तू बेटियों की है सरताज-सबको तुझ पर है नाज
नारी तू है सबसे प्यारी
तेरी हर बात है निराली
तूने जिद से पूरी दुनिया पाली
कैसे रहेगी तेरी झोली खाली
तेरी हर बात है निराली
तूने जिद से पूरी दुनिया पाली
कैसे रहेगी तेरी झोली खाली
वास्तव में नारी आज ऐसे-ऐसे काम करने लगी है जिसके बारे में कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी। आज हमको यह सब इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि हमारे शहर की एक छोटी सी नारी ने एक ऐसी मिसाल कायम की है जैसी मिसाल देखने को काफी कम मिलती है। महज 13 साल की नीतू उर्फ अनमोल ने अपनी माता की चिता को मुखाग्नि देकर नारी जाति का सिर ऊंचा किया है। इस छोटी सी गुडिय़ा जैसी बच्ची के सर से पिता का साया तो पहले ही उठ चुका था अब माता का साया उठने के बाद भी इस लड़की ने हिम्मत नहीं हारी और ऐसे में जब समाज के सामने यह प्रश्न खड़ा था कि नीतू कृष्णनानी की माता को मुखाग्नि कौन देगा तो नीतू ने खुद सामने आकर मुखाग्नि देने की बात कही और साथ ही बताया कि उनकी माता चाहती थी कि उनको मुखाग्नि देने का काम वह करे और इस नन्ही सी गुडिय़ा ने अपनी मां की अंतिम इच्छा को पूरा किया। छत्तीसगढ़ में वैसे भी इस समय सिंधी समाज एक से एक मिसालें कायम कर रहा है। कुछ समय पहले समाज की पहल पर ही मेडिकल कॉलेज को शरीर मिलने प्रारंभ हुए हैं जिससे मेडिकल छात्रों की पढ़ाई आसान हुई है।
छत्तीसगढ़ के इतिहास में कल का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। यह वह दिन था जब हिन्द की एक नारी ने वह काम किया जिसके बारे में महज सोचा जाता है। अपने भारतीय समाज में काफी कम मौके ऐसे आए हैं जब किसी लड़की को किसी चिता में मुखाग्नि देने की इजाजत समाज के ठेकेदारों ने दी है। अपने पुरुष प्रधान समाज में शायद यह पुरुषों को पसंद नहीं है कि कोई उनकी इस आजादी पर डाका डाले। लेकिन जब कोई नारी कुछ करने की ठान लेती है तो उसको रोकना मुश्किल होता है। वैसे देखा जाए तो किसी नारी को उस एक अधिकार से कैसे वंचित रखा जा सकता है जो अधिकारी एक औलाद का होता है। क्या बेटा होने से ही मुखाग्नि देने का अधिकार मिल जाता है। अगर किसी को बेटा नसीब नहीं होता है तो क्या उसको मोक्ष नहीं मिलता है। अगर कोई बेटी बेटे का फर्ज निभाने का मादा रखती है तो इसमें किसी को कोई परेशानी क्यों होती है। ये बातें हम आज अचानक नहीं कर रहे हैं। कम से कम हमारा ऐसा मानना रहा है कि बेटी किसी भी मायने में बेटे से कम नहीं होती है। हम आज एक बात का खुलासा कर रहे हैं कि हमारी भी एक बिटिया है और हमने उसको हमेशा बेटा ही माना है। हमने तो उसका नाम भी स्वप्निल रखा है। जब आज से करीब 11 साल पहले हमारी घर में स्वप्निल की किलकारियां गूंजी थी, उस समय हमने सोचा था कि हम उनको एक बेटे की तरह ही पालेंगे और उसको वो सारे अधिकार देंगे जो बेटे के होते हैं। हमने कभी बेटे की कल्पना ही नहीं की थी। हम तो दूसरी औलाद की कल्पना भी नहीं करते थे, लेकिन कुदरत ने हमको एक बेटा दे दिया। लेकिन इसके बाद भी हमने कभी स्वप्निल को बेटे से कम नहीं माना है।
बहरहाल हम बात करें अपने शहर ही उस अनमोल बिटिया की जिसने एक तरफ सारे सिंधी समाज का सिर ऊंचा किया है, वहीं दूसरी तरफ अपने राज्य छत्तीसगढ़ के साथ पूरे देश का नाम भी ऊंचा किया है। हम तो चाहते हैं कि हर घर में ऐसी ही एक अनमोल बिटिया होनी चाहिए जो ऐसे साहसिक काम करे। अनमोल ने सिंधी समाज को एक नई राह दिखाने का काम किया है। उनकी इस पहल से समाज के उन ठेकेदारों को सबक लेना चाहिए जो चिता को मुखाग्नि देने का अधिकार पुरुषों का मानते हैं।
सिंधी समाज का होने के बाद भी अपने पत्रकारिता जीवन के 25 सालों में यह दूसरा ही मौका आया है जब कम से कम हमको समाज के किसी काम ने इतना प्रभावित किया है जिस पर लिखने का मन हुआ है। पहली बार हमारा मन तब कुछ लिखने को हुआ था जब बढ़ते कदम नाम की एक संस्था बनाकर सिंधी समाज के युवाओं ने एक पहल की थी और मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिए शरीर दान करने का ऐलान किया था। यह महज ऐलान ही नहीं था इसके बाद से मेडिकल कॉलेज को कुछ शरीर मिले भी। इसका काफी विरोध भी हुआ पर युवाओं ने अपने फैसले को अमल में लाकर सभी समाज के लिए मिसाल कायम की। आज एक और मिसाल कायम करने का काम अनमोल ने किया है। हम उम्मीद करते हैं सिंधी समाज आगे भी ऐसे काम करेगा जिससे प्रेरणा लेकर लोग अच्छे काम करने के लिए आगे आएंगे। अंत में अलमोल के अनमोल साहस को हमारा सलाम।
छत्तीसगढ़ के इतिहास में कल का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। यह वह दिन था जब हिन्द की एक नारी ने वह काम किया जिसके बारे में महज सोचा जाता है। अपने भारतीय समाज में काफी कम मौके ऐसे आए हैं जब किसी लड़की को किसी चिता में मुखाग्नि देने की इजाजत समाज के ठेकेदारों ने दी है। अपने पुरुष प्रधान समाज में शायद यह पुरुषों को पसंद नहीं है कि कोई उनकी इस आजादी पर डाका डाले। लेकिन जब कोई नारी कुछ करने की ठान लेती है तो उसको रोकना मुश्किल होता है। वैसे देखा जाए तो किसी नारी को उस एक अधिकार से कैसे वंचित रखा जा सकता है जो अधिकारी एक औलाद का होता है। क्या बेटा होने से ही मुखाग्नि देने का अधिकार मिल जाता है। अगर किसी को बेटा नसीब नहीं होता है तो क्या उसको मोक्ष नहीं मिलता है। अगर कोई बेटी बेटे का फर्ज निभाने का मादा रखती है तो इसमें किसी को कोई परेशानी क्यों होती है। ये बातें हम आज अचानक नहीं कर रहे हैं। कम से कम हमारा ऐसा मानना रहा है कि बेटी किसी भी मायने में बेटे से कम नहीं होती है। हम आज एक बात का खुलासा कर रहे हैं कि हमारी भी एक बिटिया है और हमने उसको हमेशा बेटा ही माना है। हमने तो उसका नाम भी स्वप्निल रखा है। जब आज से करीब 11 साल पहले हमारी घर में स्वप्निल की किलकारियां गूंजी थी, उस समय हमने सोचा था कि हम उनको एक बेटे की तरह ही पालेंगे और उसको वो सारे अधिकार देंगे जो बेटे के होते हैं। हमने कभी बेटे की कल्पना ही नहीं की थी। हम तो दूसरी औलाद की कल्पना भी नहीं करते थे, लेकिन कुदरत ने हमको एक बेटा दे दिया। लेकिन इसके बाद भी हमने कभी स्वप्निल को बेटे से कम नहीं माना है।
बहरहाल हम बात करें अपने शहर ही उस अनमोल बिटिया की जिसने एक तरफ सारे सिंधी समाज का सिर ऊंचा किया है, वहीं दूसरी तरफ अपने राज्य छत्तीसगढ़ के साथ पूरे देश का नाम भी ऊंचा किया है। हम तो चाहते हैं कि हर घर में ऐसी ही एक अनमोल बिटिया होनी चाहिए जो ऐसे साहसिक काम करे। अनमोल ने सिंधी समाज को एक नई राह दिखाने का काम किया है। उनकी इस पहल से समाज के उन ठेकेदारों को सबक लेना चाहिए जो चिता को मुखाग्नि देने का अधिकार पुरुषों का मानते हैं।
सिंधी समाज का होने के बाद भी अपने पत्रकारिता जीवन के 25 सालों में यह दूसरा ही मौका आया है जब कम से कम हमको समाज के किसी काम ने इतना प्रभावित किया है जिस पर लिखने का मन हुआ है। पहली बार हमारा मन तब कुछ लिखने को हुआ था जब बढ़ते कदम नाम की एक संस्था बनाकर सिंधी समाज के युवाओं ने एक पहल की थी और मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिए शरीर दान करने का ऐलान किया था। यह महज ऐलान ही नहीं था इसके बाद से मेडिकल कॉलेज को कुछ शरीर मिले भी। इसका काफी विरोध भी हुआ पर युवाओं ने अपने फैसले को अमल में लाकर सभी समाज के लिए मिसाल कायम की। आज एक और मिसाल कायम करने का काम अनमोल ने किया है। हम उम्मीद करते हैं सिंधी समाज आगे भी ऐसे काम करेगा जिससे प्रेरणा लेकर लोग अच्छे काम करने के लिए आगे आएंगे। अंत में अलमोल के अनमोल साहस को हमारा सलाम।
4 टिप्पणियाँ:
आपके शहर की अनमोल से सही मायने में अनमोल उदाहरण दिया है। समाज को आगे आकर ऐसी बेटियों का सम्मान करना चाहिए और उनके हौसले बढ़ाने का काम भी।
अनमोल के अनमोल साहस को हम सलाम करते हैं। आपने इतनी अच्छी खबर ब्लाग जगत तक पहुंचाई इसके लिए आपको बधाई
इस दुनिया में आप जैसे लोगों की ही जरूरत है जो बेटी को बेटा मानते हैं। नारी का सम्मान करने वालों का ही सम्मान होता है।
मेरा सलाम ऐसी बहादुरी को
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