तुरतुरिया के जंगलों में साहसिक खेलों का रोमांच
घने जंगल में तीन सौ फीट की खाई के ऊपर पहाड़ी में एक छोर से दूसरे छोर में करीब पांच सौ फीट लंबी दो रस्सीयां लटकी हुई हैं। इन रस्सीयों पर लटक कर एक छोर से दूसरे छोर में जाने का काम लाइन लगाकर जांबाज लड़के और लड़कियां कर रहे हैं। इस रोमांचित करने वाले साहसिक खेल में सभी को रोमांच का अनुभव हो रहा है। किसी को अगर डर लगता है तो प्रशिक्षण देने वाले मुखिया जयंत डेफी उनको साहस दिलाते हुए कहते हैं कि बस थोड़ी की हिम्मत करो और देखो फिर डर के आगे तो जीत ही जीत है। उनकी बातें सुनने के बाद जब कोई पहाड़ी में रस्सी के सहारे छलांग लगा देता है तो उसको जो रोमांच का अनुभव होता है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। रस्सी के कुछ साहसिक खेलों के साथ यहां पहाड़ी में चढ़ाई करने वाले ट्रेकिंग का भी आयोजन किया गया। इस आयोजन में प्रदेश के करीब 150 लड़के और लड़कियों ने भाग लिया और पाया कि वास्तव में साहसिक खेलों का अपना अलग ही रोमांच है।
राजधानी से करीब 120 किलो मीेटर दूर बारनवापारा के घने जंगलों से लगा हुआ तुरतुरिया है। यही पर खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने 16 से 20 फरवरी तक साहसिक खेलों का एक विशेष प्रशिक्षण शिविर लगाया था। इस शिविर के लिए जहां हर जिले से करीब 10 युवाओं का चयन किया गया था, वहीं इनको प्रशिक्षण देने के लिए पुणे के जयंत डेफी को बुलाया गया था। वे अपने पूरे दल जिसमें संजय श्रीवास्तव, नीलचंद निकम, रवीन्द्र सिंह रावत, सोहरु धुमाल, अजय मोहिते और दत्ता भोईर शामिल हैं के साथ आए थे। इन्होंने प्रदेश के युवाओं को कमांडो ट्रेनिंग, मंकी वाकिंग, वैली क्रासिंग, रोप वे क्रासिंग के साथ ट्रेकिंग का प्रशिक्षण दिया। इनमें सबसे ज्यादा रोमांचित करने वाला खेल सभी युवाओं को रोप वे क्रासिंग का लगा। इसी खेल में खाई के करीब 300 फीट ऊपर करीब 500 फीट लंबी रस्सी बांधी गई थी। इसी रस्सी में सबको एक छोर से छोर तक जाना था। इस रस्सी पर लटकर जाने वालों को एक ऐसे बेल्ट से बांधा जाता था जिससे लगता है कि आप एक कुर्सी पर बैठे है। नए लोगों की सुरक्षा के लिए एक अतिरिक्त रस्सी भी बांधी जाती है। यहां पर रस्सी बांधने के लिए टीम को करीब पांच घंटे मेहनत करनी पड़ी थी।
हवा में लटकने का सपना साकार हुआ
नारायणपुर की संतोषी बघेल ने कहा कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि मैं भी हवा में लटक सकती हूं। टीवी पर डिस्कवरी चैनल में देखते थे कि कैसे विदेशी ऐसी खाई और नदियों के ऊपर से रस्सी के सहारे उसको पार करने का काम करते हैं और हवा में लटक जाते हैं। मेरा भी सपना था कि कभी ऐसा मौका मिले और अब वह मौका भी मिल गया। एक सवाल के जवाब में वह कहती हैं कि अगर खेल विभाग हम सभी युवाओं को आगे राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे आयोजन में भेजने का काम करता है तो हम सब वहां जरूर जाना चाहेंगे।
धमतरी के लक्ष्मीनारायण ने कहा कि हम यहां आने से पहले भयभीत थे कि आखिर हम क्या करेंगे लेकिन यहां पर जैसे रोमांच का अनुभव मिला है उससे लगता है कि अगर हम लोग डर जाते तो इससे वंचित हो जाते हैं। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में साहसिक खेलों की अपार संभावना है इसको यहां बढ़ाने का काम करना चाहिए। वे कहते हैं कि ऐसा आयोजन बस्तर में होना चाहिए और वहां पर ऐेरो एडवेंचर को भी शामिल करना चाहिए जिसमें पैराग्लाइडिंग जैसा खेल भी शामिल हो।
हेमिता साहू ने कहा कि हम लड़कियां भी यहां पर लड़कों के साथ हर साहसिक खेल में शामिल हो रही हैं। हमको भी सब सीखने का मौका मिल रहा है। हमने कंमाडो ट्रेनिंग, मंकी वाकिंग, रॉक सभी में हिस्सा लिया है।
जशपुर की अनिता भगत ने बताया कि 400 फीट की वैली क्रासिंग रोमांचित करनी वाली है। इसके बारे में उन्होंने बताया कि जब पहाड़ी पर खाई के उपर रस्सी बंधी रहती है तो उसे क्रास करने के लिए हाथों के सहारे आगे बढ़ना पड़ता है। यह ज्यादा रोमांचकारी है। पहली बार आई रजनी वर्मा ने कहा कि उनको यहां आकर नया अनुभव मिला है और अब वह ऐसे आयोजन में बार-बार शामिल होना चाहेगी। यहां पर पांच दिनों में हमें जो अनुभव मिला है उसके बारे में हम अपनी साथियों को भी बताएंगी और अगली बार उनको भी लेकर आएंगी। कवर्धा की इंदू नेताम ने बताया कि इसके पहले वह भौरमदेव में पिछले साल हुए साहसिक खेलों में शामिल हो चुकी हैं, लेकिन वहां से ज्यादा रोमांच यहां मिला है। वहां पर न तो इतना घना जंगल है और न ही इतनी बड़ी पहाडियां हैं।
मिशन जयहिंद
साहसिक खेलों का प्रशिक्षण देने पुणे से आए भारतीय सेना में बरसों काम कर चुके जयंत डेफी का कहना है कि उनका एक ही मिशन है कि देश के युवा पश्चिम संस्कृति त्याग कर गुड मार्निंग के स्थान पर जय हिंद बोले। वे बताते हैं कि उन्होंने जिस भी राज्यों में साहसिक खेलों का प्रशिक्षण दिया है वहां वे युवा अब गुड मार्निंग के स्थान पर जय हिंद ही बोलते हैं। तुरतुरिया के प्रशिक्षण शिविर में भी सभी युवाओं को जय हिंद बोलने की शपथ दिलाई गई। वे कहते हैं कि हम भारतीय ही अपने देश के बारे में नहीं साचेंगे तो कौन सोचेगा। मेरा मकसद युवाओं में देश प्रेम की भावना पैदा करना है। जिनके दिल में देश प्रेम की भावना होती है, वे चाहे खेल हो या और कोई भी क्षेत्र सभी में वे सफल होते हैं। उन्होंने पूछने पर कहा कि जब भी छत्तीसगढ़ बुलाया जाएगा मैं जरूर आऊंगा। यहां के लोग बहुत अच्छे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने यहां के बारे में काफी कुछ सुना था, यही वजह रही है कि मेरी टीम यहां पर बहुत कम पारिश्रमिक में आई है।
राजधानी से करीब 120 किलो मीेटर दूर बारनवापारा के घने जंगलों से लगा हुआ तुरतुरिया है। यही पर खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने 16 से 20 फरवरी तक साहसिक खेलों का एक विशेष प्रशिक्षण शिविर लगाया था। इस शिविर के लिए जहां हर जिले से करीब 10 युवाओं का चयन किया गया था, वहीं इनको प्रशिक्षण देने के लिए पुणे के जयंत डेफी को बुलाया गया था। वे अपने पूरे दल जिसमें संजय श्रीवास्तव, नीलचंद निकम, रवीन्द्र सिंह रावत, सोहरु धुमाल, अजय मोहिते और दत्ता भोईर शामिल हैं के साथ आए थे। इन्होंने प्रदेश के युवाओं को कमांडो ट्रेनिंग, मंकी वाकिंग, वैली क्रासिंग, रोप वे क्रासिंग के साथ ट्रेकिंग का प्रशिक्षण दिया। इनमें सबसे ज्यादा रोमांचित करने वाला खेल सभी युवाओं को रोप वे क्रासिंग का लगा। इसी खेल में खाई के करीब 300 फीट ऊपर करीब 500 फीट लंबी रस्सी बांधी गई थी। इसी रस्सी में सबको एक छोर से छोर तक जाना था। इस रस्सी पर लटकर जाने वालों को एक ऐसे बेल्ट से बांधा जाता था जिससे लगता है कि आप एक कुर्सी पर बैठे है। नए लोगों की सुरक्षा के लिए एक अतिरिक्त रस्सी भी बांधी जाती है। यहां पर रस्सी बांधने के लिए टीम को करीब पांच घंटे मेहनत करनी पड़ी थी।
हवा में लटकने का सपना साकार हुआ
नारायणपुर की संतोषी बघेल ने कहा कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि मैं भी हवा में लटक सकती हूं। टीवी पर डिस्कवरी चैनल में देखते थे कि कैसे विदेशी ऐसी खाई और नदियों के ऊपर से रस्सी के सहारे उसको पार करने का काम करते हैं और हवा में लटक जाते हैं। मेरा भी सपना था कि कभी ऐसा मौका मिले और अब वह मौका भी मिल गया। एक सवाल के जवाब में वह कहती हैं कि अगर खेल विभाग हम सभी युवाओं को आगे राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे आयोजन में भेजने का काम करता है तो हम सब वहां जरूर जाना चाहेंगे।
धमतरी के लक्ष्मीनारायण ने कहा कि हम यहां आने से पहले भयभीत थे कि आखिर हम क्या करेंगे लेकिन यहां पर जैसे रोमांच का अनुभव मिला है उससे लगता है कि अगर हम लोग डर जाते तो इससे वंचित हो जाते हैं। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में साहसिक खेलों की अपार संभावना है इसको यहां बढ़ाने का काम करना चाहिए। वे कहते हैं कि ऐसा आयोजन बस्तर में होना चाहिए और वहां पर ऐेरो एडवेंचर को भी शामिल करना चाहिए जिसमें पैराग्लाइडिंग जैसा खेल भी शामिल हो।
हेमिता साहू ने कहा कि हम लड़कियां भी यहां पर लड़कों के साथ हर साहसिक खेल में शामिल हो रही हैं। हमको भी सब सीखने का मौका मिल रहा है। हमने कंमाडो ट्रेनिंग, मंकी वाकिंग, रॉक सभी में हिस्सा लिया है।
जशपुर की अनिता भगत ने बताया कि 400 फीट की वैली क्रासिंग रोमांचित करनी वाली है। इसके बारे में उन्होंने बताया कि जब पहाड़ी पर खाई के उपर रस्सी बंधी रहती है तो उसे क्रास करने के लिए हाथों के सहारे आगे बढ़ना पड़ता है। यह ज्यादा रोमांचकारी है। पहली बार आई रजनी वर्मा ने कहा कि उनको यहां आकर नया अनुभव मिला है और अब वह ऐसे आयोजन में बार-बार शामिल होना चाहेगी। यहां पर पांच दिनों में हमें जो अनुभव मिला है उसके बारे में हम अपनी साथियों को भी बताएंगी और अगली बार उनको भी लेकर आएंगी। कवर्धा की इंदू नेताम ने बताया कि इसके पहले वह भौरमदेव में पिछले साल हुए साहसिक खेलों में शामिल हो चुकी हैं, लेकिन वहां से ज्यादा रोमांच यहां मिला है। वहां पर न तो इतना घना जंगल है और न ही इतनी बड़ी पहाडियां हैं।
मिशन जयहिंद
साहसिक खेलों का प्रशिक्षण देने पुणे से आए भारतीय सेना में बरसों काम कर चुके जयंत डेफी का कहना है कि उनका एक ही मिशन है कि देश के युवा पश्चिम संस्कृति त्याग कर गुड मार्निंग के स्थान पर जय हिंद बोले। वे बताते हैं कि उन्होंने जिस भी राज्यों में साहसिक खेलों का प्रशिक्षण दिया है वहां वे युवा अब गुड मार्निंग के स्थान पर जय हिंद ही बोलते हैं। तुरतुरिया के प्रशिक्षण शिविर में भी सभी युवाओं को जय हिंद बोलने की शपथ दिलाई गई। वे कहते हैं कि हम भारतीय ही अपने देश के बारे में नहीं साचेंगे तो कौन सोचेगा। मेरा मकसद युवाओं में देश प्रेम की भावना पैदा करना है। जिनके दिल में देश प्रेम की भावना होती है, वे चाहे खेल हो या और कोई भी क्षेत्र सभी में वे सफल होते हैं। उन्होंने पूछने पर कहा कि जब भी छत्तीसगढ़ बुलाया जाएगा मैं जरूर आऊंगा। यहां के लोग बहुत अच्छे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने यहां के बारे में काफी कुछ सुना था, यही वजह रही है कि मेरी टीम यहां पर बहुत कम पारिश्रमिक में आई है।
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