भक्त से श्रापित चंडिका देव की पीठ की होती है पूजा
भगवानों और साधु-संतों के बारे में इतिहास में यह पढ़ने को मिलता है कि इनके द्वारा ही समय-समय पर आम जन को श्रापित किया जाता रहा है। लेकिन ऐसा बहुत ही कम सुनने या फिर पढ़ने में आता है कि किसी देवता को किसी भक्त का श्राप लगा हो। लेकिन अपने छत्तीसगढ़ के बागबाहरा में एक गांव है बोडरीदादर यहां पर एक चंडिका देव हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह देवता भक्त द्वारा श्रापित हैं। भक्त श्रापित इस देवता की पृष्ठ भाग यानी पीठ की पूजा करते हैं। ऐसा संभवत: पूरे देश में औैर कहीं नहीं होता है कि किसी देवता की पृष्ठभाग की पूजा होती हो।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 100 किलो मीटर की दूरी पर बागबाहरा है। यहां के एक गांव बोडरीदादर में इस समय चंडिका देव के दरबार में भक्तों की भीड़ लग रही है। इस चडिंका देव के बारे में बताया जाता है कि एक भक्त द्वारा श्रापित होने के कारण इनकी पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि कोमाखान रजवाड़े के जमीदार भानुप्रताप सिंह के पूर्वज यहां पर पूजा पाठ करते थे। सिंह रूप वाले इस चंडिका देव को कई बार भानुप्रताप ने ले जाकर कोमाखान में स्थापित करने का प्रयास किया, पर चंडिका देव की मूर्ति अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई, लाखों प्रयासों के बाद भी इस मूर्ति को हटाया नहीं जा सका। आज भी यह मूर्ति खुले आसमान में है।
भानुप्रताप सिंह ने देखा कि जब मूर्ति टस से मस नहीं हो रही है तो उन्होंने यहां पर दशहरे के दिन पूजा करने के बाद अपनी कूल देवी सोनई-रूपई पहाड़ी खोल में गोसान गुफा में स्थित अपनी कूल देवी की पूजा करते थे। चंडिका देव के बारे में बताया जाता है कि वहां पर पूर्व में एक गुप्त पूजा स्थल था जहां पर रजवाड़े अपने बैगाओं से पूजा करवाते थे, लेकिन यह स्थल अब बंद है और इसी के साथ चंडिका देव का सामने का भाग भी नहीं दिखता है जिसके कारण उनके पीठ की पूजा की जाती है। संभवत: देश में चंडिका देव अपने तरह के पहले देवता होंगे जिनके पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि भानुप्रताप ने ही सामने के उस भाग को बंद करवा दिया था जहां से उनके बैगा पूजा करते थे, ताकि कोई और पूजा न कर सके। लोगों का कहना है कि मूर्ति को न हटवाना पाने के कारण ही भानुप्रताप के श्राप की वजह से मूर्ति की पृष्ठभाग की पूजा होती है, क्योंकि सामने का भाग तो दिखता ही नहीं है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 100 किलो मीटर की दूरी पर बागबाहरा है। यहां के एक गांव बोडरीदादर में इस समय चंडिका देव के दरबार में भक्तों की भीड़ लग रही है। इस चडिंका देव के बारे में बताया जाता है कि एक भक्त द्वारा श्रापित होने के कारण इनकी पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि कोमाखान रजवाड़े के जमीदार भानुप्रताप सिंह के पूर्वज यहां पर पूजा पाठ करते थे। सिंह रूप वाले इस चंडिका देव को कई बार भानुप्रताप ने ले जाकर कोमाखान में स्थापित करने का प्रयास किया, पर चंडिका देव की मूर्ति अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई, लाखों प्रयासों के बाद भी इस मूर्ति को हटाया नहीं जा सका। आज भी यह मूर्ति खुले आसमान में है।
भानुप्रताप सिंह ने देखा कि जब मूर्ति टस से मस नहीं हो रही है तो उन्होंने यहां पर दशहरे के दिन पूजा करने के बाद अपनी कूल देवी सोनई-रूपई पहाड़ी खोल में गोसान गुफा में स्थित अपनी कूल देवी की पूजा करते थे। चंडिका देव के बारे में बताया जाता है कि वहां पर पूर्व में एक गुप्त पूजा स्थल था जहां पर रजवाड़े अपने बैगाओं से पूजा करवाते थे, लेकिन यह स्थल अब बंद है और इसी के साथ चंडिका देव का सामने का भाग भी नहीं दिखता है जिसके कारण उनके पीठ की पूजा की जाती है। संभवत: देश में चंडिका देव अपने तरह के पहले देवता होंगे जिनके पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि भानुप्रताप ने ही सामने के उस भाग को बंद करवा दिया था जहां से उनके बैगा पूजा करते थे, ताकि कोई और पूजा न कर सके। लोगों का कहना है कि मूर्ति को न हटवाना पाने के कारण ही भानुप्रताप के श्राप की वजह से मूर्ति की पृष्ठभाग की पूजा होती है, क्योंकि सामने का भाग तो दिखता ही नहीं है।
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