गिफ्ट की बहार-यह है अखबार वार
अखबार चलाने का काम अब पूरी तरह से व्यापार में बदल चुका है। अखबार चलाने के लिए अब गिफ्ट का सहारा लेना पड़ा रहा है। इसका कारण यह है कि आज बाजार में इतने ज्यादा अखबार हो गए हैं कि पाठक को सोचना पड़ता है कि वह कौन सा अखबार ले। हालांकि एक बात यह भी है कि जिसको जो अखबार पसंद है, वह वही लेता है, लेकिन आज का पाठक भी गिफ्ट के चक्कर में कहीं न कहीं फंस ही गया है। यही वजह है कि आज जहां भी कोई नया अखबार आता है, वह सबसे पहले गिफ्ट से पाठकों को लुभालने का कम करता है। रायपुर से प्रारंभ होने वाले राजस्थान पत्रिका ने तो अखबार से पहले ही गिफ्ट बांटने का अनोखा काम चालू कर दिया है। इसे प्रचार का तरीका कहा जा रहा है।
दो दिन पहले की बात है हम सुबह को कंप्यूटर में काम कर रहे थे कि गेट बजा। हम गए तो देखा कि पत्रिका के कुछ सर्वेयर खड़े हैं। उन्होंने पूछा कि आपके घर पर कौन सा अखबार आता है। हमने कहा जाओ यार हम खुद प्रेस में काम करते हैं और हमारे यहां सभी अखबार आते हैं, आपका अखबार चालू होगा तो वह भी आने लगेगा। उन्होंने कहा कि सर प्लीज अपना मोबाइल नंबर बता दें और कृपया गिफ्ट ले लें। हमने कहा कि यार अभी तो आपका अखबार प्रारंभ भी नहीं हुआ है और आप गिफ्ट बांट रहे हैं। उन्होंने कहा कि सर यह तो प्रचार का अपना तरीका है। वास्तव में पत्रिका ने अपने लिए प्रचार का अलग तरीका अपनाया है। अब उनका अखबार कोई लेता है या नहीं लेता है यह अलग बात है लेकिन इतना तो तय है कि जिसको गिफ्ट मिलेगा उसे कम से कम यह तो याद रहेगा कि रायपुर से कोई पत्रिका नाम का पेपर प्रारंभ हो रहा है। हमें गिफ्ट के रूप में चार कांच के गिलास दिए गए इसी के साथ छह माह के लिए 15 रुपए के कूपन दिए गए कि अगर हम पेपर लेते हैं तो छह माह 15 रुपए कम में पेपर मिलेगा।
पत्रिका ने रायपुर में प्रचार का यह तरीका अपनाया है तो वह चाहता है कि रायपुर में उसकी धाक जम जाए। यहां भी उसका मकसद भास्कर को मात देना है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि एक समय पूरे राजस्थान में राज करने वाले राजस्थान पत्रिका का वर्चस्व भास्कर ने वहां समाप्त कर दिया है। ऐसे में पत्रिका को अपने राज्य से बाहर पैरे पसारने पड़े हैं। बहरहाल आज यह बात तय है कि अखबार चलाने के लिए गिफ्ट का सहारा लेना पड़ रहा है। रायपुर में इसकी शुरुआत देशबन्धु से हुई थी इसके बाद भास्कर की कुर्सी योजना ने अखबार जगत में भूचाल ला दिया था इसके बाद से ही पाठकों को लुभालने का बड़े अखबार गिफ्ट योजना पर जरूर काम करते हैं।
2 टिप्पणियाँ:
गिफ्ट के चक्कर में खूब फंसते हैं लोग.
चलो आपको गिफ्ट तो मिला
''गिफ्ट'' दे कर
अखबार को ''लिफ्ट '' करने का
खेल ही बचा है अब.
पत्रकारिता से विचार कहीं और
''शिफ्ट'' हो चुके है.
अब यह धंधा है,
वैसे तो गन्दा है,
बहुत खलता है,
पर क्या करें,
नया दौर है,
सब चलता है .
एक टिप्पणी भेजें