बस्तर बालाएं अब फुटबॉल की ओर
बस्तर बालाओं को मैराथन के बाद अब नए-नए खेलों से जोड़ने की मुहिम में रुकमणी सेवा आश्रम जुटा है। पहले कदम पर फुटबॉल से खिलाड़ियों को जोड़ा गया है। दो बालिका खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेलने में सफल भी हो गर्इं हैं। एक खिलाड़ी जमुना कोयाम जहां पर चार राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलीं हैं, वहीं मैराथन धावक दशरी कश्यप एक बार राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलीं हैं।
राज्य मैराथन में कई बरसों से दबदबा बनाए रखने वाले रुकमणी सेवा आश्रम की बालिका खिलाड़ियों को अब आश्रम के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी दूसरे खेलों की तरफ मोड़ने में जुटे हैं। वे बताते हैं कि हमारे आश्रम की खिलाड़ियों में इतनी प्रतिभा है कि उनको जिस खेल का प्रशिक्षण मिल जाता है, उस खेल में कमाल करती हैं। आश्रम की दो बालिकाओं के बारे में उन्होंने बताया कि इनको फुटबॉल से जोड़ा गया है। आश्रम में फुटबॉल का प्रशिक्षण प्रारंभ कराने के बाद यहां की दो खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेलने में सफल हुईं हैं। एक खिलाड़ी जमुना कोयाम चार राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलीं हैं। जमुना पूछने पर बताती हैं कि उनको पहली बार 2009 में गोवा में खेली गई राष्ट्रीय स्कूली स्पर्धा की अंडर 14 में खेलने का मौका मिला। इसके बाद 2010 में नैनीताल की राष्ट्रीय स्पर्धा में खेली। पिछले साल दो राष्ट्रीय स्पर्धाओं और 2011 में एक राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने का मौका मिला। जमुना कहती हैं कि मैराथन के बाद उनको इस खेल में भी मजा आने लगा है। वह पूछने पर कहती हैं कि उनका इरादा मैराथन के साथ फुटबॉल भी खेलने का है। जमुना ने बताया कि उनके आश्रम में रुपक मुखर्जी फुटबॉल का प्रशिक्षण देते हैं। एक और खिलाड़ी दशरी कश्यम भी फुटबॉल खेल रहीं हैं। वह बताती हैं कि उनको एक बार 2010 में नैनीताल की राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने का मौका मिला है। इन खिलाड़ियों को इस बात का मलाल है कि छत्तीसगढ़ की टीम पदक तक नहीं पहुंच पाती हैं। इनका कहना है कि हम आदिवासी खिलाड़ियों की तमन्ना है कि हम प्रदेश की टीम में स्थान बनाकर राज्य के लिए पदक जीतने का काम करें।
धर्मपाल सैनी बताते हैं कि फुटबॉल के बाद आश्रम में हैंडबॉल, थ्रोबॉल, क्रिकेट, बास्केटबॉल का भी प्रशिक्षण प्रारंभ करने की योजना है। जिन भी खेलों के प्रशिक्षक मिलेंगे उन खेलों में बालिका खिलाड़ियों को राज्य के लिए तैयार किया जाएगा। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों में ज्यादा से ज्यादा खेलों में आश्रम की खिलाड़ी खेल सकें यही हमारा प्रयास रहेगा।
राज्य मैराथन में कई बरसों से दबदबा बनाए रखने वाले रुकमणी सेवा आश्रम की बालिका खिलाड़ियों को अब आश्रम के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी दूसरे खेलों की तरफ मोड़ने में जुटे हैं। वे बताते हैं कि हमारे आश्रम की खिलाड़ियों में इतनी प्रतिभा है कि उनको जिस खेल का प्रशिक्षण मिल जाता है, उस खेल में कमाल करती हैं। आश्रम की दो बालिकाओं के बारे में उन्होंने बताया कि इनको फुटबॉल से जोड़ा गया है। आश्रम में फुटबॉल का प्रशिक्षण प्रारंभ कराने के बाद यहां की दो खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेलने में सफल हुईं हैं। एक खिलाड़ी जमुना कोयाम चार राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलीं हैं। जमुना पूछने पर बताती हैं कि उनको पहली बार 2009 में गोवा में खेली गई राष्ट्रीय स्कूली स्पर्धा की अंडर 14 में खेलने का मौका मिला। इसके बाद 2010 में नैनीताल की राष्ट्रीय स्पर्धा में खेली। पिछले साल दो राष्ट्रीय स्पर्धाओं और 2011 में एक राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने का मौका मिला। जमुना कहती हैं कि मैराथन के बाद उनको इस खेल में भी मजा आने लगा है। वह पूछने पर कहती हैं कि उनका इरादा मैराथन के साथ फुटबॉल भी खेलने का है। जमुना ने बताया कि उनके आश्रम में रुपक मुखर्जी फुटबॉल का प्रशिक्षण देते हैं। एक और खिलाड़ी दशरी कश्यम भी फुटबॉल खेल रहीं हैं। वह बताती हैं कि उनको एक बार 2010 में नैनीताल की राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने का मौका मिला है। इन खिलाड़ियों को इस बात का मलाल है कि छत्तीसगढ़ की टीम पदक तक नहीं पहुंच पाती हैं। इनका कहना है कि हम आदिवासी खिलाड़ियों की तमन्ना है कि हम प्रदेश की टीम में स्थान बनाकर राज्य के लिए पदक जीतने का काम करें।
धर्मपाल सैनी बताते हैं कि फुटबॉल के बाद आश्रम में हैंडबॉल, थ्रोबॉल, क्रिकेट, बास्केटबॉल का भी प्रशिक्षण प्रारंभ करने की योजना है। जिन भी खेलों के प्रशिक्षक मिलेंगे उन खेलों में बालिका खिलाड़ियों को राज्य के लिए तैयार किया जाएगा। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों में ज्यादा से ज्यादा खेलों में आश्रम की खिलाड़ी खेल सकें यही हमारा प्रयास रहेगा।
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