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सोमवार, मई 11, 2009

शादी उनकी-मुसीबत हमारी


आज फिर हमारे रास्ते में एक बारात आ गई और हमें इस बारात के चक्कर में कई किलो मीटर लंबा रास्ता तय करके प्रेस जाना पड़ा। रात को जब फिर प्रेस से घर के लिए निकले तो फिर वही मुसीबत। रास्ता जाम कारण फिर वही सड़क पर ही धमा-चौकड़ी मची है और लोग ट्रेफिक जाम की परवाह किए बिना नाचे जा रहे हैं। भाई साहब आपको शादी करने से किसने रोका है, पर यार जरा उस पब्लिक के बारे में भी तो सोचो न जिसको कम से कम आपकी शादी से तो कोई लेना-देना नहीं है। हर किसी का वक्त कीमती है और हर कोई अपने काम पर समय से पहुंचना चाहता है। पर क्या करें इस कंबख्त ट्रेफिक का जो किसी न किसी वजह से जाम हो जाता है। कभी शादी के नाम पर तो कभी किसी वीआईपी के आने के नाम पर, कभी किसी रैली के नाम पर, तो कभी किसी हड़ताल के नाम पर या फिर किसी धार्मिक आयोजन के नाम पर। हमें लगता है यह हाल सिर्फ हमारे शहर का नहीं बल्कि देश के हर शहर का है।

इन दिनों शादियों का सीजन चल रहा है। इस सीजन में सबसे ज्यादा परेशानी में आम लोग हैं। आम लोग इसलिए परेशानी में हैं क्योंकि शादी करने वाले परिवारों को इन आम लोगों से मतलब ही नहीं होता है। जबकि शादी करने वाले परिवार भी आम लोग से अलग नहीं हैं। इनको भी कभी न कभी जाम का सामना करना पड़ता है। इतना सब होने के बाद भी ये लोग आखिर सुधरते क्यों नहीं है यार यह बात समझ नहीं आती है। क्या इन्होंने ठान कर ही रखा है कि जब तुम नहीं सुधरे तो हम क्या सुधरेंगे। यहां पर हर आदमी नालायक नजर आता है ऐसे में दोष किसे दिया जाए। किसी न किसी को तो इनको सुधारने की पहल करनी ही पड़ेगी। मीडिया को कभी इस बात से मतलब ही नहीं होता है कि शादियों की वजह से सड़क जाम हो रही है तो इस पर लिखा जाए। हां अगर किसी अखबार का संपादक कहीं फंस जाए तो जरूर उस अखबार में ऐसी खबर प्रमुखता से प्रकाशित हो जाती

रोड़ जाम करने के मामले में धार्मिक आयोजन करने वाले भी पीछे नहीं रहते हैं। अब यहां पर सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि इनका तो कोई विरोध भी नहीं कर सकता है। विरोध किया नहीं की धर्म के ठेकेदार आ जाते हैं डंडे लेकर आप पर चढऩे के लिए। भाई साहब धार्मिक होने का यह मलतब कदापि नहीं होता है कि आप सड़क को घेरकर आयोजन करेंगे तभी आपको सबसे बड़ा धार्मिक समझा जाएगा। धर्म कभी भी किसी को परेशान करना नहीं सिखाता है। धर्म तो आपस में भाई चारा और प्यार का पैगाम देता है, न की बैर करना सिखाता। कहा ही गया है कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना। तो फिर धर्म के नाम पर ऐसा काम ही क्यों करना जिससे प्यार नहीं बैर पैदा हो।

है। सड़क को शादियां करने वाले अपनी बपौती ही मानकर चलते हैं। जहां एक तरफ सड़क पर बारात इस तरह से चलती है मानो जिनकी बारात निकली है वे शहर के राजा हैं और सारी प्रजा उनके पीछे-पीछे आएगी क्योंकि उनके पास तो उनकी बारात में जाने के अलावा और कोई काम है नहीं। जिस घर में शादी का रिशेप्शन रहता है तो रिशेप्शन के लिए अगर जगह नहीं मिली तो घेर ली सड़क और लगा दिया पंडाल। हमारे जैसा कोई बंदा अगर इसका विरोध करता है तो कहा जाता है कि यार एक दिन की ही तो बात है मैनेज कर लीजिए, जरा सा घुमकर चले जाएंगे तो क्या हो जाएगा। बात एक स्थान की हो तो आदमी मैनेज भी कर ले, लेकिन यहां पर हर गली-कूचे में यही हाल है तो फिर मैनेज कैसे किया जा सकता है। कुल मिलाकर होता यह है कि शादी उनकी होती है और मुसीबत हमारी आती है।

यह बात सिर्फ शादियों पर ही लागू नहीं होती है। कोई वीआईपी आए तो भी सबसे ज्यादा मुसीबत आमजनों को झेलनी पड़ती है। तब तो आमजनों को पुलिस के डंडे भी खाने पड़ते हैं। अपने देश में शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जहां पर रैलियों और हड़तालों के नाम पर सड़कें जाम नहीं होती है। रैलियां निकालने और हड़ताल करने वालों को इस बात से कोई मतलब नहीं रहता है कि किसी को काम पर जाना है तो किसी को स्कूल जाना है। उनकी बला से कोई समय पर कहीं न पहुंच पाता है तो उनका क्या बिगडऩे वाला है। उनको तो बस अपनी हड़ताल करनी है। आज किसी भी मुद्दे पर हड़ताल और रैली निकालना आम बात है। जनाब निकालिए न रैली और करिए न हड़ताल किसने रोका है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आप अपनी परेशानी के चक्कर में दूसरों को परेशान करें। अगर शादियों, रैलियों और हड़ताल से रोड़ जाम करने वाले नहीं सुधर रहे हैं तो इनको सबक सीखाने के लिए आम जनों को जागना ही होगा। जब तक बिना वजह रोड़ जाम करने वालों के खिलाफ मामले दर्ज नहीं होंगे और इनका लगातार विरोध नहीं होगा लोग सुधरने वाले नहीं है। तो चलो इनको सुधारने का एक संकल्प आज लिया जाए।

16 टिप्पणियाँ:

guru सोम मई 11, 08:42:00 am 2009  

पब्लिक के बारे में सोचने की किसको पड़ी है गुरु

बेनामी,  सोम मई 11, 08:50:00 am 2009  

धार्मिक आयोजन चाहे पूरा रास्ता रोककर किया जाए मजाल है अपने देश में कोई इसका विरोध कर दे। विरोध करने वालों को धर्म विरोधी माना जाता है और ऐसे आदमी की जमकर पिटाई भी हो जाती है।

Unknown सोम मई 11, 08:59:00 am 2009  

शादी करने वाले रोड़ को अपनी बपौती मान लेते हैं बिलकुल ठीक फरमाया है आपने

बेनामी,  सोम मई 11, 09:22:00 am 2009  

आम जनों को जागरूक करने की आपकी पहल सराहनीय है

बेनामी,  सोम मई 11, 09:42:00 am 2009  

आप ठीक कहते हैं भाई साहब हर शहर की यही हाल है, पर क्या किया जाए जो विरोध करता है, वह कई बार पिटते-पिटते भी बचता है, अब कोई किसी के फटे में क्यों टांग अड़ाए यही सब सोचते हैं।

Unknown सोम मई 11, 10:33:00 am 2009  

जागरूकता जगाने वाले लेख के लिए आपको धन्यवाद

बेनामी,  सोम मई 11, 10:38:00 am 2009  

सड़क को शादियां करने वाले अपनी बपौती ही मानकर चलते हैं। जहां एक तरफ सड़क पर बारात इस तरह से चलती है मानो जिनकी बारात निकली है वे शहर के राजा हैं और सारी प्रजा उनके पीछे-पीछे आएगी क्योंकि उनके पास तो उनकी बारात में जाने के अलावा और कोई काम है नहीं। जिस घर में शादी का रिशेप्शन रहता है तो रिशेप्शन के लिए अगर जगह नहीं मिली तो घेर ली सड़क और लगा दिया पंडाल। आपका यहाँ लिखा एक एक शब्द सच है
राजेश कुमार तिवारी जबलपुर

Unknown सोम मई 11, 10:43:00 am 2009  

आपकी तरह कड़वा सच लिखने वालों की ही जरुरत है समाज को, इसी तरह लिखते रहे

Unknown सोम मई 11, 12:15:00 pm 2009  

भाई साहब आपको शादी करने से किसने रोका है, पर यार जरा उस पब्लिक के बारे में भी तो सोचो न जिसको कम से कम आपकी शादी से तो कोई लेना-देना नहीं है। हर किसी का वक्त कीमती है और हर कोई अपने काम पर समय से पहुंचना चाहता है। पर क्या करें इस कंबख्त ट्रेफिक का जो किसी न किसी वजह से जाम हो जाता है।
वाह-वाह क्या बात है, आपने तो हमारे दिल की बात लिख दी

रंजन सोम मई 11, 12:51:00 pm 2009  

इसका भी कोइ सिस्टम होना चाहिये... या टेक्स ही लगा दो...:)

बेनामी,  सोम मई 11, 07:41:00 pm 2009  

हमारे शहर में भी ऐसा ही हाल होता है जब किसी की बारात निकलती है। हमारे यहां तो लोग विरोध करने पर मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोग सड़क को अपनी जागीर समङाते हैं और दूसरों की परेशानी से कोई मतलब नहीं रखते हैं। आपके इतने लेख के लिए हमारा धन्यवाद स्वीकार करें।
विकास शर्मा कानपुर

anu सोम मई 11, 07:42:00 pm 2009  

चलो किसी ने तो हिम्मत की सड़क को अपनी बपौती समङाने वालों के खिलाफ लिखने की। अगर आपकी तरह अखबार वाले भी लिखने लगे तो ऐसे लोगों की मनमर्जी पर लगाने में आसानी होगी। काश सारे अखबार वाले समङा पाते आम जनता की परेशानियों को।

डॉ .अनुराग सोम मई 11, 08:30:00 pm 2009  

अब लोकतंत्र है भाई तो सड़क भी तो बपोती हो गयी....विदेशो में कहाँ लोक तंत्र है ?

Unknown सोम मई 11, 10:28:00 pm 2009  

ACHHA LAGA.....BAHUT ACHHA LAGA
-albela khatri

बेनामी,  सोम मई 11, 10:32:00 pm 2009  

अपने शहर का भी यही हाल है. कई बार तो इतनी कोफ्त होती है की.....

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