स्वर्ण पर दो कांस्य भारी कैसे?
प्रदेश के खेल विभाग ने राज्य के खेल पुरस्कारों के मप्र की अंकों पर आधारित जिस प्र्नणाली की नकल की है, उसको लेकर सवाल उठने लगे हैं कि यह प्रणाली सही नहीं है। इस प्रणाली में दो कांस्य पदकों को स्वर्ण से ज्यादा महत्व दिए जाने पर प्रदेश की खेल बिरादरी ने सवाल खड़े किए हैं कि कैसे खेल विभाग ने बिना खेल संघों से बात किए अपनी मर्जी से नए नियम बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेज दिया है।
प्रदेश के खिलाड़ियों को दिए जाने वाले खेल पुरस्कारों को लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है। ऐसे में खेल विभाग ने नियमों में संशोेधन करने का मन बनाया और इसके लिए मप्र के अंकों पर आधारित नियम को पूरी तरह से उतार कर एक नया प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजा दिया है। इस प्रस्ताव का खुलासा होने पर प्रदेश की खेल बिरादरी जहां खफा है, वहीं उसने सवाल उठाया है कि कैसे दो कांस्य पदक एक स्वर्ण पदक पर भारी हो सकते हैं। खेल विभाग की प्रस्तावित अंक प्रणाली से कोई भी सहमत नहीं है। ऐसे में यहां पर एक दूसरी अंक प्र्नणाली खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाड़ियों से बात करके बनाई गई जिसे सभी सही मान रहे हैं।
खेल विभाग ने अंतरराष्ट्रीय स्तर में ओलंपिक से लेकर राष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए जो अंक तय किए हैं उन अंकों में दो कांस्य पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को पुरस्कार का हकदार माना जाएगा, और स्वर्ण जीतने वाले खिलाड़ी को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इसी के साथ दो रजत जीतने वाले भी पुरस्कार के लिए पहले पात्र होंगे। इसको तो फिर भी ठीक माना जा रहा है, लेकिन कांस्य वाले मामले में सभी सकते में हैं कैसे खेल विभाग ने ऐसा किया है।
प्रदेश कराते संघ के अजय साहू कहते हैं कि स्वर्ण जीतना हमेशा कठिन होता है। किसी भी व्यक्तिगत खेल में या फिर टीम खेल में कोई भी फाइनल में पहुंचने के बाद जीतता है तो उस उपलब्धि को किसी से बड़ा नहीं माना जा सकता है। जहां तक कांस्य पदक का सवाल है तो ज्यादातर खेलों में सेमीफाइनल में पहुंचने वाले खिलाड़ियों और टीमों को संयुक्त रुप से कांस्य पदक देने की परंपरा है। ऐसे में कांस्य पदक का उतना महत्व नहीं होना चाहिए। एक बार दो रजत जीतने वालों को अगर स्वर्ण जीतने वालों से ऊपर माना जाता है तो यह ठीक है।
जिला फुटबॉल संघ के अध्यक्ष मुश्ताक अली प्रधान के साथ सचिव दिवाकर थिटे, फुटबॉल खिलाड़ी शिरीष यादव, अर्स उल्ला खान का कहना है कि खेल विभाग ने जो अंक प्रणाली तय की है, वह सही नहीं है, इस पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए। दो कांस्य पदकों को स्वर्ण से ज्यादा महत्व देना गलत है। इनका कहना है कि वास्तव में यह आश्चर्यजनक है कैसे मप्र की एक प्रणाली को यहां पर ेलागू करने का प्रस्ताव बिना खेल संघों से बात किए बनाकर भेजा गया है।
स्कूल-कॉलेज के अंक भी शामिल हों
जंप रोप के सचिव और खेल शिक्षक अखिलेश दुबे के साथ तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका का कहना है कि जब खेल विभाग ने अंकों पर आधारित प्रणाली को चुनने का काम किया है तो यह अच्छी बात है, लेकिन इसमें मप्र की तरह ही स्कूली खेलों के साथ कॉलेज के खेलों के भी राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं के अंकों को जोड़ना चहिए। मप्र में ऐसा प्रावधान है।
खेल संचालक ने तय किए अंक
खेल विभाग से जुड़े अधिकारी साफ कहते हैं कि अंकों का निर्धारण खेल संचालक ने किया है। उनके निर्देश पर ही मप्र के अंकों को पूरी तरह से लागू करने का प्रस्ताव भेजा गया है। खेल संचालक को मप्र की अंकों वाली प्रणाली में कुछ कमियों की जानकारी भी खेल संचालक को दी गई, लेकिन उन्होंने मप्र में जितने अंक दिए जाते हैं, उतने ही अंक यहां भी देने के निर्देश दिए जिसके कारण मप्र की पूरी तरह से नकल की गई है। इस बारे में खेल संचालक जीपी सिंह से चर्चा की गई तो उन्होंने इस मामले में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया और कहा कि मैं इस विषय में कुछ नहीं कहना चाहता, हमने प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा है, जो फैसला होगा, अब सरकार के स्तर पर होगा।
खिलाड़ियों-खेल संघों से चर्चा करके बदले नियम
खेल पुरस्कार के नियमों में खेल विभाग द्वारा अपनी मर्जी से किए जाने वाले संशोधन प्रस्ताव पर हनुमान सिंह पुरस्कार प्राप्त संजय शर्मा बहुत खफा हैं। वे कहते हैं कि यह तो हद हो गई, जब पहले पुरस्कारों के नियम बनाए गए थे तो खिलाड़ियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों से बकायदा चर्चा करके नियम तय किए गए थे। अगर लग रहा है कि नियमों में कुछ खामियां हैं तो उसके लिए होना यह चाहिए कि सबसे पहले खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाड़ियों की बैठक की जाए और उनसे सुझाव लिए जाए कि कैसे नियम होने चाहिए। अपनी मर्जी से एक कमरे में बैठकर नियम बनाने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने मप्र के नियमों का अनुशरण करने पर भी आपति करते हुए कहा कि मप्र के नियमों का अनुशरण करने का क्या मतलब है। मप्र की गिनती खेल जगत में काफी पीछे होती है। अगर अनुशरण करना है तो जिन जो राज्य खेलों शीर्ष स्थान रखते हैं उनका अनुशरण करना चाहिए। वैसे मेरा ऐसा मानना है कि छत्तीसगढ़ नया राज्य है तो अपनी सोच होनी चाहिए। अगर हम खिलाड़ियों के फायदे देने वाले नियम बनाएंगे तो उनका अनुशरण के दूसरे राज्य करेंगे। हम दूसरे राज्यों का अनुशरण करें उससे अच्छा है कि हम ऐसा काम करें कि दूसरे राज्य हमारे अनुशरण करें। हमारे यहां ऐसी सोच रखने वालों की कमी नहीं है जरुरत है उनसे बात करने की।
प्रदेश के खिलाड़ियों को दिए जाने वाले खेल पुरस्कारों को लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है। ऐसे में खेल विभाग ने नियमों में संशोेधन करने का मन बनाया और इसके लिए मप्र के अंकों पर आधारित नियम को पूरी तरह से उतार कर एक नया प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजा दिया है। इस प्रस्ताव का खुलासा होने पर प्रदेश की खेल बिरादरी जहां खफा है, वहीं उसने सवाल उठाया है कि कैसे दो कांस्य पदक एक स्वर्ण पदक पर भारी हो सकते हैं। खेल विभाग की प्रस्तावित अंक प्रणाली से कोई भी सहमत नहीं है। ऐसे में यहां पर एक दूसरी अंक प्र्नणाली खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाड़ियों से बात करके बनाई गई जिसे सभी सही मान रहे हैं।
खेल विभाग ने अंतरराष्ट्रीय स्तर में ओलंपिक से लेकर राष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए जो अंक तय किए हैं उन अंकों में दो कांस्य पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को पुरस्कार का हकदार माना जाएगा, और स्वर्ण जीतने वाले खिलाड़ी को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इसी के साथ दो रजत जीतने वाले भी पुरस्कार के लिए पहले पात्र होंगे। इसको तो फिर भी ठीक माना जा रहा है, लेकिन कांस्य वाले मामले में सभी सकते में हैं कैसे खेल विभाग ने ऐसा किया है।
प्रदेश कराते संघ के अजय साहू कहते हैं कि स्वर्ण जीतना हमेशा कठिन होता है। किसी भी व्यक्तिगत खेल में या फिर टीम खेल में कोई भी फाइनल में पहुंचने के बाद जीतता है तो उस उपलब्धि को किसी से बड़ा नहीं माना जा सकता है। जहां तक कांस्य पदक का सवाल है तो ज्यादातर खेलों में सेमीफाइनल में पहुंचने वाले खिलाड़ियों और टीमों को संयुक्त रुप से कांस्य पदक देने की परंपरा है। ऐसे में कांस्य पदक का उतना महत्व नहीं होना चाहिए। एक बार दो रजत जीतने वालों को अगर स्वर्ण जीतने वालों से ऊपर माना जाता है तो यह ठीक है।
जिला फुटबॉल संघ के अध्यक्ष मुश्ताक अली प्रधान के साथ सचिव दिवाकर थिटे, फुटबॉल खिलाड़ी शिरीष यादव, अर्स उल्ला खान का कहना है कि खेल विभाग ने जो अंक प्रणाली तय की है, वह सही नहीं है, इस पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए। दो कांस्य पदकों को स्वर्ण से ज्यादा महत्व देना गलत है। इनका कहना है कि वास्तव में यह आश्चर्यजनक है कैसे मप्र की एक प्रणाली को यहां पर ेलागू करने का प्रस्ताव बिना खेल संघों से बात किए बनाकर भेजा गया है।
स्कूल-कॉलेज के अंक भी शामिल हों
जंप रोप के सचिव और खेल शिक्षक अखिलेश दुबे के साथ तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका का कहना है कि जब खेल विभाग ने अंकों पर आधारित प्रणाली को चुनने का काम किया है तो यह अच्छी बात है, लेकिन इसमें मप्र की तरह ही स्कूली खेलों के साथ कॉलेज के खेलों के भी राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं के अंकों को जोड़ना चहिए। मप्र में ऐसा प्रावधान है।
खेल संचालक ने तय किए अंक
खेल विभाग से जुड़े अधिकारी साफ कहते हैं कि अंकों का निर्धारण खेल संचालक ने किया है। उनके निर्देश पर ही मप्र के अंकों को पूरी तरह से लागू करने का प्रस्ताव भेजा गया है। खेल संचालक को मप्र की अंकों वाली प्रणाली में कुछ कमियों की जानकारी भी खेल संचालक को दी गई, लेकिन उन्होंने मप्र में जितने अंक दिए जाते हैं, उतने ही अंक यहां भी देने के निर्देश दिए जिसके कारण मप्र की पूरी तरह से नकल की गई है। इस बारे में खेल संचालक जीपी सिंह से चर्चा की गई तो उन्होंने इस मामले में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया और कहा कि मैं इस विषय में कुछ नहीं कहना चाहता, हमने प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा है, जो फैसला होगा, अब सरकार के स्तर पर होगा।
खिलाड़ियों-खेल संघों से चर्चा करके बदले नियम
खेल पुरस्कार के नियमों में खेल विभाग द्वारा अपनी मर्जी से किए जाने वाले संशोधन प्रस्ताव पर हनुमान सिंह पुरस्कार प्राप्त संजय शर्मा बहुत खफा हैं। वे कहते हैं कि यह तो हद हो गई, जब पहले पुरस्कारों के नियम बनाए गए थे तो खिलाड़ियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों से बकायदा चर्चा करके नियम तय किए गए थे। अगर लग रहा है कि नियमों में कुछ खामियां हैं तो उसके लिए होना यह चाहिए कि सबसे पहले खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाड़ियों की बैठक की जाए और उनसे सुझाव लिए जाए कि कैसे नियम होने चाहिए। अपनी मर्जी से एक कमरे में बैठकर नियम बनाने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने मप्र के नियमों का अनुशरण करने पर भी आपति करते हुए कहा कि मप्र के नियमों का अनुशरण करने का क्या मतलब है। मप्र की गिनती खेल जगत में काफी पीछे होती है। अगर अनुशरण करना है तो जिन जो राज्य खेलों शीर्ष स्थान रखते हैं उनका अनुशरण करना चाहिए। वैसे मेरा ऐसा मानना है कि छत्तीसगढ़ नया राज्य है तो अपनी सोच होनी चाहिए। अगर हम खिलाड़ियों के फायदे देने वाले नियम बनाएंगे तो उनका अनुशरण के दूसरे राज्य करेंगे। हम दूसरे राज्यों का अनुशरण करें उससे अच्छा है कि हम ऐसा काम करें कि दूसरे राज्य हमारे अनुशरण करें। हमारे यहां ऐसी सोच रखने वालों की कमी नहीं है जरुरत है उनसे बात करने की।
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