कलमकार ही सबसे ज्यादा शोषित
पत्रकारों का भी है बुरा हाल
कुछ को छोड़कर बाकी हैं कंगाल
हम यह बात आज अचानक इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह कटु सत्य है कि कम से कम अपने छत्तीसगढ़ में काम करने वाले पत्रकारों का हाल बहुत बुरा है। बुरा हाल इसलिए कि यहां पर पत्रकारों का वेतन इतना नहीं है कि वे अपना घर सही तरीके से चला सके। वास्तव में यह दुखद बात है कि दूसरों के शोषण के खिलाफ लिखने वाली कलम खुद अपने खिलाफ हो रहे शोषण के खिलाफ लिखना तो दूर कुछ बोल भी नहीं पाती है।
हमारे प्रेस की नियमित बैठक में एक पत्रकार साथी से कहा गया कि वे महंगाई पर खबर बनाए कि कैसे आज मध्यम वर्ग में दस हजार की कमाई करने वालों के लिए घर चलाना मुश्किल है। उनसे कहा गया कि वे ऐसे दो चार लोगों से बात कर लें जिनकी आय कम है। हमने यूं ही मजाक में अपने पत्रकार साथी से कह दिया कि कुछ पत्रकारों से ही बात करें जिनको चार से पांच हजार वेतन मिलता है, उनसे भला ज्यादा अच्छी तरह से कौन बता सकता है घर चलाना कितना मुश्किल होता है।
हमने एक तो यह बात मजाक में कही थी, दूसरे हम यह अच्छी तरह से जानते हैं कि कभी किसी पत्रकार की व्यथा कोई अखबार प्रकाशित करने वाला नहीं है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज के महंगाई के दौर में दस हजार तक कमाई करने वालों के लिए घर चलाना वाकई परेशानी का सबब है। इसमें भी संदेह नहीं है कि लोगों को कर्ज लेकर घर चलाने के साथ अपने बच्चों की पढ़ाई करवानी पड़ रही है। ऐसे लोगों में अपने पत्रकार साथी भी शामिल हैं। वास्तव में यह कितनी बड़ी विडंबना है कि दूसरों के हक के लिए लड़ने और दूसरों के शोषण के खिलाफ लिखने वालों के हक में न तो कोई बोलने वाला है और न ही कोई लिखने वाला है। अपने राज्य में कुछ अखबारों को छोड़ दिया जाए तो बाकी अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों की स्थिति खराब नहीं बहुत ज्यादा खराब है। आज स्थिति यह है कि कई अखबारों में तीन हजार से भी कम वेतन में पत्रकार काम कर रहे हैं। ऐसे में सोचा जा सकता है कि कैसे वे अपना घर चलाते होंगे। इसी के साथ एक चिंतन का विषय यह भी है कि छोटे अखबार ऐसे-ऐसे लोगों से पत्रकारिता का काम ले रहे हैं जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक नाता नहीं रहा है। अब ऐसे में यह बात सोचने वाली है कि आखिर पत्रकारिता का स्तर ऐसे में क्या हो सकता है। लिखने को बहुत सी बातें हैं लेकिन एक बार में लिखना संभव नहीं है। कोशिश करेंगे कि इस कड़ी को लगातार आगे बढ़ाया जाए। फिलहाल इतना ही।
कुछ को छोड़कर बाकी हैं कंगाल
हम यह बात आज अचानक इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह कटु सत्य है कि कम से कम अपने छत्तीसगढ़ में काम करने वाले पत्रकारों का हाल बहुत बुरा है। बुरा हाल इसलिए कि यहां पर पत्रकारों का वेतन इतना नहीं है कि वे अपना घर सही तरीके से चला सके। वास्तव में यह दुखद बात है कि दूसरों के शोषण के खिलाफ लिखने वाली कलम खुद अपने खिलाफ हो रहे शोषण के खिलाफ लिखना तो दूर कुछ बोल भी नहीं पाती है।
हमारे प्रेस की नियमित बैठक में एक पत्रकार साथी से कहा गया कि वे महंगाई पर खबर बनाए कि कैसे आज मध्यम वर्ग में दस हजार की कमाई करने वालों के लिए घर चलाना मुश्किल है। उनसे कहा गया कि वे ऐसे दो चार लोगों से बात कर लें जिनकी आय कम है। हमने यूं ही मजाक में अपने पत्रकार साथी से कह दिया कि कुछ पत्रकारों से ही बात करें जिनको चार से पांच हजार वेतन मिलता है, उनसे भला ज्यादा अच्छी तरह से कौन बता सकता है घर चलाना कितना मुश्किल होता है।
हमने एक तो यह बात मजाक में कही थी, दूसरे हम यह अच्छी तरह से जानते हैं कि कभी किसी पत्रकार की व्यथा कोई अखबार प्रकाशित करने वाला नहीं है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज के महंगाई के दौर में दस हजार तक कमाई करने वालों के लिए घर चलाना वाकई परेशानी का सबब है। इसमें भी संदेह नहीं है कि लोगों को कर्ज लेकर घर चलाने के साथ अपने बच्चों की पढ़ाई करवानी पड़ रही है। ऐसे लोगों में अपने पत्रकार साथी भी शामिल हैं। वास्तव में यह कितनी बड़ी विडंबना है कि दूसरों के हक के लिए लड़ने और दूसरों के शोषण के खिलाफ लिखने वालों के हक में न तो कोई बोलने वाला है और न ही कोई लिखने वाला है। अपने राज्य में कुछ अखबारों को छोड़ दिया जाए तो बाकी अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों की स्थिति खराब नहीं बहुत ज्यादा खराब है। आज स्थिति यह है कि कई अखबारों में तीन हजार से भी कम वेतन में पत्रकार काम कर रहे हैं। ऐसे में सोचा जा सकता है कि कैसे वे अपना घर चलाते होंगे। इसी के साथ एक चिंतन का विषय यह भी है कि छोटे अखबार ऐसे-ऐसे लोगों से पत्रकारिता का काम ले रहे हैं जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक नाता नहीं रहा है। अब ऐसे में यह बात सोचने वाली है कि आखिर पत्रकारिता का स्तर ऐसे में क्या हो सकता है। लिखने को बहुत सी बातें हैं लेकिन एक बार में लिखना संभव नहीं है। कोशिश करेंगे कि इस कड़ी को लगातार आगे बढ़ाया जाए। फिलहाल इतना ही।
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