पदक तक पहुंचने सिंथेटिक ट्रेक जरूरी
छह राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलने वाले दंतेवाड़ा के आदिवासी एथलीट मनोज कुमार मंडावी का कहना है कि राज्य में जब तक सिंथेटिक ट्रेक नहीं होगा, पदकों तक पहुंचना संभव नहीं है। राष्ट्रीय स्पर्धा में चौथे स्थान तक पहुंचने वाले इस खिलाड़ी को अब उम्मीद है कि साई में उनका चयन हो गया है तो वे जरूर बहुत जल्द राज्य के लिए पदक जीतने का साथ आगे भारतीय टीम में स्थान बनाने में सफल होंगे।
साई सेंटर में चर्चा करते हुए मनोज कुमार कहते हैं कि उनके खेल में निखार भिलाई की सेल अकादमी में तीन साल रहने के कारण आया। इन तीन (2007 से 2009 तक) सालों में ही उनको तीन बार स्कूल की राष्ट्रीय और तीन बार ओपन स्पर्धाओं में खेलने का मौका मिला। 400 के साथ 800 मीटर के इन धावक का कहना है कि भिलाई में उनको प्रशिक्षक तो जरूर अच्छे मिले, लेकिन वहां भी सिंथेटिक ट्रेक नहीं है। राष्ट्रीय स्पर्धाओं का आयोजन सिंथेटिक ट्रेक में ही होता है, ऐसे में मिट्टी के ट्रेक में दौड़कर पदक तक पहुंचना कैसे संभव है। वे पूछने पर बताते हैं कि 2009 में पूणे में हुई राष्ट्रीय जूनियर एथलीट मीट में वे चौथे स्थान पर रहे थे।
मनोज इस बात से खुश हैं कि उनका चयन अब साई सेंटर में होने के साथ उनको भोपाल के सेंटर में भेजने की बात हो रही है। वे कहते हैं कि भोपाल में सिंथेटिक ट्रेक है और वहां के ट्रेक में वे अभ्यास करके जरूर राज्य के लिए राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीतने में सफल होंगे। वे पूछने पर कहते हैं कि उनका भी लक्ष्य छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों में राज्य के लिए पदक जीतना है।
मेहनत ज्यादा इसलिए नहीं बनते एथलीट
प्रदेश में एथलीटों का टोटा क्यों हैं के सवाल पर मनोज भी कहते हैं कि एथलेटिक्स ऐसा खेल है जिसमें सबसे ज्यादा मेहनत लगती है इसलिए इस खेल से लोग जुड़ना नहीं चाहते हैं। वैसे मनोज यह भी कहते हैं कि इस मेहनतकश खेल की सबसे ज्यादा प्रतिभाएं हमारे आदिवासी क्षेत्र में हैं। वे बताते हैं कि उनके कुछ मित्र साई सेंटर भोपाल में हैं। वे कहते हैं कि अगर बस्तर में एथलीटों की तलाश की जाएगी तो बहुत एथलीट मिल जाएंगे। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि रायपुर साई सेंटर के प्रभारी शाहनवाज खान पहले ही कह चुके हैं कि एथलीटों की तलाश कराने जुलाई में बस्तर में चयन ट्रायल का आयोजन किया जाएगा।
साई सेंटर में चर्चा करते हुए मनोज कुमार कहते हैं कि उनके खेल में निखार भिलाई की सेल अकादमी में तीन साल रहने के कारण आया। इन तीन (2007 से 2009 तक) सालों में ही उनको तीन बार स्कूल की राष्ट्रीय और तीन बार ओपन स्पर्धाओं में खेलने का मौका मिला। 400 के साथ 800 मीटर के इन धावक का कहना है कि भिलाई में उनको प्रशिक्षक तो जरूर अच्छे मिले, लेकिन वहां भी सिंथेटिक ट्रेक नहीं है। राष्ट्रीय स्पर्धाओं का आयोजन सिंथेटिक ट्रेक में ही होता है, ऐसे में मिट्टी के ट्रेक में दौड़कर पदक तक पहुंचना कैसे संभव है। वे पूछने पर बताते हैं कि 2009 में पूणे में हुई राष्ट्रीय जूनियर एथलीट मीट में वे चौथे स्थान पर रहे थे।
मनोज इस बात से खुश हैं कि उनका चयन अब साई सेंटर में होने के साथ उनको भोपाल के सेंटर में भेजने की बात हो रही है। वे कहते हैं कि भोपाल में सिंथेटिक ट्रेक है और वहां के ट्रेक में वे अभ्यास करके जरूर राज्य के लिए राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीतने में सफल होंगे। वे पूछने पर कहते हैं कि उनका भी लक्ष्य छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों में राज्य के लिए पदक जीतना है।
मेहनत ज्यादा इसलिए नहीं बनते एथलीट
प्रदेश में एथलीटों का टोटा क्यों हैं के सवाल पर मनोज भी कहते हैं कि एथलेटिक्स ऐसा खेल है जिसमें सबसे ज्यादा मेहनत लगती है इसलिए इस खेल से लोग जुड़ना नहीं चाहते हैं। वैसे मनोज यह भी कहते हैं कि इस मेहनतकश खेल की सबसे ज्यादा प्रतिभाएं हमारे आदिवासी क्षेत्र में हैं। वे बताते हैं कि उनके कुछ मित्र साई सेंटर भोपाल में हैं। वे कहते हैं कि अगर बस्तर में एथलीटों की तलाश की जाएगी तो बहुत एथलीट मिल जाएंगे। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि रायपुर साई सेंटर के प्रभारी शाहनवाज खान पहले ही कह चुके हैं कि एथलीटों की तलाश कराने जुलाई में बस्तर में चयन ट्रायल का आयोजन किया जाएगा।
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