिरमौर भाषा भी बनाया जा सकता है। हम तो बस इतना जानते हैं कि अपनी राष्ट्रभाषा का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग हर हिन्दुस्तानी को करना चाहिए।
16 टिप्पणियाँ:
अगाथा संगमा ने न सिर्फ हिन्दी का सम्मान किया है, बल्कि नारी जाति का भी सम्मान बढ़ाया है। अगाथा प्रेरणा है हर उस महिला के लिए जो हिन्दी से परहेज करती हैं। महिलाओं को दिखाना चाहिए कि हिन्दी को आगे बढ़ाने में वे भी पीछे नहीं हैं
samajh gaye jee..agathaa ne pehle hee shot mein sabit kar diya hai ki ek kabil pita kee kaabil putree hain..naye mantrimandal ko apnaa pehlaa star mantri mil gaya hai....agatha ko shubhkaamnaayein...aur aapko dhanyavaad..
अहिन्दी भाषीय राज्य के किसी भी आदमी को हिन्दी बोलते हुए सुनना और देखना सुखद होता है। तब हमें लगता है कि हम हिन्दुस्तानी हैं और सब पर गर्व होता है।
आपका सुझाव ठीक है कि भारतीय संविधान में मंत्री पद की शपथ हिन्दी में लेनी चाहिए। अगर कोई हिन्दी नहीं भी जानता है तो उसको अगर अंग्रेजी में रोमन में लिख कर दिया जाए तो वह हिन्दी आसानी से पढ़ सकता है तो फिर दिक्कत क्यों होती है हिन्दी बोलने में नेताओं को?
अगाथा संगमा से प्रेरणा लेने की जरूरत है अंग्रेजी की वकालत करने वाले अंग्रेजों के गुलाम हिन्दी भाषीयों को।
अंग्रेजों के गुलाम श्रीप्रकाश जायसवाल जैसे नेताओं के लिए अगाथा संगमा का हिन्दी प्यार एक सबक है कि अगाथा ही भारत मां की बेटी हैं और उनमें देश की सेवा करने का जज्बा भरा है। जायसवाल जैसे नेताओं का तो बहिष्कार होना चाहिए।
काश ये समझ हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी को भी होती !
हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे ही प्रयासों की सख्त जरूरत है। अगाथा को साधुवाद है।
हिन्दी बोलो, हिन्दी पढ़ो, हिन्दी में काम करो, हिन्दी को आगे बढ़ाओ....
अगाथा के प्रेम को हमारा भी सलाम है।
सही बात लिखा, एक आदर्श और सीख लेने की जरुररत,
आगथा को बधाई.
और आपको भी की वस्तुस्थिति पर सटीक समीक्षा की.
राष्ट्र भाषा की गरिमा का मान बढ़ाने वाली अगाथा जी को साधुवाद
हिंदी की जय हो .....
जायसवाल अंग्रेजी में शपथ लेकर अपने को पढ़ा-लिखा जताने की कोशिश कर रहे थे। जायसवाल जैसे नेताओं को सबक लेना चाहिए अगाथा जैसी लड़कियों से जिनमें हिन्दी प्रेम कितना कुट-कुट कर भरा है।
बात में बहुत दम है दोस्त.....
good arctile.
एक सुखद आश्चर्य
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