पदक जीतने की योजना ही नहीं बनती
भारत को ओलंपिक के भारोत्तोलन में एक मात्र पदक दिलाने वाली महिला खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी का कहना है कि देश में ओलंपिक में पदक जीतने की योजना ही नहीं बनती है। अपने देश में ओलंपिक से एक माह पहले ही सरकार और खेल संघ नींद से जागते हैं। सरकार तो पुराने खिलाड़ियों को मदद ही नहीं लेना चाहती है, वह तो बस विदेशी प्रशिक्षकों पर खर्च करना जानती है।
मल्लेश्वरी ने कहा कि ओलंपिक में छोटे-छोटे देश 25-30 पदक जीत लेते हैं, लेकिन भारत के हाथ पदक नहीं लगते हैं। इसका कारण वह बताते हुए कहती हैं कि अपने देश में ओलंपिक में पदक जीतने की योजना ही नहीं बनती है। विदेशों में एक ओलंपिक के समाप्त होने से काफी पहले ही दूसरे ही नहीं तीसरे ओलंपिक में पदक जीतने की योजना बन जाती है।
मल्लेश्वरी कहती हैं कि सरकार कुछ खेलों में विदेशी कोच बुलाती हैं उनको 300 से 500 डॉलर रोज दिए जाते हैं। यह अच्छी बात है, लेकिन अपने देश में भी ऐसे खिलाड़ी हैं जिनकी सेवाएं लेकर पदकों तक पहुंचा जा सकता है। वह कहती हैं कि विदेश में भी ओलंपियनों को ही खिलाड़ी तैयार करने की जिम्मेदारी दी जाती है, लेकिन अपने देश में सरकार खिलाड़ियों को इस लायक समझती ही नहीं है।
अपने दम पर जीते हैं पदक
मल्लेश्वरी का कहना है कि भारत के लिए पदक जीतने वाले लिएंडर पेस, अभिनव बिन्द्रा, विजेन्द्र सिंह और सुशील कुमार सभी ने अपने दम पर पदक जीते हैं। खिलाड़ी में पदक जीतने का जुनून होना चाहिए। वह बताती हैं कि सुशील कुमार को उन्होंने ओलंपिक में दिन-रात मेहनत करते देखा है। सुशील कभी खाली नहीं बैठते थे। वह कहती हैं कि जिस खिलाड़ी में पदक की भूख होती है, वह चाहे तपती धूप हो, या बारिश वह मैदान में जरूर जाएगा। मल्लेश्वरी को इस बात का अफसोस है कि आज के खिलाड़ी शार्टकट से सफलता पाने के लिए डग्स का सहारा लेने लगे हैं।
क्रिकेट को दोष देना गलत
मल्लेश्वरी कहती हैं कि दूसरे खेलों के खिलाड़ी और खेल संघों के लोग सीधे क्रिकेट को दोष देते हैं। क्रिकेट को दोष देना गलत है। क्रिकेट संघ ने योजना बनाकर सफलता प्राप्त की, क्यों कर दूसरे खेलों के संघ ऐसी योजना नहीं बनाते हैं। उन्होंने कहा कि आज यह जरूरी है कि किसी भी खेल संघ में अध्यक्ष किसी उद्योगपति को बनाया जाए। सचिव खेलों से जुड़ा होना चाहिए। खेलों में निजी क्षेत्र की भागीदारी जरूरी है। मल्लेश्वरी कहती हंै कि निचले स्तर से खेलों को उठाने की जरुरत है। आज स्कूली खेलों का हाल बुरा है।
कोई दिल्ली अभ्यास करने जाएगा क्या
मल्लेश्वरी कहती हैं कि छत्तीसगढ़ में अगर एथलेटिक्स का एक भी सिंथेटिक ट्रेक नहीं है तो क्या यहां का खिलाड़ी दिल्ली जाकर अभ्यास करेगा। यह एक छत्तीसगढ़ की बात नहीं है, ऐसी स्थिति आज देश से हर राज्य में है। राज्यों में खेलों की सुविधाएं नहीं है और हम पदकों की बात करते हैं।
मल्लेश्वरी ने कहा कि ओलंपिक में छोटे-छोटे देश 25-30 पदक जीत लेते हैं, लेकिन भारत के हाथ पदक नहीं लगते हैं। इसका कारण वह बताते हुए कहती हैं कि अपने देश में ओलंपिक में पदक जीतने की योजना ही नहीं बनती है। विदेशों में एक ओलंपिक के समाप्त होने से काफी पहले ही दूसरे ही नहीं तीसरे ओलंपिक में पदक जीतने की योजना बन जाती है।
मल्लेश्वरी कहती हैं कि सरकार कुछ खेलों में विदेशी कोच बुलाती हैं उनको 300 से 500 डॉलर रोज दिए जाते हैं। यह अच्छी बात है, लेकिन अपने देश में भी ऐसे खिलाड़ी हैं जिनकी सेवाएं लेकर पदकों तक पहुंचा जा सकता है। वह कहती हैं कि विदेश में भी ओलंपियनों को ही खिलाड़ी तैयार करने की जिम्मेदारी दी जाती है, लेकिन अपने देश में सरकार खिलाड़ियों को इस लायक समझती ही नहीं है।
अपने दम पर जीते हैं पदक
मल्लेश्वरी का कहना है कि भारत के लिए पदक जीतने वाले लिएंडर पेस, अभिनव बिन्द्रा, विजेन्द्र सिंह और सुशील कुमार सभी ने अपने दम पर पदक जीते हैं। खिलाड़ी में पदक जीतने का जुनून होना चाहिए। वह बताती हैं कि सुशील कुमार को उन्होंने ओलंपिक में दिन-रात मेहनत करते देखा है। सुशील कभी खाली नहीं बैठते थे। वह कहती हैं कि जिस खिलाड़ी में पदक की भूख होती है, वह चाहे तपती धूप हो, या बारिश वह मैदान में जरूर जाएगा। मल्लेश्वरी को इस बात का अफसोस है कि आज के खिलाड़ी शार्टकट से सफलता पाने के लिए डग्स का सहारा लेने लगे हैं।
क्रिकेट को दोष देना गलत
मल्लेश्वरी कहती हैं कि दूसरे खेलों के खिलाड़ी और खेल संघों के लोग सीधे क्रिकेट को दोष देते हैं। क्रिकेट को दोष देना गलत है। क्रिकेट संघ ने योजना बनाकर सफलता प्राप्त की, क्यों कर दूसरे खेलों के संघ ऐसी योजना नहीं बनाते हैं। उन्होंने कहा कि आज यह जरूरी है कि किसी भी खेल संघ में अध्यक्ष किसी उद्योगपति को बनाया जाए। सचिव खेलों से जुड़ा होना चाहिए। खेलों में निजी क्षेत्र की भागीदारी जरूरी है। मल्लेश्वरी कहती हंै कि निचले स्तर से खेलों को उठाने की जरुरत है। आज स्कूली खेलों का हाल बुरा है।
कोई दिल्ली अभ्यास करने जाएगा क्या
मल्लेश्वरी कहती हैं कि छत्तीसगढ़ में अगर एथलेटिक्स का एक भी सिंथेटिक ट्रेक नहीं है तो क्या यहां का खिलाड़ी दिल्ली जाकर अभ्यास करेगा। यह एक छत्तीसगढ़ की बात नहीं है, ऐसी स्थिति आज देश से हर राज्य में है। राज्यों में खेलों की सुविधाएं नहीं है और हम पदकों की बात करते हैं।
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