लड़कियां खुद देती है यौन संबंध बनाने के आफर
अपने राज्य में ऐसी खिलाडिय़ों की भी कमी नहीं है जो खुद यौन संबंध बनाने के ऑफर के साथ अपने को खेल के उस मुकाम पर ले जाना चाहती हैं जहां पर पहुंच कर उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। ऐसी खिलाड़ी स्कूल स्तर से लेकर कॉलेज और फिर ओपन वर्ग में भी मिल जाएगीं। हमको आज भी एक घटना याद है। जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था और मप्र था तो रायपुर के पुलिस मैदान में राज्य की टीमें बनाने के लिए स्कूली खेल हो रहे थे। इन खेलों में खेलने आईं एक बालिका खिलाड़ी ने चयन करने वालों तक यह खबर अपने ही खेल शिक्षक से भिजवाई की अगर उनका चयन मप्र की टीम में कर लिया जाता है तो वो जो चाहेंगे वह करने को तैयार है। इस बारे में तब कुछ जानकारों ने बताया था कि यह तो आम बात है स्कूली खेलों में जहां ज्यादातर छोटी उम्र की खिलाडिय़ों का यौन शोषण उनके शिक्षक करते हैं, वहीं उनका चयन टीम में करवाने के लिए उनको चयनकर्ताओं के सामने भी परोस देते हैं। ऐसा ही कुछ कॉलेज स्तर पर भी होता है। वैसे ओपन वर्ग में ऐसे मामले ज्यादा होते हैं। इसका कारण यह है कि ओपन वर्ग कीराष्ट्रीय चैंपियनशिप का ज्यादा महत्व होता है।
खैर यह बात तो उस समय मप्र के रहते की है, पर अपना राज्य बनने के बाद भी ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं। अक्सर खिलाडिय़ों के साथ ही खेल से जुड़े लोगों और प्रशिक्षकों के बीच यह बातें सुनने को मिलती रहती हैं कि उस प्रशिक्षक के उस खिलाड़ी से संबंध हैं। और ये संबंध कोई प्यार के नहीं बल्कि मजबूरी के होते हैं जो उस खिलाड़ी को प्रलोभन देकर या फिर डरा धमका कर भी बनाए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि खिलाडिय़ों और कोच में प्यार के संबंध नहीं होते हैं। किसी खिलाड़ी और कोच तथा किसी खिलाड़ी का खिलाड़ी से प्यार भी आम बात है। और ऐसे कई उदाहरण है कि अपने सच्चे प्यार को साबित करने के लिए किसी खिलाड़ी ने कोच से शादी की तो किसी खिलाड़ी ने खिलाड़ी को वरमाला पहना दी। यह सब तो जायज भी है। पर खेल जगत में जायज से ज्यादा नाजायज काम हो रहे हैं। नाजायज काम किस तरह से होते हैं खिलाडिय़ों को किस तरह से डराया धमकाया और प्रलोभन दिया जाता है इसका खुला उदाहरण कुछ साल पहले तब सामने आया था जब बिलासपुर में एक राष्ट्रीय बेसबॉल चैंपियनशिप का आयोजन हुआ। वहां पर उड़ीसा के एक कोच को एक कम उम्र की बालिका के साथ खुलेआम गलत हरकत करते देखा गया। इस कोच के बारे में खुलासा हुआ कि वह खिलाडिय़ों को जहां उनका भविष्य बनाने का प्रलोभन देता था, वहीं डराता भी था कि वह उनका कोच है और वही उनका भविष्य बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इस कोच को लेकर पुलिस में रिपोर्ट भी हुई, पर बेसबॉल से जुड़े राष्ट्रीय स्तर के साथ ही प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लिया ही नहीं। इसका मलतब साफ है कि खेल संघ के पदाधिकारियों को भी मालूम है कि उड़ीसा के कोच ने जो भी किया वह आम बात है। यह जो मामला था वह हुआ अपने राज्य में, पर मामला दूसरे राज्य का था, लेकिन इस मामले से ठीक पहले राजधानी रायपुर में स्कूली खेलों की राज्य चैंपियनशिप के समय भी एक मामला हुआ था, तब यहां पर एक टीम के साथ आए टीम के कोच को समापन समारोह में कई लोगों ने खुलेआम एक छोटी उम्र की खिलाड़ी को अपनी गोद में बिठाकर गलत हरकत करते देखा। जब उस कोच की हरकतें हदें पार करने लगीं तो खेलों से जुड़े कुछ वरिष्ठ लोगों ने उस कोच को काफी फटकार लगाई।
25 टिप्पणियाँ:
क्या कहा जाये!!
राजकुमार भाई नमस्कार! सही विषय उठाया आपने। यहां आप कह सकते हैं पकड़ा गये तो चोर नही तो साहूकार। जो भी प्रकरण ध्यान मे आता है उसमे ऐसा लगता है कि जब तक किसी चीज का आनंद लिया जा रहा हो तब तक जायज है यदि आवश्यकता या फ़र्माइश पूरी नही हुई तो………'उजागर कर दिया जावेगा' की धमकी।
saty kaha aapne. aisee ghatnayen aam hain aur har star par hain. bhautikvad ke yug men naitik star gir chuka hai.
राजकुमार जी,
क्षमा करें! इस आलेख का शीर्षक ही गलत है। किसी भी खेल में प्रवीण कोई खिलाड़ी तभी हो सकता है जब वह किशोरावस्था से ही अभ्यास में आ जाए। तब लड़की निश्चित रुप से अवयस्क होती है। तब उस की ओर से इस तरह का प्रस्ताव आने का क्या अर्थ है? ऐसे में सारी जिम्मेदारी कोच और सिस्टम की है कि वह लड़कियों को इस दिशा में जाने से बचाए। आप की पोस्ट से ऐसा लग रहा है जैसे सारा दोष लड़कियों का ही हो। फिर कोचिंग का काम ऐसा होना चाहिए कि किसी प्रशिक्षक और प्रशिक्षणार्थी को अकेले दुकेले मिलने का कोई अवसर ही न हो। होना तो यह चाहिए कि कम से कम दस बारह व्यक्ति सदैव ही ऐसे स्थानों पर मौजूद रहें। ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है।
किसी लड़की के बालिग होने पर वह यौन संबंध बनाने का प्रस्ताव सोच समझ कर करती है तो वह बात अलग है। फिर भी किसी लाभ के उद्देश्य से ऐसा किया जाता है तो वह इम्मोरल ट्रेफिक है। जिस के लिए प्रस्ताव देने वाला उतना ही दोषी है जितना उस प्रस्ताव को स्वीकार कर अमल करने वाला।
???
दिनेश राय द्विवेदी जी की बात से सहमत हूँ , व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो आपकी पोस्ट का शीर्षक गलत है ...
Main nahi man sakta .
मुझे भी ऐसा लगता है कि शीर्षक गलत है.... कंटेंट की रिपोर्टिंग ठीक है...
वरिष्ठ पत्रकार श्री राजकुमार ग्वालानी जी अगर अन्यथा ना लें तो मेरी नज़र में भी शीर्षक गलत और खेल जगत से जुड़ी सारी लड़कियों को बदनाम करने वाला है। कानूनी मामलों के जानकार आदरणीय श्री द्विवेदी जी और भाई सतीश सक्सेना जी के साथ ही अन्य लोगों के द्वारा ध्यान आकृष्ट करने पर भी इसको ना बदलने को क्या माना जाये। एक दो घटनाओं के आधार पर इतनी बड़ी बात कह देना वाकई बड़ी हिम्मत का काम है। बल्कि मैं तो इसे दुस्साहस कहूंगा। ब्लॉग्स की तो मुझे जानकारी नहीं है लेकिन अगर में गलत नहीं हूं तो टीवी चैनल्स पर नाबालिगों के बारे में इस तरह के लेखन और प्रदर्शन के लिये कड़े कायदे कानून हैं। ब्लॉग जगत से जुड़े गंभीर लोगों को इस बारे में आचार संहिता तय करने के लिये प्रयास करना चाहिये। हम सब के घरों मे भी बेटियां हैं, जिनमें से ज़्यादातर किसी ना किसी खेल से जुड़ी होंगी। मैं आपकी लेखनी का प्रशंसक हूं लेकिन इस तरह के सनसनीखेज शीर्षक और लेखन की उम्मीद मैं आपसे नहीं कर सकता। कृपया इस पोस्ट का शीर्षक और कुछ हद तक भाषा भी तुरंत बदलने का कष्ट करें। आपकी बड़ी कृपा होगी।
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टिपण्णी देने में असमर्थ हूँ !
माफ़ी का तलबगार हूँ !
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टिपण्णी देने में असमर्थ हूँ !
माफ़ी का तलबगार हूँ !
yes ! क्या कहा जाये!!
आदरणीय मित्रों
संभव है आप लोगों की नजर में शीर्षक गलत हो। लेकिन जहां तक हम समझते हैं कि एक पत्रकार के नजरिए से यह शीर्षक गलत नहीं है। हमने खेल ही नहीं वरन हर क्षेत्र में लड़कियों को ऐसे समझौते करते देखा है। अपने दो दशक से ज्यादा के पत्रकरिकता जीवन में हमेशा ऐसी अनेकों घटनाओं को देखा है। खेल जगत में तो यह गदंगी बहुत ज्यादा है। हमने जब खेल जगत के यौन शोषण के बारे में काफी पहले लिखना शुरू किया था तो हमारे काफी मित्रों का ऐसा मानना था कि ऐसे में तो खेलों में पालक अपनी लड़कियों को नहीं भेजेंगे। हमने कहा था बेशक मत भेजे लेकिन हम इस गदंगी के खिलाफ जरूर लिखेंगे। जब हमने इस गदंगी की तह में जाने का काम किया तभी वो सब भी मालूम हुआ है जो हमने लिखा है। इसके अन्यथा न लेते हुए इस नजरिए से देखना चाहिए कि अपने समाज में यह आज आम हो गया। नौकरी पाने के लिए हम कई लड़कियों को समझौता करते देखा है। अब इसे समझौता कहा जाए या सौदा जैसा जिसका नजरिए। लिखने को तो काफी कुछ है, बाकी फिर कभी। खेल में किस तरह से यौन शोषण होता है इसका नूमना राष्ट्रीय हॊकी टीम के साथ भारोत्तोलन में सामने आ चुका है। कहीं कोच दोषी होते हैं तो कहीं खिलाड़ी भी दोषी होती हैं। जब कोच के बारे में लिखा जाता है तो बवाल नहीं होता है. लेकिन यही बात अगर किसी का नाम लिए बिना महिला खिलाड़ियों के बारे में लिखी गई है तो उसे हजम क्यों नहीं किया जा रहा है। यह भी तो समाज का एक रूप है जिसे हमने सामने रखने का काम किया है।
अगर आप कि बात को सही माने तो अर्थ ये हैं कि लडकिया अपने शरीर के जरिये ऊपर जा रही हैं । ये सोच सदियों पुरानी हैं क्युकी नारी के शरीर को भोग्य योग्य माना गया हैं । आप कि सोच समाज मे हर जगह पहली हैं जहाँ नारी कि उन्नति को नकारने का ये तरिका हैं ।
बदलते समय ने नारी को जागरूक बना दिया हैं और उसको अब अपना शोषण दिखता हैं जब कोई पुरुष उसके शरीर के बदले उसके लिये तरक्की के रास्ते खोलता हैं । कोच का काम क्या हैं और वो उस काम को सही तरह से करता हैं या नहीं ?? अगर कोई महिला खिलाड़ी कोच को भरमाना चाहती हैं तो क्या कोच अपने अधिकारियों को उसकी सुचना देता हैं ??? नहीं तो क्यूँ नहीं
नारी के शरीर से ऊपर उठ कर उसकी क़ाबलियत जब आकलित होगी तभी सिस्टम बदेलगा । दोष सिस्टम का हैं और आप उसी सिस्टम का हिस्सा हैं
कहते हैं सच कड़ुवा होता है। हमने जो देखा और जाना है, वही लिखा है। अगर यह बात किसी को हजम नहीं दो रही है तो क्या किया जा सकता है। हर बात के दो पहलू होते हैं। समाज में कहीं पुरुष दोषी होता है तो कही स्त्री भी दोषी होती है। जब बात स्त्री पर आती है तो नजरिया बदल क्यों जाता है।
ब्लाग जगत में हमने एक बात यह महसूस की है कि यहां सही बात लिखने वालों को गुटबाजी के जरिए दबाने का काम किया जाता है। शायद यही वजह है कि ब्लाग जगत में सही बातों को लिखने से ब्लागर मित्र परहेज करते हैं।
दिनेश जी,
हम भी जानते हैं कि सारा दोष सिस्टम है। हम लगातार यौन शोषण पर लिख रहे हैं। लगता है आपने आज का लेख पढ़कर धारणा बना ली है। खेल जगत में हो रहे यौन शोषण के मामलों का एक पहलू यह भी जिसे हमने सामने रखा है। हर पहलू पर गौर करना जरूरी है। क्या कोइर् लड़की ऐसा आफर देती है तो वह दोषी नहीं है। इस बात को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। आप कहते हैं कि किसी कोच को लड़की से अकेले मिलने का मौका न मिले। यहां तो कोच रात दिन लड़कियों के साथ रहते हैं। यह बात भी तय है कि बिना लड़कियों की सहमति के कुछ नहीं होता है। बरसों से हम देख रहे हैं, यौन शोषण की शिकार लड़कियां सामने नहीं आ पाती हैं। छत्तीसगढ़ में एक लड़की की हमने मदद की थी तब पहली बार खेल जगत में यौन शोषण का मामला उजागर हुआ था।
बच्चों की पढ़ाई के कारण नगर में बसे परंतु खेती के कारण बारम्बार गांव की ओर भागना पड़ता है। यह देखकर मन प्रसन्न है कि जो काम मैं करना चाहता था वह चल रहा है। भंडाफोड़ कार्यक्रम मूलतः स्वामी दयानंद जी का ही अभियान है। इसमें मेरी ओर से सदैव सहयोग रहेगा। कामदर्शी की पोल मैंने अपने ब्लॉग पर खोल ही दी है। अनवर को मैं आरंभ से ही छकाता थकाता आ रहा हूं।
शायद यही वजह है कि ब्लाग जगत में सही बातों को लिखने से ब्लागर मित्र परहेज करते हैं।
oh does this mean that what ever you have written is wrong !!!!!!!!!!!!!! and you have also abstained from writing the truth
सबसे पहले आप इसके शीर्षक की बदलने की कृपा करें तो कुछ बात बने, दूसरी बात ये की आपने जिस तरह से ये लेख लिखा है उसके हिसाब से सरी लड़कियां ऐसे ही करती हैं, जो की किसी भी नजरियें से सही नहीं है , हाँ आपने जो कुछ भी बताया वह सही हो सकता है या सही हो भी , लेकिन आपके का तरीका और शीर्षक ये बताने की कोशिश कर रहा है की सभी लड़कियां ऊपर पहुँचने के लिए ऐसा करती हैं, जो की बिलकुल भी सही नहीं है..........
दिनेशराय द्विवेदी जी के विचारों से सहमत ..लड़कियों को मजबूर किया जाता है और अब तो सरकारी व्यवस्था लोगों को चोर ,बेईमान और भी न जाने क्या-क्या बनने को मजबूर कर रही है | पूरी व्यवस्था ही सड़ चुकी है इसमें आम लोगों की तो बस जीने की मजबूरी है....
अब समझ आ रहा है कि आप जिन्दगी भर अच्छे अखबार की नौकरी क्यों न पा सके? सब आपको समझा रहे हैं कि शीर्षक बदलो पर आप तो बस मेरी मुर्गी की एक टांग ---
हर शाख पे उल्लू बैठा है.. अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा...
"एक पत्रकार के नजरिए से यह शीर्षक गलत नहीं है।" यदि यह आपका कहना है तब तो और भी ग़लत है इसलिये कि आपका नज़रिया बिलकुल सही है लेकिन इस शीर्षक की वज़ह से भ्रम पैदा हो रहा है । वैसे भी मै इस धारणा का विरोध करता हूँ लडकियाँ इसके लिये कतई ज़िम्म्दार नहे हैं । यह सरासर पुरुषवादी दृष्टिकोण है ।
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