डॉक्टर ... ये लूट लेते हैं आपका घर
डॉक्टर ... ये एक ऐसी कौम है जिसे इस मानवीय दुनिया में भगवान का दर्जा प्राप्त है। लेकिन सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में यह कौम भगवान का दर्जा प्राप्त करने लायक है? इसका सीधा सा जवाब है कि इस कौम को कम से कम आज के जमाने में तो भगवान क्या इंसान का दर्जा देना भी सही नहीं है। आज डॉक्टरों में सेवाभाव नहीं स्वार्थ और लालच का भाव इतना ज्यादा भर गया है कि पैसों के लालच में ये कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। इन्हें किसी के दुख-दर्द से कोई लेना-देना नहीं है। ये तो आपका घर लूटने वाले सबसे बड़े लुटेरे हो गए हैं। आज चिराग लेकर ढूंढने से भी कोई डॉक्टर के नाम पर फरिश्ता मिलने वाला नहीं है। अगर कोई फरिश्ते जैसा काम कर रहा है तो उसके पीछे भी मानकर चले की कोई न कोई स्वार्थ होगा। और कुछ नहीं तो मीडिया में अपना नाम करने के लिए वह डॉक्टर ऐसा कर रहा होगा।
डॉक्टरों का विषय आज अचानक इसलिए निकल पड़ा है क्योंकि कल जब हमने एक पोस्ट लिखा थी सावधान... आप भी हो सकते हैं गायब तो इस पोस्ट में हमने भ्रूण हत्या का उल्लेख किया था, आज अगर भ्रूण हत्याएं हो रही हैं तो इसके पीछे सबसे बड़े दोषी तो डॉक्टर ही हैं, अगर डॉक्टर किसी को यही न बताए कि कोख में क्या पल रहा है तो फिर हत्या कैसे होगी। लेकिन चंद रुपयों के लिए डॉक्टर अपना ईमान बेच कर अपने पेशे के साथ भी गद्दारी कर रहे हैं और हत्याओं के भागीदार भी बन रहे हैं। वैसे आज के डॉक्टरों का धर्म और ईमान पूरी तरह से बस और बस पैसा ही रह गया है, एक वह समय था जब डॉक्टर को भगवान माना जाता था, लेकिन अब डॉक्टर भगवान नहीं बल्कि ऐसे शैतान बन गए हैं जो इंसानी खून के प्यासे हैं। इंसान का पूरा खून निचोड़ कर उनको भूखा-नंगा छोड़ देना ही इनका पेशा रह गया है। ऐसे अनेकों उदाहरण भरे पड़े हैं जिसमें डॉक्टरों के काले कारनामे सामने आए हैं। हम पहले एक छोटा सा उदाहरण अपने साथ हुए हादसे का दे रहे हैं। कुछ समय पहले
राजधानी की एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ने एक महिला का पेट महज इसलिए चीर दिया था क्योंकि उनको पैसे कम मिलते। बात यह हुई कि एक महिला को वहां बच्चे की डिलवरी के लिए भर्ती किया गया था, रात को महिला को दर्द हुआ और उसकी नार्मल डिलवरी हो गई। अब अगर नार्मल डिलवरी की बात परिजनों को बताई जाती तो पैसे कम मिलते ऐसे में डॉक्टर ने महिला के पेट में चीरा लगा कर परिजनों को कह दिया कि बच्चा आपरेशन से हुआ है, बाद में इस बात का खुलासा होने पर डॉक्टर और परिजनों के बीच में काफी विवाद हुआ।
की बात है कि हमारी बिटिया स्वप्निल की एक ऊंगली में फ्रेक्चर हो गया था। हमने उसको राजधानी के गायत्री हास्पिटल में डॉक्टर अरूण मढ़रिया को दिखाया।डॉक्टर मढरिया का नाम जाने-माने हड्डी रोग विशेषज्ञों में आता है। जब हम उनके पास अपनी बिटिया को लेकर गए तो वे इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि हम एक पत्रकार हैं, इसके बाद भी उन्होंने ऐसी हरकत की जिसने यह सोचने पर मजबूर किया कि जब वे एक पत्रकार के साथ बिना डरे ऐसा कर सकते हैं तो फिर किसी आम इंसान के साथ क्या नहीं करते होंगे। हमने जब उनको स्वप्निल की ऊगंली दिखाई तो उन्होंने तपाक से कहा कि इसका आपरेशन करना पड़ेगा इस में कम से कम पांच हजार का खर्च आएगा। इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि आपरेशन में ऊंगली की हड्डी ठीक से जुड़ेगी या नहीं इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। दूसरे दिन आपरेशन के लिए आने की बात कहते हुए उन्होंने स्वप्निल की ऊंगली को मोड़कर पट्टी बांध दी। हम परेशान हो गए कि कहां छोटा सा फ्रेक्चर लग रहा था और कहां क्या हो गया। हमने जब अपने कुछ मित्रों से चर्चा की तो सबने सलाह दी कि अरूण मढरिया से इलाज करवाना ठीक नहीं है। ऐसे में हमने अपने एक और डॉक्टर मित्र सुरेन्द्र शुक्ला से इसके बारे में चर्चा की और उनके पास स्वप्निल को ले गए। उन्होंने उसको चेक करने के बाद बताया कि छोटा सा फ्रेक्चर है 21 दिनों में ठीक हो जाएगा। डॉक्टर मढरिया ने ऊंगली को मोड़कर जो पट्टी बांधी थी उसके कारण ऊंगलियों में सूजन आ गई थी। डॉक्टर सुरेन्द्र ने पहले सूजन कम होने के लिए दवाई दी और कच्चा प्लास्टर लगाया, तीन दिनों बाद पक्का प्लास्टर लगा दिया। इस सारी प्रक्रिया में महज दो सौ रुपए ही खर्च हुए।यह एक उदाहरण है, एक और बड़ा उदाहरण उस समय सामने आया था जब राजधानी की एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ने एक महिला का पेट महज इसलिए चीर दिया था क्योंकि उनको पैसे कम मिलते। बात यह हुई कि एक महिला को वहां बच्चे की डिलवरी के लिए भर्ती किया गया था, रात को महिला को दर्द हुआ और उसकी नार्मल डिलवरी हो गई। अब अगर नार्मल डिलवरी की बात परिजनों को बताई जाती तो पैसे कम मिलते ऐसे में डॉक्टर ने महिला के पेट में चीरा लगा कर परिजनों को कह दिया कि बच्चा आपरेशन से हुआ है, बाद में इस बात का खुलासा होने पर डॉक्टर और परिजनों के बीच में काफी विवाद हुआ। कई बार ऐसे मौके आए हैं जब डॉक्टरों की लापरवाही से मरीजों की जानें गईं हैं, जानें जाने के बाद भी डॉक्टर तब तक मरीजों का शव उठाने नहीं देते हैं जब तक उनको सारा भुगतान नहीं कर दिया जाता है। आज शायद ही कोई ऐसा डॉक्टर होगा जो मरीजों को जांच के नाम पर दूसरे डॉक्टरों के पास नहीं भेजता होगा। यह सारा खेल कमीशन का होता है।
कुछ समय पहले कुछ डॉक्टरों ने मरीज और डॉक्टरों के रिश्ते सुधारने के लिए एक सेमीनार का आयोजन राजधानी में किया था, इस कार्यक्रम की जानकारी देने प्रेस क्लब आए डॉक्टरों को जब हमारे साथ मीडिया ने घेर लिया था और उनसे पूछा था कि डॉक्टर और मरीजों के रिश्तों में दरार क्यों आई है क्या आज डॉक्टर पैसों के भूखे नहीं हो गए तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। आज किसी डॉक्टर के पास इस बात का जवाब ही नहीं है कि वह पैसों के पीछे क्यों भाग रहा है। पैसों के पीछे भागने में बुराई नहीं है पैसे आप बेशक कमाएं लेकिन इसके लिए मानवता को तो कम से कम गिरवी न रखें। डॉक्टरों को जिस सेवा भाव के लिए डॉक्टर बनने से पहले शपथ दिलाई जाती है उसका वे पालन ही नहीं करते हैं। आज जो डॉक्टर किसी गरीब की बड़ी बीमारी का इलाज मुफ्त में करने का काम करते हैं तो उसके पीछे उनका स्वार्थ रहता है कि उनकी मीडिया में वाह-वाही होगी। संभव है कि कुछ डॉक्टर ऐसे हों जो वास्तव में आज भी मानवता के लिए काम कर रहे हों लेकिन ज्यादातर डॉक्टर तो किसी भी बीमारी के नाम पर लोगों का घर लूटने का काम कर रहे हैं। यहां पर कोई डॉक्टर किसी को किसी भी बीमारी का नाम बता कर डरा देता है, बाद में बाहर जाने पर मालूम होता है कि उसको वह बीमारी है ही नहीं। उदाहरण तो इतने हैं कि लिखने बैठे तो लिखते ही रहना पड़ेगा। हमारा तो बस इतना सोचना है कि डॉक्टरों को अपने पेशे के साथ इसके धर्म की मर्यादा को जिंदा रखने का काम करना चाहिए, वास्तव में अगर डॉक्टर चाहते हैं कि डॉक्टरों और मरीजों के बीच का रिश्ता मधुर हो तो डॉक्टरों को भगवान बनने की भी जरूरत नहीं है, वे पहले एक अच्छे इंसान ही बन जाए और जितनी हो सके मानवता की सेवा करने का काम करें।
26 टिप्पणियाँ:
आपके उदाहरण पढ़कर तो लगता है कि डॉक्टर आज सच में अपने पेशे के साथ वफादारी नहीं कर रहे हैं। कैसे कोई डॉक्टर किसी महिला का पेट चीर कर पैसे कमाने का काम कर सकती हैं। यह एक बहुत बड़ा सवाल है। डॉक्टरों को जरूर इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना चाहिए।
डाक्टर होते हैं जनसेवक इनमें कुछ अपराधी हैं।
नारी भ्रूण की हत्या में ये बन जाते सहभागी हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आपने बिलकुल ठीक कहा है कि भ्रूण हत्या के लिए सबसे बड़े दोषी डॉक्टर हैं। ऐसे डॉक्टरों का तो मुंह काल करके उनको सरे बाजार घुमाना चाहिए कि ये हैं नारी जाति का अंत करने का सामान करने वाले शैतान
डाक्टरों की बिलकुल सही जात पहचानी है। इनसे बड़ा चोर, लुटेरा और डाकू तो इस दुनिया में कोई दूसरा हो ही नहीं सकता है। ये ऐसे लुटेरे हैं जो इंसान की किडनी निकाल कर खा जाते हैं। समाचार पत्रों में डॉक्टरों के ऐसे कारनामे अक्सर छपते रहते हैं। डॉक्टरों को इंसान कहना भी इंसानियत के साथ भद्दा मजाक होगा।
एक बच्ची की ऊंगली पर भी डॉक्टर को रहम नहीं आया। आपने ठीक कहा है कि जब डॉक्टर पत्रकारों से नहीं डरते हैं ता आम लोगों की बिसात की क्या है।
क्यों राजकुमार सुरेंद्र डाक्टर नही है क्या?उसने तो ईमानदारी से अपना काम किया है।उसका उल्लेख भी तुम्ने किया है और फ़िर कह रहे हो डाक्टर लुटेरे हैं।क्या सुरेंद्र ने तुम्हे लूटा?सुरेंद्र आज से नही जब से इस पेशे मे आया है बेहद गरीब मरीज़ो का मुफ़्त ईलाज करता है। अकेला सुरेंद्र ही नही और भी बहुत से डाक्टर है जो मरीज़ो की हालत देखकर रियायत कर देते हैं। अपने कुछ साथियो का तो ईलाज मुफ़्त मे ही होता है।एकाध डाक्टर अगर खराब निकल जाये तो पूरी कौम को गाली देना ठीक नही। अपने मामले मे भी तुम जानते हो कौन पत्रकार क्या कर रहा है इसका मतलब ये तो नही सब वैसे ही हैं।ये बात ज़रूर है इस पेशे मे सेवाभावना की कमी आई है,इसका मतलब ये कतई नही लगाया जा सकता कि डाक्टर लूटेरे हो गये हैं।
डॉक्टरों में अब मानवता रही कहां दोस्त, डॉक्टर मानव नहीं दानव हो गए हैं।
सेवा भाव से काम करने वाले डॉक्टर भी बहुत हैं, पर गलत काम करने वाले डॉक्टरों के कारण उनकी सेवा भावना का जिक्र कोई नहीं करता है। यह सच्चाई है कि ज्यादा डॉक्टर पैसों के पीछे भागने वाले हैं। लेकिन वे भी क्या करें, बड़ी-बड़ी लाखों की मशीनें लगाने के बाद उनको तो मशीन की लागत वसूलनी ही हैं, अब लागत वसूलने के लिए किसी भी तरीके से पैसे कमाने हैं तो गलत-सही का क्या मतलब रह जाता है।
bilkul sahi kaha aapne agar mujh se poochen to halaat is se bhi badh gaye hain kyonki medical dept. me naukari karte huye maine ye kale sach dekhe hain kasaaiyon se bhi agay nikal kar manav ke angon tak se inki ab bhookh nahin mitati abhar apki bitia ke liye shubhkamnayen
अनिल जी,
इसमें कोई दो मत नहीं है कि सुरेन्द्र शुक्ला जैसे डॉक्टर ही हैं जिनके कारण आज डॉक्टरों का पेशा बचा हुआ है। हम अगर सभी डॉक्टरों को लुटेरे समझते तो उनका उल्लेख कभी नहीं करते। हर सिक्के के वैसे भी दो पहलू होते ही है। यहां डॉक्टर फरिश्ता जैसे भी डॉक्टर हैं जिन्होंने अपनी जेब से लाखों खर्च करके विष्णु श्रीवास्तव जैसे आदमी को नवजीवन देने का काम किया था। लेकिन इस बात से कैसे इंकार किया जा सकता है कि ज्यादातर डॉक्टर आज बनिए की दुकान खोलकर बैठ गए हैं जिसमेंं वे मुनाफा पहले देखते हैं। हमें याद है जब कुछ सालों पहले देशबन्धु में डॉक्टरों की इस तरह की कारगुजारियों का खुलासा करना प्रारंभ किया गया था तो कैसे डॉक्टरों में खौफ आ गया था। तब काफी प्रयास किए गए थे डॉक्टरों पर चल रही सीरीज को बंद करवाया जाए, लेकिन सफलता नहीं मिली थी। हमें इस बात से कतई इंकार नहीं है कि अच्छे डॉक्टरों की कमी नहीं है, लेकिन लूट मचाने वाले डॉक्टरों की संख्या अच्छे डॉक्टरों से बहुत ज्यादा है। वैसे भी दुनिया में अच्छा काम करने वाले काफी कम लोग होते हैं। हमारे पत्रकारों के पेशे में भी क्या होता है, यह हम ही नहीं सब जानते हैं।
बहुत सही पकड़ा है गुरु
आपने अपने एक लेख में एक डॉक्टर फरिश्ता का उलेख किया था। उनके जैसे सुरेन्द्र शुक्ला जैसे भी डॉक्टर हैं मित्र इस दुनिया में जरा इसकी तरफ भी देखना चाहिए। हर क्षेत्र में गंदे लोगों की कमी नहीं हैं, गंदे लोगों की वजह से सबको गंदा कहना ठीक नहीं है। यह बात सच है कि आज डॉक्टर सेवा भावना भूल गए हैं।
सच तो यही है कि अधिकांश (रिपीट अधिकांश) डॉक्टर पैसों के भूखे हो चुके हैं… जितना बड़ा डॉक्टर, उतना ही बड़ा मुँह फ़ाड़ेगा…। सौभाग्य से मेरे कई मित्र MR हैं वे बताते हैं कि वे परेशान हैं इन भूखे-नंगों से, कोई दवा लिखने के बदले में एसी मांगता है, कोई विदेश ट्रिप, कोई कान्फ़्रेंस के बहाने से मुफ़्त हवाई यात्रा, यदि कम्पनी छोटी हो और उसकी दवा कम बिकती हो तो ये चोट्टे उस MR से अपनी कार के टायर भी मांग लेते हैं… नेताओं से सेटिंग करके मुफ़्त में जमीन कबाड़कर बड़े नर्सिंग होम (फ़ैक्ट्री) खोलते हैं… कुल मिलाकर स्थिति बहुत ही बदतर है… दवा कम्पनियाँ भी इनके फ़टे हुए बड़े मुँह को भरने के लिये 40 पैसे की गोली 5 रुपये MRP रखते हैं… फ़िर एक ऐसा कुचक्र बन जाता है जिसमें गरीब-मध्यम वर्ग पिसकर रह जाता है…
डाक्टर तो कमीशनखोर और दलाल हो गए हैं जिस डाक्टर की जितनी बड़ी दुकान उसकी उतनी ज्यादा कमीशन खाने का आदत। किसी गरीब को गंभीर बीमारी हो जाए तो निजी हास्टिपल में कभी उनका कोई मुफ्त इलाज नहीं करता है। छोटी-मोटी बीमारी का मुफ्त में इलाज करके वाह-वाही लुटने वाले डाक्टरों की कमी नहीं है। ऐसे डाक्टरों को कोई अगर सेवा करने वाला समझता है तो उसकी सोच पर तरस आता है। सेवा करने की आड में डाक्टर कई समाजसेवी संस्थाओं के भी चूना लगाने से बाज नहीं आते हैं।
हर साख पर उल्लू बैठे हैं, वाली कहावत डॉक्टरों पर भी लागू होती है। ऐसी कौन सी साख नहीं है जहां पर लुटेरे डॉक्टर न बैठे हो। आज के डॉक्टर तो जिंदा इंसान क्या मरे हुए इंसानों को भी नहीं छोड़ते हैं और उनके शरीर के अंगों को निकाल कर व्यापार करते हैं।
हमने रायपुर के एस्कार्ट में संजीवनी कोष से एक लाख पचास रुपए की मदद मिलने के बाद भी महज 10 हजार रुपए के लिए कई मरीजों को भटकते देखा है। डॉक्टर इनको साफ कह देते हैं कि जब तक और दस हजार का इंतजाम नहीं हो जाता है आपका इलाज नहीं हो सकता है। डॉक्टरों की इसी मनमर्जी के कारण कई मरीजों का अनुदान वापस हो जाता है और उनको मरने से भी नहीं बचाया जा सकता है। हमारी परिचित एक खाला की मौत भी दस हजार का इंतजाम न कर पाने के कारण हुई थी। आपने बिलकुल ठीक लिखा है कि डॉक्टर लुटेरे होते हैं।
आसिफ अली रायपुर
सुरेश जी से मैं भी सहमत हूँ
सही है, बहुत से डॉक्टर आज भी हैं जो मरीज की स्थिती देखकर पैसा लेते हैं पर दुनियां उन्हें पीठ पीछे बेवकूफ कहती है।
सुरेश जी की टिप्पणी बहुत सही है।
आज के डॉक्टर सेवा करते नहीं बल्कि करवाते हैं। यह सेवा वे कमीशन के रूप में दूसरे डॉक्टरों से लेते हैं। एक मित्र ने बजा फरमाया है कि आज के डॉक्टर दलाल हो गए हैं। अब इंसान दलालों के पास जाएगा को वे दलाली खाए बिना कैसे रहेंगे। दलाली का सौदा तो महंगा ही होता है।
विवेक शुक्ला दिल्ली
डाक्टरों के मामले में हमारा अनुभव भी बुरा रहा है। आपने बिलकुल ठीक लिखा है।
दिल्ली के प्राइवेट हस्पतालों की हालत तो ये है कि आप मामूली खुजली की शिकायत ले कर भी गए तो आपरेशन करा कर ही लौटेंगे. सब कसाई, डॉक्टर बने बने बैठे हैं....बस फर्क इतना है कि गंडासे छुपा कर उस्तरे दिखाते फिरते हैं.
kafan khsoot
डॉ को और संवेदनशील होने की जरुरत है...
आपकी पोस्ट वाकई स्थिति की गंभीरता दर्शाती है... जैसा की आपने कहा सिक्के के दो पहलु होते हैं, बिलकुल वैसा ही मत मेरा है... कई इसे अनुभव भी हो चुके हैं- बहुत बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल और कॉलेज चलने वाले डॉक्टर ने मेरे हाथ की नाडी में सोजन का इलाज ऑपरेशन बताया, वहीँ सरकारी डॉक्टर ने छः दिन तक सिर्फ तीन-तीन रूपये की छः टेबलेट में इलाज कर दिया...
पुराना कथन है एक गन्दी मछली सारे तालाब को गन्दा करती है . आज सारे ही तालाब गंदे हैं और मोती ढूंढना मुश्किल . पत्रकारों को तो सारी जानकारी रहती है और वो ये भी जानते हैं कि मीडिया में भी negative खबर ही ज्यादा प्रभाव रखती है. आज सारे समाचार पत्र रोजाना डॉ के विज्ञापन और परिशिष्ट छापते हैं , जादुई तेल के विज्ञापन छापते हैं टीवी में भी बोगस सामानों का प्रचार kiya जा रहा है, क्या यह सब सही है ? सुरेश जी ने जो बात कही है वह सही है लेकिन इसकी शुरुआत किसने की ? इस समस्या को समझने के लिए इसके मूल में जाना पड़ेगा तभी कारण समझ आएगा . आज जब सब तरफ भ्रस्टाचार काबिज है तो डॉक्टर इस सिस्टम के बाहर का आदमी नही है .रही बात भगवान की तो वह बहुत पुरानी हो चुकी . डॉ और मरीज के रिश्ते में गिरावट आने का एक प्रमुख कारण है आज की बाजारू संस्कृति जिससे कोई बचा नहीं है. जबसे सरकार ने चिकित्सा को भी उपभोक्ता की श्रेणी में डाला है इस रिश्ते में और गिरावट आयी है यह विषय वाकई चिंतनीय है और इसपर एक खुली राष्ट्रीय बहस की जरूरत है . दोनों पक्षों के बातें सुन्नी और समझनी पड़ेगी तभी कोई निदान संभव है . प्रेस क्लब कोई शुरुआत करे तो यह प्रयास सराहनीय होगा.
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