मुख्यमंत्री का सपना साकार करने वाले ओलंपियन तैयार करूंगा
मेरा ओलंपिक में खेलने का सपना तो कंघे की चोट के कारण पूरा नहीं हो सका, लेकिन अब मैं प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का सपना साकार करने के लिए कैनाइंग-कयाकिंग के ओलंपिक में खेलने वाले खिलाड़ी तैयार करने का काम करूंगा। खिलाड़ी तैयार करने के इरादे से ही मैंने हंगरी में लेबल-3 कोच का कोर्स किया है और अब मैं वहां से लौटते ही खिलाड़ियों को तराशने में जुट गया हूं। ये बातें कहने वाले अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी और कोच नवीन साहू से हुई बात-चीत के अंश प्रस्तुत है।
0 हंगारी में लेबल 3 कोर्स करने का मकसद क्या था?
00 मेरा इरादा ओलंपिक में खेलकर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का सपना साकार करने का था, लेकिन मेरे कंघे में चोट के कारण अब डॉक्टरों ने साफ कह दिया है कि मैं खेलने की स्थिति में नहीं हूं। ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों न लेबल 3 कोच का कोर्स करके अपने राज्य के खिलाड़ियों को आधुनिक तरीके से तैयार करके उनको ओलंपिक में खेलने का रास्ता दिखाया जाए।
0 लेबल 3 कोर्स के बारे में बताएं?
00 यह कोर्स अंतरराष्ट्रीय कैनो फेडरेशन द्वारा कराया जाता है। अब तक लेबल 1 और 2 का कोर्स होता था। ये दोनों कोर्स मैं पहले ही कर चुका हूं। पहली बार हंगरी में लेबल 3 कोर्स कराया गया तो मैं वहां चला गया। पांच माह के इस कोर्स में दो माह वहां पर प्रशिक्षण दिया गया। बाकी तीन माह का कोर्स आनलाइन कराया गया। वहां पर प्रशिक्षण देने का काम 12 बार विश्व चैंपियन रहे हंगरी के जोनटान बाको ने किया। इस कोर्स में भारत से मैं अकेला गया था।
0 कोर्स के लिए आपका चयन कैसे हुआ?
00 कोर्स के लिए वैसे तो भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) भेजता है, लेकिन यह कोर्स नया था, इसलिए खुद के खर्च पर जाना पड़ा। कोर्स का शुल्क ही करीब साढ़े तीन लाख था। मुझे कोर्स करने में पांच लाख का खर्च करना पड़ा।
0 राज्य सरकार ने कोई मदद मिली?
00 कोर्स के बारे में इतने कम समय में मालूम हुआ कि मदद ले पाना संभव नहीं था। अब वहां से लौटा हूं तो अब मदद के प्रयास किए जा रहे हैं।
0 आपके कोर्स से राज्य के खिलाड़ियों को क्या फायदा होगा?
00 मैं हंगरी में जो कोर्स करके आया हूं, वह अति आधुनिक कोर्स है। आज ओलंपिक और अन्य अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलने जाने के लिए यही तकनीक काम आती है। ऐसे में यहां के खिलाड़ियों को तैयार करके उनको ओलंपिक का रास्ता दिखाया जाएगा।
0 राजधानी में साई सेंटर खुलने से कयाकिंग को कितना फायदा होगा?
00 साई सेंटर से हर खेल को फायदा होता है। मैं खुद भोपाल के साई सेंटर में रहां हूं। आज मुझे जो राष्ट्रीय स्तर पर 150 से ज्यादा पदक मिले हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एशियन चैंपियनशिप में मैंने जो दो पदक जीते हैं, वह साई सेंटर में रहने का नतीजा है। रायपुर में कयाकिंग को डे-बोर्डिंग के रूप में शामिल किया गया है। ऐसे में अभी सिर्फ रायपुर के खिलाड़ियों को फायदा होगा। आगे बोर्डिंग की सुविधा हो जाएगी तो प्रदेश के खिलाड़ियों को लाभ होगा।
0 प्रदेश में कयाकिंग के खिलाड़ियों की क्या संभावना है?
00 प्रदेश में आदिवासी क्षेत्र सरगुजा, बस्तर के साथ धमतरी और बिलासपुर में अच्छे खिलाड़ियों की भरमार है। इन खिलाड़ियों को साई के बोर्डिंग में मौका मिला तो राज्य के लिए हमारे खेल में पदकों की बारिश हो जाएगी।
0 अभी आप कितने खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं और उनसे क्या संभावनाएं हैं?
00 साई के डे-बोर्डिंग के लिए मेरे पास 15 खिलाड़ी हैं। इनमें 4 बालिका खिलाड़ी संतोषी दलई, शिवांगी ठाकुर, हेमलता सार्वा और शारडा राखडे हैं। इसी के साथ बालक वर्ग में दिनेश साहू, अशोक साहू, सोनू साहू और धनेश फरिकार हैं जिनसे मुझे काफी उम्मीदे हैं। झारखंड के राष्ट्रीय खेलों में हमारी टीम के 4 में पांचवें स्थान पर थी और दिनेश के-1 में छठे स्थान पर था।
0 राष्ट्रीय खेलों में पदक क्यों नहीं मिल सका?
00 झारखंड के राष्ट्रीय खेलों के कुछ समय पहले ही हमें बोट मिल सकी थी जिसके कारण हमारे खिलाड़ियों को अभ्यास का मौका नहीं मिल सका था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा आने वाले समय में केरल और गोवा के बाद हमारे खिलाड़ी छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों में भी पदकों की बारिश करेंगे।
0 अभी जो सुविधाएं हैं, वो पर्याप्त हैं?
00 अभी तो हमारे पास खिलाड़ियों की संख्या के लिहाज से पर्याप्त बोट है। के-1 में आठ, के-2 में चार और के 4 में तीन बोट है। खिलाड़ियों की संख्या में इजाफा होने पर ही बोट की जरूरत पड़ेगी। अभी हमारे खिलाड़ी बूढ़ातालाब में अभ्यास करते हैं। अभ्यास के लिए एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का ट्रेक जरूरी है। भारतीय कयाकिंग फेडरेशन ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के पास की झील में एक ट्रेक बनाने का सुझाव राज्य सरकार को दिया है, वह ट्रेक बन जाए तो खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने में ज्यादा आसानी होगी।
0 हंगारी में लेबल 3 कोर्स करने का मकसद क्या था?
00 मेरा इरादा ओलंपिक में खेलकर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का सपना साकार करने का था, लेकिन मेरे कंघे में चोट के कारण अब डॉक्टरों ने साफ कह दिया है कि मैं खेलने की स्थिति में नहीं हूं। ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों न लेबल 3 कोच का कोर्स करके अपने राज्य के खिलाड़ियों को आधुनिक तरीके से तैयार करके उनको ओलंपिक में खेलने का रास्ता दिखाया जाए।
0 लेबल 3 कोर्स के बारे में बताएं?
00 यह कोर्स अंतरराष्ट्रीय कैनो फेडरेशन द्वारा कराया जाता है। अब तक लेबल 1 और 2 का कोर्स होता था। ये दोनों कोर्स मैं पहले ही कर चुका हूं। पहली बार हंगरी में लेबल 3 कोर्स कराया गया तो मैं वहां चला गया। पांच माह के इस कोर्स में दो माह वहां पर प्रशिक्षण दिया गया। बाकी तीन माह का कोर्स आनलाइन कराया गया। वहां पर प्रशिक्षण देने का काम 12 बार विश्व चैंपियन रहे हंगरी के जोनटान बाको ने किया। इस कोर्स में भारत से मैं अकेला गया था।
0 कोर्स के लिए आपका चयन कैसे हुआ?
00 कोर्स के लिए वैसे तो भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) भेजता है, लेकिन यह कोर्स नया था, इसलिए खुद के खर्च पर जाना पड़ा। कोर्स का शुल्क ही करीब साढ़े तीन लाख था। मुझे कोर्स करने में पांच लाख का खर्च करना पड़ा।
0 राज्य सरकार ने कोई मदद मिली?
00 कोर्स के बारे में इतने कम समय में मालूम हुआ कि मदद ले पाना संभव नहीं था। अब वहां से लौटा हूं तो अब मदद के प्रयास किए जा रहे हैं।
0 आपके कोर्स से राज्य के खिलाड़ियों को क्या फायदा होगा?
00 मैं हंगरी में जो कोर्स करके आया हूं, वह अति आधुनिक कोर्स है। आज ओलंपिक और अन्य अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलने जाने के लिए यही तकनीक काम आती है। ऐसे में यहां के खिलाड़ियों को तैयार करके उनको ओलंपिक का रास्ता दिखाया जाएगा।
0 राजधानी में साई सेंटर खुलने से कयाकिंग को कितना फायदा होगा?
00 साई सेंटर से हर खेल को फायदा होता है। मैं खुद भोपाल के साई सेंटर में रहां हूं। आज मुझे जो राष्ट्रीय स्तर पर 150 से ज्यादा पदक मिले हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एशियन चैंपियनशिप में मैंने जो दो पदक जीते हैं, वह साई सेंटर में रहने का नतीजा है। रायपुर में कयाकिंग को डे-बोर्डिंग के रूप में शामिल किया गया है। ऐसे में अभी सिर्फ रायपुर के खिलाड़ियों को फायदा होगा। आगे बोर्डिंग की सुविधा हो जाएगी तो प्रदेश के खिलाड़ियों को लाभ होगा।
0 प्रदेश में कयाकिंग के खिलाड़ियों की क्या संभावना है?
00 प्रदेश में आदिवासी क्षेत्र सरगुजा, बस्तर के साथ धमतरी और बिलासपुर में अच्छे खिलाड़ियों की भरमार है। इन खिलाड़ियों को साई के बोर्डिंग में मौका मिला तो राज्य के लिए हमारे खेल में पदकों की बारिश हो जाएगी।
0 अभी आप कितने खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं और उनसे क्या संभावनाएं हैं?
00 साई के डे-बोर्डिंग के लिए मेरे पास 15 खिलाड़ी हैं। इनमें 4 बालिका खिलाड़ी संतोषी दलई, शिवांगी ठाकुर, हेमलता सार्वा और शारडा राखडे हैं। इसी के साथ बालक वर्ग में दिनेश साहू, अशोक साहू, सोनू साहू और धनेश फरिकार हैं जिनसे मुझे काफी उम्मीदे हैं। झारखंड के राष्ट्रीय खेलों में हमारी टीम के 4 में पांचवें स्थान पर थी और दिनेश के-1 में छठे स्थान पर था।
0 राष्ट्रीय खेलों में पदक क्यों नहीं मिल सका?
00 झारखंड के राष्ट्रीय खेलों के कुछ समय पहले ही हमें बोट मिल सकी थी जिसके कारण हमारे खिलाड़ियों को अभ्यास का मौका नहीं मिल सका था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा आने वाले समय में केरल और गोवा के बाद हमारे खिलाड़ी छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों में भी पदकों की बारिश करेंगे।
0 अभी जो सुविधाएं हैं, वो पर्याप्त हैं?
00 अभी तो हमारे पास खिलाड़ियों की संख्या के लिहाज से पर्याप्त बोट है। के-1 में आठ, के-2 में चार और के 4 में तीन बोट है। खिलाड़ियों की संख्या में इजाफा होने पर ही बोट की जरूरत पड़ेगी। अभी हमारे खिलाड़ी बूढ़ातालाब में अभ्यास करते हैं। अभ्यास के लिए एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का ट्रेक जरूरी है। भारतीय कयाकिंग फेडरेशन ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के पास की झील में एक ट्रेक बनाने का सुझाव राज्य सरकार को दिया है, वह ट्रेक बन जाए तो खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने में ज्यादा आसानी होगी।
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