अपना ही धंधा-मत करो गंदा
सुबह-सुबह मोबाइल की घंटी बजी... हमने जैसे ही मोबाइल उठाया उधर से प्यार भरी गालियों की बौछार शुरू हो गई। अबे गधे, नालायक, बेवकूफ और न जाने क्या-क्या। इन गालियों के साथ कहा गया कि तू कब सुधरेगा बे, तेरे को समझ में नहीं आता है क्या कि एक तेरे सच्चाई लिखने से कुछ होना जाना नहीं है। क्या पड़ी है तुझे ही राजा हरिशचन्द्र बनने की और वो एक ऐसी कौम के लिए जो खुद कौन सा दुध की धुली है। कम से कम तुमको अपने उस पेशे से तो खिलवाड़ करके उसको गंदा नहीं करना चाहिए जिसमें तुम भी काम करते हो।
ये सारी बातें हमसे हमारे एक मित्र जो कि हमारे बड़े भाई की तरह हैं, उन्होंने उस संदर्भ में कही जो पोस्ट हमने दो दिन पहले प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर लिखी थी। उन्होंने बताया कि आज ही वे बाहर से लौटे हैं और आते ही तेरा ब्लाग देखा तो मुझसे रहा नहीं गया और तुम्हें फोन लगा लिया। हमारे ये मित्र ऐसे हैं जिनकी बातों का हम चाहकर भी बुरा नहीं मान सकते हैं। कारण यह है कि हम उनका बहुत सम्मान करते हैं। बहरहाल उन्होंने हमें प्यार भरी गालियों के साथ बहुत सी नसीहतें भी दे डालीं कि क्या जरूरत है अखबार मालिकों को खराब कहने की जबकि तू भी जानता है कि तुम्हारी कौम यानी कि पत्रकार भी कैसे हैं। क्या आज के पत्रकार अपना काम पूरी ईमानदारी से करते हैं? तुम अगर ईमानदार हो तो इसका यह मतलब तो नहीं है कि सारे ही ईमानदार हैं? ऐसा ही अखबार मालिकों के साथ है क्या सारे अखबार मालिक ऐसे हैं जैसा कि तूने लिखा है? मैंने उनसे प्रतिवाद किया कि मैंने तो ऐसा कुछ नहीं लिखा है कि सारे मालिक ऐसे हैं। वैसे भी हम भी यह बात जानते हैं कि इस दुनिया में अच्छे और खराब लोग हैं उसी तरह से अखबारों में भी कुछ अच्छे मालिक हैं, लेकिन इसके बाद भी चूंकि वे पेशेवर हैं और उनको अखबार निकालना है तो उनको भी समझौता करना पड़ता है। हमारी इस बात पर उन्होंने कहा कि क्या तुम अपनी पत्रिका के लिए पेशेवर नहीं हो? क्या तुमने कभी समझौता नहीं किया है? हमने तपाक से जवाब दिया कि आप भी जानते हैं कि हम किसी ऐसी शर्त पर विज्ञापन लेने का काम नहीं करते हैं जिसमें हमें कहा जाए कि हमको सरकार या फिर किसी भी एक्स-वाई-जेड के खिलाफ कुछ नहीं लिखना है। आप जानते हैं भाई साहब ऐसे में हम पत्रिका निकालना बंद करना पसंद करेंगे।
ये तो रहीं हमारे एक परम मित्र और हमारे आदणीय भाई साहब की बातें जो हमें अपनी उस पोस्ट - कलम हो गई मालिकों की गुलाम-पत्रकार नहीं कर सकते मर्जी से काम - के संदर्भ में सुननी पड़ीं। वैसे इस पोस्ट को लेकर हमें हमारे संपादक ने भी कहा था कि जैसा हमने लिखा है वैसा हर अखबार मालिक नहीं होता है। संभवत: उनकी बातों में दम है, क्योंकि उनके पास हमसे ज्यादा अनुभव है। लेकिन हमने तो अपने वे विचार रखे थे जो हमने अपने पत्रकारिता जीवन में महसूस किए और झेले हैं। हो सकता है हमारे उन विचारों से हर कोई सहमत न हो और हमारे वे विचार छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के संदर्भ में ज्यादा ठीक बैठते हों। लेकिन हमको नहीं लगता है कि यहां से जुदा दूसरे राज्यों की पत्रकारिता हो सकती है। हमें तो फिर भी ऐसा लगता है कि दूसरे राज्यों की तुलना में अपने राज्य की पत्रकारिता काफी अच्छी है। यहां के पत्रकार और अखबार मालिक भी ठीक हैं। हमने जो लिखा है उसके पीछे सच्चाई है, लेकिन हम यह मानते हैं कि वास्तव में हर अखबार के मालिक ऐसे नहीं होते हैं। लेकिन क्या चंद अखबार मालिकों के सही होने से चौथा स्तंभ बचा रहेगा यह एक यक्ष प्रश्न है।
इधर हमारे एक ब्लाग बिरादरी के एक मित्र ने अपने ब्लाग में पत्रकारों के बारे में लिखा है कि पत्रकार आज खेमों में बंटे हुए हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज वास्तव में पत्रकार राजनैतिक पार्टियों में एक तो अपनी रूचि और दूसरे अपने फायदे के कारण बंटे हुए हैं। इस ब्लागर मित्र ने अपने ब्लाग में एक बड़ी सच्चाई यह भी लिखी है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया। यह एक कड़वी सच्चाई है कि वास्तव में सच्चाई लिखने वाले चाहे वे पत्रकार हों या फिर अखबार मालिक उनका हश्र अच्छा नहीं होता है। पत्रकारों को नौकरी से बाहर कर दिया जाता है तो अखबार मालिकों को सत्ता में बैठी सरकारें विज्ञापनों से वंचित कर देती हैं। लेकिन इसका यह मलतब तो कदापि नहीं है कि सच्चाई का दामन छोड़ दिया जाए।
हम अपने उन मित्र और परम आदरणीय भाई साहब की उस बात से इंकार नहीं करते हैं कि कम से कम हमें अपने उस पेशे को गंदा करने का काम नहीं करना चाहिए जिससे हम जुड़े हैं। लेकिन सोचने वाली बात यह कि हमारे पेशे के बारे में हमसे ज्यादा अच्छा कौन जानता है। फिर अगर हमारे पेशे की कोई दूसरा बुराई करेगा तो क्या हमको गुस्सा नहीं आएगा, भले हम अपने पेशे की सच्चाई जानते हों लेकिन जब हमें कोई दूसरा सच का आईना दिखाने की कोशिश करता है तो बुरा तो लगता है न। ऐसे में भलाई इसी में है कि खुद ही सच का आईना देखने का काम किया जाए और दूसरो को भी दिखाया जाए ताकि इस अपने कौम की कुछ तो लाज बची रहे और कोई यह न कहें कि देखों पत्रकार बिरादरी को कैसे दूसरे लोग लताड़ रहे हैं।
8 टिप्पणियाँ:
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
www.abhivyakti.tk
अगर हमारे पेशे की कोई दूसरा बुराई करेगा तो क्या हमको गुस्सा नहीं आएगा, भले हम अपने पेशे की सच्चाई जानते हों लेकिन जब हमें कोई दूसरा सच का आईना दिखाने की कोशिश करता है तो बुरा तो लगता है न।
ये बिलकुल ठीक बात है
सच्चाई लिखने से तो गालियाँ ही मिलती है गुरु
किसी भी प्रोफेसन को गंदा करने वालों को तो सामने लाना ही चाहिए। आप एक अच्छा और साहसिक काम कर रहे हैं। आपको यह बताने की जरूरत नहीं कि अच्छा और सच्चा काम करने वालों के रास्ते में रूकावटें तो आती ही हैं। आप अपने प्रोफेसन के प्रति कितने ईमानदार है यह आपके लेखन से मालूम होता है, वरना कौन अपने प्रोफेसन की बुराई करके पंगा लेता है। आपकी पोस्ट से जरूर आपके पंगे होंगे। आपमें उनसे निपटने का साहस है तो इस साहस को हम सलाम करते हैं।
लिखी गयी हर बात बात सौ फीसदी सच है. लेकिन सभी को संतुस्ट तो नहीं किया जा सकता है. कहा गया है की सच कड़वा होता है इसीलिए कुछ लोंगो को पसंद नहीं आया है. लेकिन सच लिखने वाले कम ही होते है इसीलिएआपको बधाई. सच तो सच है वह अच्छा हो या बुरा उसे दवाया तो नहीं जा सकता है.
सच्चाई लिखने वालों का हश्र कभी अच्छा नहीं होता यह बात भले ठीक है, पर जीत तो हमेशा सच्चाई की ही होती है। अब सच्चाई को जीतने में भले समय लग जाए, लेकिन कभी सच्चाई का दामन नहीं छोडऩा चाहिए। जो सच्चाई का दामन छोड़ देते हैं वे इंसान कहलाने के लायक नहीं होते हैं।
नेताओं के खिलाफ सच्चाई लिखने वाले पत्रकारों की नौकरी जाना कोई नई बात नहीं है। ऐसे पत्रकारों को दुनिया सलाम करती है।
अरे भईया काहे अपने ही धंधे में बट्टा लगा रहे हो, आपके भाई साहब ठीक ही तो कह रहे हैं। अपने धंधे की लाज तो अंडरवल्र्ड वाले भी रखते हैं, फिर आप काहे अपने धंधे का धनिया बो रहे हैं। तनीक समझो भाई, भाई लोगन की बात को।
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