हिन्दी है हमारी जान-करती ये सबका सम्मान
है प्रीत जहां की रीत सदा मैं गीत में वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं भारत की बात सुनाता हूं.... पूरब-पश्चिम का यह गाना आज अचानक हमें इसलिए याद आ गया है क्योंकि हम आज अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी की बात करना चाहते हैं। हिन्दी की बात आज यूं निकल पड़ी क्योंकि हम आज बैठे थे तो हमारे हाथ वह फाइल लग गई जो हमारी सायकल यात्रा की है। हमने आज से 23 साल पहले राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार और राष्ट्रीय एकता,अखंडता के लिए उत्तर भारत की दो बार सायकल यात्रा की थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारी हिन्दी ही ऐसी भाषा है जो हमारे विचार से हर भारतीय की जान है और जो सबका सम्मान करना जानती है। इस भाषा में शिष्टाचार और शालीनता भरी पड़ी है। इसी के साथ इस भाषा में एक परिवार का अपनापन भी झलकता है। यह अपनी राष्ट्रभाषा के लिए दुखद है कि हमारे भारतीयों को कई बार हिन्दी बोलने में शायद शर्म महसूस होती है तभी तो वे हिन्दी जानते हुए भी ऐसी जगहों पर बिना वहज अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं जहां पर इसकी जरूरत नहीं होती है।
वैसे तो काफी समय से हमारा राष्ट्रभाषा हिन्दी पर लिखने का मन था, पर लेकिन लगता है संयोग नहीं बन पा रहा था, लेकिन आज अचानक संयोग बना तो सोचा कि चलो लिख ही लिया जाए। हमारे विचार से इस दुनिया में शायद ही कोई इंसान होता है जिसको अपनी राष्ट्रभाषा से प्यार नहीं होगा। इस नाते कम से कम हमें तो अपनी राष्ट्रभाषा से बहुत ज्यादा प्यार है और हम तो हिन्दी को ही अपनी जान मानते हैं। इसके बिना हमारी जिंदगी अधूरी है। हमारी अंग्रेजी से कोई अदावत नहीं है लेकिन हमारा ऐसा मानना है कि इसका प्रयोग तभी करना चाहिए जब बहुत जरूरी हो। लेकिन ऐसा होता नहीं है। अक्सर हमने देखा है कि हमारे भारतीय हिन्दी बोलने में अपमान महसूस करते हैं। कई बार प्रेस कांफ्रेंस में ऐसे मौके आए हैं जब लोग हिन्दी की बजाए अंग्रेजी बोलने लगते हैं, तब कम से कम हमसे तो रहा नहीं जाता है और हम बोल पड़ते हैं कि जनाब हिन्दी बोलने में शर्म आ रही है या फिर आप हिन्दी ही नहीं जानते हैं। अगर हिन्दी नहीं जानते हैं तब तो कोई बात नहीं है लेकिन हिन्दी आती है तो हिन्दी में ही बोले यहां हम सब हिन्दुस्तानी ही हैं। एक तरफ जहां ऐसे लोगों की कमी नहीं है, वहीं दक्षिण सहित कई ऐसे राज्यों के रहवासी हैं जिनके राज्य की बोली दूसरी होने के बाद भी ऐसे लोग हिन्दी से इतना लगाव रखते हैं कि उनको हिन्दी बोलना अच्छा लगता है। हमें याद है जब अपने राज्य में राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन की नियुक्ति हुई थी, तब उनके बारे में कहा गया था कि उनको हिन्दी नहीं आती है। ऐसे में एक अखबार में खबर भी छपी कि ऐसे में उन विधायकों का क्या होगा जिनको अंग्रेजी नहीं आती है। लेकिन जब राज्यपाल का छत्तीसगढ़ आना हुआ तो मालूम हुआ कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं बहुत अच्छी है। ऐसे कई अधिकारियों को हम जानते हैं कि जिनके राज्यों का नाता हिन्दी से नहीं है पर वे हिन्दी इतनी अच्छी बोलते हैं कि लगता है कि वास्तव में हिन्दी का मान इनसे ही है। कहने का मतलब है कि अगर आप में वास्तव में राष्ट्रभाषा के प्रति प्यार और सम्मान है तो आपके लिए हिन्दी कठिन नहीं है लेकिन आप उसको बोलना ही नहीं चाहते हैं तो फिर कोई बात नहीं है।
दक्षिण सहित कई ऐसे राज्यों के रहवासी हैं जिनके राज्य की बोली दूसरी होने के बाद भी ऐसे लोग हिन्दी से इतना लगाव रखते हैं कि उनको हिन्दी बोलना अच्छा लगता है। हमें याद है जब अपने राज्य में राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन की नियुक्ति हुई थी, तब उनके बारे में कहा गया था कि उनको हिन्दी नहीं आती है। ऐसे में एक अखबार में खबर भी छपी कि ऐसे में उन विधायकों का क्या होगा जिनको अंग्रेजी नहीं आती है। लेकिन जब राज्यपाल का छत्तीसगढ़ आना हुआ तो मालूम हुआ कि उनकी हिन्दी अच्छी नहीं बहुत अच्छी है। ऐसे कई अधिकारियों को हम जानते हैं कि जिनके राज्यों का नाता हिन्दी से नहीं है पर वे हिन्दी इतनी अच्छी बोलते हैं कि लगता है कि वास्तव में हिन्दी का मान इनसे ही है। कहने का मतलब है कि अगर आप में वास्तव में राष्ट्रभाषा के प्रति प्यार और सम्मान है तो आपके लिए हिन्दी कठिन नहीं है लेकिन आप उसको बोलना ही नहीं चाहते हैं तो फिर कोई बात नहीं है।
अगर देखा जाए तो हमारी हिन्दी ही ऐसी भाषा है जिसमें सम्मान, शिष्टाचार और शालीनता की भरमार है। यह हिन्दी के ही बस में है कि इसमें बड़ों के सम्मान में उनको आप कहा जाता है। यहां पर अंग्रेजी की बात करें तो हर किसी के लिए यू यानी तुम का उपयोग होता है। बड़े के लिए भी यू और छोटे के लिए भी यू। अंग्रेजी में किसीके नाम के साथ जी लगाने का कोई प्रावधान नहीं है। हिन्दी में अगर अपने से बड़े को संबोधित करना है तो उनके नाम या फिर सरनेम के साथ जी लगाई जाती है। हम यदि अपने से किसी बड़े को अगर राजेश.. अनिल.. सुनील.. या फिर शर्मा.. चौबे.. साहू या कुछ भी कहकर पुकारेंगे तो जरूर उसको बुरा लगेगा। लेकिन उनके नाम और सरनेम के साथ जी लगाने का मतलब है कि एक तो यह शिष्टाचार है दूसरे सम्मान है। और कहा भी जाता है कि जब तक आप किसी का सम्मान नहीं करते हैं आपको सम्मान नहीं मिलता है, सम्मान पाने के लिए सम्मान करना भी आना चाहिए। एक और उदाहरण देना चाहेंगे वो यह कि आप किसी के साथ काम करते हैं या फिर आप कहीं किसी काम से जाते हैं तो आज लोग किसी अधिकारी या अपने से उच्च पद पर काम करने वाले सहकर्मी को सर और मैडम बोलना पसंद करते हैं। ये शब्द हिन्दी के नहीं अंग्रेजी के हैं। हिन्दी में इनके लिए एक समय भाई साहब और बहनजी का प्रयोग होता था, कई स्थानों पर आज भी इनका प्रयोग होता है। किसी को भाई साहब कहने में जो अपनापन झलकता है वह किसी को सर कहने में कभी नहीं लगता है। भारतीय दफ्तरों में पहले साथ काम करने वालों को उनकी उम्र के हिसाब से भाई साहब, चाचा, ताऊ और जो भी रिश्ते होते हैं उनके हिसाब से संबोधित किया जाता था, पर आज सबके लिए सर का प्रयोग होने लगा है। सर बोलना गलत नहीं है लेकिन इसमें अपनापन कहां है। किसी को सर कहते हुए ऐसा लगता है कि हम तो बस उनके हुक्म के गुलाम हैं।बहरहाल उदाहरणों की कमी नहीं है। हम तो बस इतना जानते हैं कि अपनी राष्ट्रभाषा का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग हर हिन्दुस्तानी को करना चाहिए। जहां जरूरी है वहां पर बेसक आप चाहे अंग्रेजी या फिर किसी भी भाषा और बोली का प्रयोग करें, लेकिन जहां जरूरी न हो वहां पर हिन्दी के स्थान पर दूसरी भाषा का प्रयोग करना कम से कम हमारी नजर में तो यह राष्ट्रभाषा का अपमान है। तो क्यों हम अपनी उस भाषा का अपमान करें जिस भाषा से ही हमारा मान है। हिन्दी का बोलबाला तो विदेशों में है हम अगर हिन्दी में ब्लाग लिख रहे हैं तो यह इस भाषा का दम ही है जिसके कारण गुगल सहित बाकी सर्च इंजन को भी इसको अपनाना पड़ा है।
9 टिप्पणियाँ:
आपने हिन्दी प्रेम को सलाम करते हैं गुरु
बिलकुल ठीक कहा है आपने हिन्दी जैसा अपनापन और किसी भाषा में कहां
हिन्दी भारत से निकल कर सात समुन्दर पार चली गई है, कई देशों में हिन्दी को जरूरी कर दिया गया है। भारत में बैंकों का काम हिन्दी में होता है, कई दफ्तरों में हिन्दी में काम करने की वकालत की जाती है। परिवहन में भी अब काम हिन्दी में होने लगे हैं।
आपके राज्य के राज्यपाल नरसिम्हन सहित उन सारे अफसरों को हम नमन करते हैं जो हिन्दी भाषीय राज्यों के न होने के बाद भी हिन्दी का मान बढ़ा रहे हैं।
हिन्दी का अपमान करने वालों का तो विरोध होना ही चाहिए, नहीं तो एक दिन हिन्दी का खात्म कर देंगे ऐसे लोग
आपके हिन्दी प्रेम को हमारा भी सलाम है मित्र
मैंने कहीं एक खबर पढ़ी थी कि हमारे फिल्मी सितारे काम तो हिन्दी फिल्मों में करते हैं लेकिन जब मीडिया के सामने बोलने की बारी आती है तो उनको हिन्दी बोलने में शर्म आती है। ये तो अंग्रेजी में बोलने में अपनी शान समझते हैं।
हिन्दी को बढ़ाने के लिए हर दफ्तर में हिन्दी में कामकाज अनिवार्य करना चाहिए।
हिन्दी हो सकती है दुनिया की सिरमौर भाषा, पर हिन्दी वालों को बहुत मेहनत करनी होगी।
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