चमचों से मुक्ति दिलाने वाला अन्ना कौन
भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए तो अपने अन्ना हजारे ने अनशन करके एक रास्ता दिखा दिया है। अब यह बात अलग है कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल पाती है या नहीं। जितना अपने देश को खोखला करने का काम भ्रष्टाचार ने किया है, उतना ही चमचों ने भी किया है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। आज का जमाना पूरी तरह से चमचों का है। बिना चमचागिरी के कोई काम नहीं होता है। चमचागिरी करने वाले आज पास हैं बाकी सब फेल हैं।
हम सोचते हैं कि क्या कभी वह दिन भी आएगा जब अपने देश को चमचों से मुक्ति दिलाने के लिए कोई अन्ना सामने आकर अनशन करेगा। लगता तो नहीं है कि ऐसा कभी हो सकता है, लेकिन सोचने में क्या जाता है। सोचने के लिए पैसे तो लगते नहीं हैं। कम से कम इसी बहाने चमचों की शान में हम भी कुछ कसीदें लिखने में सफल हो जाएंगे। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जितना बड़ा योगदान इस देश को खोखला में नेताओं का है, उतना ही चमचों का भी है। आज राजनीति क्या ऐसा कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है जहां पर चमचों की जमात न हो। चमचों के बिना तो काम ही नहीं चलता है। आज हर नेता की तरह हर दफ्तर के बॉस चाहते हैं कि उनके ज्यादा से ज्यादा चमचें हों। चमचों के बिना तो बॉस लोगों का खाना हजम ही नहीं होता है। अब खाना हजम कैसे होगा, रोज झूठी तारीफ सुनने की आदत जो पड़ जाती है।
इतना तो तय है कि चमचागिरी करने वाले बॉस की झूठी तारीफ करके अपना काम तो कर लेते हैं। जिनको झूठी तारीफ करने में पीएचडी होती है, वे अपनी इसी तारीफ के दम पर दमदार पद भी हासिल कर लेते हैं। और जब चमचों के हाथ कुर्सी लग जाती है तो फिर देखो उनका रूतबा। ऐसे चमचों को लगता है कि उनसे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं। यहां पर एक कवाहत याद आती है कि बंदर के हाथ अस्तूरा लगेगा तो वह किसी को भी काट देगा।
ये अपने देश का दुर्भाग्य है कि आज लोग चमचा पसंद हो गए हैं। हर बॉस अपने चमचों की ही बात सुनते हैं, फिर उनके लिए भले उनको कितने ही अच्छे लोगों की कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। अच्छे और समझदार लोगों को बॉस इसलिए पसंद नहीं करते हैं क्योंकि इनसे हमेशा उनको अपनी कुर्सी खतरे में नजर आती है। लेकिन जहां तक चमचों की बात है तो वे जानते हैं कि ये न तो समझदार होते हैं और न ही सच बोलने वाले। दिक्कत तो समझदारों और सच बोलने वालों से होती है।
हम सोचते हैं कि क्या कभी वह दिन भी आएगा जब अपने देश को चमचों से मुक्ति दिलाने के लिए कोई अन्ना सामने आकर अनशन करेगा। लगता तो नहीं है कि ऐसा कभी हो सकता है, लेकिन सोचने में क्या जाता है। सोचने के लिए पैसे तो लगते नहीं हैं। कम से कम इसी बहाने चमचों की शान में हम भी कुछ कसीदें लिखने में सफल हो जाएंगे। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जितना बड़ा योगदान इस देश को खोखला में नेताओं का है, उतना ही चमचों का भी है। आज राजनीति क्या ऐसा कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है जहां पर चमचों की जमात न हो। चमचों के बिना तो काम ही नहीं चलता है। आज हर नेता की तरह हर दफ्तर के बॉस चाहते हैं कि उनके ज्यादा से ज्यादा चमचें हों। चमचों के बिना तो बॉस लोगों का खाना हजम ही नहीं होता है। अब खाना हजम कैसे होगा, रोज झूठी तारीफ सुनने की आदत जो पड़ जाती है।
इतना तो तय है कि चमचागिरी करने वाले बॉस की झूठी तारीफ करके अपना काम तो कर लेते हैं। जिनको झूठी तारीफ करने में पीएचडी होती है, वे अपनी इसी तारीफ के दम पर दमदार पद भी हासिल कर लेते हैं। और जब चमचों के हाथ कुर्सी लग जाती है तो फिर देखो उनका रूतबा। ऐसे चमचों को लगता है कि उनसे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं। यहां पर एक कवाहत याद आती है कि बंदर के हाथ अस्तूरा लगेगा तो वह किसी को भी काट देगा।
ये अपने देश का दुर्भाग्य है कि आज लोग चमचा पसंद हो गए हैं। हर बॉस अपने चमचों की ही बात सुनते हैं, फिर उनके लिए भले उनको कितने ही अच्छे लोगों की कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। अच्छे और समझदार लोगों को बॉस इसलिए पसंद नहीं करते हैं क्योंकि इनसे हमेशा उनको अपनी कुर्सी खतरे में नजर आती है। लेकिन जहां तक चमचों की बात है तो वे जानते हैं कि ये न तो समझदार होते हैं और न ही सच बोलने वाले। दिक्कत तो समझदारों और सच बोलने वालों से होती है।