अपनी पहचान खुद बनाएं...
एक दिन ट्रेन से हमारे भाई साहब चन्दीराम ग्वालानी रायपुर से भाटापारा जा रहे थे। ट्रेन में उनकी मुलाकात मुंबई के एक पत्रकार से हुई। परिचय होने पर जब हमारे भाई साहब ने अपना नाम बताया तो उन पत्रकार बंधु ने उनसे पूछ लिया कि राजकुमार ग्वालानी आपके क्या लगते हैं। हमारे भाई साहब ने उनको बताया कि हम उनके छोटे भाई हैं। इसके बाद हमारे भाई साहब से हमारी जब मुलाकात हुई तो उन्होंने हमें कहा कि शाबास राजू... बेटा मुझे गर्व है कि तुमने वो मुकाम हासिल कर ही लिया है जो तुम करना चाहते थे। आज लोग हमको तुम्हारे नाम से जानते हैं। हम बता दें कि एक वह भी समय था जब लोग हमको हमारे इन्हीं भाई साहब के नाम से जानते थे। हमारे ये भाई साहब न केवल एक अच्छे पत्रकार, बल्कि एक साहित्यकार भी रहे हैं।
आज जब हमने एक ब्लाग देखा तो उसमें ब्लागर मित्र द्वारा लिखा गया एक वाक्य यह पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित कर गया। हमारे इन ब्लागर मित्र भीमसिंह मीना ने अपनी प्रोफाइल में लिखा था कि जब वे स्कूल गए तो उनका यह दंभ टूट गया कि वे एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाती हंै क्योंकि उनकी कोई पहचान नहीं थी। वास्तव में इस वाक्य ने हमें भी उन दिनों की याद दिला दी जब हमारी अपनी कोई पहचान नहीं थी। यह वह जमाना था
आज हमको पत्रकारिता करते हुए दो दशक से भी ज्यादा समय हो गया है और पत्रकारिता में हमने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इसके बाद भी हमें लगता है कि हमने कुछ ज्यादा नहीं सीखा है और न ही ऐसा कुछ किया है जिससे हमारे नाम का डंका बज सके।
जब हमारे भाई साहब चंदीराम ग्वालानी के नाम का डंका बजता था। कारण यह कि वे एक जाने-माने साहित्यकार और पत्रकार रहे हैं। हमें लोगों को बताना पड़ता था कि हम उनके भाई हैं। इसका हमें मलाल कभी नहीं हुआ। एक दिन हमारे भाई साहब ने हमें कहा था कि राजू हमेशा अपनी एक अलग पहचान बनानी चाहिए ताकि लोग तुमको तुम्हारे नाम से जान सकें और अगर ऐसा हो जाए कि हमें भी लोग तुम्हारे नाम से जानें तो वह दिन सुखद होगा। उनकी वह बात हमें लग गई और हमने उसी दिन ठान ली कि हम एक दिन वह मुकाम हासिल करके रहेंगे जब लोग हमको हमारे नाम से जानेंगे। हमने इतना नहीं सोचा था कि लोग हमारे परिजनों को भी हमारे नाम से जानें, लेकिन ऐसा हो गया है।आज हमको पत्रकारिता करते हुए दो दशक से भी ज्यादा समय हो गया है और पत्रकारिता में हमने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इसके बाद भी हमें लगता है कि हमने कुछ ज्यादा नहीं सीखा है और न ही ऐसा कुछ किया है जिससे हमारे नाम का डंका बज सके। लेकिन हमारे भाई साहब को जब बाहर के एक पत्रकार मित्र ने जिनको शायद हम भी नहीं जानते हैं हमारा नाम लेकर पूछा तो हमें उस दिन बड़ा अच्छा लगा और सबसे ज्यादा अच्छा यह लगा कि हमारे उन भाई साहब के चेहरे पर यह बताते हुए जो रौनक थी, वह। हमारा भी ऐसा मानना है कि हर इंसान को दुनिया में ऐसा काम करना चाहिए जिससे उसकी एक अलग पहचान बन सके और लोग उनको उनके नाम से जान सके। जब तक आपको लोग आपके परिवार के किसी नामी आदमी के नाम से जानते हैं, आपका अस्तित्व नहीं होता है और बिना अस्तित्व के इंसान किस काम का। हालांकि यह भी सच है कि हर किसी को वह मुकाम हासिल नहीं होता है लेकिन एक कोशिश जरूर करनी चाहिए अपनी पहचान बनाने की। हमेशा कोशिश करने वालों को सफलता मिलती है।
17 टिप्पणियाँ:
अपनी पहचान से ही इंसान का वजूद होता है
सही कहा कोशिश करते रहने से ही मुकाम हासिल होता है...
अपनी अलग पहचान से ही इँसान का अस्तित्व निखरता है।
पहचान कौन से बच गए गुरु ....
आपने अपनी पहचान बनाने में सफलता प्राप्त की इसके लिए बधाई
आपने अपनी पहचान बनाने में सफलता प्राप्त की इसके लिए बधाई
आसिफ अली रायपुर
परिवार की पहचाना से किसी का जाना जान दुखद होता है
पहचान बनाने की कोशिश जरूर करनी चाहिए, सही कहा है आपने
अपना पहचान बनाने वाले खुशनसीब होते हैं मित्र
हर इंसान अपनी एक अलग पहचान बनाए मैं भी ऐसा सोचता हूं
Prernaprad post. Aabhar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सही कहा आपने....
घर परिवार वालों की पहचान से कब तक चल सकता है आदमी?
किसी बड़े आदमी का बेटे होने का नशा किस काम का जब आपको लोग आपके नाम से न जाने
ekdam sahee ...
sahi baat kahi aapne
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
हर इन्सांन की अलग पह्चान होती है, और जब तक वो उस पह्चान को हासिल नही कर लेता तब तक वो अधुरा होता है
एक टिप्पणी भेजें