बाड़ी परंपरा को जिंदा करें
आसमानी बारिश के साथ जिस तरह से जमीन में पानी की कमी हो गई है, उससे यह तय है कि अब शुष्क खेती पर ही ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। शुष्क खेती के लिए प्रदेश में बाड़ी परंपरा को फिर से जिंदा करने की जरूरत है।
ये बातें कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय उद्यानिकी कार्यशाला की में सामने आई। एक समय वह था जब छत्तीसगढ़ का हर किसान खेतों में धान लगाने के साथ अपने घरों की बाड़ी में सब्जी-भाजी लगाने का काम करता था, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा समाप्त सी हो गई है। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत ने कहा कि अपने छत्तीसगढ़ की प्रारंभ से यह परंपरा रही है कि यहां पर हमेशा से खेती-बाड़ी शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है, लेकिन अब खेती तो रह गई है, लेकिन बाड़ियां विरान हो गई हैं। पर अब समय की जरूरत है कि बाड़ियों को जिंदा करना पड़ेगा। आज आसमान से किसानों को उतना पानी नहीं मिल पाता है जितना खेती के लिए चाहिए। नहरों के भी कंठ सुख से गए हैं। ऐसे में आज यह जरूरी है कि ऐसी खेती पर ध्यान दिया जाए जो कम पानी में होती है। कम पानी वाली खेती में सब्जी, फल, फूल ही आते हैं। भारत सरकार ने भी राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन प्रारंभ किया है ताकि पूरे देश में शुष्क खेती पर ज्यादा ध्यान दिया जा सके। छत्तीसगढ़ के लिए केंद्र ने पांच साल के लिए 413 करोड़ की राशि दी है।
राष्ट्रीय कृषि संस्थान जनवरी में
केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत ने कहा कि उनके सामने प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने दो राष्ट्रीय कृषि संस्थान खोलने की मांग रखी है। मैं वादा करता हूं कि कम से कम एक संस्थान तो जनवरी से प्रारंभ हो जाएगा। इसी के साथ उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में जितनी भी अनुसंधान केंद्र खुलने हैं उन सभी लंबित प्रस्तावों को एक बार लेकर विवि के कुलपति दिल्ली आ जाएं तो अगले माह संसद सत्र में सभी प्रस्ताव मंजूर करवा दिए जाएंगे। श्री महंत ने इस बात पर सहमति जताई कि सुरक्षित खेती के लिए किसानों को फेनिसिंग के लिए अनुदान मिलना चाहिए।
दिल्ली में छत्तीसगढ़ की शिमला मिर्च
प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने कहा कि इसमें दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में उद्यानिकी खेती का रकबा बढ़ा है। राज्य में सब्जी-भाजी की खेती किस दिशा में इसका सबसे बड़ा सबूत यह कि दिल्ली के बाजारों बिकने वाली शिमला मिर्च की आधी पूर्ति छत्तीसगढ़ से होती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की खेती को नई दिशा में ले जाने के लिए यहां उद्यानिकी खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है।
50 प्रतिशत जमीन उद्यानिकी खेती के लायक
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि विवि के कुलपति एसके पाटिल ने कहा कि प्रदेश में 40 से 50 प्रतिशत जमीन उद्यानिकी खेती के लिए उपयुक्त है। जरूरत है इस दिशा में किसानों को प्रोत्साहित करके की। कार्यशाला में आए राष्ट्रीय वैज्ञानिकों से किसान प्रोत्साहित होंगे। किसानों को साधन संपन्न भी बनाने की जरूरत है। कम पानी वाली फसलों पर ध्यान देना आज समय की जरूरत है। छोटे किसानों के समूह बनाकर खेती करने से फायदा मिलेगा।
सरगुजा है लीचीगढ़
कार्यशाला में सरगुजा के किसान नानक सिंह ने बताया कि सरगुजा आज पूरी तरह से लीचीगढ़ हो गया है। मैं वहां पर बरसों से लीची की खेती कर रहा हूं। मप्र के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने मेरी नर्सरी की लीची खाने के बाद सरगुजा के लिए 60 लाख की मदद भिजवाई थी और सरगुजा को लीची जिला घोषित किया था। सरगुजा की लीची को देश के बाहर भी भेजा जा सकता है। इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है। प्रचार-प्रसार के अभाव में सरगुजा की लीची को पहचान नहीं मिल पा रही है। रायपुर के किसान हैपी सिंबल ने बताया कि उनके पूर्वजों ने काजू की खेती प्रारंभ की थी, वे आज सब्जी, फल, फूल की खेती करते हैं। छत्तीसगढ़ की सब्जियों की महक लंदन तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि उनके मामा लंदन में हैं जहां छत्तीसगढ़ की सब्जियों को भेजा जाता है। उन्होंने वादा किया कि उनकी कंपनी सरगुजा की लीची को भी विदेशी पहचान देने का काम करेगी।
ये बातें कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय उद्यानिकी कार्यशाला की में सामने आई। एक समय वह था जब छत्तीसगढ़ का हर किसान खेतों में धान लगाने के साथ अपने घरों की बाड़ी में सब्जी-भाजी लगाने का काम करता था, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा समाप्त सी हो गई है। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत ने कहा कि अपने छत्तीसगढ़ की प्रारंभ से यह परंपरा रही है कि यहां पर हमेशा से खेती-बाड़ी शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है, लेकिन अब खेती तो रह गई है, लेकिन बाड़ियां विरान हो गई हैं। पर अब समय की जरूरत है कि बाड़ियों को जिंदा करना पड़ेगा। आज आसमान से किसानों को उतना पानी नहीं मिल पाता है जितना खेती के लिए चाहिए। नहरों के भी कंठ सुख से गए हैं। ऐसे में आज यह जरूरी है कि ऐसी खेती पर ध्यान दिया जाए जो कम पानी में होती है। कम पानी वाली खेती में सब्जी, फल, फूल ही आते हैं। भारत सरकार ने भी राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन प्रारंभ किया है ताकि पूरे देश में शुष्क खेती पर ज्यादा ध्यान दिया जा सके। छत्तीसगढ़ के लिए केंद्र ने पांच साल के लिए 413 करोड़ की राशि दी है।
राष्ट्रीय कृषि संस्थान जनवरी में
केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत ने कहा कि उनके सामने प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने दो राष्ट्रीय कृषि संस्थान खोलने की मांग रखी है। मैं वादा करता हूं कि कम से कम एक संस्थान तो जनवरी से प्रारंभ हो जाएगा। इसी के साथ उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में जितनी भी अनुसंधान केंद्र खुलने हैं उन सभी लंबित प्रस्तावों को एक बार लेकर विवि के कुलपति दिल्ली आ जाएं तो अगले माह संसद सत्र में सभी प्रस्ताव मंजूर करवा दिए जाएंगे। श्री महंत ने इस बात पर सहमति जताई कि सुरक्षित खेती के लिए किसानों को फेनिसिंग के लिए अनुदान मिलना चाहिए।
दिल्ली में छत्तीसगढ़ की शिमला मिर्च
प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने कहा कि इसमें दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में उद्यानिकी खेती का रकबा बढ़ा है। राज्य में सब्जी-भाजी की खेती किस दिशा में इसका सबसे बड़ा सबूत यह कि दिल्ली के बाजारों बिकने वाली शिमला मिर्च की आधी पूर्ति छत्तीसगढ़ से होती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की खेती को नई दिशा में ले जाने के लिए यहां उद्यानिकी खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है।
50 प्रतिशत जमीन उद्यानिकी खेती के लायक
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि विवि के कुलपति एसके पाटिल ने कहा कि प्रदेश में 40 से 50 प्रतिशत जमीन उद्यानिकी खेती के लिए उपयुक्त है। जरूरत है इस दिशा में किसानों को प्रोत्साहित करके की। कार्यशाला में आए राष्ट्रीय वैज्ञानिकों से किसान प्रोत्साहित होंगे। किसानों को साधन संपन्न भी बनाने की जरूरत है। कम पानी वाली फसलों पर ध्यान देना आज समय की जरूरत है। छोटे किसानों के समूह बनाकर खेती करने से फायदा मिलेगा।
सरगुजा है लीचीगढ़
कार्यशाला में सरगुजा के किसान नानक सिंह ने बताया कि सरगुजा आज पूरी तरह से लीचीगढ़ हो गया है। मैं वहां पर बरसों से लीची की खेती कर रहा हूं। मप्र के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने मेरी नर्सरी की लीची खाने के बाद सरगुजा के लिए 60 लाख की मदद भिजवाई थी और सरगुजा को लीची जिला घोषित किया था। सरगुजा की लीची को देश के बाहर भी भेजा जा सकता है। इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है। प्रचार-प्रसार के अभाव में सरगुजा की लीची को पहचान नहीं मिल पा रही है। रायपुर के किसान हैपी सिंबल ने बताया कि उनके पूर्वजों ने काजू की खेती प्रारंभ की थी, वे आज सब्जी, फल, फूल की खेती करते हैं। छत्तीसगढ़ की सब्जियों की महक लंदन तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि उनके मामा लंदन में हैं जहां छत्तीसगढ़ की सब्जियों को भेजा जाता है। उन्होंने वादा किया कि उनकी कंपनी सरगुजा की लीची को भी विदेशी पहचान देने का काम करेगी।
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