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रविवार, मई 17, 2009

मनमोहन का अर्थशास्त्र आया काम-अडवानी का नहीं भाया नाम

वह भी 16 तारीख थी जिस दिन छत्तीसगढ़ में मतदान हुआ था और आज भी 16 तारीख है जब लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आए हैं। जब 16 अप्रैल को छत्तीसगढ़ में 11 लोससभा सीटों के लिए मतदान हुआ था उस समय हमने रायपुर लोकसभा सीट के लिए मतदान करने वालों से बात की थी, उस बातचीत के दौरान ही एक महिला मतदाता ने जो बातें कहीं थीं, वहीं बात आज नतीजों के बाद सच होती नजर आ रही है। उस महिला मतदाता से आप कैसा प्रधानमंत्री चाहती हैं के सवाल पर उन्होंने तपाक से कहा था कि उनका तो ऐसा मानना है कि मनमोहन सिंह से अच्छा प्रधानमंत्री कोई हो ही नहीं सकता है। इसके पीछे का कारण भी उन्होंने बताया था कि आज विश्व जिस तरह से मंदी के दौर से गुजर रहा है उस दौर में भी मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री होने के कारण देश को बचाए रखने में सफल हो रहे हैं। आगे भी देश को वे ही आगे ले जाने का काम कर सकते हैं। उनकी बातों को याद करके लगता है कि वास्तव में देश के पढ़े-लिखे तबके ने भी संभवत: इस बात को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर से मनमोहन सिंह को सिंह इज किंग बनाने का फैसला किया है। इधर यह बात भी सामने आई है कि भाजपा को लालकृष्ण अडवानी को प्रधानमंत्री के रूप में सामने रखना भारी पड़ा है। अगर उनके स्थान पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में सामने रखा जाता तो शायद आज तस्वीर कुछ और होती।




लोकसभा के परिणामों ने साबित कर दिया है कि जनता पूरी तरह से कांग्रेस और उसकी गठबंधन की सरकार से संतुष्ट है और चाहती है कि एक बार फिर से देश की कमान मनमोहन सिंह के हाथों में ही रहे। जनता का सा मानने के पीछे जो सबसे बड़ा कारण नजर आता है वह यह है कि जनता ऐसा मानती है कि मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री ही इस देश का विकास कर सकते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी संभवत: इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ थीं कि मनमोहन सिंह ही लोगों का मन मोह सकते हैं। ऐसे में उन्होंने सही समय पर सही पासा फेंकते हुए यह ऐलान किया था कि यूपीए फिर सत्ता में आती है तो मनमोहन ही प्रधानमंत्री होंगे। अगर वह पुत्र मोह में फंस जातीं तो आज यूपीए को फिर से सरकार बनाने का मौका मिलने वाला नहीं था। कांग्रेस की चाकरी करने वाले नेता श्रीमती गांधी को खुश करने के लिए जरूर समय-समय पर राहुल गांधी को प्रधान मंत्री बनाने की बात करते रहे, लेकिन कम से कम श्रीमती गांधी को यह बात अच्छी तरह से मालूम थी कि अगर उन्होंने कांग्रेस के चाकरों के चक्कर में पड़कर राहुल को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया होता तो आज यह दिन देखने को नहीं मिलता।

श्रीमती सोनिया गांधी ने जिस तरह से रणनीति बनाकर फिर से कांग्रेस को सत्ता में लाने का काम किया है, उससे यह साफ हो जाता है कि उनको राजनीति की सबसे ज्यादा समझ है।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि यूपीए सरकार में श्रीमती सोनिया गांधी की ही चलती रही है और आगे भी उनकी ही चलेगी। मनमोहन सिंह इस बात को कैसे भूल सकते हैं कि उनको प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला था उसके पीछे श्रीमती गांधी ही थीं, ऐसे में उनको तो उनकी बातें माननी ही हैं। क्या भाजपा में ऐसा होता तो भाजपा सुप्रीम की बात मानने से कोई प्रधानमंत्री इंकार कर देगा। विरोधियों का काम है विरोध करना, लेकिन फैसला करने का काम तो जनता का है। अब जनता ने जबकि यूपीए को सत्ता सौंपने का फैसला सुना दिया है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि मनमोहन सिंह मजबूर प्रधानमंत्री है या मजबूत प्रधानमंत्री। मनमोहन चाहे मजबूत हो या मजबूर लेकिन यह तय है कि उनको उनके अर्थशास्त्र ने एक बार फिर से सिंह इज किंग बना दिया है।

और समझ हो भी क्यों नहीं, उनको राजनीति सीखने का मौका अपनी सास श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ अपने पति राजीव गांधी से मिला है। ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि वह मात खा जाती, उन्होंने सही समय पर जनता की नब्ज पहचानी और बिलकुल सही रणनीति से काम लिया और अपने को सरकार में वापस लाने में सफल रहीं। अब यह अलग मुद्दा है कि मनमोहन मजबूर प्रधानमंत्री हैं या मजबूत प्रधानमंत्री। विरोधी पार्टियां लगातार उनको मजबूर प्रधानमंत्री कहती रही हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि यूपीए सरकार में श्रीमती सोनिया गांधी की ही चलती रही है और आगे भी उनकी ही चलेगी। मनमोहन सिंह इस बात को कैसे भूल सकते हैं कि उनको प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला था उसके पीछे श्रीमती गांधी ही थीं, ऐसे में उनको तो उनकी बातें माननी ही हैं। क्या भाजपा में ऐसा होता तो भाजपा सुप्रीम की बात मानने से कोई प्रधानमंत्री इंकार कर देगा। विरोधियों का काम है विरोध करना, लेकिन फैसला करने का काम तो जनता का है। अब जनता ने जबकि यूपीए को सत्ता सौंपने का फैसला सुना दिया है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि मनमोहन सिंह मजबूर प्रधानमंत्री है या मजबूत प्रधानमंत्री। मनमोहन चाहे मजबूत हो या मजबूर लेकिन यह तय है कि उनको उनके अर्थशास्त्र ने एक बार फिर से सिंह इज किंग बना दिया है।

अब भाजपा की बात करें तो भाजपा का जो हाल हुआ है उसके पीछे कहीं न कहीं लालकृष्ण अडवानी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रमोट करना रहा है। आम जनता की तो बात ही छोड़ दें भाजपा वाले खुद कहते रहे हैं कि अडवानी का नाम तय करना गलत फैसला रहा है और आज वास्तव में वह फैसला गलत साबित हो ही गया है। अगर भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर दांव खेला होता तो एक बार भाजपा के सत्ता में आने के आसार हो सकते थे, लेकिन अब क्या हो सकता है अब तो भाजपा को पांच साल इंतजार करना पड़ेगा। इसी के साथ उसके लिए यह चिंतन-मनन का सवाल है कि उसको हार क्यों मिली। बड़े-बड़े दांवे करने वाली भाजपा अपना पिछला ही प्रदर्शन नहीं दोहरा सकी।

19 टिप्पणियाँ:

anu रवि मई 17, 08:11:00 am 2009  

मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्र से भला कौन वाकिफ नहीं है। उनके अर्थशास्त्र की कायल तो सोनिया माई भी हैं। अगर ऐसा नहीं होता दोस्त तो वो इतना बड़ा पासा फेंकतीं ही नहीं। आप बजा फरमाते हैं कि सोनिया ने सही समय पर सही पासा फेंका और जनता को एक बार फिर से फांसा। अब जनता को इससे क्या मतलब कि कौन मजबूत प्रधानमंत्री है और कौन मजबूर। जनता तो बेचारी खुद है मजदूर।

बेनामी,  रवि मई 17, 08:25:00 am 2009  

कांग्रेस के चाकर तो सोनिया चाकरी करेंगे ही मित्र। ऐसे लोग अगर सोनिया की चापलूसी नहीं करेंगे तो उनको सोनिया के दरबार में भाव कैसे मिलेगा। सोनिया ने भले मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री प्रमोट किया, पर उनके मन की चाह तो अपने पुत्र को ही सिंहासन पर बिठाने की रही होगा। लेकिन जनता की नब्ज को समझते हुए उन्होंने पुत्र मोह छोड़कर सत्ता मोह की तो जीत कर ही ली।
अनिवाश मलिक जबलपुर

बेनामी,  रवि मई 17, 08:38:00 am 2009  

अडवानी ने डूबा दी भाजपा की नैया
अब क्या किया जा सकता है भैया
कमलकांत शुक्ला कानपूर

guru रवि मई 17, 08:58:00 am 2009  

जय हो ...सिंग इज किंग की गुरु

बेनामी,  रवि मई 17, 09:19:00 am 2009  

कांग्रेस को जनादेश मिला है उसके पीछे युवराज राहुल गांधी का सबसे बड़ा हाथ है। अब यह बात दिगर है कि राजीव का यह सुपुत्र अपने पिता की तरह सियासी चालें चलने में निपुण है जिसके कारण वह कोई श्रेय लेने की बजाए सारा श्रेय पार्टी के कार्यकर्ताओं को दे रहे हैं। राहुल में अभी से प्रधानमंत्री बनने के लक्षण दिखने लगे हैं लोगों को।
सीएल यादव रायपुर

बेनामी,  रवि मई 17, 09:33:00 am 2009  

राजकुमार जी, सबसे पहले तो आपको इस बात के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद की आपने हमारे जैसे आम पाठकों के लिए भी अपना मत देने का रास्ता खुला रखा है, वरना कई ब्लाग में अपना मत रखने का मन होते हुए भी रास्ता न होने के कारण अपना मन मारकर रह जाना पड़ता है। आपने एक अच्छा पाइंट पकड़ा है। इसमें संदेह नहीं है कि मनमोहन एक अच्छे नहीं बहुत अच्छे अर्थशास्त्री हैं। उनके अर्थशास्त्र का कायल भारत ही नहीं दूसरे देश भी है। एक अच्छा अर्थशास्त्री दी देश को सही दिशा देने में सफल हो सकता है मैं भी यह बात कबूल करता हूं। इतने अच्छे लेख के लिए आपके प्रति आभार।

आसिफ अली साजन रायपुर

बेनामी,  रवि मई 17, 09:45:00 am 2009  

सोनिया अगर पुत्र मोह में फंसती तो कांग्रेस का भी बेड़ा गर्ग हो जाता। चलो सोनिया को तो राजनीति की समझ है।

दिनेशराय द्विवेदी रवि मई 17, 10:37:00 am 2009  

सरकारें कोई और बनाता है, जनता नहीं।

बेनामी,  रवि मई 17, 02:22:00 pm 2009  

नरेन्द्र मोदी भी भाजपा को ऊबार सकते थे, इसका दावा नहीं किया जा सकता है। गुजरात में भाजपा को 26 में से 16 सीटें ही मिलीं। गुजरात में अगर सभी सीटें नहीं तो 20 सीटें भी भाजपा को मिलती तो लगता कि मोदी में दम है। दम तो अपने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने दिखाया जिनके दम पर भाजपा को 11 में से 10 सीटें मिल गईं। तो मोदी बड़े या रमन यह भी आगे भाजपा को सोचना पड़ेगा।
अरूण शर्मा दुर्ग

राजकुमार ग्वालानी रवि मई 17, 02:42:00 pm 2009  

आसिफ जी,
हमारा ऐसा मानना रहा है कि हर पाठक को अपना मत देने का अधिकार ठीक उसी तरह से है जैसा कि चुनाव में रहता है। फिर हम कौन होते हैं उनका यह अधिकार छीनने वाले। हालांकि बेनामी का रास्ता खुले रखने से एक खतरा रहता है कि कोई भी किसी नाम से कुछ भी उल्टा-सीधी लिख सकता है। लेकिन चंद गंदे लोगों की वजह से बाकी अच्छे लोगों को अपना मत देने से अलग करना कम से कम हमको तो उचित नहीं लगा इसलिए हमने सभी के लिए मत देने का रास्ता खुला रखा है। जहाँ तक गंदे लोगों की बात है तो गंदगी करने वाले तो गंदगी करेंगे ही, ऐसे लोगों को नजरअंदाज करने में ही भला है। जब आप किसी की बात पर प्रतिक्रिया ही नहीं जताएंगे तो वह बंदा कितनी बार आपकी तरफ पत्थर फेंकने का काम करेगा। आप अगर किसी की दी जाने वाली कोई भी चीज को कबूल नहीं करते हैं तो वह चीज उसी के पास रह जाती है, ठीक उसी तरह से कोई अपनी टिप्पणी में चाहे कुछ भी लिखे, उसका मन चाहे तो गाली भी दे दे, (जैसा कई लोग करते हैं) लेकिन आप उसे कबूल नहीं करते हैं तो वह गाली उसी के पास रह जाती है, तो फिर मित्र टेंशन किस बात का है।

Anil Pusadkar रवि मई 17, 02:51:00 pm 2009  

जो जीता वो सिकंदर्।

Unknown रवि मई 17, 03:14:00 pm 2009  

आपने बिलकुल सही लिखा है कि अडवानी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करना भाजपा के लोगों को भी पसंद नहीं था। बस्तर से सांसद चुने गए बलीराम कश्यप ने तो साफ शब्दों में कहा है कि अडवानी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश करना भाजपा की सबसे बड़ी गलती थी। इसके बाद अब बच क्या जाता है।

Unknown रवि मई 17, 03:21:00 pm 2009  

अगर भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर दांव खेला होता तो एक बार भाजपा के सत्ता में आने के आसार हो सकते थे, जरुर एक संभावना हो सकती थी

बेनामी,  रवि मई 17, 03:40:00 pm 2009  

अब तेरा क्या होगा अडवानी.....

बेनामी,  रवि मई 17, 08:00:00 pm 2009  

कोई माने या न माने मनमोहन सिंह तो मजबूर प्रधानमंत्री ही रहेंगे। उनकी हैसियत एक कठपुतली से ज्यादा नहीं है। अगर वास्तव में उनमें दम होगा तो सोनिया गाँधी की मर्जी के बिना कोई फैसला करके दिखाएंगे तो मानेंगे कि वे मजबूर नहीं मजबूत प्रधानमंत्री है।
मनीष राठौर मुंबई

बेनामी,  रवि मई 17, 08:09:00 pm 2009  

कांग्रेस को आज अगर सत्ता में वापस आने का मौका मिला है तो इसके पीछे कांग्रेस का हाथ कम और उन परेशान मतदाताओं का हाथ ज्यादा है जिनको यह लगते रहा है कि कांग्रेस के गठबंधन दल देश को कभी भी मध्ययवधि चुनाव की तरफ ढकेल सकते हैं। इस मुसीबत से बचने के लिए ही मतदाताओं ने कांग्रेस का साथ दिया है। फिर एक बात यह भी है कि भाजपा की कथनी और करनी में भी फर्क रहा है।
मुकेश मल्होत्रा दिल्ली

शेफाली पाण्डे रवि मई 17, 11:19:00 pm 2009  

जी हाँ ...जब सरे रिश्ते चुक जाते है तो सिर्फ अर्थ काम आता है ..

अभिषेक मिश्र बुध मई 20, 04:52:00 pm 2009  

Spasht ho gaya hai ki arthvyavastha ab matdataon ki soch ko bhi prabhavit karne lagi hai.

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