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बुधवार, अगस्त 31, 2011

चमचों से मुक्ति दिलाने वाला अन्ना कौन

भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए तो अपने अन्ना हजारे ने अनशन करके एक रास्ता दिखा दिया है। अब यह बात अलग है कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल पाती है या नहीं। जितना अपने देश को खोखला करने का काम भ्रष्टाचार ने किया है, उतना ही चमचों ने भी किया है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। आज का जमाना पूरी तरह से चमचों का है। बिना चमचागिरी के कोई काम नहीं होता है। चमचागिरी करने वाले आज पास हैं बाकी सब फेल हैं।
हम सोचते हैं कि क्या कभी वह दिन भी आएगा जब अपने देश को चमचों से मुक्ति दिलाने के लिए कोई अन्ना सामने आकर अनशन करेगा। लगता तो नहीं है कि ऐसा कभी हो सकता है, लेकिन सोचने में क्या जाता है। सोचने के लिए पैसे तो लगते नहीं हैं। कम से कम इसी बहाने चमचों की शान में हम भी कुछ कसीदें लिखने में सफल हो जाएंगे। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जितना बड़ा योगदान इस देश को खोखला में नेताओं का है, उतना ही चमचों का भी है। आज राजनीति क्या ऐसा कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है जहां पर चमचों की जमात न हो।   चमचों के बिना तो काम ही नहीं चलता है। आज हर नेता की तरह हर दफ्तर के बॉस चाहते हैं कि उनके ज्यादा से ज्यादा चमचें हों। चमचों के बिना तो बॉस लोगों का खाना हजम ही नहीं होता है। अब खाना हजम कैसे होगा, रोज झूठी तारीफ सुनने की आदत जो पड़ जाती है।
इतना तो तय है कि चमचागिरी करने वाले बॉस की झूठी तारीफ करके अपना काम तो कर लेते हैं। जिनको झूठी तारीफ करने में पीएचडी होती है, वे अपनी इसी तारीफ के दम पर दमदार पद भी हासिल कर लेते हैं। और जब चमचों के हाथ कुर्सी लग जाती है तो फिर देखो उनका रूतबा। ऐसे चमचों को लगता है कि उनसे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं। यहां पर एक कवाहत याद आती है कि बंदर के हाथ अस्तूरा लगेगा तो वह किसी को भी काट देगा।
ये अपने देश का दुर्भाग्य है कि आज लोग चमचा पसंद हो गए हैं। हर बॉस अपने चमचों की ही बात सुनते हैं, फिर उनके लिए भले उनको कितने ही अच्छे लोगों की कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। अच्छे और समझदार लोगों को बॉस इसलिए पसंद नहीं करते हैं क्योंकि इनसे हमेशा उनको अपनी कुर्सी खतरे में नजर आती है। लेकिन जहां तक चमचों की बात है तो वे जानते हैं कि ये न तो समझदार होते हैं और न ही सच बोलने वाले। दिक्कत तो समझदारों और सच बोलने वालों से होती है।

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मंगलवार, अगस्त 30, 2011

मैटर लिख और कंप्यूटर में डाल, फिर भूल जा...

हमारे एक पत्रकार मित्र इन दिनों सभी मित्रों को एक ही बात कहते हैं, मैटर लिख कंप्यूटर में डाल और भूल जा। एक तरफ वे पत्रकारों से यह कहते हैं तो दूसरी तरफ फोटोग्राफरों से भी कहते हैं कि अबे फोटो खींच कंप्यूटर में डाल और भूल जा।
हमने उनसे पूछा कि नेकी कर दरिया में डाल तो सूना था, लेकिन तू ये नया जुमला क्यों कहता है। उसने जवाब दिया यार आज कल मीडिया में जिस तरह के हालात है, उसके लिए यही जुमाल ठीक है। आज आप मैटर लिखने के बाद यह पूछ नहीं सकते हैं कि आपका मैटर क्यों नहीं लगा। इसलिए मैं आज-कल के ने पत्रकारों और फोटोग्राफरों को नसीहत देने का काम करता हूं और उनको बताने का प्रयास करता हूं कि अब जमाना पेशेवर है, आज के जमाने में जो दिल से काम करता है, वह दिल का मरीज बनकर रह जाता है, इसलिए दिल से नहीं दिमाग से काम करो और भूल जाओ कि तुमने कल तुमने क्या काम किया था।
नया दिन नया काम
आखिर तुमको मिल रहे हैं
न मैटर लिखने के दाम

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सोमवार, अगस्त 29, 2011

लूट रहीं हैं मोबाइल कंपनियां

अपने देश में जितनी भी मोबाइल कंपनियां काम कर रही हैं कोई भी कंपनी यह दावा नहीं कर सकती है कि वह ईमानदार है। चाहे वह बीएसएनएल ही क्यों न हो। हर कंपनी का एक सूत्रीय काम है उपभोक्ताओं को लूटने का। उपभोक्ता बेचारा क्या करें उनके पास लुटने के अलावा कोई चारा नहीं है।

अचानक हमने कल अपने रिलायंस के रिम वाले मोबाइल का बैलेंस चेक किया तो हैरान रह गए। एक दिन पहले 127 रुपए थे और कल 74 रुपए। हमने सोचा यार इतनी बात हमने कहा कर डाली। एक तो हमारे मोबाइल में 299 रुपए वाली स्कीम डली है उससे रिम और रिलायंस में अनलिमिटेड बात होती है, इसी के साथ किसी भी नेटवर्क में रोज आधे धंटे बात कर सकते हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि इतना पैसा एक ही दिन में कट गया। हमने कंपनी के उपभोक्ता केन्द्र को फोन लगाया तो उधर बैठे हुए जनाब ने अपने कम्प्यूटर में जांच कर बताया कि हमारे मोबाइल में दो अन्य सेवाएं चल रही हैं। हमने जब उनसे कहा कि हमने तो ऐसी कोई सेवा प्रारंभ नहीं करवाई है तो फिर ये कैसे चालू हो गई तो उन्होंने कहा कि आपने ही चालू करवाई होगी। आप कहें तो इसे बंद कर दें। हमने तत्काल वो सेवाएं बंद करवाई। लेकिन तब तक तो हमारे जेब पर कैची चल ही चुकी थी।

अब कंपनी वाले तो यही कहते हैं। एक तो कंपनी के इतने ज्यादा फोन और एसएमएस आते हैं कि पूछिए मत। अगर गलती से भी आपने या आपके बच्चों ने मोबाइल का कोई बटन दबा दिया तो हो गई कोई भी सर्विस चालू। वैसे ज्यादातर मामलों में कंपनी वाले खुद से कोई भी सेवा प्रारंभ कर देते हैं। जब उपभोक्ता को मालूम होता है तो उसे बंद कर दिया जाता है। लेकिन तब तक तो आपके जेब पर कैची चल चुकी रहती है।

यह सिर्फ रिलायंस में होता है ऐसा नहीं है, हर कंपनी का यही काम है। हमारे एक पत्रकार मित्र के पास बीएसएनएल का सिम है। वे काफी दिनों से परेशान हैं कि रोज उनके तीन-चार रुपए काट दिए जाते हैं। ऐसा हर किसी के साथ होता है। हमारा ऐसा मानना है कि हर मोबाइल कंपनी वाले अगर अपने हर ग्राहक की जेब पर रोज एक रुपए की भी कैची चला दे (चलाई ही जाती है) तो भी कंपनी के एक दिन में लाखों के वारे-न्यारे हो जाए। अब कौन सा ऐसा उपभोक्ता होगा जो एक-एक रुपए का हिसाब रखता है। उपभोक्ता चाहे वह प्रीपैड वाला हो या पोस्ट पैड वाला, हर कोई ठगा जा रहा है और मोबाइल कंपनियों की लूट का शिकार हो रहा है, लेकिन कोई कुछ कर नहीं पा रहा है। हर रोज खुले आम लाखों की लूट करने वाली कंपनियों के लिए कोई कानून नहीं है कि उसे रोका जाए। हर उपभोक्ता के लिए मोबाइल आज जरूरी हो गया है और ऐसे में हर आदमी सोचता है कि यार एक-दो रुपए के लिए क्या उलझा जाए, फिर कंपनी वालों की दादगिरी भी नहीं है, आपने ज्यादा बात की नहीं कि फट से कट जाता है आपके मोबाइल का कनेक्शन फिर अपने चालू करवाने के लिए लगाते रहे फोन। इन सब परेशानियों से बचने के लिए ही उपभोक्ता कुछ नहीं करते हैं जिसका फायदा मोबाइल कंपनी वाले उठाते हैं। मोबाइल उपभोक्ताओं में जागरूकता के बिना इनकी लूट पर विराम लगने वाला नहीं है। 

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रविवार, अगस्त 28, 2011

खिलाड़ी राजहरा के, नोटिस कांकेर जिले को

पावरलिफ्टिंग संघ ने खेल विभाग के नोटिस पर जो जवाब दिया है, वह काफी गोलमोल है। संघ ने दल्लीराजहरा के खिलाड़ियों को निलंबित किया है, पर नोटिस भेजा है कांकेर जिला संघ को। खेल संचालक जीपी सिंह ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सहायक संचालक जेपी नापित को जांच अधिकारी नियुक्त किया है। जांच रिपोर्ट के बाद कार्रवाई की जाएगी।
24 घंटे में मांगे गए 16 बिंदुओं के जवाब में संघ के आधे बिंदुओं पर जवाब दिया है। संघ ने एक तरफ अपने जवाब में राज्य के खिलाड़ियों की सूची में निलंबित किए जाने वाले पांच खिलाड़ियों रोहणी, संतोषी विभोर, प्रेरणा रानी, कमलेश कुमारी और रितु कुमार के साथ कोच हरीनाथ को दल्लीराजहरा का बताया है, लेकिन इन खिलाड़ियों को निलंबित करने के लिए नोटिस की जो प्रति भेजी है, वहां कांकेर जिला संघ के नाम है। संघ ने नाडा के बारे में कोई जानकारी नहीं भेजी है कि वहां की टीम से संपर्क किया गया या नहीं, वहां से कोई टीम डोपिंग की जांच करने आई या नहीं। कार्यकारिणी की विशेष बैठक के नियमों के साथ निलंबित करने के अधिकार के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गई है।
इस मामले में खेल संचालक जीपी सिंह कहते हैं कि संघ का जवाब संतोषजनक नहीं है, इसलिए जांच अधिकारी नियुक्ति किया गया है। उनकी रिपोर्ट आने पर ही देखेंगे कि मामले में क्या करना है। उन्होंने पूछने पर कहा कि हनुमान सिंह पुरस्कार के लिए चुने गए हरीनाथ के खिलाफ संघ ने कोई ठोस सबूत नहीं दिया है, इसलिए उनको पुरस्कार से वंचित करने का सवाल ही नहीं है। 

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शनिवार, अगस्त 27, 2011

संघ ने खिलाड़ियों को खेलने से रोक, निलंबित किया

राष्ट्रीय पावरलिफ्टिंग चैंपियनशिप में प्रदेश संघ की मनमर्जी के कारण खेलने से वंचित रहने वाले खिलाड़ियों और प्रशिक्षक की गुहार पर खेल संचालक जीपी सिंह ने संघ को कड़ा पत्र लिखकर 16 बिंदुओं में जवाब मांगा है। संघ के सचिव पर खिलाड़ियों ने मनमर्जी करते हुए बिनावजह निलंबित करने का आरोप लगाया है।
राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने से वंचित किए गए खिलाड़ियों हरीश कुमार, रोहणी, रितु कुमार के साथ इनके कोच हरीनाथ ने  बताया कि इनके साथ प्रदेश संघ ने अन्याय किया है जिसके कारण वे खेल नहीं सके। रोहणी ने बताया कि संघ के सचिव के कहने से ही मैं राज्य स्पर्धा में 52 किलो वर्ग की खिलाड़ी होने के बाद 57 किलो ग्राम वर्ग में खेली थी। मुझे कहा गया था कि राष्ट्रीय स्पर्धा में 52 किलो ग्राम वर्ग में खेलना है, मैंने इसी वर्ग की तैयारी की थी, लेकिन मुझे 57 किलो वर्ग में खेलने कहा गया जो कि संभव नहीं था। उन्होंने बताया कि एक और खिलाड़ी शशिकला को 52 किलो ग्राम वर्ग में खिलाया गया जबकि वह राज्य स्पर्धा में 57 किलो ग्राम वर्ग में खेली थी और तीसरे स्थान पर रही थी।
हरीश कुमार ने बताया कि राज्य स्पर्धा में 66 किलो ग्राम वजन वर्ग में स्वर्ण विजेता होने के बाद भी उनको राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने नहीं दिया गया। इन खिलाड़ियों ने एक स्वर में कहा कि सभी से तीन-तीन सौ रुपए प्रवेश शुल्क लेने के बाद खेलने नहीं दिया गया है। इन खिलाड़ियों के साथ कोच हरीनाथ ने बताया कि हम लोगों ने जब अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई तो पांच खिलाड़ियों के साथ मुझे झूठा आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया है। इन खिलाड़ियों ने इस बात से इंकार किया कि इनको डोपिंग टेस्ट का कोई फार्म भरने दिया गया था। खिलाड़ियों ने इस मामले की लिखित में खेल संचालक को शिकायत की है।
16 बिंदुओं में मांगा जवाब
खिलाड़ियों की शिकायत को खेल संचालक जीपी सिंह ने गंभीरता से लेते हुए संघ के सचिव को एक पत्र लिखकर 16 बिंदुओं में 24 घंटे के अंदर जवाब देने के लिए कहा है। इन बिंदुओं में प्रमुख रूप से यह जवाब मांगा गया है कि क्या डोप टेस्ट के लिए नाडा से संपर्क किया गया था और उसके अधिकारी राष्ट्रीय स्पर्धा में आए थे तो उनके नाम बताए जाएं। राज्य स्पर्धा  के आयोजन, इसमें खिलाड़ियों की स्थिति, राज्य की टीम के खिलाड़ियों की सूची, प्रशिक्षण शिविर की जानकारी के साथ संघ को किस नियम के तहत खिलाड़ियों और प्रशिक्षक को निलंबित करने का अधिकार है इसकी पुख्ता दस्तावेजों के साथ जानकारी मांगी है।
इधर प्रदेश संघ के सचिव कृष्णा साहू का कहना है कि संघ ने खिलाड़ियों और कोच के साथ कोई पक्षपात नहीं किया है। खिलाड़ियों ने डोपिंग टेस्ट के फार्म भरने से इंकार किया जिसके कारण इनको निलंबित किया गया है।

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शुक्रवार, अगस्त 26, 2011

सूची लीक करने वाले पर कार्रवाई होगी

राज्य खेल पुरस्कारों की सूची जारी होने से पहले ही लीक होने के मामले में खेलमंत्री लता उसेंडी ने कहा कि मामले की जांच कराने के साथ ही दोषी अधिकारी पर कार्रवाई की जाएगी।
 खेल मंत्री ने कहा कि विभाग के किसी अधिकारी ने अगर सूची जारी करने से पहले सूची को लीक करने का काम किया है   तो यह विभाग की गोपनीयत भंग करने की श्रेणी में आता है। ऐसे अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। खेलमंत्री को बताया गया कि सूची लीक होने के कारण ही पावरलिफ्ंिटग संघ ने वीर हनुमान सिंह पुरस्कार के लिए चुने गए प्रशिक्षक हरीनाथ को निलंबित करने का काम किया है, और उनको पुरस्कार से वंचित करने के लिए विभाग को पत्र लिखा है। इस मामले में खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि हरीनाथ को पुरस्कार से वंचित करने का सवाल ही नहीं उठता है, पहले देखा जाएगा कि मामला क्या है। संघ ने प्रशिक्षक पर जो कार्रवाई अगर नियमानुसार की होगी, और उस कार्रवाई से विभाग अगर संतुष्ट होगा तभी कोई कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि वैसे भी कोच का चयन उनके पिछले प्रदर्शन के आधार पर किया गया है, उनको वर्तमान में किसी कारण से निलंबित किया गया है तो उससे फर्क नहीं पड़ता है। विभाग मामले की जांच में लगा है।
खेल विभूति सम्मान केवल एक खिलाड़ी भिनसेंट लकड़ा को ही दिए जाने के बारे में खेलमंत्री ने कहा कि यह तो जूरी का फैसला था, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। क्या बाकी खिलाड़ी पात्र नहीं थे, के सवाल पर खेलमंत्री ने कहा कि इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती हूं, जूरी का फैसला सर्वमान होता है।
खेलमंत्री ने पूछने पर बताया कि विभाग के सेटअप के लिए प्रयास हो रहे हैं, उम्मीद है जल्द इसको मंजूरी मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि नए जिलों  के लिए कोई परेशानी नहीं होगी अगर सेटअप मंजूर हो जाता है। राष्ट्रीय खेलों की तैयारी पर उन्होंने कहा कि इसकी तैयारी में विभाग लगा है इसके लिए डीपीआर बनाने की तैयारी चल रही है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि अकादमियों को भी जल्द मंजूरी मिल जाएगी, हमारा ध्यान इस समय साइंस कॉलेज के मैदान में बने हास्टल पर है। उसका कुछ काम बचा है जिसके लिए 13 लाख की राशि मंजूर कर दी गई है। हास्टल पूरा होने पर वहां अकादमियों प्रारंभ की जाएगी।
19 खिलाड़ियों को राज्य खेल पुरस्कार
प्रदेश के 19 खिलाड़ियों के साथ एक प्रशिक्षक और एक निर्णायक का चयन राज्य के खेल पुरस्कारों के लिए किया है। इसी के साथ 305 खिलाड़ियों को नकद राशि पुरस्कार के लिए चुना गया है। इन सभी खिलाड़ियों को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह 29 अगस्त को खेल दिवस के दिन सम्मानित करेगें।
यह जानकारी पत्रकार वार्ता में देते हुए खेलमंत्री लता उसेंडी ने बताया कि हमारा विभाग हर साल जूनियर, सीनियर खिलाड़ियों के साथ प्रशिक्षकों और निर्णायकों को पुरस्कार देता है। इस बार कुल 21 को खेल अलंकरण से सम्मानित किया जाएगा। इसमें 6 शहीद कौशल यादव, 5 शहीद राजीव पांडे, 7 पंकज विक्रम और एक प्रशिक्षक और एक निर्णायक वीर हनुमान सिंह के साथ एक पुराने खिलाड़ी को खेल विभूति सम्मान के लिए चुना गया है।
पुरस्कार पाने वाले
शहीद राजीव पांडे: अंजनी पटेल पैराओलंपिक, रोसिता केरकेट्टा पावरलिफ्टिंग, अनिता शिंदे भारोत्तोलन, सीमा सिंह बास्केटबॉल, एम. अनिता राव हैंडबॉल।
शहीद कौशल यादव: एल. दीपा, संगीता मंडल (बास्केटबॉल), केशव साहू भारोत्तोलन, जया कुंजाम कराते, संध्या उर्वशा पावरलिफ्टिंग, सुष्टि नाग तैराकी।
वीर हनुमान सिंह: हरीनाथ प्रशिक्षक पावरलिफ्टिंग, आर राजेन्द्रन निर्णायक मुक्केबाजी।
पंकज विक्रम: सुरेश सिंह वालीबॉल, ज्योति पटेल फुटबॉल, पी. किशोर जूडो, श्रद्धा सोनवानी तीरंदाजी, मनोज धृतलहरे साफ्टबॉल, राजेश कुमार बेसबॉल, फारुख अहमद खान कैरम।
खेल विभूति : भिनसेंट लकड़ा हॉकी।  

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गुरुवार, अगस्त 25, 2011

साहब गांव में नक्सली आएं हैं... तो हम क्या करें बे....

बस्तर के पुलिस कंट्रोल रूम का फोन बजता है... उधर के किसी थाने का एक अदना सा सिपाही जानकारी लेता है कि साहब एक गांव में नक्सली आएं हैं। कंट्रोल रूम में बैठा अधिकारी पलटकर जवाब देता है कि तो हम क्या करें बे। और फोन फटक देता है। ऐसा एक बार नहीं बार-बार हो रहा है और नक्सल प्रभावित थानों के सिपाहियों से अगर पूछा जाए तो उनका यही जवाब मिलेगा कि जब भी किसी नक्सली के बारे में पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना देने के लिए फोन करते हैं और फोर्स भेजने की बात करते हैं तो फोन पटक दिया जाता है और कंट्रोल रूम से कोई मदद नहीं मिलती है। ऐसे में थानों को भी या तो चुप बैठना पड़ता है या फिर थाने वाले ज्यादा ईमानदारी दिखाते हुए उस गांव में जाने की गलती करते हैं तो मारे जाते हैं।

पूरे देश में इस समय सबसे ज्यादा नक्सली समस्या का सामना छत्तीसगढ़ के बस्तर को करना पड़ रहा है। यहां पर अगर यह समस्या है तो इसके पीछे कारण भी कई हैं। एक कारण यह है कि यहां के अधिकारियों में इस समस्या से निपटने की इच्छा शक्ति है ही नहीं। एक छोटा है उदाहरण है कि जब भी किसी नक्सल प्रभावित थाने से कंट्रोल रूम में फोन आता है तो कंट्रोल रूम में बैठने वाले अधिकारी उस फोन पर आई सूचना को गंभीरता से लेते ही नहीं है और उल्टे जिस थाने से फोन आता है उस फोन करने वाले बंदे को डांट दिया जाता है। कोई ज्यादा ईमानदारी दिखाने की कोशिश करता है तो उसको जवाब मिलता है कि ... अबे साले जा ना तेरे को मरने का शौक है तो, हमारे तो बीबी-बच्चे हैं, हमें नहीं खानी है नक्सलियों की गोलियां। अब जहां पर कंट्रोल रूम से ऐसे जवाब मिलेंगे तो छोटे से थाने का अमला क्या करेगा? जब किसी थाने को फोर्स की मदद ही नहीं मिलेगी तो वे क्या बिगाड़ लेगे नक्सलियों का? नक्सली यह बात अच्छी तरह से समझ गए हैं कि नक्सल क्षेत्र में काम करने वाली पूरी पुलिस फोर्स नपुंसक हो गई है और उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। ऐसे में उनके हौसले बढ़ते जा रहा है।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि नक्सली क्षेत्र की पुलिस नपुंसक हो गई है। इसके पीछे का कारण देखा जाए तो वह यह है कि नक्सली क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों में इतना दम नहीं है कि अपनी पुलिस फोर्स का हौसला बढ़ा सके। हमारे एक मित्र हैं वे काफी समय तक बस्तर में एसपी रहे। उनके जमाने की बात करें तो उन्होंने अपनी फोर्स का हौसला इस तरह से बढ़ाया कि वे नक्सलियों से भिडऩे के लिए खुद चले जाते थे। यही नहीं उन्होंने गांव-गांव में इतना तगड़ा नेटवर्क बना रखा था कि कोई भी सूचना उन तक आ जाती थी। आज भी स्थिति यह है कि वे राजधानी में बैठे हैं लेकिन उनके पास सूचनाएं बस्तर में बैठे हुए अधिकारियों से ज्यादा आती हैं। इधर बस्तर में आज की स्थिति की बात करें तो, काफी लंबा समय हो गया है कि बस्तर की कमान संभालने वाला कोई एएपी नक्सलियों से भिडऩे जाता नहीं है। अब कप्तान खुद ही मांद में छुपकर बैठेगा तो फिर उनके खिलाड़ी कैसे अकेले जाकर जंग जीत सकते हैं। जब तक खिलाडिय़ों को गाईड नहीं किया जाता है कोई मैच जीता नहीं जा सकता है। यही हाल आज बस्तर का है। बस्तर को कोई ऐसा कप्तान ही नहीं मिल रहा है जो मैदान में आकर काम करे। बस कमरे में बैठकर निर्देश दिए जाते हैं कि ऐसा करो-वैसा करो। अब बेचारे टीआई और सिपाही ही मोर्चे पर जाते हैं और मारे जाते है। जब तक बस्तर के आला अधिकारियों में उन एसपी की तरह नक्सलियों को खत्म करने की रूचि नहीं होगी, नक्सल समस्या का कुछ नहीं किया जा सकता है। हर रोज यही होगा कि थानों से फोन आएंगे और कंट्रोल रूम वाले फोन पटक कर सो जाएंगे और उधर नक्सली गांवों अपना नंगा नाच करते रहेंगे।

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बुधवार, अगस्त 24, 2011

राजदीप के नाम एक और गिनीज रिकॉर्ड

छत्तीसगढ़ के अंतरराष्ट्रीय जंप रोप खिलाड़ी राजदीप सिंह हरगोत्रा ने चाइना में एक और गिनीज रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। 30 सेकेंड में 117 जंप करके यह रिकॉर्ड बनाया। उनके एक रिकॉर्ड को मैगुमी सुजकी तोड़ नहीं पाए जिसके कारण पुराना रिकॉर्ड भी कायम है।
चाइना में एक टीवी शो में शामिल होने गए राजदीप सिंह को शो के दौरान जापान के मैगुमी सुजकी ने चुनौती दी कि वे उनके बनाए रिकॉर्ड को तोड़ देंगे। राजदीप ने मैगुमी सुजकी के 30 सेकेंड में 152 स्टेप के रिकॉर्ड को भारत में क्लर्स टीवी के गिनीज रिकॉर्ड अब तोड़ेगा इंडिया में 21 फरवरी को 159 स्टेप के साथ तोड़ा था। राजदीप के इस रिकॉर्ड को चुनौती देने वाले श्री सुजकी अपने ही पुराने रिकॉर्ड 152 तक नहीं पहुंच सके। वे 149 स्टेप की कर सके जिसके कारण राजदीप का रिकॉर्ड कायम रहा। इधर राजदीप ने श्री सुजकी को स्कैट पहन कर जंप करने की चुनौती दी। श्री सुजकी ने तो इस चुनौती के एवज में हार मान ली, लेकिन राजदीप ने स्कैट पहनकर 30 सेकेंड में 117 जंप करके अपने नाम एक और गिनीज रिकॉर्ड कर लिया। उनके इस रिकॉर्ड बनाने के अवसर पर गिनीज विश्व रिकॉर्ड  के मुख्यालय से मुख्य अधिकारी मारको, रिकॉर्ड के जज किस्टीन टफेल, चाइना टीवी के निदेशक लियू मिंग उपस्थित थे। राजदीप ने बताया कि चाइना में इस कार्यक्रम को गिनीज विश्व रिकॉर्ड मुख्यालय के साथ सीसीटीवी ने आयोजित किया था। कार्यक्रम में विश्व के चुने गए गिनीज रिकॉर्डधारियों को बुलाया गया था।

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सोमवार, अगस्त 22, 2011

भ्रष्टाचार रोकना है तो प्रधानमंत्री का चुनाव भी प्रत्यक्ष हो

आज पूरा देश अन्ना हजारे के साथ भ्रष्टाचार रोको मुहिम पर काम कर रहा है। ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि आखिर भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने के क्या अच्छे उपाय हो सकते हैं। ऐसे में हमारा ऐसा मानना है कि देश के प्रधानमंत्री से लेकर हर राज्य के मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री से लेकर राज्य के मंत्रियों के चुनाव प्रत्यक्ष होने चाहिए। जिस दिन देश में ऐसा होने लगेगा भ्रष्टाचार पर एक हद तक अंकुश लग जाएगा। समाप्त होने का दावा तो हम नहीं कर सकते हैं, लेकिन इतना तय है कि प्रत्यक्ष चुनाव होने से अच्छे लोग सामने आएंगे और चुने जाएंगे।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारत में आजादी के बाद से ही देश की बागडोर जिन प्रधानमंत्री के हाथों में होती है, वे प्रधानमंत्री एक तरह से अपनी पार्टी के हाथों की कठपुतली होते हैं। अपने मनमोहन सिंह तो कुछ ज्यादा ही कठपुतली हैं। ऐसे में जबकि देश के सर्वोच्च पद पर बैठा इंसान दूसरों के इशारे पर चलने वाला होगा तो वह कैसे भ्रष्टाचार या फिर किसी मुद्दे पर कोई कठोर निर्णय ले पाएगा। इसके विपरीत अगर देश की जनता की पसंद का प्रधानमंत्री होगा, जिसे पूरे देश की जनता चुनेगी तो उनकी जनता के प्रति पूरी जवाबदेही होगी, ऐसे में वह जरूर कठोर फैसले लेने में पीछे नहीं हटेंगे।
इसमें संदेह नहीं है कि अगर देश में प्रधानमंत्री का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होने लगेगा तो देश में अन्ना हजारे जैसे लोगों को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलेगा। इसी के साथ राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के चुनाव भी प्रत्यक्ष रूप से होंगे तो उनकी भी जवाबदेही होगी। आज जिस प्रणाली विधानसभा और संसद चलती है उस प्रणाली को बदलने का समय आ गया है। कब तक आखिर हम लोग राजनैतिक पार्टियों के थोपे गए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को ढोते रहेंगे। कोई अनपढ़, चोर, लूटेरा, डाकू, भ्रष्टाचारी, सकलकर्मी नेता ही नहीं मंत्री भी बन जाता है और उसके आदेशों को मानना जनता की मजबूरी हो जाती है।
कई बार ऐसा होता है कि जिनको शिक्षा मंत्री, कृषि मंत्री या और किसी भी विभाग का मंत्री बनाया जाता है, उसके बारे में उनको कोई जानकारी ही नहीं होती है, ऐसे में ऐसे मंत्रियों से किस तरह से उस विभाग और देश के विकास की उम्मीद की जा सकती है। क्यों नहीं चुनाव लड़ने के लिए भी शैक्षणिक योग्यता तय की जाती है। क्या महज उम्र सीमा ही पर्याप्त योग्यता है। कहने को तो कहा जाता है कि जिन पर आपराधिक प्रकरण हैं, वे चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, लेकिन अपने देश में डाकू भी चुनाव लड़े ही नहीं बल्कि जीते भी हैं।
जब तक चुनाव लड़ने के नियमों में संशोधन नहीं किया जाएगा, तब तक इस देश से भ्रष्टाचार का समाप्त होना संभव नहीं लगता है। एक जनलोकपाल बिल ही देश से भ्रष्टाचार को समाप्त कर सकता है, कम से कम हमें तो संभव नहीं लगता है। और बहुत सी ऐसी बातें हैं जो होनी चाहिए, लेकिन एक बार में लिख पाना संभव नहीं है। आगे और लिखेंगे।

फिलहाल मित्रों से भी हम जानना चाहते हैं कि वे क्या सोचते हैं, अपने विचार जरूर बताएं।

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आस्था के नाम की मची है लूट

कई दिनों से लगातार एक टीवी चैनल के एक विज्ञापन पर नजरें पड़ती हैं। शिव शक्ति कवच। हर मर्ज की दवा है यह शिव शक्ति कवच। इस कवच को लेने वालों को दिखाया जाता है कि कैसे उनको इस कवच को धारण करने के बाद परेशानियों से मुक्ति मिली है। यह बात तो तय है कि अपने देश में सबसे आसान है तो धर्म और आस्था के नाम पर लूटना। आस्था के नाम पर अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग उल्लू बन जाते हैं।
अपने देश में भगवान पर आस्था रखने वाले अगर सबसे ज्यादा हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा। भगवान पर आस्था रखना गलत नहीं है लेकिन इस आस्था को इतना भी अपने ऊपर हावी होने नहीं देना चाहिए कि इसके नाम से आपको जो चाहे लूट ले। आज अगर अपने देश में सबसे ’यादा किसी नाम से लूट होती है तो वह है आस्था के नाम से। जिस भी टीवी चैनल में देखो लोगों की आस्था का फायदा उठाकर कुछ न कुछ बेचने का कारोबार किया जा रहा है। एक टीवी चैनल पर हमारी हमेशा नजरें पड़ती हैं। जब दोपहर को घर खाना खाने आते हैं, तो बच्चे टीवी देखते रहते हैं। ऐसे में कार्यक्रम के बीच में जरूर एक विज्ञापन शिव शक्ति कवच का देखने को मिल जाता है। इस विज्ञापन को देखकर साफ लगता है कि यह विज्ञापन लोगों को आस्था के नाम से एक तरह से ब्लैकमेल करके अपना कवच का बेचने का माध्यम है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस विज्ञापन के जरिए जरूर ऐसा कवच बेचने में कवच बनाने वालों को सफलता मिलती होगी तभी तो वे इतना महंगा विज्ञापन देते हैं।

अब यह कवच खरीदने वालों को कौन समझाएं कि कवच से अगर सुरक्षा हो जाती तो पूरे देश के लोग ऐसे कवच धारण कर लेते। इसमें भी शक नहीं है कि अपने देश में लोग अंध विश्वास में ऐसे जकड़े हैं कि उनको लगता है कि अगर कोई ताबीज या कवच या फिर और कोई टोटका अपने गले में लटका लेंगे तो उनकी परेशानी समाप्त हो जाएगी।

सोचने वाली बात यह है कि क्या पढ़े लिखे लोग यह नहीं जानते हैं कि जब-जब जो होना है वह तो हो के रहेगा। कहा जाता है कि सबसे बड़ी चीज होती है किस्मत, नसीब, तकदीर। कहते हैं कि जिसकी किस्मत में ब्रम्हा ने जो लिख दिया है, वह पत्थर की लकीर है। अगर वास्तव में ऐसा है तो फिर यह क्यों नहीं सोचा जाता है कि जो किस्मत में होगा वहीं होगा  फिर क्यों कोई ऐसा कवच और ताबीज धारण करता है। हमें लगता है कि कहीं न कहीं इंसान के मन में आस्था के साथ एक डर भी रहता है जिस डर का फायदा ऐसा कवच बेचने वाले लोग उठाते हैं। पता नहीं कब अपने देश के लोग अंधविश्वास से मुक्त होंगे और ऐसे कवच बेचने वालों का बहिष्कार करेंगे। हमे नहीं लगता है कि कभी ऐसा संभव होगा।


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रविवार, अगस्त 21, 2011

खिलाड़ियों को खाने में नानवेज

प्रदेश के खिलाड़ियों की सेहत का विशेष ध्यान रखते हुए खेल विभाग ने इस बार अपने मैनू में बदलाव करतेहुए खिलाड़ियों के खाने में नानवेज को भी शामिल कर लिया है। नानवेज शामिल होने के कारण इस बार पिछली बार से ज्यादा राशि खाने पर खर्च करनी होगी।
खेल विभाग ने नए सत्र के लिए खाने का जो मैनू तय किया है, उस मैनू में इस बार नानवेज भी शामिल है। हालांकि खिलाड़ियों को रोज नानवेज खाने का मौका नहीं मिलेगा, लेकिन किसी भी आयोजन में उनको एक दिन इसका स्वाद चखने का मौका मिलेगा। नए मैनू के मुताबिक रात्रि के खाने में एक दिन चिकन या मटन करी (प्रति खिलाड़ी चार पीस) के साथ ही दो प्रकार की सब्जी, चपाती, दाल, चावल, रायता, आचार, सलाद, पापड़, मीठा (एक पीस) दिया जाएगा। पूरे दिन के खाने की बात की जाए तो सुबह को नाश्ते में चाय के अलावा आलू-पोहा, दोसा, छोले बटुरे, पुडी सब्जी, इटली उपमा से कोई एक आइटम देना होगा। लंच में दो प्रकार की सब्जी, चपाती, दाल, चावल, रायता, आचार, सलाद, पापड़, फल रोज एक नग, आयोजन में एक दिन अंडा करी (प्रति खिलाड़ी दो नग) देने का प्रावधान है। शाम को चाय के साथ दो बिस्किट प्रतिदिन देना है।
इस बार इसी मैनू के हिसाब से निविदा आमंत्रित की गई है। इस बार की निविदा पिछली निविदा से कुछ महंगी होगी। पिछली बार नाश्ता, लंच और डीनर के लिए 89 रुपए में ठेका दिया गया था। इस बार का ठेका 100 से ज्यादा में जाने की बात की जा रही है।
खिलाड़ियों की सेहत से समझौता नहीं: खेल संचालक
खेल संचालक जीपी सिंह कहते हैं कि हालांकि पिछली बार भी विभाग ने खिलाड़ियों को काफी खाना अच्छा दिया था, लेकिन इस बार और ज्यादा अच्छा करने मानसिकता के साथ मैनू में बदलाव किया गया है। विभाग खिलाड़ियों की सेहत से कोई समझौता नहीं करना चाहता है। आने वाले समय में राज्य में 37वें राष्ट्रीय खेल होने हैं ऐसे में विभाग चाहता है कि खिलाड़ियों की सेहत इतनी अच्छी हो कि वे राज्य के लिए पदक जीतने की तैयारी कर सकें।

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शनिवार, अगस्त 20, 2011

स्टेज चेयर एक और सोफा दो पैसे किराए में

खेल विभाग ने एक बार फिर से टेंट के सामानों का ऐतिहासिक टेंडर देकर लाखों रुपए बचत करने का रास्ता बना लिया है। जिस टेंट हाऊस को ठेका दिया गया है, वह स्टेज चेयर और सेंटर टेबल का किराया एक पैसे ले रहा है। पांच सीटर सोफा का किराया सिर्फ दो पैसे है। इसी के साथ 10 सामान ऐसे हैं जो एक पैसे किराए पर दिए जा रहे हैं। इस बार के टेंडर में पिछले टेंडर से 20 प्रतिशत किराया कम किया गया है। चार संभागों के लिए निकाले गए टेंडर में सभी संभागों के लिए लगभग एक सा किराए देकर एक टेंट हाऊस ने बाजी मार ली है।
खेल विभाग ने एक बार फिर से टेंट के सामानों के लिए टेंडर पैसों में निकालकर विभाग के लाखों रुपए बचाने का काम किया है। खेल विभाग प्रदेश का एकमात्र विभाग है जहां पर पिछले साल से ही टेंट का टेंडर पैसों में निकाला जा रहा है। विभाग के इस कदम से दूसरे विभागों में हडंकम मचा हुआ है।
विभाग ने टेंट के लिए जो टेंडर निकाला था उसमें कुल 32 सामानों के रेट मांगे गए थे। इस टेंडर में सात टेंट वालों ने अपने रेट दिए थे। सबसे कम रेट नवभारत किराया भंडार ने दिए जिसके कारण टेंडर उसके नाम हो गया है। इस टेंट हाऊस वाले ने जिन सामानों के सबसे कम रेट दिए हैं उसमें प्रमुख रूप से स्टेज चेयर और सेंटर टेबल हंै जिसका किराया महज एक पैसे लिया जा रहा है। इसी के साथ तखत, टेबल क्लाथ, दरी, वीआईपी गेट, गलीचा, सफेद चादर, तालपत्री का किराया एक पैसे फिट के हिसाब से लिया जा रहा है। अन्य सामानों में जिनका किराया कम है उसमें वीआईपी चेयर 20 पैसे, फाइवर कुर्सी एक नग प्रति दिन 70 पैसे, टीन बाऊंड्री प्रति वर्ग फीट 60 पैसे, शामियाना वाटर प्रुफ 2.28 रुपए प्रति वर्ग फीट, प्रतिदिन शामिल है।
दूसरे विभाग सबक लें
कम कीमत पर टेंट के सामान पूरे प्रदेश में खेल विभाग को उपलब्ध कराने वाले टेंट हाऊस के संचालक जसपाल सिंह का कहना है कि यह खेल विभाग के बस की बात है कि वह पिछले साल से ऐसा काम कर रहा है, जैसा काम आज तक प्रदेश में कोई विभाग नहीं कर पाया। खेल विभाग से दूसरे विभागों को सबक लेना चाहिए। वे कहते हैं कि हम छोटे टेंट वाले हैं, लेकिन हमने दिखा दिया है कि कम कमाई करके बड़ा काम लिया जा सकता है। वे कहते हैं कि हम सिक्ख समाज के हैं और हमारा समाज सेवा में भरोसा करता है। हम खिलाड़ियों के लिए काम करके सोचते हैं कि हम देश की सेवा कर रहे हैं।
लाखों बचेंगे: खेल संचालक
खेल संचालक जीपी सिंह कहते हैं कि इस बार के टेंडर से भी विभागों को लाखों की बचत होगी। इस बार का डेंटर पिछले साल से 20 प्रतिशत कम में गया है। पिछले साल राज्य खेल महोत्सव के कारण विभाग को 30 लाख से ज्यादा की बचत हुई है, इस बार कोई ऐसा बड़ा आयोजन तो नहीं होना है, लेकिन फिर भी विभाग को कम से कम दस लाख की बचत जरूर होगी।



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शुक्रवार, अगस्त 19, 2011

मंदिरों में नारियल चढ़ाने का मतलब ही क्या है?


रायपुर जिले के राजिम के मंदिरों में जाने का मौका मिला। इन मंदिरों में जो भक्तजन गए थे, उनमें इस बात का आक्रोश नजर आया कि मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले नारियलों को फोंडने की जहमत पंडित नहीं उठाते हैं और सारे के सारे नारियल वापस जाते हैं बिकने के लिए बाजार में। गांव-गांव से राजिम के मंदिर में आए लोग इस बात से बहुत खफा लगे कि मंदिर के पुजारी भक्तों को प्रसाद तक देना गंवारा नहीं करते हैं। प्रसाद के नाम पर शिव लिंग का पानी देकर ही खानापूर्ति की जाती है। ऐसे में भक्तजन एक-दूसरे ही यह सवाल करते नजर आए कि आखिर मंदिरों में नारियल चढ़ाने की मतलब ही क्या है? इनका सवाल सही भी है। वैसे हमें लगता है कि जैसा हाल अपने छत्तीसगढ़ के इन मंदिरों का है, वैसा ही हाल देश के हर मंदिर का होगा।
अपने मित्रों के साथ जब हम जतमई और घटारानी गए तो वहां पर तो हालत फिर भी ठीक थे और भक्तों को सिर्फ प्रसाद दिया जा रहा था। बल्कि बाहर से आए भक्तों के लिए भंडारे में खाने तक की व्यवस्था थी। यह खाना बहुत ही अच्छा था कहा जाए तो गलत नहीं होगा। दाल, चावल और सब्जी के साथ सबको भरपूर खाना परोसा गया। यहां आने वाले भक्त गण जितने खुश लगे उतने ही राजिम के मंदिरों में जाने वाले भक्त खफा लगे। इनके खफा होने का कारण यह था कि मंदिरों में जो भी भक्त नारियल लेकर गए उनको प्रसाद भी देना पुजारियों ने जरूरी नहीं समझा।

प्रसाद के नाम पर भक्तों को शिवलिंग का पानी दिया गया। ऐसे में गांवों से आए ग्रामीण भी मंदिरों से निकलते हुए खफा लगे और रास्ते भर यही बातें करते रहे कि मंदिरों में नारियल चढ़ाना ही ठीक नहीं है। हम लोग यहां नारियल चढ़ाते हैं तो कम से कम इनमें से कुछ को फोंडकर प्रसाद देना चाहिए, पर ऐसा नहीं किया जाता है, और पुजारी सारे नारियल उन्हीं दुकान वालों के पास वापस भेज देते हैं बेचने के लिए। ऐसे में अच्छा यही है कि बिना नारियल लिए बिना ही मंदिर जाएं और भगवान के दर्शन करके जाए। वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि दूर-दूर से आने वाले भक्तों के लिए पुजारियों के मन में कोई भाव नहीं रहते हैं। उनसे अगर प्रसाद मांगा जाए तो कह देते हैं कि मंदिर के नीचे जाइए वहां पर बिक रहा है, ले ले। अब मंदिर के नीचे बिकने वाली किसी भी सय को प्रसाद कैसे माना जा सकता है।
भक्त तो भगवान के चरणों में चढऩे वाली सय को ही प्रसाद मानते हैं। अगर यह कहा जाए कि मंदिरों के नाम पर पुजारियों की दुकानदारी चल रही है तो गलत नहीं होगा। लोग काफी दूर-दूर से राजिम के कुलेश्वर मंदिर में जाते हैं। यह मंदिर नदी के बीच में है। लोग घुटनों तक पानी से गुजरते हुए तपती धुप में भी मंदिर जाते हैं और पुजारी है कि उनको टका सा जवाब दे देते हैं कि प्रसाद तो मंदिर के बाहर ही मिलेगा। राजिम लोचन मंदिर में तो मंदिर के अंदर ही प्रसाद बेचा जाता है।

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