बालिकाओं को दिखाएंगी रास्ता
हमारे गांवों की बालिका खिलाड़ी बहुत शर्मीली होती हैं। ऐसे मं हमने सोचा कि अगर हमें छत्तीसगढ़ की बालिका खिलाड़ियों को रास्ता दिखाना है तो हमें आगे आना पड़ेगा। यही सोचकर हम सभी ने क्रीड़ाश्री बनने का फैसला किया और यहां प्रशिक्षण लेने आई हैं। अब हम यहां से प्रशिक्षण लेकर जब अपने-अपने गांव जाएंगी तो वहां जाकर बालिका िखिलाड़ियों को मैदान में लाने का काम करेंगी।
ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए क्रीड़ाश्री का प्रशिक्षण लेने आई राज्य के कई जिलों की महिला क्रीड़ाश्री ने एक स्वर में कहीं। इन क्रीड़ाश्री में कुछ तो खेलों से जुड़ी हुई हैं, लेकिन जो खेलों से जुड़ी नहीं हैं, उनमें भी खेलों के लिए कुछ करने का जज्बा है। इनका कहना है कि हमें जब अपने राज्य और देश के लिए कुछ करने का मौका मिला है तो उस मौके को हम खोना नहीं चाहती हैं। धमतरी के ग्राम रतनबांधा की उमा साहू बताती हैं कि वह खो-खो और कबड्डी की खिलाड़ी रही हैं। लेकिन वह राज्य स्तर से आगे नहीं बढ़ सकीं। ऐसे में जब उनको क्रीड़ाश्री बनने का मौका मिला तो उन्होंने इस मौके को यह इस सोच के साथ स्वीकार किया कि गांव की लड़कियां तो बहुत ज्यादा शर्माती हैं, ऐसे में अगर गांव में बालिका खिलाड़ियों को खेल के बारे में जानकारी देने के लिए कोई महिला होंगी तो बालिका खिलाड़ियों को आसानी होगी। ऐसी ही सोच के साथ एमए और पीजीडीसीए करने वाली धमतरी के गांव मलहारी की मीनाक्षी कश्यप क्रीड़ाश्री बनी हैं।
उनका खेलों से कभी नाता नहीं रहा है, लेकिन खेलों से जुड़कर उनको बहुत अच्छा लग रहा है। वह बताती हैं कि उनको पहली बार यहां आकर समा आया कि वास्तव में अनुशासन क्या होता है। पूछने पर वह कहती हैं कि वैसे उनकी रूचि संगीत में रही है, लेकिन जब खेलों से जुड़ने का मौका मिला तो वह इंकार नहीं कर पार्इं। वह कहती हैं कि वह यहां से जो कुछ सीखकर जाएंगी, उसके बाद अपने गांव में खिलाड़ियों को तैयार करने का काम करेंगी। धमतरी के गांव सांकरा की संगीता साहू कहती हैं कि उनकी हमेशा कुछ नया करने की तमन्ना रहती हैं। जब उनको क्रीड़ाश्री बनने का मौका मिला तो इस मौके को उन्होंने हाथ से जाने देना उचित नहीं समाा। संगीता भी कभी खेली नहीं हैं, लेकिन खेल सीखकर दूसरों को भी सिखाने की उनमें ललक जरूर है।
सरगुजा के सलका गांव की राष्ट्रीय खो-खो खिलाड़ी फूलमती टोपो को हमेशा अपने लिए कोच की कमी खली। वह कहती हैं कि कोच न होने के कारण वह आगे नहीं बढ़ पार्इं। वह पहले क्रीड़ा परिसर में थीं, वहीं पर उनको देवेन्द्र सिंहा ने क्रीड़ाश्री बनने कहा और वह बन गर्इं। कोरबा के मुडानी गांव की संगीता दुबे कहती हैं कि उनका ऐसा सोचना है कि छत्तीसगढ़ के गांवों की प्रतिभाओं को सामने लाकर देश के लिए कुछ किया जाए। वह बताती हैं कि उनके पति आर्मी में हैं और देश की सेवा कर रहे हैं, ऐसे मेरे हाथ भी देश सेवा का मौका लगा है तो मैं क्यों इसे जाने दूं। जांजगीर के किरारी गांव की पूनम सूर्यवंशी कहती हैं वह अपने गांव के खिलाड़ियों को रास्ता दिखानी चाहती हैं। कोरिया के गिदमुड़ी गांव की फूलकुंवर शाडिल्य बताती हैं कि वह कबड्डी के साथ मैराथन और एथलेटिक्स की खिलाड़ी रही हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके गांव में एक मैदान है जिसमें कई खेल होते हैं।
मैनपुर विकासखंड के जादापदर गांव की पुष्पलता नेताम बताती हैं कि वह पिछले पांच साल से मैराथन में ब्लाक की चैंपियन हैं। एक बार जिला मैराथन में वह तीसरे स्थान पर रहकर पुरस्कार जीत चुकी हैं। वह पूछने पर कहती हैं उनका गांव जंगल में होने के कारण वह 10 किलो मीटर से ज्यादा दौड़ने का अभ्यास नहीं कर पार्इं जिसके कारण वह मैराथन में आगे नहीं बढ़ सकीं। पुष्पा कहती हैं कि जब मैं खिलाड़ियों को अभ्यास करवाऊंगी तो मुो भी अभ्यास करने का मौका मिल जाएगा।
पाराडोल कोरिया की कुमारी भगवनिया बताती हैं कि वह राज्य स्तर पर कबड्डी, खो खो के साथ एथलेटिक्स में खेली हैं, अब खिलाड़ियों को तैयार करना चाहती हैं। कोरिया के घुघरा गांव की सरिता राजवाड़े का सपना भी अपने राज्य के लिए खिलाड़ी तैयार करने का है। एथलेटिक्स की खिलाड़ी रहीं कोरबा के दमऊमुंडा की पंचदेवी मरावी कहती हैं कि वह चाहती हैं कि उनके गांव से भी खिलाड़ी निकले और अपने गांव के साथ राज्य और देश के लिए जीतने का काम करें।
ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए क्रीड़ाश्री का प्रशिक्षण लेने आई राज्य के कई जिलों की महिला क्रीड़ाश्री ने एक स्वर में कहीं। इन क्रीड़ाश्री में कुछ तो खेलों से जुड़ी हुई हैं, लेकिन जो खेलों से जुड़ी नहीं हैं, उनमें भी खेलों के लिए कुछ करने का जज्बा है। इनका कहना है कि हमें जब अपने राज्य और देश के लिए कुछ करने का मौका मिला है तो उस मौके को हम खोना नहीं चाहती हैं। धमतरी के ग्राम रतनबांधा की उमा साहू बताती हैं कि वह खो-खो और कबड्डी की खिलाड़ी रही हैं। लेकिन वह राज्य स्तर से आगे नहीं बढ़ सकीं। ऐसे में जब उनको क्रीड़ाश्री बनने का मौका मिला तो उन्होंने इस मौके को यह इस सोच के साथ स्वीकार किया कि गांव की लड़कियां तो बहुत ज्यादा शर्माती हैं, ऐसे में अगर गांव में बालिका खिलाड़ियों को खेल के बारे में जानकारी देने के लिए कोई महिला होंगी तो बालिका खिलाड़ियों को आसानी होगी। ऐसी ही सोच के साथ एमए और पीजीडीसीए करने वाली धमतरी के गांव मलहारी की मीनाक्षी कश्यप क्रीड़ाश्री बनी हैं।
उनका खेलों से कभी नाता नहीं रहा है, लेकिन खेलों से जुड़कर उनको बहुत अच्छा लग रहा है। वह बताती हैं कि उनको पहली बार यहां आकर समा आया कि वास्तव में अनुशासन क्या होता है। पूछने पर वह कहती हैं कि वैसे उनकी रूचि संगीत में रही है, लेकिन जब खेलों से जुड़ने का मौका मिला तो वह इंकार नहीं कर पार्इं। वह कहती हैं कि वह यहां से जो कुछ सीखकर जाएंगी, उसके बाद अपने गांव में खिलाड़ियों को तैयार करने का काम करेंगी। धमतरी के गांव सांकरा की संगीता साहू कहती हैं कि उनकी हमेशा कुछ नया करने की तमन्ना रहती हैं। जब उनको क्रीड़ाश्री बनने का मौका मिला तो इस मौके को उन्होंने हाथ से जाने देना उचित नहीं समाा। संगीता भी कभी खेली नहीं हैं, लेकिन खेल सीखकर दूसरों को भी सिखाने की उनमें ललक जरूर है।
सरगुजा के सलका गांव की राष्ट्रीय खो-खो खिलाड़ी फूलमती टोपो को हमेशा अपने लिए कोच की कमी खली। वह कहती हैं कि कोच न होने के कारण वह आगे नहीं बढ़ पार्इं। वह पहले क्रीड़ा परिसर में थीं, वहीं पर उनको देवेन्द्र सिंहा ने क्रीड़ाश्री बनने कहा और वह बन गर्इं। कोरबा के मुडानी गांव की संगीता दुबे कहती हैं कि उनका ऐसा सोचना है कि छत्तीसगढ़ के गांवों की प्रतिभाओं को सामने लाकर देश के लिए कुछ किया जाए। वह बताती हैं कि उनके पति आर्मी में हैं और देश की सेवा कर रहे हैं, ऐसे मेरे हाथ भी देश सेवा का मौका लगा है तो मैं क्यों इसे जाने दूं। जांजगीर के किरारी गांव की पूनम सूर्यवंशी कहती हैं वह अपने गांव के खिलाड़ियों को रास्ता दिखानी चाहती हैं। कोरिया के गिदमुड़ी गांव की फूलकुंवर शाडिल्य बताती हैं कि वह कबड्डी के साथ मैराथन और एथलेटिक्स की खिलाड़ी रही हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके गांव में एक मैदान है जिसमें कई खेल होते हैं।
मैनपुर विकासखंड के जादापदर गांव की पुष्पलता नेताम बताती हैं कि वह पिछले पांच साल से मैराथन में ब्लाक की चैंपियन हैं। एक बार जिला मैराथन में वह तीसरे स्थान पर रहकर पुरस्कार जीत चुकी हैं। वह पूछने पर कहती हैं उनका गांव जंगल में होने के कारण वह 10 किलो मीटर से ज्यादा दौड़ने का अभ्यास नहीं कर पार्इं जिसके कारण वह मैराथन में आगे नहीं बढ़ सकीं। पुष्पा कहती हैं कि जब मैं खिलाड़ियों को अभ्यास करवाऊंगी तो मुो भी अभ्यास करने का मौका मिल जाएगा।
पाराडोल कोरिया की कुमारी भगवनिया बताती हैं कि वह राज्य स्तर पर कबड्डी, खो खो के साथ एथलेटिक्स में खेली हैं, अब खिलाड़ियों को तैयार करना चाहती हैं। कोरिया के घुघरा गांव की सरिता राजवाड़े का सपना भी अपने राज्य के लिए खिलाड़ी तैयार करने का है। एथलेटिक्स की खिलाड़ी रहीं कोरबा के दमऊमुंडा की पंचदेवी मरावी कहती हैं कि वह चाहती हैं कि उनके गांव से भी खिलाड़ी निकले और अपने गांव के साथ राज्य और देश के लिए जीतने का काम करें।
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