नक्सलियों से एक कदम आगे की सोच वाले अफसर
नक्सलियों की सोच के सामने पुलिस अधिकारियों की सोच लगातार बौनी साबित हो रही है और नक्सली बाजी मार ले रहे हैं। लेकिन प्रदेश में ऐसे पुलिस अधिकारी भी हैं जिनकी सोच नक्सलियों से एक कदम आगे है। हमारे एक मित्र जब बस्तर में पुलिस अधीक्षक थे तो उनकी सोच के कारण ही जहां वे खुद नक्सली हमले में शहीद होने से बचे थे, वहीं उनकी इसी सोच ने कई जवानों की जान बचाई थी। उनका नेटवर्क आज भी इतना तगड़ा है कि उनके पास राजधानी में बैठे-बैठे बहुत सारी जानकारियां आ जाती हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि अपने राज्य की पुलिस कम से कम नक्सलियों से निपटने में पूरी तरह से नाकाम रही है। एक सच यह भी है कि जबसे प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है, तब से नक्सली और ज्यादा बेकाबू हो गए हैं। अब इसका कारण चाहे जो भी रहो हो। चाहे इसके पीछे सलवा जुडूम को सरकार का समर्थन रहा हो या फिर यह कि जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, तो सरकार और नक्सलियों में एक मौन समझौता था। अब यह समझौता सरकार बदलने के बाद रहा नहीं। बहरलहाल यहां पर बात यह नहीं है कि नक्सलियों की सरकार से क्यों नहीं बनती है। बात यह है कि क्या अपने पुलिस प्रशासन के पास ऐसे अफसर नहीं हैं जिनकी सोच नक्सलियों से आगे जाती हो, तो इसका जवाब है कि ऐसे अफसर हैं। लेकिन उनको कुछ करने का मौका नहीं दिया जाता है, जो अफसर अच्छा करने की सोचते हैं उनको वहां रहने नहीं दिया जाता है। आज स्थिति यह है कि अब कोई ऐसा अफसर नक्सली क्षेत्र में जाना नहीं चाहता है।
हमें याद है हमारे एक मित्र जो कि कुछ साल पहले बस्तर में एसपी थे तो उनकी कार्यप्रणाली ने उनको जहां वहां पर काफी लोकप्रिय बनाया वहीं उनकी कार्यप्रणाली से नक्सली भी दहशत में रहते थे। एक घटना के बारे में उन्होंने एक दिन बताया था कि उनको एक गांव में नक्सलियों के आने की सूचना मिली। ऐसे में वे खुद फोर्स लेकर गांव की तरफ गए। उस गांव में जाने का एक ही रास्ता था। ऐसे में अपने कप्तान साहब ने यह योजना बनाई कि पूरी फोर्स एक साथ गांव में नहीं जाएगी। दो दल बनाए गए और एक दल के साथ एसपी साहब गांव में गए और दूसरे दल को कहा कि वे उनके कहने के बाद ही गांव में आएंगे। जब पहला दल गांव में घुसा तो वहां जहां एक तरफ नक्सलियों ने उन पर फायरिंग कर दी, वहीं बाहर बैठे नक्सलियों ने लेंड माइंस बिछा रखी थी। नक्सलियों ने तो समझा कि यह दल बिल में फंस गया है और फायरिंग के जवाब में अगर यह दल गांव के बाहर गया तो उड़ा दिया जाएगा। लेकिन एसपी साहब की योजना ने काम किया और उन्होंने दूसरे दल को सारी जानकारी दे दी। ऐसे में लगातार घंटों फायरिंग के बाद नक्सलियों को मोर्चा छोड़कर भागना पड़ा। बाद में पुलिस दल ने उस लेंड माइंस को निष्क्रिय किया और गांव से बाहर आए। अगर एसपी साहब सारे दल बल के साथ गांव के अंदर चले जाते तो नक्सलियों की सोच के मुताबिक उस दिन उन एसपी साहब और सारे जवानों का काम तमाम हो जाता। लेकिन नक्सलियों की योजना को कप्तान साहब की योजना ने फेल कर दिया।
इस नक्सली मुठभेड़ के बारे में उन्होंने यह भी बताया था कि जब फायरिंग हो रही थी और वे सामने में थे तो एक जवान उनके पास एक बुलेट प्रूफ जैकेट लेकर आया और कहा कि साहब इसको पहन लो, लेकिन अपने कप्तान साहब ने वह जैकेट नहीं पहना और उसी जवान को पहने रहने के लिए कहा। साथ ही यह भी कहा कि यार अगर में यह जैकेट पहन भी लेता हूं और किसी गोली पर मेरा नाम लिखा होगा तो वह सीधे माथे पर भी लग सकती है। अब यह अपने आप में सोचने वाली बात है कि जिस टीम के कप्तान की सोच ऐसी होगी तो उस टीम के जवानों में तो जोश आना ही है।
अपने उन पुलिस कप्तान की अगुवाई में बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ काफी काम हुए। उनके कारण ही गांव में एक महिला डॉक्टर ने जाकर लगातार नक्सली घटनाओं में आहत या फिर बीमार गांव वालों का लगातार इलाज किया। उनकी कार्यप्रणाली ने ही उनको इतना लोकप्रिय बनाया कि उनका नेटवर्क इतना तगड़ा हो गया कि उनके पास किसी भी गांव में अगर नक्सली फटक भी जाते थे तो उनको इसकी खबर तुरंत लग जाती थी। बस्तर से वापस आने के कई साल बाद भी उनका नेटवर्क वहां बैठे अफसरों से ज्यादा तगड़ा है। हमने खुद कई बार देखा है कि उनके पास कैसे सूचनाएं आती हैं। एक बार उसके साथ उनके दफ्तर में बैठे तो बस्तर के कुछ लोग उनसे मिलने आए तभी उनके सामने पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने इस घटना का उल्लेख किया था। आज नक्सलियों की बढ़ती वारदातों को रोकने के लिए हमें लगता है कि ऐसे ही अफसरों की जरूरत है जो अपने जवानों में जोश भर सकें और उन अदिवासियों के लिए ऐसा कुछ करें जिससे वे उनको अपना रक्षा समझे और उन तक हर सूचना पहुंचाने का काम करें।
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