सब्जी की बोआई में ही कमाई
छत्तीसगढ़ की जलवायु इतनी अच्छी है कि यहां पर हर किस्म की फसल लगाई जा सकती है। छत्तीसगढ़ को भले धान का कटोरा कहा जाता है, लेकिन धान की पैदावार से किसानों की कमाई नहीं होती है। ऐसे में प्रदेश के किसानों को संपन्न बनाने के लिए उनको अब सब्जी भाजी वाली उद्यानिकी खेती पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। सब्जियों की खेती से ही किसान पेशेवर हो पाएंगे। छत्तीसगढ़ की 50 प्रतिशत भूमि वैसे भी शुष्क खेती के लायक है।
राष्ट्रीय हार्टिकल्चर रिसर्च फाउंडेशन के पूर्व संचालक डॉ. यूबी पांडे ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के किसानों को सलाह देना चाहते हैं कि उनको धान की खेती के साथ अब उद्यानिकी की खेती की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। यही खेती ऐसी है जिससे किसानों को कमाई हो सकती है। धान की खेती में किसान कमाई नहीं कर पाते हैं, बड़ी मुश्किल से आज उनके अपने खाने के लिए ही धान हो पाता है। श्री पांडे कहते हैं कि मैं छत्तीसगढ़ की जलवायु के बारे में जानता हूं। यहां हर किस्म की फसल आसानी से लगाई जा सकती है। वे कहते हैं कि क्यों कर नासिक का प्याज बंगलादेश जाता है। छत्तीसगढ़ के किसान चाहें तो यहां का प्याज विदेशों में जा सकता है। श्री पांडे कहते हैं कि प्रदेश के छोटे किसानों को तकनीकी रूप से मजबूत करके उनको उद्यानिकी की ज्यादा फसल लेने के लिए तैयार किया जा सकता है। वे बताते हैं कि देश में 2009 में 1290 लाख टन सब्जियों का उत्पादन हुआ था। पिछले साल यह उत्पादन 1350 लाख टन तक पहुंचा है। लेकिन इसके बाद भी उत्पादन में अभी और इजाफा जरूरी है। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की जलवायु को देखते हुए यहां प्याज का रिसर्च सेंटर होना चाहिए।
कौन सी फसल कहां लगाएं
प्रदेश की जलवायु और भौगोलिक स्थिति के मुताबिक कौन सी फसल के लिए कहां का स्थान उपयुक्त है, इसके बारे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय प्रबंध मंडल के सदस्य प्रोफेसर मनहर आडिल बताते हैं कि बस्तर संभाग की बात करें तो वहां की जलवायु के हिसाब से वहां पर काजू, कंदी फसलें इसमें जिमी कंद, अदरक, आलू, प्याज, लहसून की फसलें लगाई जाती हैं। सरगुजा, जशपुर, कोरिया का क्षेत्र पठारी क्षेत्र है इसमें चीकू, लीजी और सेब की फसल लगाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों में कांकेर के बाद धमतरी, महासमुन्द, रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव और बिलासपुर हैं। यहां के लिए उपयुक्त फसलों में केला, नीबू, संतरा, जाम और आम है।
राष्ट्रीय हार्टिकल्चर रिसर्च फाउंडेशन के पूर्व संचालक डॉ. यूबी पांडे ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के किसानों को सलाह देना चाहते हैं कि उनको धान की खेती के साथ अब उद्यानिकी की खेती की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। यही खेती ऐसी है जिससे किसानों को कमाई हो सकती है। धान की खेती में किसान कमाई नहीं कर पाते हैं, बड़ी मुश्किल से आज उनके अपने खाने के लिए ही धान हो पाता है। श्री पांडे कहते हैं कि मैं छत्तीसगढ़ की जलवायु के बारे में जानता हूं। यहां हर किस्म की फसल आसानी से लगाई जा सकती है। वे कहते हैं कि क्यों कर नासिक का प्याज बंगलादेश जाता है। छत्तीसगढ़ के किसान चाहें तो यहां का प्याज विदेशों में जा सकता है। श्री पांडे कहते हैं कि प्रदेश के छोटे किसानों को तकनीकी रूप से मजबूत करके उनको उद्यानिकी की ज्यादा फसल लेने के लिए तैयार किया जा सकता है। वे बताते हैं कि देश में 2009 में 1290 लाख टन सब्जियों का उत्पादन हुआ था। पिछले साल यह उत्पादन 1350 लाख टन तक पहुंचा है। लेकिन इसके बाद भी उत्पादन में अभी और इजाफा जरूरी है। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की जलवायु को देखते हुए यहां प्याज का रिसर्च सेंटर होना चाहिए।
कौन सी फसल कहां लगाएं
प्रदेश की जलवायु और भौगोलिक स्थिति के मुताबिक कौन सी फसल के लिए कहां का स्थान उपयुक्त है, इसके बारे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय प्रबंध मंडल के सदस्य प्रोफेसर मनहर आडिल बताते हैं कि बस्तर संभाग की बात करें तो वहां की जलवायु के हिसाब से वहां पर काजू, कंदी फसलें इसमें जिमी कंद, अदरक, आलू, प्याज, लहसून की फसलें लगाई जाती हैं। सरगुजा, जशपुर, कोरिया का क्षेत्र पठारी क्षेत्र है इसमें चीकू, लीजी और सेब की फसल लगाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों में कांकेर के बाद धमतरी, महासमुन्द, रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव और बिलासपुर हैं। यहां के लिए उपयुक्त फसलों में केला, नीबू, संतरा, जाम और आम है।
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