लोकपाल बिल से क्या गरीब को रोटी मिल जाएगी
लोकपाल बिल अभी बना भी नहीं है और इसको लेकर टकराव होने लगा है। पहले कपिल सिब्बल और इसके बाद सलमान खुर्शीद के बयानो से अन्ना हजारे जी खफा हो गए हैं। लेकिन कुछ भी हो कपिल सिब्बल की बातों पर गौर किया जाए तो उनकी बातों में दम तो लगता है। लेकिन उससे भी अहम एक सवाल यह है कि क्या लोकपाल बिल पास हो जाने से किसी गरीब को रोटी मिल जाएगी। क्या वास्तव में लोकपाल बिल आने के बाद इस बात की गारंटी होगी कि अपने देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा।
अन्ना हजारे के अनशन ने देश को एक राह जरूर दिखाई है और लोकपाल बिल के लिए समिति बन गई है। लेकिन यह समिति कुछ फैसला करे इसके पहले ही इस समिति से जुड़े दो केन्द्रीय मंत्रियों कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद के बयानों से अपने दूसरे गांधी अन्ना हजारे खफा हो गए हैं। हजारे जी का खफा होना अपने स्थान पर ठीक तो है, लेकिन इसमें भी संदेह नहीं है कि कपिल सिब्बल जो कह रहे हैं उसको भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कपिल सिब्बल की बातें गौर करने वाली हैं। कपिल जी का कहना गलत नहीं है कि अपने देश में लोकपाल बिल की नहीं बल्कि व्यवस्था को ठीक करने की जरूरत है। वे सवाल खड़ा करते हैं कि क्या लोकपाल बिल किसी गरीब को अस्पताल में बिना किसी नेता की सिफारिश के भर्ती नहीं किया जाता है। एक सवाल वे यह भी उठाते हैं कि गरीबों के लिए स्कूलों की कमी है, गरीब बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता है। कपिल सिब्बल कहते हैं कि क्या लोकपाल बिल से आम जनों को बिजली, पानी, गैसे सिलेंडर और फोन जैसी सुविधा मिल सकती है। कपिल सिब्बल के इन सवालों के साथ एक सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि क्या लोकपाल बिल से गरीबों को रोटी मिल पाएगी।
कहीं से भी यह लगता है कि लोकपाल बिल से गरीबों का भला होने वाला है। इसमें संदेह नहीं है कि अपने देश को किसी लोकपाल बिल की नहीं बल्कि वास्तव में व्यवस्था बदलने की जरूरत है। अगर व्यवस्था ठीक हो तो किसी बिल की क्या जरूरत होगी। लेकिन यह बात भी ठीक है कि अपने देश में व्यवस्था कभी ठीक नहीं हो सकती है। यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि अपने देश में गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं और अमीर और ज्यादा अमीर बनते जा रहे हैं। यह बात तो तय है कि अपने देश से भ्रष्टाचार तब तक समाप्त नहीं हो सकता है, जब तक आम जन जागरूक नहीं होंगे और राजनेताओं की मानसिकता नहीं बदलेगी। और ऐसा कभी होगा, इसके आसार तो नजर नहीं आते हैं।
कहने में और सुनने में भले यह बात अच्छी लगती है कि अन्ना हजारे के सामने सरकार झुक गई, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई कुछ और ही है। सरकार के झुकने के पीछे सबसे बड़ा कारण इस समय पांच राज्यों के चुनाव हैं। सरकार को मालूम था कि अगर वह हजारे जी की बात नहीं मानती है तो जिस तरह से हजारे जी को समर्थन मिल रहा था, वह समर्थन पांच राज्यों के चुनावों में बहुत बड़ा असर डाल सकता था। इसमें भी संदेह नहीं है कि लोकपाल बिल आसानी से पास होने वाला नहीं है। आगे-आगे देखे होता है क्या, लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि लोकपाल बिल से किसी गरीब का भला होने वाला नहीं है।
अन्ना हजारे के अनशन ने देश को एक राह जरूर दिखाई है और लोकपाल बिल के लिए समिति बन गई है। लेकिन यह समिति कुछ फैसला करे इसके पहले ही इस समिति से जुड़े दो केन्द्रीय मंत्रियों कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद के बयानों से अपने दूसरे गांधी अन्ना हजारे खफा हो गए हैं। हजारे जी का खफा होना अपने स्थान पर ठीक तो है, लेकिन इसमें भी संदेह नहीं है कि कपिल सिब्बल जो कह रहे हैं उसको भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कपिल सिब्बल की बातें गौर करने वाली हैं। कपिल जी का कहना गलत नहीं है कि अपने देश में लोकपाल बिल की नहीं बल्कि व्यवस्था को ठीक करने की जरूरत है। वे सवाल खड़ा करते हैं कि क्या लोकपाल बिल किसी गरीब को अस्पताल में बिना किसी नेता की सिफारिश के भर्ती नहीं किया जाता है। एक सवाल वे यह भी उठाते हैं कि गरीबों के लिए स्कूलों की कमी है, गरीब बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता है। कपिल सिब्बल कहते हैं कि क्या लोकपाल बिल से आम जनों को बिजली, पानी, गैसे सिलेंडर और फोन जैसी सुविधा मिल सकती है। कपिल सिब्बल के इन सवालों के साथ एक सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि क्या लोकपाल बिल से गरीबों को रोटी मिल पाएगी।
कहीं से भी यह लगता है कि लोकपाल बिल से गरीबों का भला होने वाला है। इसमें संदेह नहीं है कि अपने देश को किसी लोकपाल बिल की नहीं बल्कि वास्तव में व्यवस्था बदलने की जरूरत है। अगर व्यवस्था ठीक हो तो किसी बिल की क्या जरूरत होगी। लेकिन यह बात भी ठीक है कि अपने देश में व्यवस्था कभी ठीक नहीं हो सकती है। यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि अपने देश में गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं और अमीर और ज्यादा अमीर बनते जा रहे हैं। यह बात तो तय है कि अपने देश से भ्रष्टाचार तब तक समाप्त नहीं हो सकता है, जब तक आम जन जागरूक नहीं होंगे और राजनेताओं की मानसिकता नहीं बदलेगी। और ऐसा कभी होगा, इसके आसार तो नजर नहीं आते हैं।
कहने में और सुनने में भले यह बात अच्छी लगती है कि अन्ना हजारे के सामने सरकार झुक गई, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई कुछ और ही है। सरकार के झुकने के पीछे सबसे बड़ा कारण इस समय पांच राज्यों के चुनाव हैं। सरकार को मालूम था कि अगर वह हजारे जी की बात नहीं मानती है तो जिस तरह से हजारे जी को समर्थन मिल रहा था, वह समर्थन पांच राज्यों के चुनावों में बहुत बड़ा असर डाल सकता था। इसमें भी संदेह नहीं है कि लोकपाल बिल आसानी से पास होने वाला नहीं है। आगे-आगे देखे होता है क्या, लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि लोकपाल बिल से किसी गरीब का भला होने वाला नहीं है।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें