नौकरी की भेंट चढ़ा एक कुनबा
छत्तीसगढ़ की इस्पात नगरी भिलाई में एक पूरा कुनबा नौकरी की भेंट चढ़ गया। इस कुनबे के पांच सदस्यों ने अपने को पिछले चार दिनों से कमरे में बंद कर रखा था और भिलाई स्टील प्लांट से अनुकंपा नियुक्ति की मांग की जा रही थी। नौकरी न मिलने पर परिवार की महिला ने अपने तीन बेटियों के साथ आत्महत्या कर ली। एकलौता बेटा गंभीर हालत में अंतिम सांसे गिन रहा है। इस घटना से पूरा राज्य हिल गया है। इसी के साथ जनप्रतिनिधियों की भी पोल खुल गई है कि वे ऐसे मामलों से कैसे अपने को अलग कर लेते हैं। इस पूरे परिवार की मौत को दुर्ग की सांसद सरोज पांडेय से जोड़ा जा रहा है, जिन्होंने परिवार से मिलने आने का वादा किया था, पर उनके न आने से निराश परिवार ने यह कदम उठाया। हालांकि सरोज पांडे इस बात से मुकर रही हैं कि उन्होंने ऐसा कोई वादा किया था।
भिलाई के सुनील साहू का परिवार पिछले चार दिनों से घर के कमरे में कैद था। इस परिवार की मांग थी कि बीएसपी सुनील साहू को उनके पिता के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति दे। लेकिन बीएसपी में इस तरह का प्रावधान न होने के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था। साहू परिवार को इस बात का भी डर था कि बीएसपी उससे वह मकान भी ले लेगी जो परिवार के मुखिया के नौकरी में रहते बीएसपी से मिला था। हर तरफ से निराश परिवार ने अंत में अपने को कमरे में बंद कर लिया था। इस परिवार को न्याय दिलाने की बात सांसद सरोज पांडेय ने कही थी, ऐसा सुनील साहू ने मीडिया को बताया था। सुश्री पांडेय कल इस परिवार से मिलने आने वाली थी, लेकिन उनके स्थान पर जब उनकी प्रतिनिधि आईं तो परिवार निराश हो गया और परिवार की महिला ने अपनी तीन बेटियों के साथ सल्फास खाकर जान दे दी। जब पुलिस ने मकान का ताला तोड़ा तो घर से चार लाशें, और सुनील गंभीर हालत में मिला। सुनील को अस्पताल में भर्ती किया गया है। उसका बच पाना भी संभव नहीं लग रहा है।
इधर घटना के बाद सरोज पांडे इस बात से इंकार कर रही हैं कि उन्होंने साहू परिवार से ऐसा कोई वादा किया था। सोचने वाली बात यह है कि अगर उन्होंने कोई वादा नहीं किया था तो फिर उनकी प्रतिनिधि वहां क्या करने गई थीं? इस घटना ने निश्चित ही जनप्रतिनिधियों की पोल खोलकर रख दी है। पिछले चार दिनों में जनप्रतिनिधियों के साथ शासन-प्रशासन ने ऐसा कोई प्रयास ही नहीं किया जिससे साहू परिवार को बचाया जा सकता। घटना के बाद अब बीएसपी प्रबंधन यह कह रहा है कि उसने तो एक दिन पहले ही नौकरी देने की बात मान ली थी। अगर नौकरी देने की बात मान ली गई थी तो फिर आखिर साहू परिवार ने ऐसा कदम क्यों कर उठाया।
इस घटना को लेकर कई तरह की बातें की जा रही हैं। मीडिया से जुड़े लोग इस घटना को ठीक नहीं मान रहे हैं। सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ ने अपनी संपादकीय इस हेडिंग आत्महत्या की धमकी की नोंक पर कोई मांग कितनी जायज, लिखी है। इसके लिए जो तर्क दिए गए हैं वो दमदार हैं। वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि अगर हर कोई नौकरी के लिए इसी तरह से धमकी देने लगे तो देश का हर बेरोजगार नौकरी पाने के लिए यही रास्ता अपनाने लगेगा। कुछ दिनो पहले ही एक युवक नौकरी के लिए जहर खाकर मुख्यमंत्री निवास पहुंच गया था।
एक सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों कर आज का युवा सरकारी नौकरी के पीछे भागता है। निजी क्षेत्र में भी नौकरियों की कमी नहीं है। अगर किसी में प्रतिभा है तो उसको नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ता है, लेकिन यहां पर जरूरत होती है मानसिकता की। अगर आप निजी क्षेत्र में नौकरी करने की मानसिकता रखते हैं तो आपके पास अवसरों की कमी नहीं है। लेकिन अगर आप सरकारी नौकरी के ही पीछे भागना चाहते हैं तो यह राह जरूर कठिन है।
साहू परिवार का अंत एक सबक होना चाहिए आज के युवाओं के लिए कि वे ऐसा कोई रास्ता न चुने जिससे उनके परिवार का अंत हो जाए। जिंदगी बार-बार नहीं मिलती है। जिंदगी को जीने के रास्ते कई हैं, बस आप में दम होना चाहिए। ऐसे युवाओं को उन पर नजरें डालनी चाहिए जो रोज कमाकर अपने परिवार का पेट भरते हैं। जो लोग जिंदगी से हार जाते हैं, वहीं ऐसा कदम उठाते हैं।
भिलाई के सुनील साहू का परिवार पिछले चार दिनों से घर के कमरे में कैद था। इस परिवार की मांग थी कि बीएसपी सुनील साहू को उनके पिता के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति दे। लेकिन बीएसपी में इस तरह का प्रावधान न होने के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था। साहू परिवार को इस बात का भी डर था कि बीएसपी उससे वह मकान भी ले लेगी जो परिवार के मुखिया के नौकरी में रहते बीएसपी से मिला था। हर तरफ से निराश परिवार ने अंत में अपने को कमरे में बंद कर लिया था। इस परिवार को न्याय दिलाने की बात सांसद सरोज पांडेय ने कही थी, ऐसा सुनील साहू ने मीडिया को बताया था। सुश्री पांडेय कल इस परिवार से मिलने आने वाली थी, लेकिन उनके स्थान पर जब उनकी प्रतिनिधि आईं तो परिवार निराश हो गया और परिवार की महिला ने अपनी तीन बेटियों के साथ सल्फास खाकर जान दे दी। जब पुलिस ने मकान का ताला तोड़ा तो घर से चार लाशें, और सुनील गंभीर हालत में मिला। सुनील को अस्पताल में भर्ती किया गया है। उसका बच पाना भी संभव नहीं लग रहा है।
इधर घटना के बाद सरोज पांडे इस बात से इंकार कर रही हैं कि उन्होंने साहू परिवार से ऐसा कोई वादा किया था। सोचने वाली बात यह है कि अगर उन्होंने कोई वादा नहीं किया था तो फिर उनकी प्रतिनिधि वहां क्या करने गई थीं? इस घटना ने निश्चित ही जनप्रतिनिधियों की पोल खोलकर रख दी है। पिछले चार दिनों में जनप्रतिनिधियों के साथ शासन-प्रशासन ने ऐसा कोई प्रयास ही नहीं किया जिससे साहू परिवार को बचाया जा सकता। घटना के बाद अब बीएसपी प्रबंधन यह कह रहा है कि उसने तो एक दिन पहले ही नौकरी देने की बात मान ली थी। अगर नौकरी देने की बात मान ली गई थी तो फिर आखिर साहू परिवार ने ऐसा कदम क्यों कर उठाया।
इस घटना को लेकर कई तरह की बातें की जा रही हैं। मीडिया से जुड़े लोग इस घटना को ठीक नहीं मान रहे हैं। सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ ने अपनी संपादकीय इस हेडिंग आत्महत्या की धमकी की नोंक पर कोई मांग कितनी जायज, लिखी है। इसके लिए जो तर्क दिए गए हैं वो दमदार हैं। वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि अगर हर कोई नौकरी के लिए इसी तरह से धमकी देने लगे तो देश का हर बेरोजगार नौकरी पाने के लिए यही रास्ता अपनाने लगेगा। कुछ दिनो पहले ही एक युवक नौकरी के लिए जहर खाकर मुख्यमंत्री निवास पहुंच गया था।
एक सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों कर आज का युवा सरकारी नौकरी के पीछे भागता है। निजी क्षेत्र में भी नौकरियों की कमी नहीं है। अगर किसी में प्रतिभा है तो उसको नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ता है, लेकिन यहां पर जरूरत होती है मानसिकता की। अगर आप निजी क्षेत्र में नौकरी करने की मानसिकता रखते हैं तो आपके पास अवसरों की कमी नहीं है। लेकिन अगर आप सरकारी नौकरी के ही पीछे भागना चाहते हैं तो यह राह जरूर कठिन है।
साहू परिवार का अंत एक सबक होना चाहिए आज के युवाओं के लिए कि वे ऐसा कोई रास्ता न चुने जिससे उनके परिवार का अंत हो जाए। जिंदगी बार-बार नहीं मिलती है। जिंदगी को जीने के रास्ते कई हैं, बस आप में दम होना चाहिए। ऐसे युवाओं को उन पर नजरें डालनी चाहिए जो रोज कमाकर अपने परिवार का पेट भरते हैं। जो लोग जिंदगी से हार जाते हैं, वहीं ऐसा कदम उठाते हैं।
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