50 साल में नहीं मिला कोई शिष्य
छत्तीसगढ़ में तीरंदाजी के अर्जुन माने जाने वाले 85 वर्षीय गोदूराम वर्मा को इस बात का मलाल है कि उनको 50 साल में कोई ऐसा शिष्य नहीं मिला जो उनकी उम्मीदों पर खरा उतरता।
शब्द भेदी बाण चलाने वाले इस धनुधर ने यहां पर कहा कि उनको 35 साल की उम्र में शब्द भेदी बाण के साथ तीरंदाजी की कला सिखाने का काम उप्र के गुरुकुल आश्रम कागड़ा के बालाकृष्ण शर्मा ने किया था। इसके बाद से ही वे इस कला के लिए कोई शिष्य तलाश रहे हैं, लेकिन उनको कोई ऐसा शिष्य नहीं मिला जो उनकी इस कला के लिए चाय, पान, सिरगरेट,, गुटखा और शराब का त्याग कर सके। श्री वर्मा कहते हैं कि इस कला के लिए यह जरूरी है। वे बताते हैं कि अब तो इतनी ज्यादा उम्र हो गई है कि वे अपनी कला का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। उनको अंतर रेलवे तीरंदाजी में सम्मानित किया गया। एक समय वह था जब श्री वर्मा एक पतले धागे को भी अपने तीरों से भेद देते थे। इसी के साथ वे आईने में देखकर लक्ष्य पर निशाना लगाते थे।
शब्द भेदी बाण चलाने वाले इस धनुधर ने यहां पर कहा कि उनको 35 साल की उम्र में शब्द भेदी बाण के साथ तीरंदाजी की कला सिखाने का काम उप्र के गुरुकुल आश्रम कागड़ा के बालाकृष्ण शर्मा ने किया था। इसके बाद से ही वे इस कला के लिए कोई शिष्य तलाश रहे हैं, लेकिन उनको कोई ऐसा शिष्य नहीं मिला जो उनकी इस कला के लिए चाय, पान, सिरगरेट,, गुटखा और शराब का त्याग कर सके। श्री वर्मा कहते हैं कि इस कला के लिए यह जरूरी है। वे बताते हैं कि अब तो इतनी ज्यादा उम्र हो गई है कि वे अपनी कला का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। उनको अंतर रेलवे तीरंदाजी में सम्मानित किया गया। एक समय वह था जब श्री वर्मा एक पतले धागे को भी अपने तीरों से भेद देते थे। इसी के साथ वे आईने में देखकर लक्ष्य पर निशाना लगाते थे।
1 टिप्पणियाँ:
इस कला को डूबना नहीं चाहिए !
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