एक तमाचा तो नाकाफी है
एक थप्पड़ दिल्ली में ऐसा पड़ा कि अब इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। सुनाई पड़नी भी चाहिए। आखिर यह आम आदमी का थप्पड़ है, इसकी गूंज तो दूर तलक जानी ही चाहिए। कहते हैं कि जब आम आदमी तस्त्र होकर आप खोता है तो ऐसा ही होता है। आखिर कब तक आम जनों को ये नेता बेवकूफ बनाते रहेंगे और कीड़े-मकोड़े समाते रहेंगे। अन्ना हजारे का बयान वाकई गौर करने लायक है कि क्या एक ही मारा। वास्तव में महंगाई को देखते हुए यह एक तमाचा तो नाकाफी लगता है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज देश का हर आमजन महंगाई की मार से इस तरह मर रहा है कि उनको कुछ सुझता नहीं है। ऐसे में जबकि कुछ समझ नहीं आता है तो इंसान वही करता है जो उसे सही लगता है। और संभवत: उस आम आदमी हरविंदर सिंह ने भी वही किया जो उनको ठीक लगा। भले कानून के ज्ञाता लाख यह कहें कि कानून को हाथ में लेना ठीक नहीं है। लेकिन क्या कानून महज आम जनों के लिए बना है? क्या अपने देश के नेता और मंत्री कानून से बड़े हैं? क्यों कर आम जनों के खून पसीने की कमाई पर भ्रष्टाचार करके ये नेता मौज करते हैं। क्या भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं के लिए कोई कानून नहीं है? हर नेता भ्रष्टाचार करके बच जाता है।
अब अपने देश के राजनेताओं को समझ लेना चाहिए कि आम आदमी जाग गया है, अब अगर ये नेता नहीं सुधरे तो हर दिन इनकों सड़कों पर पिटते रहने की नौबत आने वाली है। कौन कहता है कि महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। हकीकत तो यह है कि सरकार की मानसकिता ही नहीं है देश में महंगाई कम करने की। एक छोटा सा उदाहरण यह है कि आज पेट्रोल की कीमत लगातार बढ़ाई जा रही है। कीमत बढ़ रही है, वह तो ठीक है, लेकिन सरकार क्यों कर इस पर लगने वाले टैक्स को समाप्त करने का काम नहीं करती है। एक इसी काम से महंगाई पर अंकुश लग जाएगा। जब पेट्रोल-डीजल पर टैक्स ही नहीं होगा तो यह इतना सस्ता हो जाएगा जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता है। आज पेट्रोल और डीजल की कीमत का दोगुना टैक्स लगता है। टैक्स हटा दिया जाए तो महंगाई हो जाएगी न समाप्त।
पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों की मांग ही आम जनों के खाने की वस्तुओं पर पड़ती है। माल भाड़ा बढ़ता है और महंगाई बेलगाम हो जाती है। जब महंगाई अपने देश में बेलगाम है तो एक आम इंसान बेलगाम होकर मंत्री का गाल लाल कर देता है तो क्या यह गलत है। एक आम आदमी के नजरिए से तो यह कताई गलत नहीं है।
थप्पड़ पर अन्ना हजारे के बयान पर विवाद खड़ा करने का भी प्रयास किया गया। उनका कहना गलत नहीं था, बस एक मारा। वास्तव में महंगाई की मार में जिस तरह से आम इंसान पिस रहा है, उस हिसाब से तो एक तमाचा नाकाफी है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज देश का हर आमजन महंगाई की मार से इस तरह मर रहा है कि उनको कुछ सुझता नहीं है। ऐसे में जबकि कुछ समझ नहीं आता है तो इंसान वही करता है जो उसे सही लगता है। और संभवत: उस आम आदमी हरविंदर सिंह ने भी वही किया जो उनको ठीक लगा। भले कानून के ज्ञाता लाख यह कहें कि कानून को हाथ में लेना ठीक नहीं है। लेकिन क्या कानून महज आम जनों के लिए बना है? क्या अपने देश के नेता और मंत्री कानून से बड़े हैं? क्यों कर आम जनों के खून पसीने की कमाई पर भ्रष्टाचार करके ये नेता मौज करते हैं। क्या भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं के लिए कोई कानून नहीं है? हर नेता भ्रष्टाचार करके बच जाता है।
अब अपने देश के राजनेताओं को समझ लेना चाहिए कि आम आदमी जाग गया है, अब अगर ये नेता नहीं सुधरे तो हर दिन इनकों सड़कों पर पिटते रहने की नौबत आने वाली है। कौन कहता है कि महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। हकीकत तो यह है कि सरकार की मानसकिता ही नहीं है देश में महंगाई कम करने की। एक छोटा सा उदाहरण यह है कि आज पेट्रोल की कीमत लगातार बढ़ाई जा रही है। कीमत बढ़ रही है, वह तो ठीक है, लेकिन सरकार क्यों कर इस पर लगने वाले टैक्स को समाप्त करने का काम नहीं करती है। एक इसी काम से महंगाई पर अंकुश लग जाएगा। जब पेट्रोल-डीजल पर टैक्स ही नहीं होगा तो यह इतना सस्ता हो जाएगा जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता है। आज पेट्रोल और डीजल की कीमत का दोगुना टैक्स लगता है। टैक्स हटा दिया जाए तो महंगाई हो जाएगी न समाप्त।
पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों की मांग ही आम जनों के खाने की वस्तुओं पर पड़ती है। माल भाड़ा बढ़ता है और महंगाई बेलगाम हो जाती है। जब महंगाई अपने देश में बेलगाम है तो एक आम इंसान बेलगाम होकर मंत्री का गाल लाल कर देता है तो क्या यह गलत है। एक आम आदमी के नजरिए से तो यह कताई गलत नहीं है।
थप्पड़ पर अन्ना हजारे के बयान पर विवाद खड़ा करने का भी प्रयास किया गया। उनका कहना गलत नहीं था, बस एक मारा। वास्तव में महंगाई की मार में जिस तरह से आम इंसान पिस रहा है, उस हिसाब से तो एक तमाचा नाकाफी है।
2 टिप्पणियाँ:
आम आदमी तो प्रजा है और वे राजा हैं। इसलिए प्रजा का कोई हक नहीं बनता कि वे राजा पर हाथ उठाए। केन्द्रीय मंत्री लात-घूंसे बरसा सकते हैं। मुझे तो लगता है कि आम आदमी को इन सबके स्थान पर राजनेताओं और नौकरशाहों को माला पहनानी बन्द करना चाहिए। इन्हें कार्यक्रमों में बुलाना बन्द करना चाहिए। जब इनके गले पर माला नहीं पडेगी तो हजार थप्पड़ से भी ज्यादा चोट लगेगी। प्रजा ने ही इनके द्वारे जा जाकर इनके भाव बढ़ा दिए हैं। आपने पेट्रोल पर टेक्स हटाने की भी बात की है, तो इसके लिए जनआंदोलन करना चाहिए। एक तरफ जनता मंहगाई से पिस रही है और दूसरी तरफ सरकार अपने ऐश के लिए टेक्स वसूल कर रही है। इस टेक्स पर भी चिन्तन होना चाहिए कि कितना टेक्स?
मै भी यही कहती हूँ की बस एक ही थप्पड़ दिख रहा है पवार को उनके ही क्षेत्र विदर्भ में जब एक किसान आत्महत्या करता है तो उनके गाल पर एक साथ दस थप्पड़ पड़ते है अब तक हजारो किसानो ने आत्महत्या कर ली है , उनके ही क्षेत्र जिला मुंबई और ठाणे में बच्चे कुपोषण से मर रहे है और दूसरी तरफ हजारो टन अनाज सड रहा है और वो कोर्ट में कहते है की अनाज मुफ्त में नहीं बाटे जायेंगे हर बच्चे की मौत पर उनके गाल पर सौ थप्पड़ अब इसमे पूरे देश के किसानो की आत्महत्या कुपोषण और भूख से मरे लोगो को मौत पर कुल कितने थप्पड़ पड़े आप खुद ही जोड़ लीजिये | बे आवाज थप्पड़ो को परवाह नहीं करने वाले पवार तो अब भी इस आवाज वाले थप्पड़ को भी थप्पड़ मानने से ही इंकार कर रहे है साफ है की उन्हें अभी भी जनता की परवाह नहीं है |
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