महात्मा गांधी से क्या लेना-देना
आज गांधी जयंती है, इस अवसर पर हम एक बार फिर से याद दिलाना चाहते हैं कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दर्शन करने का मन आज के युवाओं में है ही नहीं। यह बात बिना वजह नहीं कही जा रही है। कम से कम इस बात का दावा छत्तीसगढ़ के संदर्भ में तो जरूर किया जा सकता है। बाकी राज्यों के बारे में तो हम कोई दावा नहीं कर सकते हैं, लेकिन हमें लगता है कि बाकी राज्यों की तस्वीर छत्तीसगढ़ से जुदा नहीं होगी। आज महात्मा गांधी का प्रसंग इसलिए निकालना पड़ा है क्योंकि आज महात्मा गांधी की जयंती है और हमें याद है कि हमारे एक मित्र दर्शन शास्त्र का एक पेपर गांधी दर्शन देने गए थे। जब वे पेपर देने गए तो उनको मालूम हुआ कि वे गांधी दर्शन विषय लेने वाले एक मात्र छात्र हैं। अब यह अपने राष्ट्रपिता का दुर्भाग्य है कि उनके गांधी दर्शन को पढऩे और उसकी परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी मिलते ही नहीं हैं। गांधी जी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वालों की अपने देश में कमी नहीं है, लेकिन जब उनके बताएं रास्ते पर चलने की बात होती है को कोई आगे नहीं आता है। कुछ समय पहले जब एक फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस आई थी तो इस फिल्म के बाद युवाओं ने गांधीगिरी करके मीडिया की सुर्खियां बनने का जरूर काम किया था।
हमारे एक मित्र हैं सीएल यादव.. नहीं.. नहीं उनका पूरा नाम लिखना उचित रहेगा क्योंकि उनके नाम से भी मालूम होता है कि वे वास्तव में पुराने जमाने के हैं और उनकी रूचि महात्मा गांधी में है। उनका पूरा नाम है छेदू लाल यादव। नाम पुराना है, आज के जमाने में ऐसे नाम नहीं रखे जाते हैं। हमारे यादव जी रायपुर की नागरिक सहकारी बैंक की अश्वनी नगर शाखा में शाखा प्रबंधक हैं। बैंक की नौकरी करने के साथ ही उनकी रूचि अब तक पढ़ाई में है। उनके बच्चों की शादी हो गई है लेकिन उन्होंने पढ़ाई से नाता नहीं तोड़ा है। पिछले साल जहां उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा दी थी, वहीं इस बार उन्होंने दर्शन शास्त्र पढऩे का मन बनाया। यही नहीं उन्होंने एक विषय के रूप में गांधी दर्शन को भी चुना। लेकिन तब उनको मालूम नहीं था कि वे जब परीक्षा देने जाएंगे तो उनको परीक्षा हाल में अकेले बैठना पड़ेगा। जब वे परीक्षा देने के लिए विश्व विद्यालय गए तो उनके इंतजार में सभी थे। दोपहर तीन बजे का पेपर था। उनको विवि के स्टाफ ने बताया कि उनके लिए ही आज विवि का परीक्षा हाल खोला गया और 20 लोगों का स्टाफ काम पर है। उन्होंने परीक्षा दी और वहां के स्टाफ के साथ बातें भी कीं। यादव संभवत: पहले परीक्षार्थी रहे हैं जिनको विवि के स्टाफ ने अपने साथ दो बार चाय भी पिलाई।
आज एक यादव जी के कारण यह बात खुलकर सामने आई है कि वास्तव में अपने देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कितनी कदर की जाती है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि राष्ट्रपिता से आज की युवा पीढ़ी को कोई मतलब नहीं रह गया है। युवा पीढ़ी की बात ही क्या उस पीढ़ी के जन्मादाताओं का भी गांधी जी से ज्यादा सरोकार नहीं है। एक बार जब कॉलेज के शिक्षाविदों से पूछा गया कि महात्मा गांधी की मां का नाम क्या था। तो एक एक प्रोफेसर ने काफी झिझकते हुए उनका नाम बताया पुतलीबाई। यह नाम बिलकुल सही है।
एक तरफ जहां कॉलेज के प्रोफेसर नाम नहीं बता पाए थे, वहीं अचानक एक दिन हमने अपने घर में जब इस बात का जिक्र किया तो हमें उस समय काफी आश्चर्य हुआ जब हमारी छठी क्लास में पढऩे वाली बिटिया स्वप्निल ने तपाक से कहा कि महात्मा गांधी की मां का नाम पुतलीबाई था। हमने उससे पूछा कि तुमको कैसे मालूम तो उसने बताया कि उनसे महात्मा गांधी के निबंध में पढ़ा है। उसने हमें यह निबंध भी दिखाया। वह निबंध देखकर हमें इसलिए खुशी हुई क्योंकि वह अंग्रेजी में था। हमें लगा कि चलो कम से कम इंग्लिश मीडियम में पढऩे वाले बच्चों को तो महात्मा गांधी के बारे में जानकारी मिल रही है। यह एक अच्छा संकेत हो सकता है। लेकिन दूसरी तरफ हमारी युवा पीढ़ी जरूर गांधी दर्शन से परहेज किए हुए हैं। हां अगर गांधी जी के नाम को भुनाने के लिए गांधीगिरी करने की बारी आती है तो मीडिया में स्थान पाने के लिए जरूर युवा गांधीगिरी करने से परहेज नहीं करते हैं। एक बार हमने अपने ब्लाग में भी गांधी की मां का नाम पूछा था हमें इस बात की खुशी है ब्लाग बिरादरी के काफी लोग उनका नाम जानते हैं।
हमारे एक मित्र हैं सीएल यादव.. नहीं.. नहीं उनका पूरा नाम लिखना उचित रहेगा क्योंकि उनके नाम से भी मालूम होता है कि वे वास्तव में पुराने जमाने के हैं और उनकी रूचि महात्मा गांधी में है। उनका पूरा नाम है छेदू लाल यादव। नाम पुराना है, आज के जमाने में ऐसे नाम नहीं रखे जाते हैं। हमारे यादव जी रायपुर की नागरिक सहकारी बैंक की अश्वनी नगर शाखा में शाखा प्रबंधक हैं। बैंक की नौकरी करने के साथ ही उनकी रूचि अब तक पढ़ाई में है। उनके बच्चों की शादी हो गई है लेकिन उन्होंने पढ़ाई से नाता नहीं तोड़ा है। पिछले साल जहां उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा दी थी, वहीं इस बार उन्होंने दर्शन शास्त्र पढऩे का मन बनाया। यही नहीं उन्होंने एक विषय के रूप में गांधी दर्शन को भी चुना। लेकिन तब उनको मालूम नहीं था कि वे जब परीक्षा देने जाएंगे तो उनको परीक्षा हाल में अकेले बैठना पड़ेगा। जब वे परीक्षा देने के लिए विश्व विद्यालय गए तो उनके इंतजार में सभी थे। दोपहर तीन बजे का पेपर था। उनको विवि के स्टाफ ने बताया कि उनके लिए ही आज विवि का परीक्षा हाल खोला गया और 20 लोगों का स्टाफ काम पर है। उन्होंने परीक्षा दी और वहां के स्टाफ के साथ बातें भी कीं। यादव संभवत: पहले परीक्षार्थी रहे हैं जिनको विवि के स्टाफ ने अपने साथ दो बार चाय भी पिलाई।
आज एक यादव जी के कारण यह बात खुलकर सामने आई है कि वास्तव में अपने देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कितनी कदर की जाती है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि राष्ट्रपिता से आज की युवा पीढ़ी को कोई मतलब नहीं रह गया है। युवा पीढ़ी की बात ही क्या उस पीढ़ी के जन्मादाताओं का भी गांधी जी से ज्यादा सरोकार नहीं है। एक बार जब कॉलेज के शिक्षाविदों से पूछा गया कि महात्मा गांधी की मां का नाम क्या था। तो एक एक प्रोफेसर ने काफी झिझकते हुए उनका नाम बताया पुतलीबाई। यह नाम बिलकुल सही है।
एक तरफ जहां कॉलेज के प्रोफेसर नाम नहीं बता पाए थे, वहीं अचानक एक दिन हमने अपने घर में जब इस बात का जिक्र किया तो हमें उस समय काफी आश्चर्य हुआ जब हमारी छठी क्लास में पढऩे वाली बिटिया स्वप्निल ने तपाक से कहा कि महात्मा गांधी की मां का नाम पुतलीबाई था। हमने उससे पूछा कि तुमको कैसे मालूम तो उसने बताया कि उनसे महात्मा गांधी के निबंध में पढ़ा है। उसने हमें यह निबंध भी दिखाया। वह निबंध देखकर हमें इसलिए खुशी हुई क्योंकि वह अंग्रेजी में था। हमें लगा कि चलो कम से कम इंग्लिश मीडियम में पढऩे वाले बच्चों को तो महात्मा गांधी के बारे में जानकारी मिल रही है। यह एक अच्छा संकेत हो सकता है। लेकिन दूसरी तरफ हमारी युवा पीढ़ी जरूर गांधी दर्शन से परहेज किए हुए हैं। हां अगर गांधी जी के नाम को भुनाने के लिए गांधीगिरी करने की बारी आती है तो मीडिया में स्थान पाने के लिए जरूर युवा गांधीगिरी करने से परहेज नहीं करते हैं। एक बार हमने अपने ब्लाग में भी गांधी की मां का नाम पूछा था हमें इस बात की खुशी है ब्लाग बिरादरी के काफी लोग उनका नाम जानते हैं।
1 टिप्पणियाँ:
चिंतनीय आलेख...
अगर कडुवाई से सच कहें तो बहुत से 'छपास रोगियों' के लिए जयंती/पुण्यतिथि/शहीद दिवस/सबसे बढ़िया इलाज बनकर आता है...
सादर....
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