छत्तीसगढ़ में तीन खेलों के ही प्रशिक्षक
प्रदेश के खेल विभाग में महज तीन खेलों के ही प्रशिक्षक हैं। विभाग में प्रशिक्षकों के १८ पद स्वीकृत होने के बाद भी अब तक इन पदों पर कोई भर्ती नहीं की जा रही है। इन पदों की स्वीकृत मिले दो साल हो गए हैं। छत्तीसगढ़ में भारतीय खेल प्राधिकरण के सात एनआईएस कोच काम कर रहे हैं। मप्र में इस समय खेल विभाग में १२ सौ से भी ज्यादा प्रशिक्षक काम कर रहे हैं जिसके कारण मप्र में खेलों का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। छत्तीसगढ़ में खेल संघों के पास अपने जो प्रशिक्षक हैं उनकी मदद से ही खिलाडिय़ों को निखारने का काम किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ बनने के एक दशक बाद भी अपने राज्य के खिलाड़ी प्रशिक्षकों के लिए तरस रहे हैं। खेल विभाग में पिछले दो साल से प्रशिक्षकों के १८ पद स्वीकृत होने के बाद भी इन पदों पर भर्ती नहीं की जा रही है। विभाग में इस समय महज तीन कोच हंै। एक स्थाई कोच फुटबॉल की सरिता कुजूर हैं जिनकी नियुक्ति २००३ में की गई थी। विभाग में दो संविदा नियुक्ति वाले प्रशिक्षक हैं। साफ्टबॉल के प्रशिक्षक निंगराज रेड्डी की नियुक्ति २००५ में हुई है। एक और प्रशिक्षक कुश्ती के गणेश सिंहा हैं, लेकिन इनसे प्रशिक्षक का काम लेने की बजाए इनको जिला खेल अधिकारी बनाकर रखा गया था, अब इनको दुर्ग में कोच के तौर पर नियुक्त किया गया है। विभाग में एक और कोच शैलेन्द्र वर्मा का नाम है, लेकिन ये कोच छत्तीसगढ़ बनने के बाद से ही विभाग के लिए काम नहीं कर रहे हैं और पिछले ९ साल गायब हैं। इसके बाद भी विभाग में इनकी गिनती होती है, अब जाकर विभाग ने इनको बाहर मानते हुए कार्रवाई प्रारंभ की है।
१५ पद खाली
विभाग के सेटअप में प्रशिक्षकों के १८ पद स्वीकृत किए गए हैं। इस सेटअप को दो साल का समय होने के बाद भी विभाग में अब तक भर्ती की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की गई है। विभाग के पास तीन कोच होने के बाद अब तक १५ पर खाली हैं।
साई के सात कोच राज्य में
एक तरफ जहां विभाग के पास महज तीन कोच हैं तो वहीं भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई के सात कोच प्रदेश में काम कर रहे हैँ। इनमें से दो रायपुर, दो बिलासपुर और दो राजनांदगांव में और एक कोच जशपुर में हैं। जानकारों का कहना है कि अब साई से प्रशिक्षकों का मिलना बंद होने के कारण साई अपने प्रशिक्षक नहीं भेज रहा है, पहले राज्य के बाद जिस खेल के जितने कोच होते थे उतने की कोच साई से मिल जाते थे। साई अब कोच सिर्फ अपने प्रशिक्षण सेंटरों में भेजते हैं। रायपुर में साई का एक सेंटर बनना है, इसके बनने से यहां के लिए प्रशिक्षक मिलेंगे। ये प्रशिक्षक वैसे स्थानीय होंगे क्योंकि साई की अब योजना है कि जहां भी वे सेंटर खोलते हैं, वहां पर प्रशिक्षक स्थानीय रखे जाते हैं। इस बारे में पहले ही साई के भोपाल सेंटर के निदेशक आरके नायडू खुलासा कर चुके हैं कि स्थानीय प्रशिक्षकों को ही पहले प्राथमिकता दी जाएगी।
विभाग प्रशिक्षक तैयार करने भी गंभीर नहीं
प्रदेश की खेल नीति के साथ खेल विभाग के प्रोत्साहन नियम २००५ में इस बात का साफ उल्लेख है कि विभाग राज्य के सीनियर खिलाडिय़ों को एनआईएस कोर्स करवाने के लिए भेजेगा और उनकी सेवाएं ली जाएंगी, लेकिन अब तक विभाग ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की है। राज्य में जिन खिलाडिय़ों ने अपने खर्च से एनआईएस कोर्स किया है, वे या तो किसी निजी स्कूल में खेल शिक्षक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं या फिर बेरोजगार भटक रहे हैं। ऐसे प्रशिक्षकों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि खेल विभाग पद खाली होने के बाद भी नहीं भर रहा है। इसी के साथ बीपीएड और एमपी एड करने वाले मप्र का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उनको भी राज्य सरकार उसी तरह से नौकरी देकर खिलाडिय़ों को विकारने का अवसर दे जिस तरह मप्र सरका ने किया है।
मप्र में प्रशिक्षकों का अंबार
खेल के जानकार बताते हैं कि मप्र ने छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद अपने राज्य में खेलों का ग्राफ बढ़ाने के लिए एक बार में ही १२ सौ से ज्यादा प्रशिक्षकों की नियुक्ति की है। मप्र में एनआईएस करने वाले प्रशिक्षकों को नौ हजार रुपए, बीपीएड और एमपीएड करने वालों को प्रशिक्षक के रूप में सात हजार, अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को कोच की सेवाएं देने पर सात हजार, राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को कोच नियुक्त करने पर पांच हजार और ग्रामीण क्षेत्र में प्रशिक्षण देने वालों को दो हजार की राशि वेतन के रूप में खेल विभाग दे रहा है। मप्र में इतने ज्यादा प्रशिक्षक होने के कारण वहां खेलों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है।
संघ के प्रशिक्षकों का सहारा
छत्तीसगढ़ में प्रशिक्षकों का टोटा होने के बाद भी यहां पर अगर कई खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सफलता मिल रही है और खिलाड़ी पदक जीत रहे हैं तो इसके पीछे कारण यह है कि खेल संघों के पास अपने ऐसे प्रशिक्षक हैं जो या तो एनआईएस है या फिर ऐसे सीनियर खिलाड़ी हैं जो बरसों से खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कर रहे हैं।
अब ज्यादा प्रशिक्षक जरूरी
ऐसे में जबकि ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी छत्तीसगढ़ को मिली है तो प्रदेश में हर खेल के प्रशिक्षकों की नियुक्ति जरूरी हो गई है। हर खेल के खिलाड़ी और खेल संघों के पदाधिकारी एक स्वर में कहते हैं कि अब समय आ गया है कि खेल विभाग को हर खेल के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षकों की व्यवस्था करनी चाहिए, अगर ऐसा नहीं किया गया तो राष्ट्रीय खेलों में पदकों की उम्मीद करना बेकार होगा। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेलमंत्री लता उसेंडी भी लगातार कहती रही हैं कि खेल संघों को अपनी मेजबानी में ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने पर ध्यान देना चाहिए। पदक जीतने के लिए हम तो खिलाड़ी तैयार करने तैयार हैं, पर इसके लिए प्रशिक्षकों की व्यवस्था तो खेल विभाग कर दे।
छत्तीसगढ़ बनने के एक दशक बाद भी अपने राज्य के खिलाड़ी प्रशिक्षकों के लिए तरस रहे हैं। खेल विभाग में पिछले दो साल से प्रशिक्षकों के १८ पद स्वीकृत होने के बाद भी इन पदों पर भर्ती नहीं की जा रही है। विभाग में इस समय महज तीन कोच हंै। एक स्थाई कोच फुटबॉल की सरिता कुजूर हैं जिनकी नियुक्ति २००३ में की गई थी। विभाग में दो संविदा नियुक्ति वाले प्रशिक्षक हैं। साफ्टबॉल के प्रशिक्षक निंगराज रेड्डी की नियुक्ति २००५ में हुई है। एक और प्रशिक्षक कुश्ती के गणेश सिंहा हैं, लेकिन इनसे प्रशिक्षक का काम लेने की बजाए इनको जिला खेल अधिकारी बनाकर रखा गया था, अब इनको दुर्ग में कोच के तौर पर नियुक्त किया गया है। विभाग में एक और कोच शैलेन्द्र वर्मा का नाम है, लेकिन ये कोच छत्तीसगढ़ बनने के बाद से ही विभाग के लिए काम नहीं कर रहे हैं और पिछले ९ साल गायब हैं। इसके बाद भी विभाग में इनकी गिनती होती है, अब जाकर विभाग ने इनको बाहर मानते हुए कार्रवाई प्रारंभ की है।
१५ पद खाली
विभाग के सेटअप में प्रशिक्षकों के १८ पद स्वीकृत किए गए हैं। इस सेटअप को दो साल का समय होने के बाद भी विभाग में अब तक भर्ती की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की गई है। विभाग के पास तीन कोच होने के बाद अब तक १५ पर खाली हैं।
साई के सात कोच राज्य में
एक तरफ जहां विभाग के पास महज तीन कोच हैं तो वहीं भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई के सात कोच प्रदेश में काम कर रहे हैँ। इनमें से दो रायपुर, दो बिलासपुर और दो राजनांदगांव में और एक कोच जशपुर में हैं। जानकारों का कहना है कि अब साई से प्रशिक्षकों का मिलना बंद होने के कारण साई अपने प्रशिक्षक नहीं भेज रहा है, पहले राज्य के बाद जिस खेल के जितने कोच होते थे उतने की कोच साई से मिल जाते थे। साई अब कोच सिर्फ अपने प्रशिक्षण सेंटरों में भेजते हैं। रायपुर में साई का एक सेंटर बनना है, इसके बनने से यहां के लिए प्रशिक्षक मिलेंगे। ये प्रशिक्षक वैसे स्थानीय होंगे क्योंकि साई की अब योजना है कि जहां भी वे सेंटर खोलते हैं, वहां पर प्रशिक्षक स्थानीय रखे जाते हैं। इस बारे में पहले ही साई के भोपाल सेंटर के निदेशक आरके नायडू खुलासा कर चुके हैं कि स्थानीय प्रशिक्षकों को ही पहले प्राथमिकता दी जाएगी।
विभाग प्रशिक्षक तैयार करने भी गंभीर नहीं
प्रदेश की खेल नीति के साथ खेल विभाग के प्रोत्साहन नियम २००५ में इस बात का साफ उल्लेख है कि विभाग राज्य के सीनियर खिलाडिय़ों को एनआईएस कोर्स करवाने के लिए भेजेगा और उनकी सेवाएं ली जाएंगी, लेकिन अब तक विभाग ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की है। राज्य में जिन खिलाडिय़ों ने अपने खर्च से एनआईएस कोर्स किया है, वे या तो किसी निजी स्कूल में खेल शिक्षक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं या फिर बेरोजगार भटक रहे हैं। ऐसे प्रशिक्षकों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि खेल विभाग पद खाली होने के बाद भी नहीं भर रहा है। इसी के साथ बीपीएड और एमपी एड करने वाले मप्र का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उनको भी राज्य सरकार उसी तरह से नौकरी देकर खिलाडिय़ों को विकारने का अवसर दे जिस तरह मप्र सरका ने किया है।
मप्र में प्रशिक्षकों का अंबार
खेल के जानकार बताते हैं कि मप्र ने छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद अपने राज्य में खेलों का ग्राफ बढ़ाने के लिए एक बार में ही १२ सौ से ज्यादा प्रशिक्षकों की नियुक्ति की है। मप्र में एनआईएस करने वाले प्रशिक्षकों को नौ हजार रुपए, बीपीएड और एमपीएड करने वालों को प्रशिक्षक के रूप में सात हजार, अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को कोच की सेवाएं देने पर सात हजार, राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को कोच नियुक्त करने पर पांच हजार और ग्रामीण क्षेत्र में प्रशिक्षण देने वालों को दो हजार की राशि वेतन के रूप में खेल विभाग दे रहा है। मप्र में इतने ज्यादा प्रशिक्षक होने के कारण वहां खेलों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है।
संघ के प्रशिक्षकों का सहारा
छत्तीसगढ़ में प्रशिक्षकों का टोटा होने के बाद भी यहां पर अगर कई खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सफलता मिल रही है और खिलाड़ी पदक जीत रहे हैं तो इसके पीछे कारण यह है कि खेल संघों के पास अपने ऐसे प्रशिक्षक हैं जो या तो एनआईएस है या फिर ऐसे सीनियर खिलाड़ी हैं जो बरसों से खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कर रहे हैं।
अब ज्यादा प्रशिक्षक जरूरी
ऐसे में जबकि ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी छत्तीसगढ़ को मिली है तो प्रदेश में हर खेल के प्रशिक्षकों की नियुक्ति जरूरी हो गई है। हर खेल के खिलाड़ी और खेल संघों के पदाधिकारी एक स्वर में कहते हैं कि अब समय आ गया है कि खेल विभाग को हर खेल के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षकों की व्यवस्था करनी चाहिए, अगर ऐसा नहीं किया गया तो राष्ट्रीय खेलों में पदकों की उम्मीद करना बेकार होगा। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेलमंत्री लता उसेंडी भी लगातार कहती रही हैं कि खेल संघों को अपनी मेजबानी में ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने पर ध्यान देना चाहिए। पदक जीतने के लिए हम तो खिलाड़ी तैयार करने तैयार हैं, पर इसके लिए प्रशिक्षकों की व्यवस्था तो खेल विभाग कर दे।
1 टिप्पणियाँ:
अच्छी जानकारी दी, आभार
एक टिप्पणी भेजें