भईया पानी नहीं है मत आना...
हमारे पड़ोसी जायसवाल जी के मोबाइल की घंटी बजती है और वे अपना सेल फोन उठाते हैं तो उधर से उनके बड़े भाई साहब की आवाज आती है। पहले वे उनका हाल-चाल पूछने के बाद कहते हैं कि उनका परिवार गर्मियों की छुट्टियों के कारण रायपुर घुमने आना चाहता है। बड़े भाई साहब की बात सुनकर जायसवाल जी तपाक से कहते हैं कि भईया पानी नहीं है मत आना। वे उनको बताते हैं कि यहां तो एक-एक बाल्टी पानी के लिए मारा-मारा मची है। ऐसे में आप परिवार के साथ आ जाएंगे तो पानी कहां से आएगा। यह एक जायसवाल जी की बात नहीं है। अपने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आज स्थिति यह है कि कोई भी परिवार नहीं चाहता है कि उनके यहां कोई अतिथि आए। एक समय अतिथि को भगवान माना जाता था, पर आज अतिथि लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। इसके पीछे कारण है पानी की किल्लत का।
अपने राज्य की राजधानी सहित इस समय पूरा प्रदेश जल संकट से गुजर रहा है। ऐसे में एक तरफ जहां आस-पास के जंगलों में जानवर मर रहे हैं वहीं जो जू हैं वहां भी जानवरों के मरने का क्रम जारी है। कल ही खबर आई कि नंदन वन में भी कुछ जानवरों की मौत हो गई। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आसमान से ऐसी आग बरस रही है जिसमें सब झुलस रहे हैं। ऊपर से सितम यह कि लोगों को पानी नसीब नहीं हो रहा है। अब ऐसे में अगर कोई मेहमान आ जाए तो उनके लिए पानी का इंजताम कहां से किया जा सकता है। गांवों के हालत यह है कि कुएं और तालाब पूरी तरह से सुख गए हैं। शहरों में नलों से पानी नहीं आ रहा है। कालोनियों की स्थिति ज्यादा खराब है। कई कालोनियां ऐसी हैं जहां पर पानी की कुछ ही टंकियां हैं। इन्हीं टंकियों से पूरी कालोनी को पानी देने का काम किया जा रहा है। ऐसे में हालत यह है कि पानी देने के समय में भी कटौती कर दी गई है। एक
कई महानुभवों ने अपने-अपने घरों में पानी खींचने के लिए बड़े-बड़े मोटर लगा रखे हैं। ऐसे में जिनके घर में मोटर लगे हैं उनको तो भरपूर पानी नसीब हो रहा है लेकिन बगल में जिनका घर है उनको पानी नसीब नहीं हो रहा है। ऐसे में वे बेचारे कहां जाएं? पड़ोसी से मोटर लगाने का विरोध किया जाता है तो जवाब मिलता है कि आप भी क्यों नहीं लगा लेते हैं मोटर। अब जनाब उन साहब को कौन समझाएं कि एक तो उन्होंने खुद मोटर लगाकर गैरकानूनी काम किया है, फिर दूसरे को भी मोटर लगाने के लिए उकसा रहे हैं।
तो पानी आने का समय कम उपर से यह सितम की कई महानुभवों ने अपने-अपने घरों में पानी खींचने के लिए बड़े-बड़े मोटर लगा रखे हैं। ऐसे में जिनके घर में मोटर लगे हैं उनको तो भरपूर पानी नसीब हो रहा है लेकिन बगल में जिनका घर है उनको पानी नसीब नहीं हो रहा है। ऐसे में वे बेचारे कहां जाएं? पड़ोसी से मोटर लगाने का विरोध किया जाता है तो जवाब मिलता है कि आप भी क्यों नहीं लगा लेते हैं मोटर। अब जनाब उन साहब को कौन समझाएं कि एक तो उन्होंने खुद मोटर लगाकर गैरकानूनी काम किया है, फिर दूसरे को भी मोटर लगाने के लिए उकसा रहे हैं।राजधानी में उन स्थानों पर मोटर लगाने का काम ज्यादा किया गया है जहां पर पानी की समस्या ज्यादा है। इन मोटरों को पकडऩे का काम सरकारी अमला कर ही नहीं रहा है। अगर इन मोटर वालों पर कड़ाई हो तो पानी की समस्या से कुछ हद तक छुटकारा मिल सकता है। लेकिन सरकारी अधिकारी किसी से पंगा लेने के पक्ष में नहीं हैं। उनको भी मालूम है कि जिससे वे पंगा लेने जाएंगे वही किसी नेता या मंत्री को फोन खटखटा देगा और उनको खाली हाथ वापस जाना पड़ेगा। कहने का मतलब यह है कि जिन साहब ने पानी खींचने के लिए मोटर लगाई है उनकी पहुंच है। अब इन पहुंच वालों के कारण ही पहुंचविहीन प्राणी निरीह प्राणी हो गए हैं और पानी के लिए तरस रहे हैं। ऐसे में पानी न होने से अतिथि देवों भव की परंपरा भी गर्मी में जलकर खाक हो रही है। आप चाहकर भी अपने परिजनों को नहीं बुला सकते हैं।
19 टिप्पणियाँ:
पानी का रोना तो हर जगह है गुरु
भाई साहब आपके राज्य क्या हमारे राज्य में भी आपके राज्य जैसा हाल है हर राज्य में सरकारी अमला निक्कमा ही होता है।
कृष्ण मोहन भोपाल
बड़ी दुखद बात है कि लोग पानी की वजह से छुट्टियों में भी अपने घर-परिवार वालों को बुलाकर मौज-मस्ती नहीं कर सकते हैं।
मोटर से पानी खींचने वालों पर प्रशासन कार्रवाई नहीं करता है तो उसे जनता मिलकर क्यों नहीं लतियाती है। ऐसे लोगों के मोटर ही उखाड़ कर ले जाने चाहिए, तब उनको समझ में आएगा की पानी की क्या कीमत होती है।
हर जगह यही कहानी है .. पर कष्ट ही करना है .. तो अपने घर में ही सही .. दूसरों के घर जाकर परेशान होने से क्या फायदा .. छुट्टियां अपने घर ही मनाना बेहतर रह गया है ।
संगीता जी की बातों से हम भी सहमत है
अब इन पहुंच वालों के कारण ही पहुंचविहीन प्राणी निरीह प्राणी हो गए हैं और पानी के लिए तरस रहे हैं। ऐसे में पानी न होने से अतिथि देवों भव की परंपरा भी गर्मी में जलकर खाक हो रही है।
क्या खूब कही है
सुरेश साहू भिलाई
हमारे मोहले में भी पानी की मारा मरी है दोस्त
पानी
वीरेन्द्र जैन
पानी नहीं है
पानी बिल्कुल नहीं है
सिविल लाइन के लिए भी पानी नहीं है
पुलिस थाने के लिए भी पानी नहीं है
सारे के सारे व्यापारिक समीकरण बदल रहे हैं
दूध में मिलाने के लिए भी पानी नही है
आज हमारे पास पानी का बिल आया है
नगरपालिका ने जिस पर
डाकटिकिट आलपिन से लगाया है
क्योंकि पानी नहीं है
पानी बिल्कुल नहीं है
उसके पास दूध तो है
पर गाय के पास भी पानी नहीं है
पुलिस
प्रशासन
सेना
यहां तक कि न्याय के पास भी पानी नहीं है
नेता के मुखड़े पर भी पानी नहीं है
सारे नल व्यवस्था की आंख हो रहे हैं
जहां जनता के दुखड़े पर भी पानी नहीं है
धर्म के पास भी पानी नहीं है
और डूब मरने के लिए
शर्म के पास भी पानी नहीं है
हमारी नगरपालिका इतनी जजबाती है
कि गर्मियों में लोग टाेंटी के पास बैठ जाते हैं
उसमें से हवा आती है
हाँ, पानी आ सकता है अगर बादल गरजें
हाँ पानी आ सकता है
अगर बिजलियाँ चमकें
हाँ पानी आ सकता है
अगर हवा थम जाये
हाँ पानी आ सकता है
अगर आदमी मेघराग गाये
कोशिश करके तो देखो आपका क्या जायेगा
अब तो पानी ऐसे ही आयेगा, ऐसे ही आयेगा
वीरेन्द्र जैन
1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
वीरेन्द्र जी
हमारे ब्लाग में आपने इतनी अच्छी रचना टिप्पणी के रूप में लगाई उसके लिए हम आपके आभारी हैं। वास्तव में आपने पानी की सही व्याख्या की है। इसके लिए आपकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
आपने क्या खुब लिखा है....
यहां तक कि न्याय के पास भी पानी नहीं है
नेता के मुखड़े पर भी पानी नहीं है
सारे नल व्यवस्था की आंख हो रहे हैं
जहां जनता के दुखड़े पर भी पानी नहीं है
धर्म के पास भी पानी नहीं है
और डूब मरने के लिए
शर्म के पास भी पानी नहीं है
भाई साहब जो कहानी छत्तीसगढ़ की है,वहीं कहानी हमारे मप्र की भी है। पानी के लिए हमारे शहर में भी मारा-मारी मची है। अफसर आराम फरमा रहे हैं और जनता पानी के लिए लड़ रही है। किसी को भी शर्म नहीं आती है।
सुरेन्द्र ठाकुर जबलपुर
वीरेन्द्र जी की कविता के लिए हमारी भी उनको बधाई
इतना बुरा हाल नही है राजकुमार।लेकिन ये भी सच है जिनको पानी मिल रहा है उनको भरपुर मिल रहा है और जिनको नही मिल रहा है वे बूंद बूंद को तरस रहे हैं।दरअसल ये मामला असमान वितरण प्रणाली का है।सिस्टम की गड़बड़ी के कारण झुग्गी बस्ती के लोग परेशान है और पाश कालोनी के लोग तो गार्डनिंग भी कर रहे हैं।
बिन पानी सब सून।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जिनको भरपूर पानी मिलता है उसकी वे कदर ही नहीं करते हैं और उसे बिना वजह बर्बाद कर देते हैं। अगर पानी की कदर सबको होने लगे तो पानी के लिए किसी को तरसना ही न पड़े। लेकिन जिनके पास जरूरत से ज्यादा पानी है उसका वे उसको गंवा कर प्रदर्शन न करें तो वे छोटे हो जाएंगे ऐसे लोगों को सबक सीखने का काम करना जरूरी है।
दिलीप गेढेकर मुंबई
सरकारी अमले को मोटरों को जब्त करने के लिए कड़ाई करनी ही होगी। सरकारी अमले की छूट का ही फायदा सब उठा रहे हैं। एक बार हिम्मत दिखाने की जरूरत है। यह सोचकर चुप बैठ जाना ठीक नहीं है कि जिसके घर मोटर जब्त करने जाएंगे वह किसी मंत्री या नेता को फोन कर देगा तो जरूतमंदों को कभी पानी ही नसीब नहीं होगा।
शेख समीर रायपुर
सही है हम भी इस बार अपने घर पर गये तो हमारे पापा मम्मी खुश हो गये चलो अब ३ दिन तो अपना बेटा टैंकर से पानी भर देगा, क्या करें पानी की समस्या ने बहुत परेशान कर रखा है।
जब तक पानी की बर्बादी करने वाला वर्ग काबू नहीं किया जाता और जिनके पास पानी नहीं है उन्हें पहुचाया नहीं जाता तब तक ये समस्या हल नहीं हो सकती. दूसरी बात हमें भी अपनी आदत ठीक करनी होगी पानी हो तो उसे बर्बाद करने की बजे बचाएं तभी खुद भी और आगे आने वाली पीढी को पानी नसीब हो सकेगा.
बहुत ही सही मुद्दा उठाया है आपने। आज के वक़्त में लगभग हर शहर की यही कहानी है, फिर भी लोग पानी बचाने के लिए सजग नहीं हो रहे हैं।
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