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रविवार, मई 10, 2009

तो आप क्यों असभ्य हो गए जनाब


सभ्यता में रहने की सलाह देना आसान होता है लेकिन खुद की बारी आती है तो आदमी कितना असभ्य हो जाता है इसका उदाहरण यहां पर तब देखने को मिला जब एक पत्रकारवार्ता में भारतीय स्टेट बैंक के महाप्रबंधक अपने कर्मचारियों को सभ्यता और शालीनता के साथ ग्राहकों के साथ पेश आने की सलाह देते रहे। लेकिन इधर जैसे ही पत्रकारों ने उनसे एक साधारण सा सवाल किया तो वे ऐसे भड़के मानो उनको ही अपराधी कहा गया हो। अब यह सोचने वाली बात है कि जिस बैंक का आला अफसर खुद असभ्य हो उस बैंक के कर्मचारियों से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे बैंक में आने वाले ग्राहकों से सभ्यता से पेश आएंगे। सरकारी बैंकों में जाने का हर किसी का अनुभव हमेशा खराब ही रहा है। हमारा भी अनुभव काफी खराब रहा है। कुछ दिनों पहले हम भी बैंक के कर्मचारियों की असभ्यता के शिकार हुए हैं। इस पर हम लिखना चाह रहे थे, लेकिन समय नहीं मिल रहा था, फिर अचानक इसी बैंक के एक आला अफसर की घटना हमारे सामने आ गई तो सोचा अब पहली प्राथमिकता से इसी विषय पर लिखा जाए।

आज जब हम प्रेस क्लब गए तो वहां पर हमारे कुछ पत्रकार मित्र चर्चा कर रहे थे कि वे भारतीय स्टेट बैंक के भोपाल से आए भोपाल मंडल के मुख्य महाप्रबंधक डीके जैन की पत्रकार वार्ता में गए थे, वहां पर पहले तो सब अच्छा रहा और महाप्रबंधक अपने बैंकों का गुणगान करते रहे। जब उनका ध्यान बैंक के कर्मचारियों के व्यवहार की तरफ दिलाया गया तो उन्होंने इसके जवाब में कहा कि लगातार प्रयास हो रहे हैं और व्यवहार में सुधार आ रहा है और कर्मचारियों को सभ्यता में रहकर काम करने की सलाह दी जाती है। उन्होंने साथ ही सलाह दी कि बैंक के कर्मचारियों का व्यवहार हमेशा ग्राहकों के प्रति शालीन रहना चाहिए। अभी जनाब व्यवहार में शालीनता और सभ्यता बनाए रखने की सलाह देकर हटे ही थे कि उनके व्यवहार में अचानक उस समय असभ्यता आ गई जब उनसे भिलाई में मिले नकली नोटों के मामले में बैंक के सभी खातेदारों के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने का मामला उठाया गया। इस मामले पर वे उखड़ गए और भड़कते हुए ऐसा व्यवहार करने लगे जिसे किसी भी तरह से सभ्य और शालीन नहीं कहा जा सकता है। पत्रकार मित्रों के मुताबिक महाप्रबंधक महोदय ने जहां चिल्लाते हुए कहा कि वे नकली नोट नहीं बनाते हैं और टेबल पर हाथ पटकने लगे। इसी के साथ उन्होंने माइक भी पटक दिया। उनकी इन हरकतों से सभी पत्रकार हैरान हो गए कि जो जवाब कुछ समय अपने कर्मचारियों को सभ्यता में रहने की सलाह दे रहे थे वे खुद कितने असभ्य हैं।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारियों में बैंक के सरकारी होने के कारण जहां सभ्यता की कमी है, वही घमंड भी बहुत है। इनको लगता है कि उनका कोई कुछ कर ही नहीं सकता है। कुछ दिनों पहले हमें भी रायपुर की कचहरी शाखा में कुछ कर्मचारियों की असभ्यता का सामना करना पड़ा था। हुआ कुछ यूं कि हमारी बिटिया स्वप्निल राज ग्वालानी को कराते में

अभी जनाब व्यवहार में शालीनता और सभ्यता बनाए रखने की सलाह देकर हटे ही थे कि उनके व्यवहार में अचानक उस समय असभ्यता आ गई जब उनसे भिलाई में मिले नकली नोटों के मामले में बैंक के सभी खातेदारों के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने का मामला उठाया गया। इस मामले पर वे उखड़ गए और भड़कते हुए ऐसा व्यवहार करने लगे जिसे किसी भी तरह से सभ्य और शालीन नहीं कहा जा सकता है। पत्रकार मित्रों के मुताबिक महाप्रबंधक महोदय ने जहां चिल्लाते हुए कहा कि वे नकली नोट नहीं बनाते हैं और टेबल पर हाथ पटकने लगे। इसी के साथ उन्होंने माइक भी पटक दिया। उनकी इन हरकतों से सभी पत्रकार हैरान हो गए कि जो जवाब कुछ समय अपने कर्मचारियों को सभ्यता में रहने की सलाह दे रहे थे वे खुद कितने असभ्य हैं।

राज्य चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के कारण खेलवृत्ति के रूप में खेल विभाग से 18 सौ रुपए का एक बैकर्स चेक भारतीय स्टेट बैंक का मिला था। हम उस चेक को भुनाने के कचहरी शाखा में अपनी बिटिया के साथ गए तो वहां के कर्मचारियों ने हमें घुमाने का काफी प्रयास किया और उनकी भाषा भी ठीक नहीं थी। हम चेक भुनाने जाने के पहले नियमानुसार उस बैंक के एक खातेदार से लिखवाकर ले गए थे कि वे हमारी बिटिया को जानते हैं।
इसके बाद जब कर्मचारियां ने हमारा आईडी प्रूफ मांगा तो वह भी हमने दिया, लेकिन इसके बाद वे कहने लगे कि आपको उस खातेदार से यह भी लिखवाकर लाना होगा कि वह आपको भी जानते-पहचानते हैं। हमने जब उनको कहा कि जब आईडी प्रूफ दे रहे तो इसके बाद इसकी जरूरत क्यों है तो वे जवाब भड़क गए और कहने लगे कि बैंक हमारे हिसाब से चलेगा कि आपके हिसाब से। उन्होंने दो टूक जवाब दे दिया कि आपका चेक कैश नहीं हो सकता है। ऐसे में हम यह मामला लेकर शाखा प्रबंधक के पास गए और उनको सारा वाक्या बताया तब जाकर उन्होंने मामले को समझा और उन्होंने चेक में हस्ताक्षर करके दिए। जब हम फिर से उस काऊंटर पर उन्हीं जनाब के पाए गए तो वे फिर से भड़कने लगे कि हमने एक बार कह दिया न कि आपका चेक कैश नहीं हो सकता है। हमने जब उनको बताया कि आपके शाखा प्रबंधक ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। वे चेक में उनके हस्ताक्षर भी नहीं पहचान सके और कहने लगे कि कहां हैं हस्ताक्षर। अब इससे ज्यादा हास्यप्रद बात क्या हो सकती है कि बैंक में काम करने वाले कर्मचारी अपने शाखा प्रबंधक के हस्ताक्षर भी नहीं पहचाते हैं।
सरकारी बैंकों का आज जो हाल है वह किसी से छुपा नहीं है। आज अगर निजी बैंकों की तरफ ग्राहक जा रहे हैं तो इसके लिए सबसे बड़ी दोषी बैंक के वे कर्मचारी हैं जो अपने व्यवहार को शालीन नहीं रखते हैं और बिना वजह नियमों का हवाला देकर ग्राहकों को परेशान करते हैं। सरकारी बैंक के कर्मचारी कितने असभ्य होते हैं यह बताने की जरूरत नहीं है। जब देश के सबसे बड़े बैंक के महाप्रबंधक पत्रकारों के सामने असभ्य हो सकते हैं तो ग्राहकों के साथ उनका व्यवहार कैसा रहता होगा यह सोचने वाली बात है। तो जनाब महाप्रबंधक महोदय जरा अपना व्यवहार भी शालीन रखें और साथ ही अपने बैंक के कर्मचारियों को भी शालीन रहने के लिए मजबूर करें, वरना ऐसा न हो कि एक दिन सरकारी बैंक को ग्राहकों को लाल पड़ जाए और सारे बैंकों में ताले लग जाएं।

17 टिप्पणियाँ:

बेनामी,  रवि मई 10, 09:18:00 am 2009  

बैंक होते हैं आम जनता के लिए। आम जनों की परेशानी को दूर करने का काम बैंक के कर्मचारियों को करना चाहिए जो कि वे नहीं करते हैं। सरकारी बैंकों का काम सदा से सुस्त और लचर रहा है। हमें तो लगता है कि यह सरकारी बैंकों वालों की मिली-भगत है जिसके कारण निजी बैंक आगे बढ़ रहे हैं। सरकार को चुना लगाने का काम तो सरकारी कर्मचारी ही कर रहे हैं।

बेनामी,  रवि मई 10, 09:24:00 am 2009  

जो साहब मीडिया के सामने चीख और चिल्ला सकते हैं वे अपने कर्मचारियों के साथ कैसे पेश आते होंगे यह समझ में आता है। अपने बॉस से कर्मचारी जो सीखते हैं, उसकी बदला ही वे ग्राहकों से निकालते हैं।

anu रवि मई 10, 09:38:00 am 2009  

सभ्यता की नसीहत देने से पहले खुद को सभ्यता की मिसाल कायम करनी पड़ती है। जो इंसान खुद असभ्य हो वह दूसरो को सभ्य होने का पाठ पढ़ाए यह बात कुछ जमती नहीं है

बेनामी,  रवि मई 10, 09:52:00 am 2009  

सरकारी बैंकों में यदि काम ठीक से होता और कर्मचारी ग्राहकों की परेशानी को समझते तो निजी बैंकों को पूछता कौन। लेकिन यहां तो सब उल्टा-पुल्टा है। सरकारी बैंक के कर्मचारी तो अपने को सरकार का दामाद समझते हैं।

Randhir Singh Suman रवि मई 10, 09:56:00 am 2009  

banksoodkhorhoti hay'soodkhoro ki bhasa yahi hoy.suman lokshangharsha

बेनामी,  रवि मई 10, 10:06:00 am 2009  

सही कर रहे हैं आप जिस संस्थान का बॉस की असभ्य होगा उस संस्थान के कर्मियों से सभ्यता की उम्मीद कैसे की जा सकती है।

बेनामी,  रवि मई 10, 10:18:00 am 2009  

बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने
अरविन्द गायकवाड

Unknown रवि मई 10, 10:38:00 am 2009  

बड़े आश्चर्य की बात बताई आपने कि बैंक के कर्मचारी अपने शाखा प्रबंधक के साइन की नहीं पहनाते है। ऐसे कर्मियों को तो बैंक में रखना ही नहीं चाहिए।

बेनामी,  रवि मई 10, 10:46:00 am 2009  

बैंक में अगर नकली नोट मिलने हैं पर सभी ग्राहकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाना बैंक के दीवालिएपन का सबूत है। सभी ग्राहकों को बैंक के खिलाफ कोर्ट जानकर उसको सबक सीखने का काम करना चाहिए।
राहुल शर्मा भोपाल

guru रवि मई 10, 11:04:00 am 2009  
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
guru रवि मई 10, 11:26:00 am 2009  

सरकारी बैंक की तो महिमा निराली ही है गुरु

Unknown रवि मई 10, 11:28:00 am 2009  

नकली नोट के सवाल पर महाप्रबंधक का भड़कना इस बात का साबित करता है कि बैंक वाले नकली नोटों के प्रति कितने लापरवाह है। अपने गुनाह को ग्राहकों के ऊपर थोपने के लिए बैंक की जितनी निंदा की जाए कम है। ग्राहकों को एकजुटता का परिचय देते हुए बैंक के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिए।

Unknown रवि मई 10, 01:07:00 pm 2009  

सोचने वाली बात है कि जब बैंक के लोग ही नकली नोटों को नहीं पहचान पाते हैं तो फिर आम आदमी कैसे पहचान सकता है।

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) रवि मई 10, 03:27:00 pm 2009  

हा हा हा हा ! ये मीडिया वालो को केवल नेता लोग ही handle कर सकते हैं. पत्रकार लोग कितना लक्षमण रेखा पार करते हैं ये तो जग जाहिर है.

Unknown रवि मई 10, 08:19:00 pm 2009  

नकली नोटों का मिलना बैंको के ऐ टी ऍम
से भी मिलने की शिकायत मिलती रही है.और भी चीजे बैंको की आजकल गड़बड़ पाई जाती है.

RAJNISH PARIHAR सोम मई 11, 06:43:00 am 2009  

अपने देश में यही होता है...बड़ों के लिए अलग और छोटों के लिए अलग नियम है..!सीख देने वाले खुद कुछ सीखने को तैयार.. नहीं है..

शरद कोकास बुध मई 13, 02:50:00 am 2009  

राजकुमार जी बैंक वाले भी आखिर मनुष्य है.. फिर इतना काम का बोझ.. भीड का दबाव.. शोर.. कब तक सहन करेंगे बेचारे ?जनता का काम है शिकायत करना लेकिन जिसके पास शिकायत की जाती है उसकी शिकायत कौन करे?आखीर मे दोष सबसे छोते कर्मचारी पर ही आता है सो सहन करते रहिये आप भी और वे भी .मेरा भारत महान!!!

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