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रविवार, मई 01, 2011

अबे तेरा सम्मान नहीं हुआ क्या?

कल की बात है हम रास्ते में थे कि मोबाइल बज उठा। मोबाइल का बजना कोई अनोखा नहीं था, लेकिन कल मोबाइल उठाया तो उधर से आवाज आई अबे तेरा सम्मान नहीं हुआ क्या? एक बार हमें लगा कि यार ये तो अपने अनिल पुसदकर जी लगते हैं, लेकिन फिर आवाज से लगा कि नहीं यार अनिल जी नहीं हैं? जब हमें भरोसा हो गया कि अनिल जी नहीं है, ये बंदा अपना काई  मित्र है तो हमने भी उसी अंदाज में कहा तेरे को क्या हो गया है बे। उसने कहा कि साले कुछ भी लिखते रहता है। अगर किसी का सम्मान हो रहा है, इसमें अगर किसी की दुकानदारी चल रही है तो तेरे को क्या नुकसान हो रहा है।
अब तक हम उस बंदे को पहचान नहीं पाए थे, हमने कहा कि चल बेटा हमें काई नुकसान नहीं हो रहा है, पहले तू अपना नाम ही बता, उसने कहा कि अब बेटा तू नाम भी भूल गया है कि अपने दोस्तों का।
हमने कहा अबे तेरे जैसे न जाने कितने रहे होंगे, हर किसी को थोड़े याद रखूंगा। इस पर उसने कहा कि अच्छा हम रायपुर से क्या चले गए लगता है साले अपने बचपन के दोस्त को भी भूल गया। उसका इतना कहना था कि हमारे दिमाग में बिजली कौंधी, अब हम अपने इस मित्र को पहचान गए थे, ये हमारे बचपन के मित्र हैं शौकल अली जो आज-कल बेंगलुरु में है। उसे पहचानते ही हम बरस पड़े, साले इतने लंबे समय बाद फोन भी किया तो झगड़ा करने के लिए। खैर चलो हमारी पोस्ट से, भले अपना अपमान, सॉरी सम्मान करवाने वालों को असर नहीं हुआ, तूझे तो असर हुआ और तेरा फोन आया।
शौकत ने कहा कि साले तू नहीं सुधर सकता है, वहीं बचपन वाली आदत कुछ गलत दिखा नहीं कि या तो लिख डाला, या फिर झगड़ा कर डाला, अब तो साले तेरे हाथ में ये ब्लाग-वाग भी आ गया है, तेरे अखबार में तो जरूर पाबंदी होगी ऐसी बातें लिखने के लिए इसलिए अपना सारा गुस्सा ब्लाग में दिखाता है।
हमने उससे सवाल किया कि हमने जो लिखा है, उसमें गलत क्या?
उसने कहा अबे गलत कुछ नहीं, लेकिन क्या तू एक अकेले सबको सुधार सकता है। मैं भी जानता हूं कि तू साले पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से हर गलत बात का विरोध करता है और साले बुरा बनता है, आखिर तूझे बुरा बनने का इतना शौक क्यों है?
हमने कहा कि अगर गलत बात का विरोध करने से हम जिंदगी भर बुरे बनते रहेंगे तो भी यह काम करते रहेंगे। यह बात तू अच्छी तरह से जानता है।
शौकत ने कहा- साले तू सुधर नहीं सकता है, तेरे से किसी भी विषय में जीतना वैसे भी कठिन है। चल छोड़ अपनी सुना क्या चल रहा है।
हमने कहा- सब ठीक है, यार वही नौकरी चल रही है कमल घीसने की, लेकिन अब कलम के स्थान पर कंप्यूटर पर ऊंगलियां चलानी पड़ती हैं।
हमने कहा तू सुना क्या चल रहा है।
शौकत ने कहा कि अपनी भी बस नौकरी चल रही है।
हमने उससे कहा कि चल बे अब रख फोन हमें प्रेस की मिटिंग में जाना है, फिर बात करेंगे, और तूझे बताऊंगा भी कि मेरा सम्मान हुआ है या नहीं।
हम बता दें कि वैसे तो हमारा एक बार नहीं कई बार सम्मान हुआ है, लेकिन हम सम्मान में नहीं काम में भरोसा करते हैं। हमें एक दशक पहले राष्ट्रीय दिशा मंच वालों द्वारा किया गया सम्मान आज भी याद है जब वे लोग हमें खोजते हुए दैनिक देशबंधु में पहुंचे थे, तब हमने उनसे कहा था कि हम सम्मान वगैर में भरोसा नहीं रखते हैं, लेकिन उन्होंने जिद की थी कि आप खेल पत्रकारिता में छत्तीसगढ़ में सबसे सीनियर हैं और आपके योगदान के कारण ही हम सम्मान करना चाहते हैं। हमारे कई  पत्रकार मित्रों से समझाने के बाद हम सम्मान करवाने तैयार हुए थे। एक बात और बता दें कि अगर हम भी अपने जमीर को किनारे रख दें तो हमारी छत्तीसगढ़ ही बल्कि देश के खेल जगत में इतनी ज्यादा पकड़ है कि हम अपना सम्मान हर माह नहीं बल्कि हर सप्ताह करवा सकते हैं और यह सिलसिला एक साल से भी ज्यादा समय तक चल सकता है, लेकिन हम जानते हैं कि सम्मान मिल जाने से कुछ नहीं होता है। किसी का भी सम्मान दिल से होना चाहिए। चाहे वह किसी भी तरह का ही सम्मान हो। आप काई भी काम करते हो, अगर आपके काम की तारीफ कोई सच्चे दिल से करता है तो उससे बड़ा सम्मान और कोई  नहीं हो सकता है, इसलिए हमारा ऐसा मानना है कि इंसान को काम पर भरोसा करना चाहिए और ऐसा कुछ करने का प्रयास करना चाहिए जिससे दूसरों का भला हो। दूसरों के लिए जीने वाला इंसान ही असल में इंसान होता है। अपने लिए तो सब जीते हैं। जब हमारी किसी खबर पर किसी खिलाड़ी का भला होता है, और वह फोन करके कहता है भाई साहब धन्यवाद आपकी खबर के कारण हमारा भला हुआ है तो हमें वही सबसे बड़ा सम्मान लगता है।

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