पेट्रोल से टैक्स क्यों नहीं हटाती सरकार
भारत में सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में जो इजाफा किया है उससे देश का हर नागरिक परेशानी के साथ भारी आक्रोश में है। हर किसी का एक ही सवाल है कि भारत में पेट्रोल की कीमत इतनी ज्यादा क्यो है? देखा जाए तो वास्तव में भारत में पेट्रोल की कीमत उतनी नहीं है। जितनी पेट्रोल की वास्तविक कीमत है, उससे ज्यादा तो टैक्स के रूप में ले लिए जाते हैं। अपने छत्तीसगढ़ में ही पेट्रोल पर 25 प्रतिशत वैट टैक्स लगता है। अगर इसी टैक्स को प्रदेश सरकार कम कर दें तो आसानी से आम जनों को दस रुपए की राहत मिल सकती है, लेकिन क्यों कर प्रदेश की भाजपा सरकार ऐसा करेगी। ऐसा करने से उसे मौका कैसे मिलेगा केन्द्र सरकार पर निशाने लगाने का। सोचने वाली बात तो यह है कि अपने प्रदेश में विमानों में लगने वाले पेट्रोल पर महज चार प्रतिशत टैक्स है।
देश में इस समय पेट्रोल के दाम सातवें आसमान पर हैं। अभी लोग इस सदमे से ऊबर भी नहीं पाए हैं कि सरकार घरेलू गैस के दाम बढ़ाने वाली है। बस कुछ दिनों से बाद एक और गाज गिरने वाली है आम जनता पर। अब जनता तो बेचारी निरीह है, वह लाख चीखती-चिलाती रहेगी किसी पर असर होने वाला नहीं है। अपने देश के राजनैतिक दल तो बस एक-दूसरे पर आरोप लगाने का काम ही करते रहेंगे। राज्य सरकारें केन्द्र सरकार को दोषी मान रही हैं तो केन्द्र सरकार कहती हैं राज्य सरकारें अपने यहां वैट टैक्स कम करके आम जनों को राहत दें सकती हैं, लेकिन वो ऐसा नहीं कर रही हैं। केन्द्र सरकार तो तेल कंपनियों पर सारा दोष मढ़ देती हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने से ऐसा किया गया है। माना की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से ऐसा किया गया, लेकिन कीमत बढ़ाने के कुछ दिनों बाद जब कच्चे तेल की कीमतों में कम हो गयी तो फिर कीमत कम क्यों कर नहीं की गयी।
किसी को आम जनों से मतलब नहीं है। सोचने वाली बात यह है कि अपने छत्तीसगढ़ में विमान के उपयोग में आने वाले पेट्रोल पर महज चार प्रतिशत वैट टैक्स है और आम जनों के उपयोग वाले पेट्रोल पर 25 प्रतिशत टैक्स है। अब यह तो सरकार को सोचना चाहिए कि आम जनों के पेट्रोल पर कम टैक्स जरूरी है या फिर अमीरों के काम आने वाले विमानों में उपयोग होने वाले पेट्रोल पर। इसमें संदेह नहीं है कि वास्तव में सरकारें गरीबों के लिए नहीं बल्कि हमेशा अमीरों के हितों को ध्यान में रखते हुए फैसले लेती हैं। सरकार को तेल कंपनियों से फायदा होगा, आम जनों से क्या मिलना है। अरे पांच साल में एक बार जब वोट मांगने की बारी आएगी तो फिर किसी ने किसी बहाने जनता को बेवकूफ बना दिया जाएगा, अपनी जनता पैदा ही हुयी है बेवकूफ बनने के लिए। अब बेवकूफ को ही तो बेवकूफ बनाया जाता है।
देश में इस समय पेट्रोल के दाम सातवें आसमान पर हैं। अभी लोग इस सदमे से ऊबर भी नहीं पाए हैं कि सरकार घरेलू गैस के दाम बढ़ाने वाली है। बस कुछ दिनों से बाद एक और गाज गिरने वाली है आम जनता पर। अब जनता तो बेचारी निरीह है, वह लाख चीखती-चिलाती रहेगी किसी पर असर होने वाला नहीं है। अपने देश के राजनैतिक दल तो बस एक-दूसरे पर आरोप लगाने का काम ही करते रहेंगे। राज्य सरकारें केन्द्र सरकार को दोषी मान रही हैं तो केन्द्र सरकार कहती हैं राज्य सरकारें अपने यहां वैट टैक्स कम करके आम जनों को राहत दें सकती हैं, लेकिन वो ऐसा नहीं कर रही हैं। केन्द्र सरकार तो तेल कंपनियों पर सारा दोष मढ़ देती हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने से ऐसा किया गया है। माना की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से ऐसा किया गया, लेकिन कीमत बढ़ाने के कुछ दिनों बाद जब कच्चे तेल की कीमतों में कम हो गयी तो फिर कीमत कम क्यों कर नहीं की गयी।
किसी को आम जनों से मतलब नहीं है। सोचने वाली बात यह है कि अपने छत्तीसगढ़ में विमान के उपयोग में आने वाले पेट्रोल पर महज चार प्रतिशत वैट टैक्स है और आम जनों के उपयोग वाले पेट्रोल पर 25 प्रतिशत टैक्स है। अब यह तो सरकार को सोचना चाहिए कि आम जनों के पेट्रोल पर कम टैक्स जरूरी है या फिर अमीरों के काम आने वाले विमानों में उपयोग होने वाले पेट्रोल पर। इसमें संदेह नहीं है कि वास्तव में सरकारें गरीबों के लिए नहीं बल्कि हमेशा अमीरों के हितों को ध्यान में रखते हुए फैसले लेती हैं। सरकार को तेल कंपनियों से फायदा होगा, आम जनों से क्या मिलना है। अरे पांच साल में एक बार जब वोट मांगने की बारी आएगी तो फिर किसी ने किसी बहाने जनता को बेवकूफ बना दिया जाएगा, अपनी जनता पैदा ही हुयी है बेवकूफ बनने के लिए। अब बेवकूफ को ही तो बेवकूफ बनाया जाता है।
1 टिप्पणियाँ:
फिर मुफ्तखोरों को कहां से देगी
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