जन्नत देखनी है तो गढिय़ा पहाड़ जरुर आयें
छत्तीसगढ़ का कांकेर एक ऐसा स्थान है जो चारों तरफ पहाड़ों से घिरा है। यहां पहुंचने पर ऐसा लगता है कि हम छत्तीसगढ़ के कश्मीर में खड़े हैं। इस कश्मीर में हालांकि कोई बर्फ नहीं गिरती है, लेकिन यहां पर बर्फ से भी ज्यादा ठंडग आंखों को देने का काम यहां पर वह प्राचीन गढिय़ा पहाड़ करता है। जहां पर जाने के बाद आदमी को जन्नत का नजारा होता है। इस पहाड़ में कई देवी-देवताओं का न सिर्फ वास है, बल्कि यहां पर देखने के लायक ऐसी-ऐसी अद्भुत चीजें हैं जिनको देखना देश के ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी चाहेंगे। लेकिन इस अद्भुत पर्यटन स्थल बनने की क्षमता रखने वाला देव स्थल का दुर्भाग्य यह है कि इस पर अब तक प्रदेश के पर्ययन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की नजरें इनायत नहीं हुई हैं। इस दिशा में स्थानीय मंदिर ट्रस्ट ने पहल तो जरूर की है, लेकिन इनकी पहल को अब तक न जाने क्यों कोई मंजिल नहीं पाई है। अगर वास्तव में इस स्थान को पर्यटन विभाग की छत्रछाया मिल जाए तो यह स्थान देश का एक नामी पर्यटन स्थान बन सकता है।
छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है जहां पर पर्यटन के कई अद्भुत स्थान हैं। इन स्थानों में एक और अद्भूत स्थान का इजाफा हो सकता है, बस जरूरत है तो इस दिशा में पर्यटन विभाग की पहल की । प्रदेश के पर्यटन विभाग ने प्रदेश के जगदलपुर के चित्रकुट सहित सिरपुर के साथ राजिम कुम्भ को विश्व के नक्शे में स्थान दिया है। इसी के साथ डोंगरगढ़, दंतेवाडा, रतनपुर, भोरमदेव जैसे कई देव स्थल है जिन पर पर्यटन विभाग मेहरबान रहा है, लेकिन एक ऐसा देव स्थल आज भी विरान पड़ा है जिस देव स्थल में विश्व स्तर पर छत्तीसगढ़ का नाम रौशन करने की क्षमता है। इस देव स्थल के बारे में जब हमको जानकारी हुई थी तो हमें भी नहीं मालूम था कि यह देव स्थल वास्तव में इतना ज्यादा अद्भुत होगा कि जिसको देखकर अनायस यकीन ही नहीं होगा। हम जगदलपुर गए तो रास्ते में कांकेर में रूकने का मौका मिला तो हमें याद आया कि यहां के देव स्थल के बारे में हमारे एक मित्र ने बताया था कि यहां के गढिय़ा पहाड़ में न सिर्फ देव स्थल है, बल्कि वहां पर देखने के लायक ऐसे- ऐसे नजारें हैं जिनको देखने के बाद मालूम होगा कि वास्तव में हमारी प्रकृति की गोद में कितना सौदर्य हैं। इस बात का ख्याल आते हैं हम लोगों के कदम सुबह को उस गढिय़ा पड़ाह की तरफ चल पड़े।
जब हम लोग इस पहाड़ के देव स्थल पर जाने वाली सीढिय़ों के पास पहुंचे तो वहां पर हमें भारी गंदगी का आलम मिला। जैसे-जैसे सीढिय़ां चढ़ते गए, पूरी सीढिय़ों पर गंदगी के अलावा कुछ नजर नहीं आया। यही नहीं वहां जाने वाला हमारे अलावा और कोई दूसरा प्राणी भी नजर नहीं आया। हम लोगों को इस बात पर भारी आश्चर्य हो रहा था कि आखिर इतने माने जाने वाले इस देव स्थल को देखने जाने वाला कोई कैसे नहीं है। रास्ता इतना ज्यादा लंबा था कि खत्म ही होने का नाम नहीं ले रहा था। फिर जब सीढिय़ों वाला रास्ता समाप्त हो गया तो आगे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था ऐसा लग रहा था कि आगे कोई देव स्थल ही नहीं है। एक बार तो मन में विचार आया कि चलो यार वापस चला जाए, लेकिन हमारे पत्रकार मन में उस देव स्थल को देखने का ही विचार था ऐसे में सोचा गया कि जहां इतनी दूर आए हैं थोड़ी दूर और जला जाए। पहाडों के बीच से जो रास्ता नजर आया उस पर आगे बढ़े तो कुछ दूर जाने पर वह सिंह द्वार नजर आया जिस द्वार को साढ़े छह सौ साल पहले वहां के राजा धर्मदेव ने एक मजबूत किले के रूप में बनवाया था। बताया जाता है कि यह द्वार किसी भी हमले से बचने के लिए बनाया गया था।
इस द्वार को आज भी अतीत का गौरव माना जाता है। इस सिंह द्वार से थोड़ा आगे जाने पर एक पत्थर नजर आया जिस पर एक रास्ते की तरफ तीर बना कर लिखा गया था मंदिर। पहाड़ों के बीच से उबड़-खाबड़ इस रास्ते पर अब हमने जाने का फैसला किया और इस रास्ते में करीब आधा किलो मीटर तक चलने के बाद नजर आया वह अद्भुत नजारा जिसकी वास्तव में हमने कभी कल्पना नहीं की थी। इस देव स्थल में प्रवेश करते ही सबसे पहले पड़ी एक ऐसी घास-फूस से बनी हुई झोपड़ी जिस झोपड़ी में हर मौसम में वहां पर देव स्थल की पूजा-अर्चना करने वाले साधु रहते हैं। इस झोपड़ी के पास ही है एक शिव मंदिर, उसके थोड़ा सा आगे है अच्छी तरह से बना हुआ दुर्गा देवी का मंदिर। यही एक मंदिर ऐसा नजर आया जिसको सही तरीके से बना हुआ कहा जा सकता है। इस मंदिर को यहां के ट्रस्ट ने बनवाया है। इस मंदिर से लगा हुआ कांच का एक ज्योति कलश स्थल है जिस स्थल पर नवरात्र में ज्योत प्रज्जलवित होती है।
एक तरफ जहां इस मंदिर के लिए एक अच्छा ज्योति स्थल है, वहीं इस मंदिर से थोड़ी दूर पर जो सबसे पुराना शीतला देवी का मंदिर है, उस मंदिर के ज्योति कलश स्थल की हालत काफी जर्जर है। इस मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी बोधन सिंह भंडारी ने पूछने पर बताया कि यह मंदिर तो सैकड़ों साल पुराना है। उन्होंने बताया कि इस मंदिर में उनके पारिवार की करीब आधा दर्जन पीढिय़ां पुजा करते आ रही हैं। उन्होंने बताया कि यहां पर काफी कम लोग आते हैं। यहां पर महाशिव रात्रि के समय ही बड़ा मेला लगता है तब भीड़ रहती है। इसके अलावा नवरात्रि के समय भी काफी रौनक रहती है। पुजारी का कहना है कि अगर इस देव स्थल का सही तरीके से विकास किया जाए तो यहां आने वालों की भीड़ लग जाएगी। इस देव स्थल में एक मंदिर गुफा के अंदर है। इस मंदिर को बूढ़ी माता का मंदिर कहा जाता है। इस देव स्थल में एक तरफ जहां पुराना शीतल मंदिर है जो का फी जर्जर हालत में है। इस मंदिर में बने ज्योति कलश स्थल को देखने से ही मालूम होता है कि इसकी तरफ देखने वाला कोई नहीं है। वैसे यहां पर एक और ज्योति कलश स्थल मंदिर ट्रस्ट द्वारा बनवाया गया है। लेकिन इसके बाद भी पुराने ज्योति कलश स्थल में लोग ज्योति जलवाना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी तरह से यहां पर रहने वाले पुजारियों को घास-फुस की झोपडिय़ों में रहना पड़ता है।
500 के बैठने की क्षमता वाली गुफा- इस देव स्थल में एक ऐसी गुफा है जिसे छुरी पगार गुफा कहा जाता है इस गुफा की खासियत यह है कि यह एक तो छुरी नुमा दिखाती है, दूसरी यह कि इस गुफा के अंदर 500 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। इस गुफा तो राजा ने इस लिहाज से बनाया था कि अगर हमला हो जाए तो इस गुफा में शरण ली जा सके । इस गुफा के अंदर किसी भी तरह की लाइट की व्यवस्था न होने के कारण इसको देखा नहीं जा सकता है। अगर इस गुफा के अंदर लाइट आदि की व्यवस्था कर दी जाए तो इस गुफा का आकर्षण बढ़ सकता है।
22 टिप्पणियाँ:
अच्छी जानकारी दी है मौका मिला तो जरुर देखूँगा.
क्या वास्तव में गढिय़ा पहाड़ में जन्नत जैसा नजारा देखने को मिलता है, अगर ऐसा है तो जवाब हम भी जरूर उस जन्नत की सैर करना चाहेंगे।
अच्छी जानकारी दी आपने। छत्तीसगढ़ तो है ही पर्यटन का अद्भूत स्थल। इन स्थालों में एक नए स्थल की जानकारी देने के लिए आपका आभार
एक नए पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी देने के लिए आभार, हमने अपनी डायी में इस स्थान को भी नोट कर लिया है, जैसे ही मौका मिलेगा वहां घुमने जरूर जाएँगे।
विनोद रस्तोगी जबलपुर
कांकेर के बारे में हमने तो अब तक सुना था कि वह भी नक्सली क्षेत्र है, लेकिन वहां के जन्नत के नजारे देखने लायक स्थान है, यह एक नई जानकारी मिली है, इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए आपको धन्यवाद
संतोष श्रीवास्तव इंदौर
पढकर मन ललच गया .. मौका मिला तो अवश्य आउंगी।
अरे हमने तो कभी सुना ही नहीं था इस जगह का नाम...आपने सच कहा देश में ऐसे अनेकों स्थान हैं जो दर्शनीय हैं लेकिन विकसित नहीं है...कुछ चित्र और दिखाते तो आनंद दुगुना हो जाता...धन्यवाद आपका इस जानकारी के लिए.
नीरज
Ye Achhi jankari di apne...
छत्तीसगढ़ के बारे में सुना है कि वहां देखने लायक बहुत कुछ है। आपके ब्लाग से ही कुछ स्थानों का पता चला है। एक और नए स्थान के बारे में आपने बताया है अब लगता है कि आपके राज्य में आना ही पड़ेगा।
मनोज शुक्ला दिल्ली
गढिय़ा पहाड के बारे में जानकर तो जी चाहता है कि आज ही वहां जाएँ। लेकिन क्या करें मजबूरी है। पर यह बात तय है कि पहली फुर्सत में ही वहां जाने का प्लान पहनाऊंगी। जानकारी देने के लिए धन्यवाद
क्या वाकई में सोनई-रुपई तालाब में ऐसा अद्भूत नजारा होता है जास आपने बयान किया है। अगर हकीकत में ऐसा है तो वह दृश्य देखना रोमांचकारी होगा।
पुराने जमाने में राजा-महाराज ऐसी गुफाएं और सुरंग बनाते थे जिसमें हमला होने की स्थिति में सेना के लोग छुप सके। गढिय़ा पहाड़ में अगर ऐसी गुफा है तो उनको देखना अद्भूत ही होगा। कभी मौका लगा तो जरूर आएंगे।
तनिष्का शर्मा रायबरेली
कांकेर जाने का मौका कई बार मिला है, लेकिन गढिय़ा पहाड़ कभी जाने का अवसर नहीं मिला है। आपके ब्लाग में जानकारी मिलने के बाद ऐसा लगता है कि हमने वहां न जाकर गलती की है। अब जब भी कांकेर का दौरा होगा, वहीं जरूर जाएंगे। ग्वालानी जी इतनी जानकारी देने के लिए धन्यवाद
अपने देश में जितनी भी पहाड़ी वाले देवस्थल हैं वो जन्नत से कम नहीं है। ऐसी जनन्त का नजारा तो हर कोई करना चाहता है। हमारी चाहत भी वहां जाने की है। मौका मिलते ही वहां जाएंगे। आपने विस्तार से अच्छी जानकारी दी है, आभार
सोनई-रुपई तालाब के बारे में जानकार आश्चर्य हुआ कि आज के वैज्ञानिक युग में भी ऐसा संभव है। पुराने-जमाने में ऐसी बातें जरूर सुनने और देखने को मिलती थी। इस तालाब के बारे में और जानकारी हो तो कृपया बताएँ।
achhi jankari di aapne, aapka chhatisgarh parytan ki khan lagta hai
kishor rai nagpur
चलो एक जन्नत के बारे में आपने भी बता दिया गुरु
आप जिस तरह से गढिय़ा पहाड़ की महिमा की जानकारी दे रहे हैं, उसको पढऩे के बाद हमें तो लगता है कि आपके राज्य की सरकार को जरूर इस स्थान को एक पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करना चाहिए। बिना सुविधाओं के कोई भी पर्यटक ऐसे स्थान पर जाना नहीं चाहते हैं। आपको वहां तक जाने के साधनों के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए थी। हो सके तो वहां तक पहुंचने के लिए कौन सा मार्ग उपयुक्त है इसकी जानकारी भी दें।
रवि कुमार तलरेजा पूणे
और भी तस्वीरें लगाते तो अच्छा लगता। अच्छी जानकारी रही।
poore desh ke har kone se benami (nam) vale tippnikar ? bhai vaah ,
is garmi mein koi aa gaya to mar hi jayega ,
palak shrivastav, kanker?
कुछ मित्रों ने और ज्यादा चित्र देने की बात कही है। हम बता देना चाहते हैं कि हमारे पास चित्रों की कमी नहीं है। हमने 10 चित्र लगाने के लिए चुने थे, लेकिन नेट का सर्वर धीमा होने के कारण चार चित्र चढ़ाने में ही तीन घंटे से ज्यादा समय लग गया। ऐसे में हम अगर और ज्यादा चित्र डालने का मोह करते थे तो संभव था कि यह पोस्ट ही नहीं चढ़ पाती। ऐसे में हमने चार चित्रों के साथ ही पोस्ट प्रकाशित कर दी। भविष्य में और चित्र जरूर प्रकाशित किए जाएंगे। टिप्पणी करने वाले सभी मित्रों के प्रति हम आभारी हैं। भविष्य में हम ब्लाग बिरादरी के मित्रों से उम्मीद करते हैं कि हमारी गलतियों को बताने के साथ हमारा हौसला बढ़ाने का भी काम करेंगे।
क्या भईया वाकई में छत्तीसगढ़ में इतनी गर्मी है कि वहां आने के बाद परेशानी हो सकती है जैसा कि हमारी एक बेनामी बहन ने कहा है। अगर ऐसा है तो हमें फिर आपके राज्य में आने के लिए ठंड का मौसम चुनना पड़ेगा। हो सके तो बताए कि वहां की तापमान क्या है। जानकारी देने के लिए धन्यवाद
सुनील मित्रा दिल्ली
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