सपनों की शहजादी
मेरी कल्पना में
मेरे सपनों की शहजादी
सुंदरता की ऐसी देवी
जो सौन्दर्य को भी लजा दे
गोरे मुखड़े पर उभरने वाली आभा
मानो शीशे पर
भास्कर का धीमा प्रकाश
साथ में
माथे पर चांद सी चमकती बिंदियां
नयन ऐसे
मानो मछलियां
अधर इतने मधुर
मानो कोमल गुलाब
की दो पंखुडियां
आपस में आलिंगन कर रही हों
काली कजरारी पलकें
अपनी तरफ आकर्षिक करती
बिखरी हुईं लटें
मानो घने काले बादल हों
मेरे सपनों की शहजादी
सुंदरता की ऐसी देवी
जो सौन्दर्य को भी लजा दे
गोरे मुखड़े पर उभरने वाली आभा
मानो शीशे पर
भास्कर का धीमा प्रकाश
साथ में
माथे पर चांद सी चमकती बिंदियां
नयन ऐसे
मानो मछलियां
अधर इतने मधुर
मानो कोमल गुलाब
की दो पंखुडियां
आपस में आलिंगन कर रही हों
काली कजरारी पलकें
अपनी तरफ आकर्षिक करती
बिखरी हुईं लटें
मानो घने काले बादल हों
(यह कविता 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है)।
6 टिप्पणियाँ:
20 साल पहले भी सटीक कविता लिखते थे आप तो!!
बहुत ही खूबसूरत कविता है भाई साहब
अरे वाह ग्वालानी जी छा गए आप तो
बहुत सुन्दर शब्दचित्र
सुन्दर रचना
प्रकृति सौन्दर्य अद्भुत!
पुरानी है लेकिन है पुरानी वाइन की तरह..
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