मठाधीशों के इशारों पर चलता है चिट्ठा जगत
अब हमें इस बात का पूरा भरोसा हो गया है कि अपना चिट्ठा जगत स्वचलित सिस्टम से नहीं बल्कि मठाधीशों के इशारों पर चलता है। हमें वैसे तो इस बात का पहले से ही यकीन था, लेकिन अब पक्का भरोसा हो गया। वरना कैसे कर चर्चा के ब्लागों में दिए गए लिंक में से एक लिंक की प्रविष्ठी तो उसके ब्लाग में जुड़ती हैं दूसरे ब्लाग की नहीं जुड़ती है। इसका मतलब साफ है कि उस ब्लाग को आगे बढऩे से रोकने के लिए ऐसा कुछ किया जाता है।
हम पिछले काफी समय से देख रहे हैं कि हमारे ब्लाग राजतंत्र की ब्लाग चर्चा में चर्चा होने के बाद भी उसकी प्रविष्ठी को हमारे ब्लाग की प्रविष्ठियों में शामिल नहीं किया जा रहा है। एक तरफ राजतंत्र की प्रविष्ठियों पर विराम लगा दिया गया है तो दूसरी तरफ हमारे एक और ब्लाग खेलगढ़ की प्रविष्ठियां निरंतर बढ़ रही हंै। यह भला कैसे संभव हो सकता है कि एक ब्लाग के चर्चा वाले ब्लाग में एक ब्लाग का लिंक काम करता है, दूसरे का नहीं। हम दो दिन पहले ही बात करें हमारे ब्लाग राजतंत्र की चर्चा दो चर्चा वाले ब्लागों एक ब्लाग चौपाल और दूसरे ब्लाग 4 वार्ता में हुई थी, लेकिन दोनों की प्रविष्ठियों को नहीं जोड़ा गया।
यह हमारे ब्लाग के साथ पहली बार हुआ है ऐसा नहीं है, हमारे ब्लाग के साथ काफी पहले से ऐसा किया जा रहा है। हमने पहले भी जब इसके बारे में लिखा तो हमारे वरिष्ठ ब्लागरों ने समझाने का प्रयास किया कि किसी कारणवश ऐसा हो गया होगा। हमने उनकी बात मान ली। लेकिन क्या बार-बार एक ही ऐसे ब्लाग के हो तो इसके पीछे का कारण समझ नहीं आता है। पिछले पांच दिनों से हमारे ब्लाग राजतंत्र में प्रविष्ठियों को जोड़ा नही जा रहा है।
हम अपने ब्लाग की छोड़े हमारे एक ब्लागर मित्र को भी इस बात की शिकायत है कि उनके ब्लाग को भी लगातार आगे बढऩे से रोका जा रहा है। हमारे ब्लाग की तो प्रविष्ठियां ही हजम की गई हैं उनके ब्लाग के तो कम से कम दस हवाले ही डकार लिए गए। हवाले तो कुछ हमारे भी ब्लाग के डकार लिए गए हैं। इसका मतलब साफ है कि चिट्ठा जगत भले एक स्वचलित एग्रीकेटर है, लेकिन इतना तय है कि यह ब्लाग जगत में बैठे मठाधीशों के इशारे पर ही चलता है। इस बात को कोई माने या न मानें लेकिन हम अब जरूर मानने लगे हैं। अब ये मठाधीश कौन हैं, हम नहीं जानते हैं, लेकिन इतना तय है कि ब्लाग जगत में ऐसे लोग जरूर है जो बढ़ते ब्लागों की रफ्तार पर रोक लगवाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। वैसे भी दुनिया का यह दस्तुर है कि बढ़ते हुए को रोकने का काम शीर्ष पर बैठे लोग करते ही हैं ताकि उनकी कुर्सी कायम रहे। बहरहाल जिसको जैसा करना है करता रहे, हम जब दूसरों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ लडऩे के लिए खड़े हो जाते हैं तो अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ न लडऩा कैसे संभव है।
हम पिछले काफी समय से देख रहे हैं कि हमारे ब्लाग राजतंत्र की ब्लाग चर्चा में चर्चा होने के बाद भी उसकी प्रविष्ठी को हमारे ब्लाग की प्रविष्ठियों में शामिल नहीं किया जा रहा है। एक तरफ राजतंत्र की प्रविष्ठियों पर विराम लगा दिया गया है तो दूसरी तरफ हमारे एक और ब्लाग खेलगढ़ की प्रविष्ठियां निरंतर बढ़ रही हंै। यह भला कैसे संभव हो सकता है कि एक ब्लाग के चर्चा वाले ब्लाग में एक ब्लाग का लिंक काम करता है, दूसरे का नहीं। हम दो दिन पहले ही बात करें हमारे ब्लाग राजतंत्र की चर्चा दो चर्चा वाले ब्लागों एक ब्लाग चौपाल और दूसरे ब्लाग 4 वार्ता में हुई थी, लेकिन दोनों की प्रविष्ठियों को नहीं जोड़ा गया।
यह हमारे ब्लाग के साथ पहली बार हुआ है ऐसा नहीं है, हमारे ब्लाग के साथ काफी पहले से ऐसा किया जा रहा है। हमने पहले भी जब इसके बारे में लिखा तो हमारे वरिष्ठ ब्लागरों ने समझाने का प्रयास किया कि किसी कारणवश ऐसा हो गया होगा। हमने उनकी बात मान ली। लेकिन क्या बार-बार एक ही ऐसे ब्लाग के हो तो इसके पीछे का कारण समझ नहीं आता है। पिछले पांच दिनों से हमारे ब्लाग राजतंत्र में प्रविष्ठियों को जोड़ा नही जा रहा है।
हम अपने ब्लाग की छोड़े हमारे एक ब्लागर मित्र को भी इस बात की शिकायत है कि उनके ब्लाग को भी लगातार आगे बढऩे से रोका जा रहा है। हमारे ब्लाग की तो प्रविष्ठियां ही हजम की गई हैं उनके ब्लाग के तो कम से कम दस हवाले ही डकार लिए गए। हवाले तो कुछ हमारे भी ब्लाग के डकार लिए गए हैं। इसका मतलब साफ है कि चिट्ठा जगत भले एक स्वचलित एग्रीकेटर है, लेकिन इतना तय है कि यह ब्लाग जगत में बैठे मठाधीशों के इशारे पर ही चलता है। इस बात को कोई माने या न मानें लेकिन हम अब जरूर मानने लगे हैं। अब ये मठाधीश कौन हैं, हम नहीं जानते हैं, लेकिन इतना तय है कि ब्लाग जगत में ऐसे लोग जरूर है जो बढ़ते ब्लागों की रफ्तार पर रोक लगवाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। वैसे भी दुनिया का यह दस्तुर है कि बढ़ते हुए को रोकने का काम शीर्ष पर बैठे लोग करते ही हैं ताकि उनकी कुर्सी कायम रहे। बहरहाल जिसको जैसा करना है करता रहे, हम जब दूसरों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ लडऩे के लिए खड़े हो जाते हैं तो अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ न लडऩा कैसे संभव है।
25 टिप्पणियाँ:
राजकुमार जी आपकी शिकायत और नाराज़गी जायज़ है लेकिन बदगुमानी ठीक नहीं है ।
राजकुमार जी, हम तो इस खेल को समझ ही नहीं पाएं हैं तो क्या कहे? इसलिए इस ओर ध्यान ही नहीं देते। चिठ्ठा जगत में कौन से पायदान पर खड़े हैं इससे कुछ हासिल नहीं होता। आपका अच्छा लेखन ही समाज में आपकी पहचान कराता है।
अजीत गुप्ता जी,
आपकी बातों से हम भी सहमत हैं, लेकिन गलत बात और अन्याय के खिलाफ न बोलना भी तो गलत है। हमने सिर्फ चिट्ठा जगत की एक गलती की तरफ ध्यान दिलाने का काम किया है। एक बार नहीं कर बार ऐसा होने पर ही हमें लिखने मजबूर होना पड़ा है।
सब अपनी कुर्सी बचाने का खेल खेलते हैं, खेल तो खेल होता है
बिलकुल सही मुद्दा पकड़ा है राजकुमार जी
I have also observed that! I never look up on my ranking but my blog rarely appear in the active quqeue.
Hope, it runs based on algos not based on personal agendas!!
अब मठाधीश कहां नहीं हैं, ब्लाग जगत में हैं तो इसमें हैरानी क्या
राजकुमार जी,
मुफ्त में कोई अपनी सेवा प्रदान कर रहा है, यही गनीमत है वर्ना हिन्दी ब्लॉग जगत में तो कई लोग टिप्पणी या लिंक भी बेमतलब नहीं देते हैं।
राज़ भाई ,
ये बात ठीक हो सकती है कि , कुछ कमियां , कुछ खामियां चिट्ठाजगत में भी हो सकती हैं और शायद हैं भी , मैं खुद कई बार बहुत सी सूचियों , जैसे धडाधड , सर्वाधिक ईमेल होते चिट्ठे आदि में ये बात देख चुका हूं ।
मगर इन सबके बावजूद ये नहीं भूलना चाहिए कि , ऐसे ही आरोप ब्लॉगवाणी को बंद करवाने के लिए जिम्मेदार रह चुके हैं । और आज अपनी तमाम खूबियों और खामियों के बावजूद हिंदी चिट्ठों के लिए सबसे लोकप्रिय और शायद अकेला भी एक लोकप्रिय संकलक है । इसलिए इन बातों की ओर ध्यान देने से बेहतर है कि अंतर्जाल पर अपनी वो छाप छोडी जाए जो भविष्य में आने वाले बलॉगर्स को गौरव का एहसास करा सके । शुभकामनाएं
ये मठाधीश कौन हैं, हम नहीं जानते हैं ???
राजकुमार जी,
आपकी शिकायत जायज़ है, चिठ्ठाजगत में "सक्रियता क्रमांक" आदि का लफ़ड़ा भी मुझे आज तक समझ नहीं आया… लिस्ट मे कुछ ऐसे भी ब्लॉग हैं जो कई दिनों तक निष्क्रिय रहते हैं फ़िर भी टॉप पर बने रहते हैं… जबकि सप्ताह में दो-तीन पोस्ट लिखने के बावजूद मैं कभी भी 25-26 से ऊपर नहीं जा सका। आपकी बात तो खैर अलग ही है… जितने सक्रिय आप हैं वैसे कम ही लोग हैं…।
कई ब्लॉग तो "समूह ब्लॉग" हैं जो स्वाभाविक रुप से "सक्रिय" रहेंगे ही, लेकिन मेरे और आपके जैसे एकल ब्लॉगर का सक्रियता क्रमांक कैसे तय होता है मुझे पता नहीं है।
फ़िर भी जिस तरह मैंने एक दो बार शिकायत करने के बाद चुप्पी साध ली आप भी साध लीजिये… :) :) जैसा कि अजित गुप्ता जी ने कहा कि अन्ततः लेखन की क्वालिटी और कण्टेण्ट ही महत्वपूर्ण है…
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हिन्दी ब्लॉगिंग के कुछ स्थाई हथकण्डे -
1) अपनी ही पोस्ट पर खुद या किसी चमचे द्वारा ढेर सारी टिप्पणियाँ करवाना…
2) जुगाड़ करके चर्चाओं में अपना चिठ्ठा शामिल करवाना…
3) खुद ही चर्चा शुरु करके उसमें अधिक से अधिक महिलाओं के चिठ्ठों को स्थान देना…
4) बेवजह का विवाद खड़ा करना, खासकर ब्लॉगिंग और ब्लॉगरों को लेकर…
आदि-आदि-आदि-आदि-आदि…
स्मार्ट इन्डियन जी का कहना बिल्कुल सही है....
दरअसल हम लोगों की ये आदत बन चुकी है कि हम दान में मिली बछिया के भी दाँत गिनने लगते है.
दूसरी बात, कि किसी ओर को निष्पक्षता की सीख देना भी हम बखूबी जानते हैं, जब कि चर्चा करते हुए हम खुद कितने निष्पक्ष रहते हैं, ये सारा ब्लागजगत जानता है...वही गिने-चुने अपने मेलजोल के 8-10 ब्लागर्स...जिनकी पोस्टस को लिंक देना होता है....
(बुरा लगे तो आप टिप्पणी मिटाने को स्वतन्त्र हैं)
boss is always right.
वत्स जी
चर्चा का एक साझा ब्लाग हमारा भी है। उस ब्लाग को हमने ब्लाग जगत में फैली गुटबाजी को समाप्त करने के इरादे से प्रारंभ किया है। हम जानते हैं कि ब्लाग जगत की गुटबाजी को समाप्त करना संभव नहीं है। लेकिन इसके बाद भी हम ऐसा प्रयास कर रहे हैं। हमारी ब्लाग चौपाल में प्रयास रहता है कि ज्यादा से ज्यादा नए ब्लागों को शामिल किया जाए। हमें जितना समय मिल पाता है, हम नए ब्लागों के फालोअर बनते हैं ताकि चर्चा करने में आसानी हो। दूसरे चर्चा करने वाले ब्लाग क्या करते हैं हम नहीं जानते, लेकिन हमारा प्रयास कभी अपने खास मित्रों (जैसा आप समझते हैं) को पहुंचाने का नहीं रहता है हम तो हर ब्लागर को अपना मित्र मानते हैं।
वत्स जी
चर्चा का एक साझा ब्लाग हमारा भी है। उस ब्लाग को हमने ब्लाग जगत में फैली गुटबाजी को समाप्त करने के इरादे से प्रारंभ किया है। हम जानते हैं कि ब्लाग जगत की गुटबाजी को समाप्त करना संभव नहीं है। लेकिन इसके बाद भी हम ऐसा प्रयास कर रहे हैं। हमारी ब्लाग चौपाल में प्रयास रहता है कि ज्यादा से ज्यादा नए ब्लागों को शामिल किया जाए। हमें जितना समय मिल पाता है, हम नए ब्लागों के फालोअर बनते हैं ताकि चर्चा करने में आसानी हो। दूसरे चर्चा करने वाले ब्लाग क्या करते हैं हम नहीं जानते, लेकिन हमारा प्रयास कभी अपने खास मित्रों (जैसा आप समझते हैं) को पहुंचाने का नहीं रहता है हम तो हर ब्लागर को अपना मित्र मानते हैं।
अजय जी,
ब्लागवाणी के बंद होने का हमें भी अफसोस है, लेकिन इसका यह मलतलब कदापि नहीं होता है कि आपके साथ लगातार अन्याय होते रहे और बर्दाश्त करते रहे। अगर अन्याय के खिलाफ लिखना और बोलना गलत है तो फिर शायद हम गलत हैं। वैसे हम ज्यादा नहीं जानते हैं हम तो अज्ञानी हैं ब्लाग जगत में आए हमें ज्यादा समय नहीं हुआ है।
नहीं राज भाई , मेरे कहने का तात्पर्य कदापि ये नहीं था कि अन्याय को सहते रहना चाहिए बल्कि आप तो स्वयं पत्रकार हैं दूसरों के लिए लडते हैं , मेरा ईशारा मात्र ये भर है कि या तो इससे बेहतर विकल्प तलाशा/बनाया/खडा किया जा सके , नहीं तो कम से कम ये तो कोशिश की ही जाए कि , जो विकल्प उपलब्ध है , वो ऐसे आरोपों के भंवर में फ़ंस कर दम तोड दे ।
अब रही बात मठाधीशी की या मठाधीशों की ..अजी लानत भेजिए , कौन है यहां मठाधीश । यहां तो पोस्टों के लिए पाठकों और टिप्पणी करने वालों के भी लाले पडे हुए हैं इतने ही बडे मठाधीश होते तो आती न हजार पांच सौ टिप्पणियां ...रही बात चिट्ठाचर्चा की , लिंक्स की , हवाले की ..तो सर्वोपरि एक ही बात ...आज से दस साल बाद जो पढा जाएगा ..वो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपका लेखन होगा ...हवाला , चर्चा , लिंक्स ..सब ..टैण टैणेन हो चुके होंगे ...राज भाई ,जिस दिन यहां लिखे हुए शब्दों का दाम मिलने लगेगा न उस दिन देखिएगा कि कौन क्या लिख रहा है ???? आप निश्चिंत होकर अपना कार्य करें ..ब्लॉगिंग किसी के बाप की जागीर नहीं कि जैसे चाहा मोड तोड दिया ..उसे खुद ही आप चाहे जैसे कर सकते हैं और सब कर ही रहे हैं
अरे हां एक बात और , न तो ब्लॉगवाणी ने मुझे अपना वकील नियुक्त किया हुआ है न ही चिट्ठाजगत ने मैं तो एक पाठक , एक ब्लॉगर के नाते ही मौजूदा विकल्प के संरक्षण के लिए कह रहा हूं बस ।
अरे भई कैसी कैसी इच्छाएं पाले हो.... रैंकिंग, फैंकिंग....क्रम व्रम। इन तमाम भ्रमों से निकलो भाई काहे इन पर समय नष्ट करते हो। अपने लेखन पर अपने विचारों पर उतना समय लगाओ यार, काहे दिल छोटा किये हो :)
वैसे भी किसको इन सब से लाभ मिलता होगा कि वह बैठकर रस्सी लेकर किसी पोस्ट को उपर नीचे करता रहे। क्या मिल जायगा इन सब करतबों से।
जैसा भी है, जहां भी है मुझे तो इन संकलकों से कोई शिकायत नहीं है। जैसे हैं अच्छे हैं।
मुफ्त में एक तो सर्वर दिया गया है उपर से बातें सुनाई जाय तो कौन भला इस तरह के कामों को करने में रूचि लेगा। ब्लॉगवाणी के बंद होने के पीछे यही सब चिलगोंजई बातें थी, अन्यथा वह अच्छी तरह चल रहा था। बोल बोल कर, कोंच कोंच कर जब पानी सिर से उपर चला जाता है तो कोई भी समझदार इंसान ब्लॉगवाणी को बंद करना ही श्रेयस्कर समझता और वही ब्लॉगवाणी वालों ने किया।
राजकुमार जी, आपकी चिंता जायज़ है, लेकिन चर्चा मंचो का योगदान भी अमूल्य है. हो सकता है किसी से भूलवश ऐसा हो गया हो!
प्रेमरस.कॉम
यदि आपके अनुमोदन पर टिप्पणी दिखे.. तो ठीक, क्योंकि यह आपका घर है ।
इसी प्रकार कोई अपने चबूतरे पर बैठ कर कोनोधीशी करे, सवाल उठाने हम कौन ?
अजय झा की बातों में दम है, और सतीश पँचम भाई भी कुछ गलत नहीं कह रहे ।
कुछ तो है.. जो कि, मठाधीशों सँबधित शीर्षक पर बीस लोग टिपियाने आ पहुँचे हैं ।
यदि आपके अनुमोदन पर टिप्पणी दिखे.. तो ठीक, क्योंकि यह आपका घर है ।
इसी प्रकार कोई अपने चबूतरे पर बैठ कर कोनोधीशी करे, सवाल उठाने हम कौन ?
अजय झा की बातों में दम है, और सतीश पँचम भाई भी कुछ गलत नहीं कह रहे ।
कुछ तो है.. जो कि, मठाधीशों सँबधित शीर्षक पर बीस लोग टिपियाने आ पहुँचे हैं ।
चिट्ठाजगत में कुछ हवाले न जुड़ने का कारण मुझे तो तकनीकी खामी ही अधिक नजर आता है क्योंकि कई बार हवाले कुछ माह बाद जुड़ते है और हम सोचते है कि किसी मठाधीश के इशारे पर ये सब हो रहा है पर मुझे नहीं लगता कि ये सब होता है |
इसलिए हवाले न जुड़ने पर इतने जल्द दुखी ना हो थोड़ी तसल्ली रखिए हो सकता है कि आपके हवाले कुछ माह में जुड़ जाएं | ये हमारे ब्लॉग के साथ भी अक्सर होता है |
हमार टिप्पणी कहां गायब हो गयी?
अपना ध्यान कभी उस तरफ गया नहीं ! आपके साथ अगर कोई ज्यादती हुई है तो कह कर अच्छा किया !
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